"Paranormal Dairies" एक ऐसी अनकही दास्तान है, जहाँ भूत-प्रेत, चुड़ैल, अज्ञात शक्तियाँ और आत्माओं की चीखें किसी कल्पना की उपज नहीं — बल्कि ज़मीनी हकीकत हैं। इस उपन्यास में आप मिलेंगे Kabir, छैला बिहारी और भैरवी से — तीन ऐसे जिंदादिल लोग, जो परछाइयों का पीछा नहीं करते, बल्कि उनका सामना करते हैं।
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रहस्यमय दीवार
सड़क संकरी होती जा रही थी। चारों तरफ खेत, कभी-कभी कोई पेड़, और दूर से आती बैलों की घंटियों की आवाज़।
SUV की खिड़की से बाहर देखते हुए कबीर ने GPS की तरफ देखा—"रूद्रपुर गाँव — 2 किलोमीटर दूर।"
"बिलकुल सही जगह पे जा रहे हैं, जहाँ आदमी कम और अफवाहें ज़्यादा मिलती हैं," छैला बिहारी ने सीट पीछे करते हुए कहा। उसके कानों में ईयरफोन था और वो भोजपुरी गाने गुनगुना रहा था।
"तुम्हें मज़ाक सूझ रहा है, और गाँव में दो लोग दीवार के पास बेहोश मिले हैं। तीसरा अब तक बोल नहीं पा रहा है," कबीर ने कहा।
"तो भइया! आपको किसने बुलाया? कौन है जिसने आपको केस सौंपा?" छैला ने पूछा।
कबीर ने जेब से एक पुराना खत निकाला। उस पर स्याही फैल चुकी थी, लेकिन एक वाक्य साफ़ लिखा था:
"वो दीवार में कुछ है... कृपया आइये। — पंडित शिवदत्त, रूद्रपुर"
रूद्रपुर उत्तर भारत का एक छोटा सा, पर रहस्यमयी गांव। हर रोज़ की तरह गांव की गलियाँ शांत थीं, पर लोगों की आँखों में कोई अनजाना डर छुपा था।
"देखो छैला, सबसे पहले हमें पंडित शिवदत्त से मिलना होगा।"
"और अगर चुड़ैल मिल गई तो...?" छैला ने डरते हुए पूछा।
कबीर ने हल्की मुस्कान दी, "तो वो तुझपे फिदा हो जाएगी... जैसे पिछली बार हुआ था ना?"
"भगवान कसम, एक बार फिर चुड़ैल ने मेरा गाल सहलाया ना... तो इस बार मैं संन्यासी बन जाऊँगा!" छैला ने कसम खाई।
गाँव में घुसते ही लोगों की नज़रें उन पर टिकी थीं। कोई और आता तो शायद इन निगाहों से डर जाता, लेकिन कबीर और छैला इस काम के आदी थे।
गाँव के मंदिर के पास उन्हें एक बूढ़ा व्यक्ति मिला—सफेद धोती, चांदी जैसे बाल, और आँखों में भय।
गांव के पुजारी, पंडित शिवदत्त, ने झुककर उसका स्वागत किया।
"आप ही हैं कबीर जी ? (Paranormal investigator) वो दीवार में कुछ है...
दीवार कुछ बोलती है रात में। बच्चों की आवाज़ें... रोने की आवाज़ें आती है... सब कहते हैं वहाँ भूत है।"
कबीर ने सिर हिलाया और कहा, "हमें उस जगह ले चलिए।"
तभी SUV से एक और आदमी उतरा — चश्मा लगाए, कैमरा पकड़े, मूंछों वाला — छैला बिहारी।
पुराना स्कूल गांव के बाहर एक वीरान जगह पर था। स्कूल की इमारत टूटी-फूटी थी, पर एक दीवार थी — जो बाकी सब से बिल्कुल अलग।
कबीर ने दीवार की ओर बढ़ते हुए K2 मीटर निकाला — लाइट हरकत में आई। "यहाँ कुछ तो है..." कबीर ने अपनी K2 मीटर की स्क्रीन को घूरते हुए कहा।
छैला ने सिर खुजाते हुए कहा, "भूत से ज़्यादा डर तो इन मच्छरों से लग रहा है मुझे।"
कबीर ने छैले की बात अनसुनी कर दी। K2 मीटर बार-बार हरा से नारंगी और फिर लाल पर झपक रहा था।
"इतनी स्ट्रॉन्ग रेडिंग? ये आम बात नहीं है..." कबीर बड़बड़ाया।
पंडित बोले, "साहब, यही है वो दीवार। बाकी सब जर्जर हो गया, पर ये वैसी की वैसी है... जैसे कुछ छिपा हो इसमें।"
छैला ने दीवार पर हाथ रखा और झट से पीछे हट गया,
"भइया! ये दीवार तो बर्फ जैसी है!"
