सुबह से लेकर रात तक वह उसके साथ बातों में लगा रहता। मानो कोई ऐसा साथी मिल गया जो इस एकांत वीराने में अपनों से भी बढ़ कर उसका अपना बन गया हो।- आपकी तस्वीर भेजो अंकल! देखो, मुझे देखोगे? ये देखो, ये मेरी तब की पिक है जब मैं अपने स्कूल के दोस्तों के साथ पिकनिक पर गया था। ये मेरी बर्थडे पार्टी के फ़ोटो। आपको अपना डॉगी दिखाऊं, बहुत प्यारा था पर पिछले दिनों मर गया। मेरे एक दोस्त ने अनजाने में उसे लात मार दी थी जिससे वह भीतर से काफ़ी ज़ख्मी हो गया था, मुझे पता भी नहीं चला। सीधे जब उसकी लाश ही देखी तब पता चला। आप क्या करते हो अंकल? खाली समय कैसे बिताते हो? क्या वहां आपका कोई दोस्त है जो आपके पास आता हो या फिर आप ही कहीं जाते हो। अंकल, ये वीडियो देखो, मेरे दोस्त ने खुद बनाया था जब वो महाबलेश्वर घूमने गया था। आप जाते हो कहीं घूमने? आप यहां आ जाओ एक बार! मैं भी आऊंगा आपके पास, अभी घरवाले अकेले आने नहीं देते इतनी दूर, छोटा हूं न मैं। जब मैं कमाने लग जाऊंगा तब ज़रूर आऊंगा। तब तो मुझे किसी से पूछने की जरूरत भी नहीं रहेगी। अंकल, कितना मज़ा आएगा, आपके पास रहूंगा कुछ दिन! आपको कोई प्रॉब्लम तो नहीं होगी न मेरे आने से? आप क्या कहोगे अपने आसपास वालों से? मेरा परिचय कैसे कराओगे अंकल? मैं तो कह दूंगा कि अपने अंकल के पास जा रहा हूं... आपके रिश्तेदार, आपके बच्चे मेरे बारे में पूछेंगे क्या? उनको भी सरप्राइज़ होगा कि मैं आपका फ्रेंड कैसे बना। अंकल मुझे भी नहीं मालूम। बस, एक बात मालूम है कि आप कभी भी मुझे भूलना नहीं।इस तरह की ढेरों बातों और गुफ्तगू के बीच धीरे- धीरे दुःख से घनीभूत हुई उसकी हताशा भी छंटने लगी और खोई चेतना जैसे वापस लौटने लगी।उसने फ़िर से अपने काम और नौकरी पर भी ध्यान देना शुरू कर दिया। ऐसा लगता मानो वक्त का वैद्य अपने तरीके से उसके कष्टों पर मरहम लगा कर सब कुछ दुरुस्त करता जा रहा है। फ़ोन पर उससे कभी - कभी बात करते रहने वाले उसके बच्चे भी आश्वस्त होते कि उनके पिता ज़िंदगी में वापसी कर रहे हैं। उसके अपने अन्य परिजनों से भी दूरी के बावजूद मिलना - जुलना भी यथासंभव होने लगा। उसे लगा जैसे सब ठीक हो रहा है। ज़िंदगी अपने पहलू में हर दुःख का उपचार लिए रहती है।नए बने छोटे से उस आभासी मित्र को लेकर भी अब उसकी सोच कुछ संजीदा हो चुकी थी। अब वो दुनियादारी की परतों के भीतर ही उसे समय और तवज्जो देता। मित्र भी बड़ा हो रहा था।
कभी - कभी खाली बैठे हुए वो अब सोचने लगा था कि एक किशोर वय के अनजान लड़के के इस तरह उससे मेलजोल बढ़ाते चले जाने की क्या वजह हो सकती है।अब शंका के समाधान में उसका दिमाग़ भी साथ देता, ये इस बात का पुख़्ता सबूत था कि वह अब दुनियावी दुखों से निजात पा रहा था। वो अब कोरी भावुकता से ऊपर उठ कर उस नन्हे मित्र से बातों के दौरान कुछ ठोस जानकारी वाली बातों की टोह भी लेने लगा। जैसे - उसकी आयु क्या है? वह किस स्कूल या कॉलेज में पढ़ता है, उसके माता- पिता क्या करते हैं, घर की आर्थिक स्थिति कैसी है आदि - आदि। वह एक अनजान अजनबी से इस तरह क्यों मिला, आभासी तौर पर ही सही?उसे कभी भी उस लड़के की किसी भी बात से ऐसा नहीं लगता था कि वह कोई बात छिपा रहा हो या कोई ग़लत जानकारी दे रहा हो। वह सहज होकर मन की पूरी प्रसन्नता से बात करता था और अब कभी- कभी दोनों वीडियो कॉल पर एक दूसरे से रूबरू हो कर भी बातें करने लगे थे।ऐसे में उसके मन में सामान्यतया उस छोटे लड़के की दोस्ती के यही कुछ कारण समझ में आते थे