आज सुबह से ही घर में तनाव का महौल था। कोई एक दूसरे से ढंग से बात नहीं कर रहा था।
उधर सासू मां के ताने सावन की झड़ी की तरह पूर्णिमा पर बरस रहे थे।
और सर पर बैठाओ लाडली को और पढ़ाओ और लिखाओ । नाक कटवा कर रख देगी समाज में कहीं मुंह दिखाने योग्य नहीं रहेंगे।
बताओ ? उसे अपनी मर्जी से जीवन साथी चाहिए? हमारे जमाने में तो लड़कियां मुंह तक नहीं खोलती थी जिस खुटे से बांध दिया बस बंद जाती थी । सासू मां ने आज फिर तेवर बदल दिए थे।
और एक यह है इतनाअच्छा रिश्ता ठुकरा रही है। सब उसकी मां कि सय है और क्या ?
मैं तो पहले ही कहती थी इतना मत पढओ । मुंह में जुबान आ गई है नहीं तो कोई लड़की बोलती है क्या इतना ।
जमाना कितना भी मॉडर्न है औरत के लिए नहीं बदलता।
पूर्णिमा आज भी रसोई में काम करते हुए चुपचाप सुन रही थी। दूसरी और पति तमतमाया हुआ चेहरा लेकर घूम रहे थे।
आते जाते पूर्णिमा को घूरते _ खाना बन जाएगा आज की तारीख में ?
अभी लगा देती हूं बस ..इतना ही बोल पाई पुर्णिमा।
उधर शशि अलग अपनी जीद पर अड़ी थी ।
उसे डॉक्टर से शादी नहीं करनी थी उसे अपने ही पेसे के किसी बन्दे से साथी करनी थी। जो जज या वकील हो।
पूर्णिमा फिर आज आईने के सामने खड़ी थी। अपने आप को निहारती मन ही मन कहती _पूर्णिमा है तो ग्रहण तो लगेगा ही लगेगा।
पर आज वो अपने आप को कमजोर महसूस नहीं कर रहीं थीं। बस कुछ सवाल थे जिनके उत्तर ढूंढ रही थी।
उसने सोचा ग्रहण तो लगता ही है पुर्णिमा पर किंतु चांद नहीं हटता ग्रहणको हटना पड़ता है बस उसी तरह मुझे भी शशि के प्रति लगे ग्रहण को परिवार के दिलों से हटाना होगा।
मुझे ही तीन पीढ़ियों के बीच कड़ी बनकर परिवार की सोच को एक करना होगा। मुझे ही बनाना होगा परिवार में समन्वय।
हां ! मैं यह करके दखाऊंगी ?
अपने आप को आईने में निहारती पूर्णिमा में एक गहरा आत्मविश्वास था।
कमर में पल्लू खोस कर निकल पड़ी पुर्णिमा सब कुछ सही करने बस उसे सिरा ढुंढना था कि कहा से सुरू करें।
पूर्णिमा पहले शशि के कमरे में जाती है।
मां को देखते हुए शशि तुरंत खड़ी हो जाती मां से गले लग कर कहती हैं _मां मैं कहां गलत हूं क्या गलत कहा मैने ।
मैं बस अपने पेसे के बंदे से शादी करना चहता हूं क्योंकि वही समझेगा मुझे अच्छे से क्योंकि मैं एक जज हुं तो डॉक्टर मुझे क्या समझेगा या मैं क्या समझुगी उसे हमारी सोच कैसे मिलेगी । कैसे निभा पायेंगे हम एक-दूसरे को ? तुम बताओ मां मैं क्या करूं।
पूर्णिमा ने प्यार से शशि के सर पर हाथ रखकर कहा सब ठीक हो जाएगा बस तुम मेरे साथ चलो। पूर्णिमा शशि का हाथ पकड़ कर डाइनिंग टेबल पर ले आई। यहां बैठो मैं अभी आती हूं।
थोड़ी देर में उसने सभी को डाइनिंग टेबल पर एकत्रित कर लिया था। पर कोई किसी से बात नहीं कर रहा था बस एक दूसरे को घुर रहे थे।
फिर सासू मां बोली_ यहां क्यों लाई है मुझे ऐसी लड़की के सामने बैठा दिया जिसे मां-बाप की इज्जत का कोई ख्याल नहीं खुद अपने लिए वर ढूंढना चाहती हैं ।
