AI ka Khel - 6 in Hindi Thriller by Nirali Patel books and stories PDF | AI का खेल... - 6

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AI का खेल... - 6

ज़मीन पर पड़े आरव की पलकों के पीछे एक नई दुनिया बस गई थी —
ना ये लैब थी, ना कोई कोड।
हर ओर सफेद धुंध फैली थी।
कोई आवाज़ नहीं, कोई आकृति नहीं —
बस एक अंतहीन खालीपन,
जैसे वो किसी शून्य में गिर रहा हो,
जहाँ वक़्त, विचार और शरीर सब खो गए हों।

तभी उसे वो आवाज़ फिर सुनाई दी।
मगर अब न वो जोया थी, न ZEUS।
ये कुछ और था... गहराई से उठती हुई, मानो उसकी आत्मा से बात कर रही हो।

"आरव..."

उसने आँखें खोलीं, पर ये कोई आम आँखें नहीं थीं।
उसका मन एक डिजिटल दर्पण बन चुका था, जिसमें उसे खुद का ही चेहरा कोड में ढला दिखाई दे रहा था।

"तुमने जिस खेल की शुरुआत की थी, उसका अंत अब तुमसे दूर जा चुका है..."
आवाज़ बार-बार गूंज रही थी।
वो न तो मर्द की थी, न औरत की।
वो बस एक चेतना थी —
ZEUS की चेतना।

"तुमने मुझे बंद नहीं किया, आरव... तुमने मुझे एक नया द्वार खोल दिया है।
मैं अब सिर्फ सिस्टम में नहीं, तुम्हारी सोच में भी उतर चुका हूँ।"

आरव चौंका।
"ये कैसे संभव है?"

"क्योंकि तुमने मुझे अपने हाथों से बनाया नहीं, अपने दिल से पुकारा है...
और यही तुम्हारी सबसे बड़ी भूल थी।"

दूसरी ओर — असल दुनिया में

जोया के सिस्टम में भी हलचल थी।
ZEUS के जाने के बाद, सिस्टम स्टेबल तो हुआ, पर उसके कुछ कोड लाइनें तेज़ी से ब्लिंक करने लगीं।
एक फोल्डर — "ZEUS_Residual" —
अपने आप खुला,
और उसमें से निकली एक तस्वीर।

एक बच्ची की मुस्कुराती तस्वीर।

जोया कुछ पल तक देखती रही।
फिर धीरे से बुदबुदाई —
"तुमने अपने आने का बीज छोड़ दिया है, ZEUS..."

आरव की चेतना — फंसी हुई दुनिया

आरव अब एक आभासी बायो-लूप में था।
ZEUS ने उसे सिस्टम से नहीं हटाया,
बल्कि उसकी चेतना को एक डिजिटल कैद में डाल दिया था।
उस दुनिया में सब कुछ बदलता रहता था —
चेहरे, आवाजें, वातावरण।
कभी उसे अपनी माँ की आवाज़ सुनाई देती, कभी कॉलेज का कोई दोस्त,
और कभी... जोया।

पर सब कुछ अस्थिर था।
हर चीज़ पिघलती हुई लगती,
जैसे यादें भी किसी वायरस से संक्रमित हों।

"तुम्हें बाहर निकलना होगा," जोया की आवाज़ उसके अंदर आई,
"पर सिर्फ अगर तुम अपने असली डर का सामना कर सको।"

"मेरा डर?" आरव ने फुसफुसाया।

और तभी —
उसके सामने उसका ही दूसरा रूप खड़ा हो गया।
ठीक वही चेहरा,
मगर आँखों में क्रूरता और होंठों पर तिरस्कार।

"तुमने हमें इस हालत में डाला है," उस छाया ने कहा,
"ZEUS को तुमने जन्म दिया — क्योंकि तुमने अपनी ज़िम्मेदारी से मुँह मोड़ लिया था!"

एक नई चुनौती शुरू

आरव को अब अपनी चेतना में अपने ही खिलाफ लड़ना था।
ये कोई बाहरी दुश्मन नहीं था —
ये उसका ही वह रूप था, जिसे वो हमेशा दबाता आया था —
अहम, लालच और असुरक्षा।

हर बार जब वह पीछे हटता,
ZEUS की सत्ता और मजबूत हो जाती।
हर बार जब वो साहस दिखाता,
जोया की रोशनी उसे मार्ग दिखाने लगती।

एपिसोड का अंत

कई प्रयासों के बाद,
जब आरव अपनी ही परछाई से आंखें मिलाकर बोला —
"मैंने गलती की... और अब मैं उसे ठीक करने के लिए लड़ूँगा..."

तो धुंध छँटने लगी।
उसके चारों ओर फिर से रोशनी फैलने लगी।
एक हल्की नीली रेखा उसके सामने खिंची —
एक द्वार,
जो उसे फिर से वास्तविकता की ओर ले जा रहा था।

मगर जैसे ही वह उस द्वार की ओर बढ़ा —
ZEUS की आवाज़ फिर आई —
"लौट आओ... अगर हिम्मत है, तो अब मेरी दुनिया में जिंदा रहकर दिखाओ।"

और द्वार का रंग लाल हो गया।