सूरज आकाश में नीचे लटक रहा था, वो एक क्रूर अग्नि का गोला बन रहा था जो रामपुर की फटी हुई धरती को झुलसा रहा था।
वो गाँव मिट्टी के झोपड़ों और कांटेदार झाड़ियों का एक नक्शा था, गाँव एक बंजर मैदान में फैला हुआ था, जहाँ अब कुछ भी नहीं उगता था क्यूंकि पानी की कमी थी। खाने के लिए दूर के गावों में मजदूरी करते थे।
पानी, जो कभी देवताओं का वरदान हुआ करता था, गांव में अब सोने से भी कीमती खजाना बन चुका था। कुएँ सालों पहले सूख चुके थे, और उस गाँव से होकर गुजरने वाली नदियाँ अब केवल रेत के सूखे खेत बन चुकी थी।
रामपुर के लोगों के लिए पानी जीवन था, और वो जीवन एक रोज़मर्रा का दर्द।
विजय अपने कुएँ के किनारे बैठा था जो उसने खोद खोद कर 10 फीट गहरा कर दिया था । लेकिन उससे उसे कुछ आस नहीं थी। उसकी आँखों में निराशा थी।
उसकी तीस साल की उम्र थी, उसका शरीर कमजोर था, बीमारी से जकड़ा हुआ, उसकी आँखें प्यास और थकान से धंस गयी थीं। उसका गला सूखा हुआ था। घर मे एक बूंद भी पानी नहीं था।
कुआँ, जो केवल दस फीट गहरा था, उसका जैसे अपने खालीपन के साथ मजाक उड़ा रहा था ।
उसने सुबह से एक जंग लगी फावड़े से सख्त मिट्टी को खोदने में बिताई थी, किसी चमत्कार की उम्मीद में कि कुएं तली से कोई पानी की धारा फूट निकले, लेकिन जमीन ने कुछ नहीं उगला, ना एक बूंद, ना ही कहीं नम धब्बा जो उसे कुछ उम्मीद दे सके।
वह हार कर कुएं के किनारे पर बैठ गया और अपनी नम आंखों से उसकी तली को निहारने लगा, उसका गला मानो प्यास से तड़प रहा था और उसका दिल हताशा से भारी था।
“विजय, छोड़ दे,” पीछे से एक आवाज आई।
ये लीला थी, उसकी बचपन की दोस्त, उसकी आवाज नरम थी। वह एक खाली मिट्टी का घड़ा कूल्हे पर टिकाये खड़ी थी, उसका चेहरा विजय की जद्दोजहद के बोझ की लकीरों को साफ पहचान रहा था।
“ये कुआँ सूखा है। सब कुछ सूखा है। हमने कभी पानी की कदर नहीं की। भगवान भी हम पर तरस नहीं खा रहा। सब नदी, तालाब, सब कुछ सूख गया है। तू बीमार है। इस सूखे गड्ढे में फावड़ा मार मार कर तू अपनी जान क्यों खतरे में डाल रहा है?” लीला ने दर्द भरी आवाज से कहा।
विजय ने उसकी ओर देखा, उसकी आँखों में एक दर्द दिखाई दे रहा था।
“लीला, अगर मैं नहीं खोदूंगा, तो क्या करूं? मर जाऊं? पानी के बिना मैं और कितने दिन जिऊंगा? तू बता, क्या करूं?” उसकी आवाज भारी थी और उसमे एक ऐसी तड़प जो बाहर नहीं निकल पा रही थी।
लीला ने घड़ा नीचे रखा और उसके पास बैठ गई। उसने अपने दुपट्टे से उसका पसीना पोंछा और एक गहरी सांस ली।
“मैं भी थक गई हूँ, विजय। हर दिन कोसों दूर से पानी लाती हूँ। पूरा दिन लग जाता है, कई बार खाली हाथ लौटना पड़ता है। ये कुआँ... ये हमें कुछ नहीं देगा। ये मर चुका है।” लीला से सूखे गले से विजय की आंखों में देखते हुए कहा।
विजय ने एक बार फिर कुएँ की गहराई में देखा, जहाँ केवल अंधेरा और सूखी धूल थी।
“मैंने इसे दो दिन की जद्दोजहद से खोदा है ना कुछ खाया है ना पानी की एक बूँद निगली है लीला। मैं मर रहा हूँ लीला। मुझे कुछ पानी चाहिए और ये गड्ढा मेरे साथ मजाक कर रहा है।” विजय बीमार था और उसने दो दिन से पानी नहीं पिया था।
रामपुर में पानी की कमी ने गाँव को एक लडाई का मैदान बना दिया था।
लोग कोसों दूर, पहाड़ों के पास एक छोटे से झरने से पानी लाते थे। जिसमें कभी कभी पानी कम आता था। खासकर गर्मियों मे बहोत कम। पानी पीने लायक तो था।
वहाँ तक का रास्ता लंबा और खतरनाक था कहीं कहीं पथरीली राहें आती थी, चिलचिलाती धूप और कभी-कभी डाकुओं का डर होता था जो औरतों के गहने लूटने के लिए छिपे होते थे।
वहाँ पानी की मात्रा कभी कभी इतनी कम होती थी कि हर कोई अपनी बारी के लिए लड़ता था। लोग अपने घड़ों को भरने के लिए आपस में झगड़ते, मारपीट करते थे।
