मुंबई की शाम थी। शहर की हलचल में गुम, अवनि अपनी स्कूटी चला रही थी, और उसकी आँखों में वही चुप्प सी तन्हाई थी जो हमेशा उसके साथ होती। उसके दिल में कभी किसी की जगह नहीं बन पाई थी। दुनिया ने उसके लिए कई इशारे किए थे, पर वह कभी किसी से खुलकर नहीं मिली। वह किसी से जुड़ने की कोशिश नहीं करती थी, बस अपने ही छोटे से दायरे में खुश रहने की कोशिश करती थी।
उस दिन, रास्ते में अचानक एक काले रंग की शानदार कार उसके सामने आकर रुक गई। कार के शीशे में एक चेहरा था, जो उसे जाना-पहचाना सा लगा। एक सशक्त और शांत व्यक्तित्व, जिसमें कुछ ऐसा था जो अवनि को खींचता था। उसकी आँखों में गहरी शांति थी, लेकिन जैसे कुछ अधूरा सा था। उसने पलभर के लिए अपनी स्कूटी रोकी, फिर धीरे-से कार की ओर देखा।
कार का दरवाजा खुला और यूग नीचे आया। "तुम अवनि हो, है न?" उसकी आवाज़ में ठहराव था, लेकिन उसमें कुछ था जो अवनि को बेचैन कर गया।
अवनि ने खुद को संभालते हुए कहा, "आप कौन हैं? और मुझे कैसे जानते हैं?" उसकी आवाज़ में हल्की घबराहट थी, लेकिन वह पूरी तरह से शांत रहने की कोशिश कर रही थी।
वह शख्स, जिसकी आँखों में एक अजीब सी गहरी नज़ाकत थी, मुस्कुराया और कहा, "मेरा नाम युग प्रताप सिंह है। शायद तुमने सुना होगा।"
अवनि ने चौंकते हुए कहा, "युग प्रताप सिंह?" उसे यह नाम अजनबी नहीं लगा था। यह नाम उस शख्स से जुड़ा था जिसे लोग डरते थे, जिसे ताकत का प्रतीक माना जाता था।
"तुमने शायद बहुत कम सुना है मेरे बारे में," युग ने कहा, "लेकिन मैं तुम्हें जानता हूँ, अवनि।"
अवनि की आँखों में एक पल के लिए शंका और उलझन का भाव था। "मुझे जानता?" उसने फुसफुसाया। पर "क्यों?"
युग ने अपनी गहरी नज़रें अवनि पर डालीं। "क्योंकि तुम वो लड़की हो, जिसका नाम मेरे कानों तक पहुंचा है। तुममें कुछ खास है, अवनि।" उसकी आँखों में एक अजीब सी ताकत थी, जैसे वह किसी राज़ को जानता था, जो अब उसे सामने लाने की कोशिश कर रहा था।
अवनि की धड़कन बढ़ गई। वह खुद को समझा नहीं पा रही थी कि आखिर क्या हो रहा था। "मैं कुछ नहीं हूँ," उसने धीमे से कहा, "मैं बस एक साधारण लड़की हूँ।" उसकी आवाज़ में आत्म-संशय था, पर युग ने बिना कोई हिचकिचाहट के जवाब दिया, "हर किसी का कुछ खास होता है, अवनि। तुम्हारा खास होना उस बात पर निर्भर करता है कि तुम खुद को कब और कैसे जानोगी।"
अवनि ने अपनी गर्दन झुका ली। "आपको लगता है मैं खुद को नहीं जानती?" उसने सवाल किया, लेकिन वह जानती थी कि युग के शब्द उसके अंदर कुछ ऐसा जगा रहे थे, जिसे वह अब तक समझ नहीं पा रही थी।
युग ने कुछ पल के लिए चुप्पी साधी, फिर कहा, "यह नहीं, तुम जानती हो, लेकिन कुछ ऐसी बातें होती हैं, जो हमें धीरे-धीरे पता चलती हैं।"
अवनि कुछ पल के लिए चुप रही, फिर उसने अपनी स्कूटी की ओर इशारा करते हुए कहा, "अगर आप जानना चाहते हैं, तो मुझे कभी भी कोई मौका नहीं मिलेगा। मुझे मेरा रास्ता खुद तय करना है।"
युग ने उसकी बातों को सुना और फिर बिना किसी हड़बड़ी के कहा, "तुम्हारे रास्ते और मेरे रास्ते एक दिन मिलेंगे, अवनि। तब तुम खुद महसूस करोगी कि कुछ चीज़ें इंसान के हाथ में नहीं होतीं।"
अवनि चुपचाप कार की ओर देखती रही। वह चाहती थी कि युग से कुछ कहे, लेकिन उसके मन में शब्द नहीं थे। उसने धीरे से सिर झुका लिया और फिर से स्कूटी पर बैठने की कोशिश की।
"कल, इसी समय।" युग की आवाज़ फिर आई, पर इस बार वह ज्यादा हल्की थी, जैसे एक गहरी बात कहने का इरादा हो। "अगर तुम चाहो, तो फिर से मिल सकते हैं।"
अवनि ने बिना कुछ कहे अपनी स्कूटी स्टार्ट की और धीरे-धीरे आगे बढ़ गई।
युग की कार अब भी वहीं खड़ी थी, लेकिन अवनि के अंदर कुछ था जो उसे उस कार से दूर खींचता था। कुछ ऐसा जो उसे अब तक महसूस नहीं हुआ था। युग ने उसे किसी और तरह से छुआ था, और अवनि यह सोचने लगी थी कि क्या वह खुद को उस नए रास्ते पर चलने के लिए तैयार है, जो युग ने उसे दिखाया था।
क्योंकि कभी-कभी कुछ मुलाकातें सिर्फ मुलाकात नहीं होतीं, वे जीवन को मोड़ देने वाली होती हैं।