मोत का जंगल
SUV फिर से धूल उड़ाते हुए एक नए केस के साथ बढ़ रही थी |
कबीर ड्राइव कर रहा था, होंठों में सिगरेट दबाए हुए, और छैला पिछली सीट पर लेटा हुआ झपकी ले रहा था।
"छैला..." कबीर ने कहा।
"हमको मत उठाइए भइया, हमरें सपना में केटरीना आ रही है..." छैला ने आंखें बंद रखते हुए बड़बड़ाया।
कबीर हल्की मुस्कान के साथ सिगरेट का कश खींचता है।
अचानक रास्ते के किनारे एक बाइक खड़ी दिखती है। एक लड़की उस पर बैठी किताब पढ़ रही होती है, काले कपड़े, खुले बाल, और हाथ में एक डिजिटल मीटर — जैसे कोई सिंगल ढूंढ रही हो।
SUV धीरे होती है।"
अरे भइया, कोनो भूतनी है का?" छैला अचानक सीधा हो जाता है।
कबीर गाड़ी रोकता है।
लड़की बिना देखे बोलती है, "कबीर शिखावत? फाइनली तुम मिले गए। तुमसे मिलने में दो साल लग गए।"
कबीर थोड़ा चौंकता है, "तुम मुझे कैसे जानती हो?"
लड़की मुस्कुराती है, और कहतीं है "मेरा नाम भैरवी है और में Paranormal Analysis & Forensics से।"
छैला भैरवी को देख कर कहेता है, "हमरा तो दिल ही पेरानोर्मल हो गया रे..."
भैरवी उसकी ओर देखकर हंसती है, "रिलेक्स भोजपुरी बाबा, मैं भूत नहीं, रिसर्चर हूँ। और तुम... दिखते हो जैसे चुड़ैलों की फ़ैन क्लब के प्रेसिडेंट ।"
छैला कान पकड़ लेता है, "हमरा नाम छैला बिहारी है..."
कबीर, थोड़ा इंप्रेस होकर, भैरवी की फाइल देखता है।
और कबीर कुछ नहीं कहता, बस SUV की पेसेंजर सीट खोलता है, "आ जाओ, let’s see how good you are."
छैला बुदबुदाता है, "भूत कम, बहाना ज़्यादा लगती है!"
भैरवी पीछे बैठते हुए बोली, "और तुम डरते ज़्यादा हो , काम कम करते हो, छैला जी!"
कबीर SUV ड्राइव करते हुए छैला और भैरवी को केस समझाता है...
उत्तराखंड की सीमा पर एक घना जंगल — लोकल लोग उसे कहते हैं "मौत का जंगल".
पिछले 6 महीनों में वहाँ 5 लोग गायब हो चुके हैं। पुलिस, वन विभाग — सब हार चुके हैं। अब केस आया है Paranormal Team के पास।
"जंगल?" छैला ने मुंह बनाया, "भैइया हमरी आत्मा को पेड़-पौधे से ऐलर्जी लगती है!"
अचानक कबीर ने गाड़ी रोकी कबीर को कुछ लोग रास्ते में चिल्लाते हुए भागते लोग देखे गए... पर जब कबीर गाडी से उतर कर देखा को वहां सिर्फ सन्नाटा था।
जैसे ही तीनों जंगल में दाखिल हुए, GPS बंद हो गया, कमपास उल्टा घूमने लगा।
"भैरवी जी GPS गुमसुम है!" छैला ने डरते हुए कहा।
कबीरने नक्शा फैलाया, "जंगल के बीच में एक पुराना शिव मंदिर है। यहाँ के लोग कहते हैं वहाँ ‘कुछ’ जाग गया है।"
"ये कोई नोर्मल जंगल नहीं है..." भैरवी ने पत्तों पर ध्यान दिया — उन पर जलने के निशान थे। "यहाँ कुछ तो जलाया गया है…"
रास्ते में एक अधजला पुतला मिला — इंसानी कपड़े, मगर चेहरा मिटा हुआ।
कबीर ने कहा, "इसका मतलब है कोई अनुष्ठान किया गया है…"
छैला काँपते हुए बोला, "भगवान कसम, हम तो अपने गांव के आम के पेड़ से ही डरते थे, ये तो पूरा भूत का बगीचा है!"
