सानिया के जाने के बाद, कमरे में फिर से वही ख़ामोशी लौट आई थी…
लेकिन इस बार वो ख़ामोशी डर की नहीं, सोच की थी।
नायरा वहीं बैठी, बहुत देर तक उसी शख़्स को देखती रही—जो अब उसका पति था।
एक अजनबी… मगर फिर भी ऐसा लग रहा था जैसे कहीं न कहीं उसका अपना सा है।
वो उठी, धीमे क़दमों से सामने रखे सूटकेस की तरफ़ बढ़ी,
सामान निकाला, कपड़े बदले… फिर वुज़ू करके नमाज़ पढ़ी।
उसके बाद, वो आईने के सामने खड़ी थी।
अपने लंबे बालों को तौलिए से पोंछती हुई, फिर कभी दाएँ, कभी बाएँ झटकती…
जल्दी-जल्दी बाल सुखाने की कोशिश कर रही थी।
मगर इस बात से बेख़बर कि उसके गीले बालों की बूंदें, हवा के साथ उड़ती हुई, पास सोए अमन के चेहरे तक पहुँच रही थीं।
एक हल्की सी छींट अमन की पलकों पर गिरी।
वो हल्का सा करवट में हिला—नायरा चौंकी, पलटकर उसे देखने लगी।
उसकी साँसें थम-सी गईं।
कितना गहरा चेहरा था उसका… जैसे कोई अनकही कहानी हर लकीर में छुपी हो।
उसकी बंद आँखें, उसके माथे की सिलवटें… सबकुछ जैसे किसी बोझ की गवाही दे रहे हों।
नायरा वहीं खड़ी रही, उसकी ओर देखते हुए…
"क्या वाकई ये मेरा हमसफ़र है?"
मन में सवाल उठा… मगर जवाब नहीं।
उसने धीरे से अपने गीले बाल पीछे कर लिए…
फिर चुपचाप पलटी और ड्रेसिंग टेबल से एक दुपट्टा लिया।
आईने में एक आखिरी बार खुद को देखा…
फिर मन ही मन बुदबुदाई—
"अजनबी है… पर शायद, मेरा मुक़द्दर भी।"
नीचे से आवाज़ें आने लगी थीं।
वो एक बार फिर अमन की ओर पलटी—
"उठेंगे भी या नहीं?"
पर सवाल होठों पर ही अटक गया।
अमन करवट बदलकर एक बार फिर उसी ख़ामोशी में लिपट गया।
नायरा ने एक लंबी साँस ली…
और फिर दुपट्टा सिर पर डालकर दरवाज़े की ओर बढ़ गई।
सुल्तान मेंशन – सुबह के नाश्ते की टेबल
खामोशी में डूबी साजिशें अक्सर सबसे ज़्यादा रंगीन दिखती हैं, और आज टेबल पर सबकुछ परोसा गया था—खाना भी, बातें भी, और नज़रें भी।
नायरा धीमे-धीमे सीढ़ियाँ उतरती है… आज वो एक नवेली दुल्हन है मगर चेहरा किसी सवाल की किताब सा खुला हुआ। उसके लिबास में सजावट है, मगर आंखों में उलझन।
"आओ बहू, बैठो…" नजमा बेगम की आवाज़ में सलीका था मगर अपनापन नहीं।
दादी जान ने कुर्सी खींची,
"हमारी नायरा को हमारे पास बैठने दो।"
नायरा मुस्कुरा कर बैठ गई, मगर तभी रुबी बोल पड़ी,
"दुल्हन तो बड़ी खामोश है, क्या हुआ भाभी? रात नींद नहीं आई… या कोई सपनों में डिस्टर्ब कर रहा था?"
टेबल पर एक-दो हँसी के छींटें गिरे।
नायरा हँसी, लेकिन जवाब में नहीं—सिर्फ तहज़ीब में।
"सपनों में तो मैं बहुत देर से नहीं सोई… शायद किसी की नींद मेरी वजह से उड़ गई हो।"
सानिया भाभी का चेहरा चमका, उन्होंने मन ही मन ताली बजाई।
रुकसाना बेगम ने चाय का घूँट लिया और चुटकी ली,
"अब सपनों का क्या, बहू… वो तो हर किसी को आते हैं, हक़ीक़त से क्या वास्ता?"
नायरा ने उनकी ओर देखा, आँखों में ठंडक नहीं थी, लेकिन लहजे में बर्फ-सी नरमी से कहा,
"आप बिल्कुल ठीक कह रही हैं… सपने सब देखते हैं, फर्क बस इतना है कि कुछ लोग उन्हें चुराना चाहते हैं… और कुछ जीना।"
निखार तब तक बर्दाश्त कर चुकी थी—उसकी हँसी ज़हर घोलती हुई निकली,
"तो भाभी अपने सपने पूरे करने के लिए अचानक इस घर की बहू बन गईं?"
