चायल, हिमाचल प्रदेश —
एक घना जंगल, बर्फ से ढकी वादियाँ और उनके बीच एक सुनसान, वीरान कॉटेज — मायरा कॉटेज।
धुंध से घिरी पहाड़ियों पर एक SUV धीरे-धीरे चढ़ रही थी। हेडलाइट्स को काटती परछाइयाँ और पेड़ों से टकराती हवा में एक अजीब सी खामोशी घुली थी।
कबीर (सिगरेट का कश छोड़ते हुए, गंभीर स्वर में):
“हम घूमने नहीं आए हैं। इस मायरा कॉटेज में पिछले एक महीने में तीन अनसुलझी मौतें हुई हैं।”
छैला बिहारी (थोड़ा घबराया, पर हमेशा की तरह हँसी में बदलने की कोशिश करते हुए):
“हमर गाँव में त भूतिया कहानी सुनते थे, लेकिन इहाँ... मौत सच्ची है बबुआ!”
भैरवी (लैपटॉप पर स्कैनिंग करते हुए):
“तीनों की आँखें खुली की खुली रह गई थीं... जैसे उन्होंने कुछ ऐसा देखा हो जो शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।”
कबीर, भैरवी, और छैला बिहारी बर्फीले रास्तों को पार कर जब मायरा कॉटेज पहुंचे, तब सूरज ढल चुका था। कॉटेज की दीवारों पर पुरानी दरारें और जाले कहानी खुद बयां कर रहे थे। भैरवी ने चुपचाप K2 मीटर निकाला, और उसकी रोशनी हर कोने में चमकने लगी। अचानक मीटर की लाइट लाल हो गई।
तीन दिन पहले – नई दिल्ली
त्रिनेत्र इंस्टीट्यूट ऑफ़ पैरानॉर्मल साइंस लैबोरेटरी — प्रोफेसर रघुनाथ दत्त की रहस्यमयी प्रयोगशाला।
प्रोफेसर रघुनाथ (गंभीरता से):
“ये केवल तंत्र नहीं... विज्ञान और आध्यात्म का संगम है। आत्माओं से लड़ने के लिए ज़रूरी है — ज्ञान, औज़ार और धैर्य।”
कबीर:
“हमें उन शक्तियों से निपटने के लिए आपके बनाए हथियारों की ज़रूरत है।”
प्रोफेसर रघुनाथ:
“ये लो — अग्नि यंत्र, कालचक्र पेंडेंट, स्पिरिट ट्रैप कैप्सूल, ये सब तुम्हारे जैसे योद्धाओं के लिए बनाए गए हैं। लेकिन याद रखना – इनका सही इस्तेमाल ही तुम्हें ज़िंदा रखेगा।"
भैरवी (संभावनाओं से उत्साहित होकर):
"अब कोई भी आत्मा बच नहीं पाएगी।"
प्रोफेसर रघुनाथ:
"लेकिन याद रखो... हर हथियार का उपयोग सोच समझ कर करना। आत्माएं सिर्फ बुरी नहीं होतीं..." — प्रोफेसर की आंखों में एक डर छुपा था।
"कबीर और भैरवी ने प्रोफेसर रघुनाथ दत्त का शुक्रिया अदा किया नए हथियारों के साथ वहाँ से रवाना हो गया।"
कॉलेज के भीतर एक अजीब सी बेचैनी फैली हुई थी। भैरवी K2 मीटर से स्कैन कर रही थी। छैला की नजर एक पुरानी तस्वीर पर पड़ी — एक सुंदर लड़की की मुस्कुराती छवि।
छैला:
“ई देखो... कितना सुंदर चेहरा है! का ई मायरा हो सकत बिया?”
कबीर (तस्वीर को ध्यान से देखते हुए):
“शायद यही है... मायरा।”
तभी तस्वीर की आँखों से खून टपकने लगा। खिड़कियाँ अपने आप खुलने-बंद होने लगीं। K2 मीटर लाल चमकने लगा और गूंजती हुई एक आवाज़ आई:
“चले जाओ... यहाँ क्यों आए हो?”
कबीर (कालचक्र पेंडेंट निकालते हुए, मंत्र उच्चारण करता है):
“कालचक्र प्रवर्तते... सत्य उद्घाट्यते…”
K2 मीटर की रीडिंग्स कॉटेज के पीछे बने पुराने पत्थरों की ओर इशारा करने लगीं। शैडो मिरर में एक अधजली लड़की की परछाईं उभरी।
कबीर ने जमीन खोदी — वहाँ से एक कंकाल, एक मोबाइल और कुछ टूटी चूड़ियाँ मिलीं।
भैरवी:
“ये… इसके आखिरी पलों का सबूत है।”
मोबाइल की मेमोरी कार्ड में एक रिकॉर्डिंग मिली — एक लड़की की चीखें और कुछ लड़कों की गंदी हँसी।
मायरा की आवाज़:
“कृपया मुझे जाने दो… मुझे माफ़ कर दो।”
एक लड़का:
“अब कोई नहीं बचा पाएगा तुझे…”
मायरा (रूह काँपाने वाले स्वर में):
“मेरा नाम मायरा है। ये कॉटेज मेरे पिता की विरासत थी। उनके बाद मैंने इसे गेस्ट हाउस बनाया। एक रात चार लड़के आए — और नशे में उन्होंने मुझ पर हमला किया। विरोध करने पर उन्होंने मुझे धक्का दिया... और मैं वहीं मर गई। मेरी लाश को इन दीवारों के पीछे दफना दिया गया।”
कबीर (गंभीर संकल्प के साथ):
“मैं तुझे इंसाफ़ दिलवाऊँगा, मायरा। लेकिन तू भी वादा कर — इंसाफ़ मिलते ही तू इस दुनिया को छोड़ देगी।”
मायरा (आँखों में सुकून के आँसू के साथ):
“मैं वादा करती हूँ...”
कबीर ने सारे सबूत पुलिस को सौंपे। मामले की दोबारा जाँच हुई और लड़कों ने अपना गुनाह कबूल किया। कोर्ट ने उन्हें उम्रकैद की सज़ा दी।
जैसे ही फैसला आया, मायरा की आत्मा मुस्कुराई और शांत हो गई — और एक धीमी रोशनी में मायरा कॉटेज से हमेशा के लिए विदा हो गई।
छैला (धीरे से):
“देर से सही... इंसाफ़ तो मिला... अब इस कॉटेज में फिर कोई नहीं मरेगा।”