अचानक एक आवाज़ गूंजी — किसी औरत की, जो ‘बचाओ बचाओ' पुकार रही थी।
"आवाज कहा से आई थी?" भैरवी पूछती है।
"हर जगह से!" कबीर की आँखें सतर्क हो गईं।
अचानक एक लड़की चीखती हुई भागती आई — उसके चेहरे पर नाखूनों के निशान, आँखें फटी हुई, और हाथों में काला धुआं।
"बचाओ! वो आ रही है… मत रुकना…" — और फिर उसकी चीख कट गई, जैसे किसी ने हवा में उसकी आत्मा खींच ली हो।
छैला के हाथ में रखे K2 मीटर में अजीब सी फड़फड़ाहट होने लगी। पेड़ हिल नहीं रहे थे, लेकिन पत्ते अपने आप ज़मीन पर गिर रहे थे।
"ये तो साफ़ संकेत है कि कोई हमे देख रहा है," कबीर ने कहा।
जंगल में सतर्क होकर आगे बढ़ रहे थे तभी कबीर को शिवमंदिर दिख गया
तीनों जब मंदिर पहुंचे, तो वो खंडहर बन चुका था।
मंदिर के पास जमीन में एक गहरा गड्ढा था — अंदर राख, खून के धब्बे और एक अधजली मूर्ति। त्रिशूल से टपकती थी लालचट काली बूंदें।
तभी एक जोर की हवा चली — और सामने प्रकट हुई एक स्त्री की आत्मा, लंबी जटाएं, जलती आंखें और पूरे शरीर पर राख के निशान।
"तुम लोग भी उसे खोजने आए हो?" वो दहाड़ती है।
कबीर बोला, "किसे?"
"कालवीर! उस तांत्रिक को… जिसने मुझे इस जंगल की रक्षक से राक्षसी बना दिया। मैं हर एक इंसान की मोत चाहती हूं…
"पर क्युं?" भैरवी पूछती है।
"में इंसानों से नफरत करती में सबको मारना चाहती हूँ — उस तांत्रिक ने गाँववालों को कहा की ये चुड़ैल इसको मारना होगा जब ये बात मेरे पति ने सुनी तो वो उस तांत्रिक का विरोध क्या तब तांत्रिक ने मेरे पति और बच्चों को भी मार डाला गाँव के सामने हाथ जोड़कर प्राथना की मेरी मदद करे पर कोई नहीं आया सभी लोग बस देखते रहे तांत्रिक ने मुझे यहा पर लाने के बाद मुझे मार डाला तबसे में जो भी इंसान इस जंगल में आता वह वापस जिंदा नहीं जाता क्युकी में उसे मार डालती हूँ
कबीर और भैरवी आत्मा की बात सुनकर आत्मा को समझाने की कोशिश करते हैं, लेकिन उसका गुस्सा अब काबू से बाहर हो जाता है।
वो आसमान में उड़ती है, और पेड़ जलने लगते हैं।
कबीर गुस्से में चिल्लाता है, "तुम जिसे मारना चाहती थी उसे मार चुकीं हो ! तुम्हारा बदला तो कब का पुरा हो चुका है अब तुम चली जा कब तक मासुम लोगों को मारोगी अगर ऐसे ही मारती रही तो फिर कोई तुम्हें याद रखने वाला भी नहीं बचेगा!"
"तो इंसान की मौत ही मेरी विरासत होगी!" आत्मा चिल्लाती है।
और तब भैरवी सामने आती है — उसने आत्मा की पुरानी मंगलसूत्र की चेन खोज ली थी।
"ये तुम्हारी पहचान थी ना? अब तुम्हारा विनाश होने से ही तुमको शांति मिलेगी "
भैरवी मंदिर में दीप जलाती और मंगलसूत्र को दीप में रखती है — आत्मा चीखती है, उसकी रौशनी तेज़ होती है — और पूरा मंदिर काँपने लगता है।
एक तेज़ विस्फोट से आत्मा राख बन जाती है।
मंगलसूत्र की राख मंदिर की अग्नि में मिल चुकी थी। आत्मा की चीखें अब गूंज नहीं रहीं थीं, लेकिन जंगल अब भी खामोश नहीं था।
कबीर थक कर एक पत्थर पर बैठ गया। चुपचाप सिगरेट जलाने लगा।
भैरवी ने उसकी तरफ देखा और कहा— "इस बार कुछ अलग था… वो आत्मा इंसान से ज़्यादा नफरत थी।"
"और गुस्सा भी," कबीर बोला, "बहुत गहरा गुस्सा।"
छैला डर के मारे कांपते हुए बोला, "भइया, हमको तो लग रहा है अभी भी कोई पेड़ के पीछे देख रहा है… ई जंगल तो अभी भी जिंदा है!"
भैरवी ने उसकी तरफ देखा और धीरे से फुसफुसाई —
"जिंदा ही नहीं छैला… किसी को हमने शांति दी, पर किसी और ने हमारी मौजूदगी महसूस की है।"
तभी झाड़ियों के बीच से कुछ फड़फड़ाया…
तीनों पलटे — मगर कुछ नहीं था। पर हवा में अब भी राख की गंध थी, और मंदिर से उठता धुआं अब भी सीधा आसमान में नहीं जा रहा था — वो एक दिशा में खिंच रहा था… किसी और आत्मा की तरफ।
कबीर खड़ा हुआ।
"ये बस एक शुरुआत थी।"
भैरवी ने आंखें बंद कीं — और धीरे से कहा,
"अब अगला बुलावा आएगा… बहुत जल्द।"