Traas Khanan ( Last Part) in Hindi Classic Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | त्रास खनन (अंतिम भाग )

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त्रास खनन (अंतिम भाग )

सबसे बड़ा परिवर्तन उसमें यही आया कि वह अपने अनजान मित्र उस लड़के को लेकर बुरी तरह आक्रामक हो गया। वह उसके फ़ोन से ऐसे भयभीत होता मानो उसकी गिरफ्तारी का कोई वारंट जारी हो गया हो। वह अव्वल तो फ़ोन उठाता ही नहीं था और यदि कभी अनजाने में उठा भी ले तो बिना बात उस लड़के पर चिल्लाने लगता। पर लड़का भी न जाने किस मिट्टी का बना हुआ था, उसे चिल्लाने, दुत्कारने का कोई फ़र्क नहीं पड़ता और वह धैर्य के साथ उससे और भी अपनापन जताता। वह फ़ोन पर ही रोने लग जाता और कातर स्वर में कहता - पिताजी, पिताजी क्या हो गया है आपको? क्या आप बीमार हो गए हैं? क्या आपको किसी ने बहका दिया है, आप पर कोई जादू - टोना कर दिया है? और भी न जाने क्या - क्या।
लड़के के इस बर्ताव से उसे और भी क्रोध आता। वह दांत पीसने लगता तथा लड़के से गाली - गलौज पर उतर आता।
लड़का उसकी हर बात का शांति और संयम से जवाब देता। बार- बार कहता कि वह जल्दी ही उसके पास आएगा। यह सुनकर वह आपा खो देता और अपशब्द कहते हुए उसे तरह- तरह से धमकाता। उसने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने की धमकी दे डाली पर लड़के पर जैसे उसकी किसी बात का असर नहीं होता। वह फ़ोन पर ही ज़ोर - ज़ोर से रोने लग जाता।
और आख़िर एक रात जब वह बिना कुछ खाए- पिए निपट तन्हाई में अकेला अपने घर की छत पर दोनों पांव नीचे लटकाए हुए बैठा हुआ था तब अचानक उसकी स्मृति में लगभग उन्नीस बीस साल पहले की बात कौंधने लगी। जैसे खयालों से उसके मन में बैठा हुआ एक चोर अकस्मात निकल कर उसके सामने आ गया।
उन दिनों दो साल के लिए उसकी बैंक नौकरी में उसकी तैनाती एक गांव में हुई थी। वह अपने परिवार को अपने शहर में ही छोड़ कर सुदूर उस गांव में चला गया था। सरकार का यह नियम था कि सरकारी बैंक में काम करने वाले हर अधिकारी को कुछ समय के लिए ग्रामीण क्षेत्र में रहना ही पड़ता था। कई हज़ार किलोमीटर दूर के उस गांव से उसे कई महीनों तक अपने घर आने का मौका भी नहीं मिलता था।
और उन्हीं दिनों... उसकी मित्रता कुछ ऐसे युवकों से हो गई जो उसी की तरह अपने - अपने घर से दूर वहां अपनी नौकरी के चलते रह रहे थे। उन लोगों के बीच अपने घर से दूर रहने के कारण दोस्ती पनप गई। ऐसे में कभी - कभी वो लोग पास के एक कस्बे में दिल बहलाव के लिए चले जाते थे जहां उनके नामुराद कदम रेड लाइट एरिया में पड़ गए। और रोज़ - रोज उन लड़कों से वहां की बातें सुन कर एक- दो बार उसके कदम भी बहक गए।
बात आई- गई हो गई। वह अपने निर्वासन के उदास दिन काट कर वापस भी लौट आया और बाद में उसने वो नौकरी भी छोड़ दी। सालों गुज़र गए।
लेकिन एक दिन अपने इस नए आभासी दोस्त से बातों- बातों में ही उसे पता चला कि उसका ये दोस्त उसी कस्बे का रहवासी है जहां दो दशक पहले नज़दीक के एक गांव में वह रह आया था। इतना ही नहीं, बल्कि उसके इस दोस्त ने अपने जन्म का साल भी पूछने पर लगभग वही बताया जिन दिनों वह उस इलाके में रहा था।
वह हत्थे से ही उखड़ गया। उस पर जैसे बिजली सी गिरी। वह आपा खो बैठा और फ़ोन पर उसने लड़के को बुरी तरह धमकाते हुए चेतावनी दी कि वह भविष्य में कभी उसे फ़ोन न करे, अन्यथा वह उसकी जान ले लेगा। उसे मरवा डालेगा।
ये सुनते ही लड़का सन्न रह गया। वह ज़ोर - ज़ोर से रोता रहा और फ़ोन पटक कर चला गया।
लेकिन थोड़ी ही देर बाद फ़ोन फ़िर आया। उसने अपने रूखे व्यवहार से शर्मिंदा होकर हमदर्दी वश फ़ोन उठा लिया।
इस बार फ़ोन पर लड़के ने नहीं, बल्कि उसके मामा ने बात की।
निहायत ही संजीदगी और नर्मी से बोलते हुए उन्होंने कहा - क्षमा कर दीजिए। मेरा ये भांजा नासमझ है, जबसे इसने अपने पिता को खोया है यह अवसाद में चला गया है। हमें पता चला कि यह आपको फ़ोन पर तंग करता है, हमसे कहता है कि फ़ोन पर पिताजी बात करते हैं। इसकी मां और मैं छिप कर इसके फ़ोन सुनते थे और सोचते थे शायद इसी तरह यह ठीक हो जाएगा और अपने दुःख भूल जाएगा। ये आपसे मिलने के लिए पैसा- पैसा जोड़ रहा था। कहता था जब किराया इकट्ठा हो जाएगा तो मैं पिताजी से मिलने जाऊंगा।
हमें माफ़ कर दीजिए सर, ग़लती हमारी ही है। पिता की मौत के बाद जब वो आपसे बातों में दिल लगा रहा था हमें तब ही उसे रोक देना चाहिए था। मैं और उसकी मां छिप कर उस पर नज़र रखे हुए थे। हमने आपका प्रोफ़ाइल फेसबुक पर अच्छी तरह चैक किया था। हमने सोचा था कि आप एक उच्च शिक्षित बुद्धिजीवी हैं, साहित्यकार हैं, शायद आप उसे कोई रास्ता दिखा कर उसके अंधेरे से उसे बाहर निकाल लेंगे। लेकिन हम ये जान नहीं पाए कि वो मासूम अनजाने में त्रास खनन कर रहा है। अपने लिए भी और आपके लिए भी।
... पर अब कोई फ़ोन नहीं आएगा, हमें माफ़ कर दीजिए... कहते- कहते मामा का स्वर भी रूंध गया और सिसकने की आवाज़ आने लगी।
दूर से आती ये आवाज़ मानो उसे शर्मिंदगी और अपमान के किसी गहरे गड्ढे में धकेले दे रही थी। - प्रबोध कुमार गोविल 
( समकालीन भारतीय साहित्य से आभार सहित)