कबीर ने दीवार के पास जाकर हाथ रखा। लेकिन अजीब सी ऊर्जा उसमें महसूस हो रही थी। एक ठंडी लहर शरीर में दौड़ गई।
"तुम कौन हो?" कबीर ने हल्की आवाज़ में पूछा।
कबीर ने मोशन रिकॉर्डर ऑन किया। अचानक स्क्रीन पर कुछ उभरा — एक लड़की, स्कूल ड्रेस में, खून से सनी हुई... उसकी आँखें आंसुओं से भरी थीं।
“मेरा नाम ‘अनामिका’ है…” दीवार से आती कंपकंपाती आवाज़ ने कहा।
छैला बिहारी अब गंभीर हो गया। "क्या हुआ था तुम्हारे साथ...?"
लड़की की आत्मा ने जो दिखाया वो दिल दहला देने वाला था —
5 साल पहले...
अनामिका गाँव के स्कूल में पढ़ती थी। होशियार, सुंदर, लेकिन गरीब। स्कूल का एक टीचर उस पर बुरी नज़र रखता था। जब अनामिका ने विरोध किया, तो उस टीचर ने दो और गुंडों के साथ मिलकर उसे स्कूल की उसी दीवार के पीछे मार डाला... और दीवार को नए सीमेंट से बंद कर दिया।
किसी को कुछ पता न चले, इसलिए स्कूल को बंद करा दिया गया।
"मुझे किसी ने नहीं सुना... मेरी आवाज़ दीवार में कैद हो गई..." अनामिका की आत्मा बिखरती जा रही थी।
कबीर की आँखों में गुस्सा और करुणा दोनों थे।
"मुझे इंसाफ चाहिए..." एक धीमी आवाज़ गूंजी।
कबीर अपनी बेग से लैपटॉप निकाला। उसने गांव के पुराने रिकॉर्ड खोले — उस टीचर का नाम था प्रमोद तिवारी। अब शहर में बड़ा आदमी बन चुका था।
"क्या तुम चाहती हो कि उसे सज़ा हो?"
"हाँ..." आत्माने कहा, और में चाहती हूं... कि गांव वालों को पता चले मेरे साथ क्या हुआ था |
कबीर ने गाँव वालों के सामने सच्चाई रखी — पंडित शिवदत्त ने भी सच की गवाही दी। पुलिस को सूचना दी गई, और प्रमोद तिवारी को उसी दीवार के सामने लाया गया।
जैसे ही प्रमोद वहाँ पहुँचा, दीवार फिर से गूंजने लगी।
अनामिका की आत्मा सामने आई — अब वो डरावनी नहीं, बल्कि शांत और शक्तिशाली थी।
"तूने मेरी जिंदगी छीनी... अब तुझे डर के साथ जीना पड़ेगा..."
प्रमोद ज़मीन पर गिर पड़ा। उसकी आँखें सफेद हो गईं। डर ने उसकी आत्मा को झकझोर दिया।
उसके बाद, दीवार से हल्की सी रौशनी निकली... लड़की की आत्मा मुस्कुराई... और धीरे-धीरे गायब हो गई।
छैला ने चैन की सांस ली, "चलो भइया... इस बार प्यार तो नहीं हुआ... लेकिन इमोशनल कर गई आत्मा!"
कबीर ने दीवार की एक ईंट उठाई — उस पर लिखा था:
"सच कभी नहीं मरता..."
अगली सुबह ।
गांव वालों ने कबीर और छैला का धन्यवाद किया।
छैला SUV में बैठते हुए बोला,
"भइया, अब क्या करना है? "
कबीर मुस्कुराया, "चलो, अगले केस की तैयारी करो। ये तो बस शुरुआत थी..."