Teri Meri Khamoshiyan - 8 in Hindi Love Stories by Mystic Quill books and stories PDF | तेरी मेरी खामोशियां। - 8

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तेरी मेरी खामोशियां। - 8

रात का वक्त था...
नायरा घर लौटी तो हर चीज़ पहले जैसी थी—दीवारें, लोग, बातें... मगर उसके अंदर कुछ टूट चुका था। कमरे में दाख़िल होते हुए उसने एक बार पीछे मुड़कर देखा, जैसे किसी उम्मीद की तलाश में हो… लेकिन नहीं, वहाँ कोई आवाज़ नहीं थी—ना उसकी अपनी, ना किसी और की।

कमरे का दरवाज़ा बंद किया और बिस्तर पर बैठ गई। वो अब भी उसी छाया में उलझी हुई थी—अमन और उस लड़की की मुस्कुराती तस्वीर उसकी आंखों में जैसे चुभ रही थी।

“क्यों खलता है मुझे?”
उसने खुद से सवाल किया।
"मुझे क्या फर्क पड़ता है... मैं तो उसे जानती भी नहीं..."

लेकिन जवाब के बदले दिल ने एक टीस दी। वो मुस्कराई, मगर वो मुस्कान तंज थी—खुद पर।

"वो उसका क्या था...? और मुझे क्यों फर्क पड़ता है...?"
उसने खुद से पूछा, मगर जवाब की जगह खामोशी ने उसे घेर लिया।
दिल ने जैसे तड़पकर कहा—
"तुझे नहीं फर्क पड़ता...? तो फिर क्यों उस एक पल ने तेरा सारा दिन छीन लिया?"

उसने बैग से धीरे से लिफाफा निकाला।
वही लिफाफा जो उसके नाम आया था…
जिसमें किसी "अनजाने अपने" की तस्वीर थी।
जिसे उसने अब तक देखना भी गवारा नहीं किया था।

उसके हाथ काँप रहे थे, दिल तेज़ धड़क रहा था, और आंखें—वो नम थीं, मगर ज़िद्दी।

"शायद, अब और किसी के इंतज़ार की गुंजाइश नहीं बची..."
उसने बिना देखे, बिना सोचे, लिफाफा मेज़ पर रखा और दरवाज़ा खोला।

"बाबा..."
उसकी आवाज़ धीमी, मगर थमी हुई थी।
"अगर आपको मंज़ूर है, तो मुझे भी है..."

अब्बू के चेहरे पर राहत की लकीरें उभर आईं।
बुआ-दादी की आँखों में आंसू थे, मगर सुकून भी।

और नायरा...?
वो दरवाज़े की चौखट से टेक लगाकर खड़ी रही…
बिल्कुल ख़ामोश। जैसे कोई तूफ़ान सीने में समेटे हो।

और उसकी आँखें…
वो अब भी उसी सवाल से भरी थीं—"क्या किसी और की नज़दीकी से बचने के लिए, हम किसी अनजाने के करीब जा सकते हैं?"

रात गहराती चली गई…
ख़ामोशी नायरा की हमराज़ बनी बैठी थी।
उसने करवट दर करवट बदले, मगर नींद उसकी पलकों से कोसों दूर थी।
हर सवाल, हर ख्याल सिर्फ एक ही शख्स के इर्द-गिर्द घूम रहा था—अमन
और उसके साथ वो लड़की…

सुबह की पहली किरण के साथ घर में एक अजीब सी हलचल थी।
चाय की ख़ुशबू, किचन में बर्तन की आवाज़ें, और बीच-बीच में बुआ-दादी की मुस्कराहटों से भरी सरगोशियाँ।

बाबा ने बड़ी तसल्ली से लड़के वालों को फ़ोन किया था,
और वो लोग अगले ही सुबह घर आने को राज़ी हो गए थे।

"सब कुछ बहुत जल्दी हो रहा है..."
नायरा ने खिड़की से बाहर झाँकते हुए सोचा,
जैसे वक़्त उसके इर्द-गिर्द दौड़ रहा हो,
और वो… एक जगह थमी हुई।

अम्मी कमरे में आईं,
हाथ में गुलाबी रंग की सिल्क की दुपट्टा लिए।

"नायरा... देखो, कैसा प्यारा सूट है ना? आज पहन लेना। वो लोग आ रहे हैं तुम्हें देखने..."
उनकी आवाज़ में नर्मी थी, आँखों में उम्मीद।

नायरा ने बस नज़रें झुका लीं।
कुछ कहा नहीं।

"मुझे पता है बेटा, तुम खुद से बहुत कुछ लड़ रही हो।
लेकिन जो रिश्ता अल्लाह बना दे, उसमें कोई शक नहीं किया जाता।
तुम्हारे बाबा ने तुम्हारे लिए बहुत दुआएँ माँगी हैं…"
अम्मी ने उसका माथा चूमा और चले गईं।

थोड़ी देर बाद…
घर का हॉल मेहमानों से भर गया।
हर चेहरा मुस्कुराता हुआ, हर आँख उम्मीदों से भरी हुई।