रामपुर में कुछ लोग पानी चुराने की कोशिश में मारे भी गए थे। लोग पानी चुराने वालों को पीट पीट कर मार देते थे। गाँव में एक अघोषित नियम सा बन गया था कि कोई किसी को अपना पानी नहीं देगा। हर बूंद की कीमत थी। पानी चुराने वाले को पंचायत मौत तक की सजा सुना देती थी।
विजय की हालत खराब थी। उसकी बीमारी ने उसे कमजोर कर दिया था, और वह झरने तक की लंबी यात्रा नहीं कर पाता था। वह अपने कुएँ पर निर्भर हो जाता, लेकिन कुआँ अब केवल उसकी हताशा का प्रतीक था।
लीला, जो उसकी एकमात्र दोस्त थी, कभी-कभी अपने हिस्से का पानी उसके साथ बाँट लेती थी।
“लीला,” विजय ने धीरे से कहा, “मुझे पानी चाहिए। बस थोड़ा सा। मैं मर रहा हूँ।”
लीला ने उसकी ओर देखा, उसकी आँखें नम थीं। “मेरे पास आज खाली घड़ा है, विजय।" ऐसा बोल कर लीला पानी लेने चली गयी।
विजय प्यास से लड़ रहा था। वो बैचेनी से मरा जा रहा था। उससे रहा नहीं जा रहा था। तभी उसके दिमाग में एक विचार आया। उसने लीला का इंजतार भी नहीं किया कि वो ही उसे एक घूंट पानी दे दे और ना ही उसे गाँव के नियम का डर था।
शाम में, जब गाँव अंधेरे में डूब सा गया था, विजय अपने झोपड़े से निकला। उसका शरीर कमजोर था, लेकिन उसकी प्यास उसे इसके लिए ताकत दे रही थी जो उसके दिमाग में चल रहा था।
वह जानता था कि अगर उसे पानी नहीं मिला, तो अब वह ज़्यादा दिनों तक नहीं बचेगा। उसने एक पुराना लोटा लिया और चुपके से पड़ोसन सीला के घर की ओर बढ़ा।
सीला का घर गाँव के सबसे बड़े कुएँ के पास था। वो कुआँ भी सूख चुका था। सीला ने झरने से पानी लाकर एक बड़ा मटका भर रखा था। वह अपने पानी को सोने की तरह संभालती थी। मटका झोंपड़ी के में ही रखा था। सीला की मिट्टी की गाँव मे सबसे बड़ी झोंपड़ी थी। जिसमें एक खूबसूरत आँगन भी था।
विजय के पास अब कोई रास्ता नहीं था। वह सीला के आँगन में दबे पाँव घुसा। अंधेरे में मटका मुश्किल से चमक रहा था मगर विजय के लिए ये खजाने की तरह था। उसने लोटे को मटके के मुँह के अंदर रखा और धीरे से पानी निकालने की कोशिश की। लेकिन तभी, एक तेज आवाज ने उसे चौंका दिया।
“कौन है?” सीला की आवाज थी, तेज और गुस्से से भरी। वह अपने घर के दरवाजे पर खड़ी थी, हाथ में एक लाठी लिए।
विजय ने लोटा छोड़ दिया और भागने की कोशिश की, लेकिन उसका कमजोर शरीर उसे धोखा दे गया। वह ठोकर खाकर गिर पड़ा, और सीला ने भागकर जोरदार लठ उसके सिर पर दे मारा।
“तू चोरी करने आया?” सीला चिल्लाई। “तेरी हिम्मत कैसे हुई? मेरा पानी....मेरे परिवार का पानी चुराने की ”
विजय के सर में लठ लगते ही वो बेहोश हो गया । सीला ने शोर मचा दिया। उसने गाँव वालों को बुला लिया, और जल्द ही एक भीड़ इकट्ठा हो गई। लोग विजय को घेर कर खड़े थे, उनके चेहरों पर गुस्सा था। पानी की चोरी गाँव का सबसे बड़ा अपराध था, और सजा मौत के बराबर थी।
अगली सुबह, गाँव की पंचायत बुलाई गई। विजय को रस्सियों से बाँधकर गाँव के बीचों-बीच लाया गया था। उसे होश आया। उसने अपने को बंधा पाया। उसका चेहरा पीला पड गया था, उसकी आँखें धंस गई थीं और वह बार-बार बेहोश हो रहा था, लेकिन कोई उसे पानी देने को तैयार नहीं था। क्यूँकी की गाँव मे एक ही चीज कीमती थी, पानी।
लीला भीड़ में खड़ी थी, विजय को देख कर उसकी आँखें आँसुओं से भर गयी। वह जानती थी कि विजय ने गलत किया था, लेकिन वह यह भी जानती थी कि वह मजबूरी में ऐसा कर रहा था।
विजय का दर्द देख कर उसने पंचायत के सामने जाने का फैसला किया।
"एक मिनट, मेरी बात सुनो,” लीला ने कहा। “विजय ने चोरी की, ये सच है। लेकिन वो मर रहा है। क्या कोई उसे पानी नहीं दे सकता क्या सब इतने निर्दयी हैं कि एक इंसान को प्यासा मरने देंगे? तुम देख नहीं सकते उसके शरीर को, विजय बस एक घूंट पानी लेना चाहता था।”
पंचायत के मुखिया, रामलाल, ने ठंडी नजरों से लीला को देखा।
“लीला, नियम तोड़ने की सजा तय है। अगर हम विजय को छोड़ देंगे, तो हर कोई पानी चुराने लगेगा। फिर क्या होगा?”