टेबल पर एकदम सन्नाटा।
नायरा अब भी मुस्कुरा रही थी, उसने नज़रों से दादी को देखा… फिर जवाब दिया—
"निखार जी… कुछ फैसले खुद नहीं लिए जाते, बल्कि तक़दीर लेती है… और तक़दीर को जवाब देना मेरी तालीम में नहीं।"
नजमा बेगम ने बात बीच में काट दी,
“बहू, हमारे घर में बड़ों से इस तरह जवाब देने की आदत नहीं रही। हम तहज़ीब में यक़ीन रखते हैं… ख़ामोशी को इज़्ज़त माना जाता है यहाँ।”
नायरा ने सर झुका कर कहा,
“मैं भी इज़्ज़त करती हूँ अम्मी जान… लेकिन अगर कोई मेरी ख़ामोशी को मेरी कमज़ोरी समझे, तो ज़रूरी है लफ़्ज़ों से उसे सलीका सिखाया जाए।”
एक पल को सब ख़ामोश हो गए…टेबल की रौनक जैसे बदल गई…
सभी चेहरों पर कुछ अनकहे सवाल, कुछ दबे हुए सच, और एक बात बिल्कुल साफ़—
इस बहू से भिड़ना आसान नहीं होगा।
तभी दादी जान ने धीरे से मुस्कुराते हुए कहा,
“अरे वाह… मेरी बहू में तो जान है। ठीक मेरी जैसी… कम बोले, मगर जहाँ बोले वहाँ कोई दूसरा न बोले।”
फिज़ा में एक हल्की मिठास घुल गई, मगर तले में अब भी तंज़ की आँच बाकी थी।
और उस सन्नाटे में…
ऊपर की सीढ़ियों से एक जोड़ी आंखें सबकुछ देख रही थीं।
अमन।
अमन सीढ़ियों की मुंडेर पर खड़ा था। आंखें नीचे टिकी थीं… लेकिन उसकी नज़रों का ज़रा-सा सा झुकाव नायरा पर ठहरा हुआ था। वो नाश्ते की टेबल पर सबसे बीच बैठी थी, जैसे उस घर की पहचान बन गई हो—फिर भी जैसे अब भी कुछ अधूरी सी थी।
"अरे भाई!" रूबी की आवाज़ अचानक गूंज उठी। "आ जाए नाश्ते पर… भाभी संग खाइए थोड़ा।"
अमन की आँखों में एक पल को झिझक उभरी… फिर उसने बिना जवाब दिए बस एक गहरी नज़र डाली—एक ऐसी नज़र जिसमें न कोई अपनापन था, न इंकार… बस ख़ामोशी थी, भारी और ठहरी हुई।
फिर वो धीरे से पलटा और सीढ़ियाँ चढ़ता हुआ ऊपर चला गया।
दादी जान ने रूबी की तरफ़ देखा और आँखें तरेरीं, "चुप कर बदमाश! बड़ा भाई है तेरा वो, थोड़ा लिहाज़ कर… हर बात पे मज़ाक ज़ेब नहीं देता।"
फिर उनका चेहरा एकाएक नर्म हो गया। उन्होंने प्यार से नायरा को देखा और फिर नजमा बेगम की ओर मुखातिब हुईं।
"बहू, नायरा और अमन का नाश्ता एक ही प्लेट में भिजवाओ… वो दोनों साथ में ऊपर खा लेंगे।"
नजमा बेगम ने हल्की-सी मुस्कान में सिर हिलाया, और नौकरानी को इशारा कर दिया।
तभी दादी जान ने फिर कहा, "और सुन बेटा… अमन से कहना, आज दरगाह जाना है। मेरे साथ चलना होगा। जल्दी तैयार हो जाए।"
नजमा बेगम की नज़रों में कुछ ठहराव था… वो जानती थीं अमन के लिए दरगाह जाना एक बोझ से कम नहीं। लेकिन जब दादी कहें, तो वहाँ इंकार की कोई जगह नहीं होती।
अमन का कमरा | सुबह की हल्की रौशनी
नायरा ट्रे संभालती कमरे में दाख़िल हुई, निगाह इधर-उधर दौड़ाई—अमन कहीं नहीं दिखा। उसने राहत की साँस ली,
"चलो अच्छा है… आज तो टकराव नहीं होगा…"
बस उसी पल, बाथरूम का दरवाज़ा खुला… और अमन तौलिया लपेटे, बालों से पानी टपकाते, यूँ ही बेपरवाह बाहर निकल आया।
"अल्हाम्दुलिल्लाह!"
नायरा की आंखें फैल गईं, ट्रे से एक कटोरी गिरकर थाल में ही टनटनाई, और उसने तुर्श अंदाज़ में आंखों पर हाथ रख लिया,
"या खुदा! ये क्या मंज़र दिखा दिया तूने सुबह-सुबह!"
अमन ठिठक गया। एक पल उसे खुद पर हँसी आई… मगर चेहरे पर वही पुराना संजीदा नकाब रहा।
"कम से कम दरवाज़ा खटखटा लेतीं…" उसने ठंडी आवाज़ में कहा।
"दरवाज़ा बंद रखना आपकी जिम्मेदारी थी, मियाँ!"