लड़के की दादी, माँ-बाप, बड़ा भाई और भाभी—सब आए थे।
सिवाय उसके, जिसके नाम पर ये सारा रिश्ता तय हुआ था।

"बेटा बिज़नेस के सिलसिले में बाहर गया है, इसलिए नहीं आ सका…"
लड़के की माँ ने सफाई दी।
"लेकिन आपने हमारी बहू बना दी, तो समझिए हमारी दुनिया सँवर गई…"
उनकी आँखें भीग गई थीं।

नायरा को सब बहुत पसंद करते हैं।
किसी ने उसके सलीके की तारीफ़ की, किसी ने उसकी पढ़ाई की सराहना की।

और फिर…
बुआ दादी ने एक हफ्ते बाद की शादी की तारीख पक्की कर दी।

नायरा को जैसे झटका लगा।

"इतनी जल्दी…? एक हफ्ते में शादी…?"
उसने खुद से पूछा,
मगर बोल कुछ नहीं सकी।

सब कुछ जैसे उसके ‘हाँ’ कहते ही एक तेज़ रफ्तार पर निकल पड़ा था।
और वो अब भी उस मोड़ पर खड़ी थी…
जहाँ दिल सवालों से भरा था,
और ज़ुबान पर सिर्फ चुप्पी थी।

दोपहर की ढलती धूप खिड़की की सलाख़ों से छनकर उसके कमरे में बिखर रही थी।
बाहर खामोश धूप का आलस था, मगर नायरा के अंदर बेचैनी की लहरें दौड़ रही थीं।
उसकी आँखों में रात की जागी हुई उलझनें अब तक ताज़ा थीं।

ना चैन मिला था, ना कोई जवाब।
बस दिल में एक ही ख्याल था—अब और नहीं... अब बात करनी होगी।

और ये बात किससे हो सकती थी अगर निम्मी से नहीं?

वो चुपचाप उठी, बालों को जूड़े में बाँधा, एक हल्की-सी सूती कुर्ती पहनी और बिना किसी से कुछ कहे घर से निकल पड़ी।

सड़कें दोपहर के सन्नाटे में ढली थीं, जैसे हर चीज़ सुस्ताई हो…
मगर नायरा के कदमों में एक अनकही हड़बड़ी थी—जैसे उसके अंदर का तूफ़ान अब क़ैद नहीं रह सकता था।

निम्मी का घर...
हमेशा की तरह वही सुकून, वही अपनापन…

दरवाज़ा जैसे ही खुला, निम्मी की अम्मी ने मुस्कुराकर कहा,
"अरे नायरा बेटा… इस वक़्त? सब खैरियत?"

फिर मुस्कुराकर बोलीं,
"आओ अंदर आओ… खाना खाया नहीं होगा तुमने, है ना?"

पीछे से हमज़ा की तेज़ आवाज़ गूंजी,
"अरे ओ मिस जानेमन! आख़िरकार तुम्हें हमारे गली का रास्ता याद आ ही गया!"

नायरा हँसते हुए झुककर बोली,
"क्यों जनाब? इतनी मिसिंग हो रही थी मेरी?"

हमज़ा नाक फुलाकर बोला,
"मिसिंग? हम तो समझे तुम किसी और मोहल्ले में बियाह कर गईं!"

सबके ठहाके गूंज उठे,
नायरा ने उसे उठाकर गोद में लिया, "चल झूठे! अब बता, तेरा क्या हाल है?"

हमज़ा आँखें सिकोड़कर बोला,
"हाल तो ठीक है, लेकिन तुम्हारा हाल सुनकर दिल टूट गया…"

"कौन सा हाल?" नायरा ने चौंककर पूछा।

वो बड़े अफसोस से बोला,
"यही कि तुम किसी और से शादी कर रही हो… और मुझे तो बचपन से यकीन था कि तुम मेरी होने वाली बीवी हो!"

निम्मी की दादी ने मज़े लेते हुए कहा,
"अरे बेटा, थोड़ी देर हो गई वरना तेरा रिश्ता पहले ही भेज देते!"

हमज़ा ने सीना ठोककर कहा,
"अभी भी टाइम है! कह दो उस लड़के को—‘भाई पीछे हट जा, ओरिजिनल दावेदार आ गया है!’"

नायरा हँसते-हँसते लोटपोट हो गई,
"ओहो छोटे नवाब! अब चलो... पहले दूध पीकर अपने जूते पहनना सीख लो, फिर शादी की बात करना!"

हमज़ा मुँह फुलाकर बोला,
"ठीक है, लेकिन एक बात याद रखना—अगर वो लड़का तुम्हें कभी रुलाए ना... तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा!"

निम्मी ने बीच में आते हुए मुस्कुराकर कहा,
"अब ज्यादा हीरो मत बन, चल हट! नायरा तू चल, बहुत बात हो गई, अब कमरे में आ।"

और बिना किसी को मौका दिए,
निम्मी उसका हाथ पकड़ कर उसे अपने कमरे की ओर ले गई।

दरवाज़ा बंद हुआ…
तो जैसे नायरा की आँखों में जमी परतें भी टूटने लगीं।