काफ़ी शॉप शहर के सबसे शांत कोने में थी। बाहर की भीड़भाड़ से बिल्कुल अलग। यहीं Yug और Avni आमने-सामने बैठे थे। माहौल सुकून देने वाला था, लेकिन दोनों के अंदर एक तूफ़ान चल रहा था।
युग ने पहली बार इतनी देर तक किसी लड़की की आंखों में आंखें डालकर देखा था… और देखा कि वो आंखें शांत नहीं थीं। उनमें थकावट थी, खो जाने का डर था, और शायद… खुद से जूझने का संघर्ष।
"तुम्हें किसी से डर लगता है?" युग ने अचानक पूछा।
अवनि चौंकी। "क्यों पूछ रहे हैं ऐसा?"
"क्योंकि तुम्हारी आँखें चीख रही हैं," युग ने गंभीरता से कहा, "पर तुम्हारा चेहरा हमेशा खामोश रहता है।"
अवनि ने मुंह फेर लिया, जैसे कोई पुराना ज़ख्म छिपा रही हो।
"हर किसी की ज़िन्दगी में कुछ ऐसा होता है, जो वो किसी से नहीं कह पाता," अवनि ने धीमे से कहा। "और कुछ लोग इतने थक चुके होते हैं कि उन्हें समझ नहीं आता, वो आगे बढ़ें या रुक जाएं।"
युग ने बहुत देर बाद जवाब दिया—"तुम भाग रही हो, ना?"
अवनि की आंखें भीग गईं, लेकिन उसने सिर झुका लिया।
"मैं भी भाग रहा था… अब तक।"
अवनि ने धीरे से उसकी तरफ देखा।
"किससे?" उसने पूछा।
"खुद से," युग ने कहा। "मेरे पास सब कुछ है, पैसा, ताक़त, नाम… लेकिन किसी ने कभी ये नहीं पूछा कि मेरे अंदर क्या चल रहा है। सब मुझे देखकर डरते हैं… पर तुम पहली हो जिसने मुझे देखा… बस एक इंसान की तरह।"
अवनि पहली बार युग को उस नजर से देख रही थी, जो शायद वो खुद को कभी नहीं देख पाया।
"और तुम?" युग ने धीरे से पूछा। "किससे भाग रही हो?"
बहुत देर की खामोशी के बाद अवनि बोली—
"मेरे पापा ने मेरी माँ को छोड़ा था। और जब माँ गई, तो मैं अकेली हो गई। रिश्तेदारों ने तो नाम के लिए पाला, पर कभी अपना नहीं समझा। मैंने सब सहा, किसी से कुछ नहीं कहा।"
उसकी आवाज़ कांपने लगी। "अब किसी से जुड़ने से डर लगता है… डर लगता है कि फिर कोई छोड़ देगा…"
युग का दिल भारी हो गया। उसके हाथ खुद-ब-खुद अवनि के हाथ पर रखे गए। "मैं छोड़ने वालों में से नहीं हूँ, अवनि। मैं साथ निभाना जानता हूँ… चाहे कितनी भी लड़ाई क्यों न लड़नी पड़े।"
अवनि का दिल वो सुनकर काँप गया। कोई पहली बार उसके दर्द से नहीं डरा था, उल्टा उसका हाथ थाम कर उसे सहारा देने की बात कर रहा था।
"लेकिन… मैं तुम्हारी दुनिया का हिस्सा नहीं बन सकती युग," उसने कांपती आवाज़ में कहा। "तुम्हारी दुनिया में बंदूकें हैं, डर है… मैं वहाँ नहीं जी पाऊँगी।"
युग ने एक लंबी सांस ली। "तो मैं तुम्हारी दुनिया में आ जाऊँगा।"
अवनि ने चौंककर उसकी ओर देखा।
"क्या?"
"हाँ, अगर तुम्हें मेरा अतीत डराता है, तो मैं उसे पीछे छोड़ दूँगा। मैं वैसा बनने को तैयार हूँ जैसा तुम चाहो—बस तुम झूठे वादे मत मांगना… मैं सच्चा प्यार दे सकता हूँ।"
अवनि कुछ बोल नहीं पाई। उसके अंदर कोई दीवार टूटी थी। आंखों से दो बूंदें गिरीं—पहली बार, सुकून के।
बाहर रात हो चुकी थी।
काफ़ी शॉप बंद होने को थी, लेकिन अंदर दो जिंदगियाँ एक नये मोड़ पर थीं।
युग ने उठते हुए कहा, "तुमसे मिलकर ऐसा लगा… जैसे किसी अधूरे हिस्से को पूरा कर दिया हो तुमने।"
अवनि ने कुछ नहीं कहा… लेकिन उसकी खामोशी इस बार जवाब थी।