नायरा ने आँखों पर हाथ रखे-रखे ही जवाब दिया,
"और वैसे भी, ये मेरा कमरा है… आपको तो गेस्ट बनकर रहना चाहिए!"
"गेस्ट?" अमन की भौंहें हल्की तनीं,
"तो फिर नाश्ता खुद क्यों लेकर आई हो, होटल सर्विस की कमी थी?"
नायरा ने धीरे से आँखों से हाथ हटाया,
"होटल सर्विस में भी कोई इस हाल में मिलता तो कम से कम ‘Sorry Ma’am’ तो कहता!"
अमन बिना जवाब दिए वार्डरोब से कपड़े निकालने लगा।
"अब तो पर्दा डाल लो हुज़ूर, वरना निकाह तो हुआ है, मगर ईमान डोल जाएगा!"
नायरा ने ज़ोर से कहा और पलटकर दीवार की तरफ मुँह कर लिया।
"डर तो मुझे लगना चाहिए…" अमन बुदबुदाया,
"तुम्हारी बातें सुनकर लग रहा है, जुबान पर तुम्हारी कमान पहले से ही चढ़ी हुई है…"
"और आपको लग रहा था कि दुल्हन कोई गुड़िया लाएँगे जो मुस्कुरा के सर हिलाएगी?"
नायरा ने तिरछा जवाब दिया,
"Sorry to disappoint, Mr. Aman Sultan!"
अमन मुस्कराया, पहली बार—हल्की-सी, तेज़ हवा की तरह आई और निकल गई।
"तो Mrs. Sultan, Welcome to Reality!"
उसने बाथरूम का दरवाज़ा ज़ोर से बंद करते हुए कहा।
नायरा ने गर्दन घुमाई और दरवाज़े की तरफ देखा।
"Reality? ज़नाब, ये तो ट्रेलर था… असली Picture अभी बाकी है!"
अमन कुछ ही देर में बाथरूम से बाहर निकला।
उधर, नायरा अलमारी में पूरी तसल्ली से अपने कपड़े जमा रही थी। कभी कुर्ता टाँगती, कभी दुपट्टा फोल्ड करती, तो कभी शीशे में खुद को देखकर मुस्कुरा देती।
जैसे ही अमन ने कमरे में कदम रखा, उसकी नज़र सीधा अलमारी पर गई।
एक सेकंड के लिए वो रुका… फिर भड़क गया।
"तुम यहाँ क्या कर रही हो?"
गला इतना भारी कि लगता था जैसे दीवारों पर भी दरारें पड़ जाएँ।
नायरा ने उसकी तरफ पलटकर मासूमियत से कहा,
"अरे, देख नहीं सकते? घर बसाने की कोशिश कर रही हूँ। आपकी बीवी हूँ, किराएदार नहीं।"
अमन की आँखें भड़क उठीं। उसने दो कदम में पास आकर उसका हाथ ज़ोर से पकड़ा और एक झटके से दूर किया।
"ये मेरी अलमारी है! इसे छूने की भी इजाज़त नहीं!"
नायरा थोड़ा लड़खड़ाई… फिर घूरते हुए बोली—
"ओह! तो अब अलमारी से भी ईगो जुड़ गया है? किस्मत से बीवी मिल गई और जनाब अब तक कमरे में भी अजनबियों की तरह पेश आ रहे हैं!"
"ज़्यादा बोलती हो!" अमन ने आँखें तरेरीं।
"कम बोलती तो शायद आपके जैसे चुप्पे लोगों से शादी ही न होती!"
नायरा की आवाज़ में वही अल्हड़पन और तंज था।
वो उसकी ओर क़दम बढ़ाते हुए बोला—
"मुझे नहीं चाहिए कोई बीवी, ये ड्रामा सब तुम रखो अपने पास!"
"अरे वाह! तो अब निकाह भी गलती हो गया? कोई गलती से अलमारी खोल दे तो हाथ पकड़ के धक्का दे दो, और कोई गलती से बीवी बन जाए तो आँखें तक नहीं मिलाओ?"
नायरा ने ताली बजाकर कहा,
"कमाल है जनाब, आप तो हर गलती का हल गुस्से से निकालते हैं!"
अमन के चेहरे पर आ रहा पारा नायरा को और मज़ेदार लगने लगा।
"वैसे, अगली बार जब तौलिया बाँधकर बाहर निकलें तो कम से कम दरवाज़ा खटखटाना तो सिख लीजिएगा! वरना किसी की आँखें खराब हो जाएँगी!"
अमन झेंप गया… मगर कुछ बोले बिना बिस्तर की ओर चला गया।
पीछे से नायरा की मीठी मगर तीखी आवाज़ आई—
"वैसे सोफे पे ही सोते रहिएगा जनाब… अलमारी तो क्या, बिस्तर भी शेयर नहीं करने वाली मैं!"
और वो अलमारी का दरवाज़ा फिर से खोलकर मुस्कुराते हुए अपने कपड़े जमाने लगी… जैसे कुछ हुआ ही नहीं।