दोस्त - रोहन, प्रिया, समीर और अंजलि - हमेशा कुछ नया और रोमांचक करने की तलाश में रहते थे। उन्हें घूमना-फिरना और अनदेखी जगहों को खोजना बहुत पसंद था। इस बार उन्होंने हिमालय की एक ऐसी पहाड़ी पर ट्रैकिंग करने का फैसला किया, जिसके बारे में किसी ने ज़्यादा सुना नहीं था। नक्शों पर भी उसका कोई खास ज़िक्र नहीं था। घने जंगल के बीचों-बीच, कई किलोमीटर चलने के बाद, वे एक ऐसी जगह पहुँचे जहाँ एक बहुत पुराना, टूटा-फूटा मंदिर था। ऐसा लगता था जैसे जंगल ने उसे अपने आगोश में ले लिया हो। चारों तरफ ऊँची-ऊँची घास और पेड़-पौधों ने उसे ढक रखा था। मंदिर किसी भी नक्शे पर नहीं था, और उसकी बनावट भी अजीब थी। उनकी जिज्ञासा उन्हें अंदर खींच ले गई। मंदिर के अंदर घना अँधेरा और एक अजीब सी खामोशी थी। हवा में नमी और मिट्टी की सोंधी महक के साथ एक अनजानी, भारी सी ठंडक भी थी। दीवारों पर अजीबोगरीब नक्काशी बनी हुई थी, जिनमें कुछ डरावने रीति-रिवाजों को दर्शाया गया था। गर्भगृह में एक भारी-भरकम, काले पत्थर की मूर्ति थी, जिसकी आँखें मानो उन्हें ही घूर रही हों। प्रिया को वहाँ एक अजीब सी नकारात्मक ऊर्जा महसूस हुई, जैसे कोई उन्हें देख रहा हो। शाम ढलने लगी थी और जंगल में अँधेरा तेज़ी से फैल रहा था। उन्होंने मंदिर के पास ही अपना कैंप लगाने का फैसला किया। रात में, उन्हें अपने कैंप के आसपास अजीबोगरीब आवाज़ें सुनाई देने लगीं - कभी धीमी फुसफुसाहट, तो कभी जैसे कोई आसपास चल रहा हो। प्रिया को एक पल के लिए एक धुंधली परछाई भी दिखी, लेकिन बाकी सबने इसे जंगली जानवर या उसका वहम कहकर टाल दिया। अगली सुबह समीर की तबीयत कुछ ठीक नहीं थी। वह बहुत कमज़ोर महसूस कर रहा था और कह रहा था कि रात में सोते समय उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे छुआ हो। उसके चेहरे पर एक अजीब सा डर था । उन्होंने वहाँ से निकलने का फैसला किया, लेकिन कुछ देर चलने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि वे गोल-गोल घूम रहे हैं और बार-बार उसी मंदिर के पास पहुँच जाते हैं। उनके जीपीएस ने भी काम करना बंद कर दिया था। घबराहट बढ़ने लगी थी। तभी अंजलि को मूर्ति के पास ज़मीन पर एक पुराना, फटा हुआ भोजपत्र का टुकड़ा मिला। उस पर कुछ अजीब से चिह्न बने थे और अस्पष्ट भाषा में मंदिर के 'रक्षक' को परेशान न करने की चेतावनी लिखी थी। उस रात, मंदिर का वो अनदेखा 'रक्षक' और भी आक्रामक हो गया। कैंप में रखी चीज़ें अपने आप हिलने लगीं। डरावनी फुसफुसाहटें अब साफ़ सुनाई दे रही थीं, जैसे कोई उनके कानों के पास आकर बोल रहा हो। रोहन ने हिम्मत करके मूर्ति की तस्वीर लेने की कोशिश की। जैसे ही उसके कैमरे का फ्लैश चमका, एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे मूर्ति की आँखें लाल चमक उठी हों। उसके बाद कैमरा बंद हो गया। समीर की हालत और बिगड़ने लगी। वह अब अजीब सी भाषा में बड़बड़ा रहा था, जिसे कोई समझ नहीं पा रहा था। उसकी आँखों में एक खालीपन था। प्रिया को अचानक अपनी दादी की सुनाई एक पुरानी कहानी याद आई, जिसमें जंगल के नाराज़ देवताओं को शांत करने के लिए अपनी कोई कीमती चीज़ अर्पित करके बिना पीछे देखे भाग जाने की बात थी। उन्होंने मिलकर अपने पास से कुछ खाने का सामान और एक-एक छोटी चीज़ (रोहन की चाबी का छल्ला, प्रिया का छोटा सा लॉकेट, समीर की घड़ी जो बंद हो चुकी थी, और अंजलि का स्कार्फ) मंदिर के प्रवेश द्वार पर रख दी। उन्होंने मन ही मन माफ़ी माँगी। फिर वे चारों एक अनजान, पतली सी पगडंडी पकड़कर जितनी तेज़ी से भाग सकते थे, भागे। उन्होंने पीछे मुड़कर देखने की हिम्मत नहीं की, बस भागते रहे, हाँफते रहे।घंटों तक खौफ में भागने के बाद, आखिरकार वे एक जानी-पहचानी पगडंडी पर पहुँचे और फिर उन्हें दूर एक छोटा सा गाँव दिखाई दिया। गाँववालों की मदद से वे मुख्य सड़क तक पहुँचे। समीर धीरे-धीरे ठीक हो गया, लेकिन उसे जंगल में बिताए पिछले चौबीस घंटों का कुछ भी याद नहीं था। उन चारों ने फिर कभी उस मंदिर या उस ट्रेक का ज़िक्र नहीं किया, लेकिन वो खौफनाक यादें उनके ज़हन में हमेशा के लिए बस गईं। रोहन का कैमरा तो खराब हो गया था, लेकिन मेमोरी कार्ड से किसी तरह कुछ तस्वीरें रिकवर हुईं। ज़्यादातर तस्वीरें धुंधली और खराब थीं, सिवाय एक के। उस तस्वीर में मंदिर की वही मूर्ति थी, लेकिन उसके ठीक पीछे, धुंध में, एक भयानक, इंसानी परछाईं नज़र आ रही थी, जिसकी आँखें अँधेरे में चमक रही थीं। उम्मीद है यह कहानी आपको पसंद आई होगी! क्या आप इसी तरह की और कहानियाँ सुनना चाहेंगे या कुछ और जानना चाहेंगे? 😊 तो मुझे फोलो कर लीजिए