Sucide:- a terrible crime in Hindi Moral Stories by Vishal Saini books and stories PDF | Sucide:- a terrible crime

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Sucide:- a terrible crime

लेखक की टिप्पणी (Author's Note)
मुझे माफ़ करना, आप सोच रहे होंगे कि "Suicide: A Terrible Crime" एक मज़ेदार थ्रिलर और सस्पेंस से भरी कहानी होगी...
मगर ये ऐसी नहीं है। ये एक बहुत ही महत्वपूर्ण लेख है।

आपने अपने आसपास, मोहल्ले, पड़ोस में या न्यूज़ में लोगों को आत्महत्या करते हुए सुना होगा।
ये लेख ऐसे लोगों की आत्महत्या के बाद होने वाली दुर्दशा पर प्रकाश डालता है।

इसे पूरा पढ़ें और लोगों को जागरूक करें, किसी को गलत कदम उठने से पहले सचेत करें।

धन्यवाद 
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हमारे समाज में आज यह एक कड़वा सत्य बन चुका है कि लोग छोटी-छोटी परेशानियों में आत्महत्या जैसा भयानक कदम उठा लेते हैं। एक क्षणिक मानसिक पीड़ा, असफलता, या रिश्तों का टूटना । ये सब कारण बन जाते हैं जीवन जैसे अमूल्य उपहार को त्याग देने का।

लेकिन क्या हम कभी रुक कर सोचते हैं कि उस आत्महत्या के बाद क्या होता है? क्या वास्तव में समस्याएँ समाप्त हो जाती हैं?

नहीं, बल्कि असली कष्ट वहीं से प्रारंभ होता है।

भगवद् गीता और श्रीमद्भागवतम जैसे दिव्य ग्रंथों में यह स्पष्ट रूप से बताया गया है कि आत्महत्या एक बहुत बड़ा पाप है। यह शरीर हमें ईश्वर द्वारा विशेष उद्देश्य से दिया गया है। इसे त्यागने का अधिकार हमारे पास नहीं हैजीवन जीना हमारा अधिकार है, परंतु मृत्यु का निर्णय ईश्वर ही करते हैं।

बात करता हूँ कि आत्महत्या करने वालों के साथ क्या होता है?

ईश्वर अप्रसन्न होते हैं– आत्महत्या ईश्वर द्वारा दी गई अनमोल देह का तिरस्कार है। इससे प्रभु का क्रोध प्राप्त होता है।

पाप लगता है –यह एक घोर अपराध है, जिससे आत्मा को गहरा पाप लगता है।

प्रेतयोनि मिलती है – श्रीमद्भागवतम के अनुसार, आत्महत्या करने वालों को प्रेतयोनि प्राप्त होती है। यह योनि अत्यंत कष्टदायक होती है। न खाने का अधिकार, न कुछ पीने का, और न ही भगवान का स्मरण करने की शक्ति। आत्मा हर पल तड़पती है।

दोबारा मानव शरीर की प्राप्ति असंभव हो जाती है – यह दुर्लभ मानव शरीर करोड़ों जन्मों के पुण्य का फल होता है। एक बार यदि आत्महत्या कर ले, तो पुनः मानव शरीर पाना लगभग असंभव हो जाता है।

कल्पों तक भटकना पड़ता है – आत्मा को फिर पुनर्जन्म मिलने में हजारों-लाखों वर्ष लग सकते हैं। तब तक वह आत्मा एक विचलित, कष्टपूर्ण अवस्था में रहती है।

भागवत कथा में प्रेत योनि का उदाहरण गोकर्ण और धुंधुकारी की कथा में मिलता है।

श्रीमद्भागवतम में धुंधुकारी नामक व्यक्ति की कथा मिलती है, जो अत्यंत पापमय जीवन जीता था। अंततः मृत्यु के बाद वो प्रेत योनि में चला जाता है। उसका भाई गोकर्ण, एक महान संत था। वह गया जाकर सैकड़ों बार श्राद्ध करता है , पर कोई लाभ नहीं होता है, गोकर्ण की मुक्ति नहीं होती है

तब गोकर्ण श्रीमद्भागवतम की सात दिवसीय कथा का आयोजन करता है। धुंधुकारी की आत्मा उस कथा को सुनने आती है और सातवें दिन, जब कथा पूर्ण होती है, तब एक दिव्य विमान उसे लेने आता है और उसकी प्रेत योनि से मुक्ति होती है।

इससे स्पष्ट है कि प्रेतयोनि सत्य है, और आत्महत्या के बाद उद्धार बहुत कठिन है। केवल कर्मकांड (श्राद्ध आदि) से नहीं, भगवान की कृपा और भक्ति से ही मुक्ति मिलती है।

जो भगवान ने दिया है, उसे भगवान ही वापस लें – यह अधिकार हमें नहीं, केवल उन्हें है।
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प्रार्थना

हे ईश्वर,
जो अकेले हैं उन्हें साथ दे,
जो टूटे हैं उन्हें हिम्मत दे,
जो थक चुके हैं उन्हें सुकून दे।

जो जीवन से हार मान चुके हैं, उन्हें एक नई सुबह दिखा।
उन्हें ऐसी रौशनी दे जो अंधेरे में भी उम्मीद जगाए।

हम सबको इतनी समझ और करुणा दे कि हम दूसरों के दर्द को समझ सकें, और ज़रूरत पड़ने पर किसी की डूबती ज़िंदगी को थाम सकें।

कृपा कर, किसी को भी उस मोड़ तक न पहुँचा जहाँ आत्महत्या ही उन्हें रास्ता लगे।
प्रेम और सहारा ही उनका मार्ग बने।

ॐ शांति: शांति: शांति:
🙏

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आपका लिए ढेर सारा प्यार और सम्मान।

अच्छी-अच्छी कहानी के साथ ज्ञानवर्धक बातें पढ़ते चलें ।

हरे कृष्ण।