*नाजायज़ रिश्ते की गहराई**
सागरपुर, एक छोटा-सा शहर, जहाँ सुबह की चाय की खुशबू और मंदिर की घंटियों की आवाज़ हवाओं में घुली रहती थी, वहाँ रहते थे राघव और नीलम।
राघव, 35 साल का एक चार्टर्ड अकाउंटेंट, जिसका जीवन अपनी पत्नी रिया और सात साल की बेटी अनन्या के इर्द-गिर्द घूमता था।
रिया एक गृहिणी थी, जिसका दिन घर संभालने और अनन्या की परवरिश में बीतता था। लेकिन राघव की ज़िंदगी में एक खालीपन था, जो उसे रातों को बेचैन करता था।
नीलम, 29 साल की एक ग्राफिक डिज़ाइनर, राघव की फर्म में हाल ही में शामिल हुई थी। उसकी आँखों में एक चमक थी, जो हर किसी को अपनी ओर खींचती थी। उसका बेबाक अंदाज़ और ज़िंदगी को जीने का जुनून राघव को अपनी जवानी की याद दिलाता था, जब वो खुद भी सपनों का पीछा किया करता था।
ऑफिस में दोनों की बातचीत पहले तो सिर्फ़ काम तक सीमित थी, लेकिन धीरे-धीरे लंच ब्रेक्स और देर रात की कॉल्स ने उन्हें करीब ला दिया।एक बार, एक क्लाइंट मीटिंग के लिए दोनों को मुंबई जाना पड़ा।
वहाँ, समुद्र किनारे एक रेस्तरां में, नीलम ने राघव से पूछा, "राघव, तुमने आखिरी बार कब अपने लिए जिया?" ये सवाल राघव के दिल में चुभ गया। उस रात, समुद्र की लहरों की आवाज़ और नीलम की आँखों की गहराई ने राघव को उसकी अपनी ज़िंदगी की खामोशी से बाहर खींच लिया।
दोनों एक-दूसरे के करीब आए, और वो पल एक नाजायज़ रिश्ते की शुरुआत बन गया।राघव और नीलम का रिश्ता अब गुप्त मुलाकातों, चोरी-छिपे मैसेज, और एक-दूसरे के लिए बेकरारी में बदल गया। राघव को नीलम में वो आज़ादी और जुनून मिलता था, जो उसकी शादीशुदा ज़िंदगी में कहीं खो गया था।
नीलम को राघव की परिपक्वता और उसकी बातों में छिपा दर्द आकर्षित करता था। लेकिन दोनों को पता था कि ये रिश्ता समाज की नज़रों में गलत था। फिर भी, वो इस आग में जलने को तैयार थे।
एक दिन, रिया को राघव के फोन में नीलम का एक मैसेज दिखा: "तुम बिना मेरी रातें अधूरी हैं।" रिया का दिल टूट गया। उसने राघव से सवाल किया, "क्या मैं और अनन्या तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं?" राघव का चेहरा शर्म से झुक गया। उसने रिया से माफी मांगी, लेकिन उसका मन दो हिस्सों में बंट चुका था। एक तरफ था उसका परिवार, जिसे वो प्यार करता था, और दूसरी तरफ नीलम, जो उसकी आत्मा का हिस्सा बन चुकी थी।
राघव ने नीलम से मिलना बंद करने की कोशिश की, लेकिन नीलम ने उससे कहा, "राघव, मैं तुम्हें खोना नहीं चाहती। ये प्यार है, गलत हो या सही।" राघव का मन उलझन में था। उसे लगता था कि वो रिया को धोखा दे रहा है, लेकिन नीलम को छोड़ना भी उसके लिए असहनीय था।
इस द्वंद्व में वो खुद को खोने लगा।एक रात, अनन्या ने राघव से पूछा, "पापा, आप उदास क्यों रहते हैं?" उस मासूम सवाल ने राघव को झकझोर दिया। उसने महसूस किया कि वो अपने परिवार को दर्द दे रहा है।
उसने नीलम से आखिरी मुलाकात की और कहा, "नीलम, तुम मेरे लिए बहुत खास हो, लेकिन मैं रिया और अनन्या को नहीं खो सकता। ये रिश्ता हमें सिर्फ़ दर्द देगा।" नीलम की आँखों में आंसू थे, लेकिन उसने राघव की बात मान ली।नीलम ने नौकरी छोड़ दी और शहर छोड़कर चली गई।
राघव ने रिया के साथ अपने रिश्ते को फिर से बनाने की कोशिश शुरू की। रिया ने उसे माफ तो कर दिया, लेकिन उसका विश्वास पूरी तरह से टूट चुका था। राघव हर रात नीलम की यादों में खो जाता, और नीलम, जो अब एक नए शहर में थी, राघव की बातों को याद कर चुपके से रोया करती थी।
इस कहानी का अंत ये सिखाता है कि नाजायज़ रिश्ते की चमक भले ही पल भर के लिए सुकून दे, लेकिन वो आत्मा को एक ऐसी आग में झोंक देता है, जो न सिर्फ़ रिश्तों को जलाती है,
बल्कि इंसान को भीतर से खोखला कर देती है। राघव और नीलम ने प्यार की तलाश में बहुत कुछ खोया, और जो बचा, वो था सिर्फ़ एक अधूरी सी खामोशी।--
-उम्मीद है, ये कहानी आपको गहरी और भावनात्मक लगी होगी ।
लेखक । सुहेल अंसारी( सनम)
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