Teri Meri Khamoshiyan - 6 in Hindi Love Stories by Mystic Quill books and stories PDF | तेरी मेरी खामोशियां। - 6

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तेरी मेरी खामोशियां। - 6

अगली सुबह…

रात की बेचैनी नायरा की आँखों से होकर सीधे सुबह में उतर आई थी।
आलमारी में कपड़े बदलते वक़्त भी, वही तस्वीर उसकी आँखों के सामने घूम रही थी—
जो उसने देखी नहीं थी…
मगर महसूस ज़रूर कर रही थी।

नाश्ते की मेज़ पर सब कुछ रखा था—
पर नायरा की कुर्सी ख़ाली रही।
अब्बू ने अख़बार की ओट से झाँक कर देखा,
फिर दादी ने भी रसोई की तरफ निगाह डाली,
मगर नायरा पहले ही कॉलेज के लिए निकल चुकी थी—
बिना एक शब्द बोले।

बस स्टॉप

हवा में हल्की सी ठंडक थी।
पत्ते धीरे-धीरे सरकते हुए ज़मीन पर गिर रहे थे,
जैसे कोई पुरानी याद दिल से उतर कर पलकों पर आ जाए।

नायरा आज भी भीड़ में अकेली सी खड़ी थी…
नज़रें उसी मोड़ की तरफ टिक गईं—जहाँ से अमन आया करता था।
पर आज वो भी नहीं आया।

बसें आईं… लोग आए और चले गए…
पर वो साया, जिसकी आँखों में एक सुकून था, एक चुप सी जज़्बात की लहर थी…
आज कहीं नहीं था।

नायरा की नज़र हर सफ़ेद शर्ट और ब्लैक बैग पर रुकती…
हर आते चेहरे में कुछ तलाशती…
मगर फिर मायूसी से झुक जाती।

एक हल्की साँस भरकर उसने खुद को सँभाला।

"क्या मैं वाक़ई किसी अजनबी की आदत डाल चुकी हूँ?"
उसने खुद से पूछा… और खुद ही मुस्कुरा दी।

बस आई…
वो चुपचाप चढ़ गई… बिना कुछ बोले, बिना कुछ कहे…

सीट पर बैठते ही खिड़की की तरफ देखा…
और वही सोच आई—
"आज वो क्यों नहीं आया…?"

कॉलेज कैंटीन..

कॉलेज कैंटीन का वो कोना, जहाँ हमेशा निम्मी की हँसी गूंजा करती थी, आज कुछ ख़ामोश था।

नायरा अपने हाथों में थामे कॉफी कप को ताक रही थी, जैसे उसमें कोई जवाब छुपा हो…
और निम्मी सामने बैठी, उसकी आँखों की उदासी को पढ़ने की कोशिश कर रही थी।

"यार तू इतनी बुझी-बुझी क्यों है आजकल? ये तेरी स्टाइल तो नहीं थी," निम्मी ने प्यार से उसकी कोहनी छूकर पूछा।

नायरा ने गहरी साँस ली और धीरे से कहा,
"अब्बू और दादी बुआ ने एक रिश्ता भेजा है... और सब लोग जैसे ज़िद पर अड़े हैं। बस... मैं कुछ समझ ही नहीं पा रही।"

निम्मी ने थोड़ा झुककर उसकी तरफ़ सरकते हुए पूछा,
"फोटो देखा उसका?"

"नहीं..." नायरा ने निगाहें चुरा लीं,
"देखना ही नहीं चाहती। एक तस्वीर से क्या पता चलेगा?"

निम्मी हँस पड़ी,
"अरे कमाल करती है तू! कभी-कभी एक तस्वीर में वो दिख जाता है जो पूरी ज़िंदगी नहीं दिखता… तू बस देख तो सही, हो सकता है अच्छा लड़का हो। क्या पता वही तुझे समझे, तेरा साथ दे।"

नायरा ने फीकी मुस्कुराहट के साथ कहा,
"कभी किसी अजनबी से रिश्ता जुड़ सकता है क्या?"

निम्मी ने गंभीर लहजे में कहा,
"कभी-कभी अजनबी ही अपनी किस्मत लिखने आता है। और सुन, अगर वो लड़का तुझे पढ़ाई जारी रखने दे, तुझे सपोर्ट करे… तो क्या बुरा है?"

"शादी करके पढ़ाई?" नायरा ने भौंहें चढ़ाईं।

"हाँ, क्यों नहीं! ये ज़माना बदल गया है नायरा... और तू जैसी ज़हीन लड़की तो हर रिश्ते को अपने हक़ में बदल सकती है। तू डर मत। एक बार देख तो सही उसकी तस्वीर… और अगर तुझे नहीं जंचा, तो ना कहना तेरा हक़ है।"

नायरा चुप रही…
कुछ सोचती रही…
पर दिल का कोना अब भी उलझा हुआ था।

"बस इतना सोच ले," निम्मी ने आख़िरी दलील दी,
"अगर वो तुझे तेरी उड़ान के साथ अपनाए… तो शायद ये सौदा बुरा नहीं है।"

नायरा ने अपनी निगाहें नीचे गड़ा दीं, जैसे किसी गहरे सोच में डूब गई हो।

"निम्मो… मैं नहीं देख सकती। मैं जबरदस्ती किसी ऐसे रिश्ते में नहीं बंध सकती जिसका नाम भी नहीं जानती… और दिल?"
उसने अपने सीने पर हल्की सी चोट की,
"वो तो जैसे अब किसी खामोशी में उलझ गया है।"

निम्मी ने धीमे से उसकी बात काटी,
"पर उस खामोशी में कोई नाम तो होगा न…?"

नायरा ने एक लम्हे के लिए अपनी पलकों को रोका, फिर बड़ी मुश्किल से जवाब दिया—
"है… पर वो नाम मुझे ख़ुद भी नहीं मालूम।"

निम्मी ने चौंकते हुए पूछा,
"मतलब?"

नायरा ने हल्की सी मुस्कुराहट के साथ एक उदासी पिघलाते हुए कहा,
"बस… एक अजनबी… जिसकी आँखें ठहर जाती हैं, और दिल बेचैन हो उठता है। नाम… बस अब तक हवा में बिखरा है।"

निम्मी कुछ पल के लिए चुप रही, फिर बोली—
"तू भी ना, किसी फ़िल्म की हीरोइन लगती है… और वो अजनबी हीरो!"
उसने हँसने की कोशिश की, पर नायरा के चेहरे की संजीदगी ने उसे भी ज़रा सा ठहरने पर मजबूर कर दिया।

"ठीक है, मत देख अभी… पर वादा कर, डर से नहीं, सोच समझ के फैसला करेगी।"

नायरा ने उसकी उंगली थाम ली और हल्के से सिर हिलाया