उसके पापा चुपचाप घूरते रहे।
शशि नीचे गर्दन झकाए एकदम चुप थी।
तभी पूर्णिमा बोली __बस..... बहुत हुआ।
अब कोई कुछ नहीं बोलेगा मैं बोलूंगी और सब सुनेंगे। और तब तक सुनेंगे जब तक मेरी बात पूरी नहीं हो जाती।
मैंने अपना सारा जीवन अपने घर को संवारने में लगा दिया। मैं हमेशा चुप रही मैंने मौन धारण किया ताकि इस घर में शांति बनी रहे कभी कलेह ना हो। मेरा एक ही मकसद रहा है कि मेरे घर में एकता बनी रहे और मैंने वह पूरा भी किया है।
लेकिन अब आप गलत कर रहे हैं शशि के साथ तो मैं चुप नहीं रह सकती। आप लोगों की बातों ने मुझे बोलने पर मजबूर किया है।
पूर्णिमा का ऐसा रूप पहले किसीने नहीं देखा था। सासू मां और पति पूर्णिमा की और आश्चर्य से देखने लगे।
क्या यह वही पूर्णिमा है जो सिर्फ हांजी, माजी के अलावा कुछ नहीं कहती थी।
पूर्णिमा ने सबसे पहले सासू मां से बोलना शुरू किया __क्या गलत कर रही है शशि?
वह सिर्फ अपने ही जैसे किसी बन्दे से सादी करना चाहती है तो इसमें गलत क्या है। लड़का तो आप ही को ढूंढना है ना ।
और आप किस जमाने की बात कर रही है मां जी आज के जमाने में तो लड़कियां पूछती तक नहीं और शादी कर के आ जाती है।
यह तो हमारे संस्कार है और शशि की शिक्षा है जो उसने ऐसा कुछ नहीं किया।
और मां जी आप तो दाल में ज्यादा नमक पडने पर उसे अलग कर देती हैं या सब्जी में थोड़ी सी मिर्ची ज्यादा होने पर उसे अलग कर देती हैं वो भी मुझे दस बातें सुनाकर।
और शशि अपनी मर्जी से शादी भी नहीं कर सकती ? उसकी भी तो पूरी जिंदगी का सवाल है ऐसे कैसे आप उसे किसी भी खुटे से बांध सकती हो।
और आप ,आप तो सलवटे पड़ी हुई शर्ट भी नहीं पहनते और बेटी को पुरे जीवन भर की सलवटे देना चाहते हो।
आपके शर्टे की सलवटे तो प्रेस से खत्म हो जाती हैं पर बेटी अपने जीवन की सलवटे कैसे खत्म करेंगी। अगर डॉक्टर या इंजीनियर से उसकी नहीं बनी तो?
क्या शादी के बाद आप उसे अपने घर बैठाओगे जीवन भर !!
उससे अच्छा है कि अभी सोच समझकर ही फैसला किया जाए।
सब पूर्णिमा की बातों को चुपचाप सुन रहे थे गजब का आत्मविश्वास था उसकी बातों में।
आखिर सब लोगों को उसकी बात माननी ही पड़ी।
शशि जो इतने समय से चुपचाप बैठी थी उठ कर तुरंत मां के गले लग गई।
मां मुझे तुम पर गर्व है। आज तुमने मुझे फिर उड़ाने के लिए आसमान दिया है।
तुम्हारे आत्मविश्वास की चमक इतनी तेज है कि अब कोई ग्रहण मुझे या तुम्हें छु भी नहीं सकेगा।
पूर्णिमा के चहरे पर मुस्कान थी उसने समझ लिया था कि कोई भी समस्या ऐसी नहीं जिसका समाधान न हो। किसी ग्रहण में इतनी ताकत नहीं कि वह चंद्रमा को हमेशा के लिए ढक सके।
जिस तरह ग्रहण हटने पर चंद्रमा की चमक बढ़ जाती है उसी तरह आज पूर्णिमा के आत्मविश्वास की चमक ने शशि का जीवन पुर्णिमा की रोशनी से भर दिया था।
अब... पुर्णिमा को आने वाले किसी भी ग्रहण की चिंता नहीं थी।