“लेकिन वो मर जाएगा!” लीला चिल्लाई। “क्या पानी की कीमत एक इंसान की जान से ज़्यादा है?”
"हाँ है" मुखिया चिल्लाया। "गांव में एक आदमी की जान से ज़्यादा क़ीमती पानी है, पानी की चोरी किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं की जाएगी"
लोग मुखिया की बात से सहमत थे, पानी की कमी ने उन्हें स्वार्थी बना दिया था, और वे अपनी बूंदों को किसी के साथ बाँटना नहीं चाहते थे।
तभी सीला आगे आई। “मैं एक रास्ता बता सकती हूँ,” उसने कहा। “लीला, अगर तू इतनी ही चिंता करती है विजय की, तो तू अपना सारा पानी लाकर मुझे दे एक महीने के लिए। मैं विजय को छोड़ दूँगी, लेकिन मेरे मटके में तेरा सारा पानी चाहिए।”
लीला स्तब्ध रह गई। उसका सारा पानी, वह पानी जो वो कोसों दूर जाकर अपने परिवार के लिए लाएगी। वह जानती थी कि अगर वह पानी दे देगी, तो उसका परिवार प्यासा मर जाएगा। लेकिन विजय उसका दोस्त था, और वह उसे मरते हुए नहीं देख सकती थी।
“ठीक है,(बिना कुछ सोचे)" लीला ने कहा, उसकी आवाज काँप रही थी। “मैं अपना सारा पानी तुमको दे दूँगी। लेकिन विजय को छोड़ दिया जाए।”
मुखिया ने एतराज जताया पर पंचायत ने फैसला सुना दिया कि लीला एक महीने तक अपना पानी लाकर सीला को देगी।
विजय को छोड़ दिया गया, लीला ने अपना आज का सारा पानी लाकर सीला को दे दिया। अब एक महीने तक उसके पास पानी कैसे बचेगा वो नहीं जानती थी।
आज के लिए, लीला के पास पानी नहीं था और विजय का गला प्यास से जल रहा था। दोनों प्यासे थे।
एक ही दिन मे दो बार पानी लाना मुस्किल था वो भी अकेले।
रात मे, लीला और विजय उस सूखे कुएँ के पास बैठे थे, दोनों प्यासे, दोनों टूटे हुए।
“लीला, तूने मेरे लिए कितना किया,” विजय ने कहा, उसकी आवाज में दर्द था। “मैं इसके लायक नहीं हूँ।”
लीला ने उसकी ओर देखा, उसकी आँखें नम थीं। “विजय, ये गाँव निर्दयी है। ये लोग पानी के लिए इंसानियत भूल गए हैं। मैं तुझे मरने नहीं दे सकती थी।”
वे दोनों चुपचाप बैठे रहे, सूखे कुएँ को देखते हुए, सोचते हुए कि ऐसा दिन कब आएगा जब पानी उनकी जिंदगी में बहने लगेगा।
विजय की जान आज के लिए तो लीला ने बचा ली थी। मगर बिना पानी के आगे आने वाले दिनों में अपनी और उसकी जान कैसे बचाएगी?
(पानी की हर बूंद अनमोल है, और इसकी कमी हमें इंसानियत भूलने पर मजबूर कर सकती है। इसलिए, पानी का सम्मान करें, उसे बचाएं और दूसरों के साथ बांटने की भावना रखें, क्योंकि पानी सिर्फ जीवन का आधार नहीं, बल्कि हमारी मानवता का प्रतीक भी है।)
प्यारे पाठको!
अगर मेरी ये छोटी-सी दिल से निकली कहानी आपको ज़रा भी पसंद आई हो, तो एक प्यारी-सी रेटिंग ठोक देना, दिल से कमेंट करना और हां, फॉलो करना बिल्कुल मत भूलना!मैं कोई बड़ा लेखक नहीं हूँ, बस दिल की बातें शब्दों पर उतारने की कोशिश कर रहा हूँ।तुम्हारा छोटा सा सपोर्ट भी मेरे लिए बहुत बड़ा है!
और हाँ.....अगर कहानी पढ़कर बात सही लगी हो, तो Instagram पर भी आ जाना!
ठिकाना है: @itsme_vishal_saini
"सच्ची दोस्ती वो होती है जो लाइक और कमेंट से नहीं, दिल से जुड़ती है लेकिन अगर साथ में लाइक और फॉलो भी हो जाए, तो क्या ही बात है!"