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अंधेरे का मेहमान
बारिश की बूँदें लगातार छत पर गिर रही थीं। आसमान में बिजली चमक रही थी, और हर बार जब बिजली कड़कती, इंस्पेक्टर सुखी को ऐसा लगता जैसे किसी की परछाई उस कोठी के पुराने दरवाज़े पर सरक रही हो।
वो जगह वीरान थी — बाहर से देखने पर लगता कि सालों से कोई नहीं आया। लेकिन जब सुखी ने दरवाज़ा खोला, तो अंदर फैली धूल के बीच एक चीज़ चौंकाने वाली थी — दीवार पर टंगी प्रीत की मुस्कुराती हुई तस्वीर।
“ये तस्वीर यहाँ कैसे आई?” सुखी ने बुदबुदाते हुए अपने हाथ से उस तस्वीर को छूआ — तस्वीर एकदम ताज़ा थी, मानो कल ही लगाई गई हो। तभी अचानक किसी ने पीछे से फुसफुसाया, “बहुत देर कर दी, इंस्पेक्टर साहब…”
सुखी ने झट से पलटकर पीछे देखा — लेकिन वहाँ कोई नहीं था।
उसने अपनी जेब से टॉर्च निकाली और चारों ओर रोशनी डाली। एक कोना था जहाँ दीवार पर एक लाल रंग में कुछ लिखा था —
"जो सच दिखता है, वो होता नहीं। और जो होता है, वो दिखाई नहीं देता।"
तभी उसकी जेब में रखे मोबाइल की बीप बजी। स्क्रीन पर कॉलिंग नंबर दिखा — प्रीत शर्मा।
सुखी के दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं। प्रीत तो मरा हुआ था। फिर कॉल?
उसने धीरे से कॉल उठाया।
“इंस्पेक्टर... आप गलत रास्ते पर हैं। आप जिसे मरा हुआ समझ रहे हैं... वो अभी सांस ले रहा है।”
— और कॉल कट गया।
उसने फ़ौरन अपनी तकनीकी टीम को लोकेशन ट्रेस करने को कहा, लेकिन सिग्नल अज्ञात स्थान का दिखा।
उसी समय, कोठी की दीवार पर एक पुराना प्रोजेक्टर अचानक खुद-ब-खुद ऑन हो गया। एक वीडियो प्ले होने लगा — धुंधला, लेकिन डरावना।
वीडियो में एक गुफा जैसी जगह में प्रीत ज़िंदा दिखाई देता है, उसके चेहरे पर खून और आंखों में खौफ। वो कुछ बोलने की कोशिश कर रहा था — “सुखी... विश्वास मत करना... वो…”
तभी पीछे से एक नकाबपोश आता है और छुरी उसकी गर्दन पर रख देता है। वीडियो कट हो जाता है।
इंस्पेक्टर सुखी पसीने में भीग चुका था। “प्रीत ज़िंदा है? तो वो जली हुई लाश किसकी थी?”
उसके पास जवाब नहीं थे, सिर्फ सवाल।
तभी कोठी के अंदर अचानक जोर की आवाज़ आई — जैसे किसी भारी चीज़ के गिरने की। सुखी भागकर कोने की ओर गया। वहाँ एक कमरा था जिसका दरवाज़ा पहले बंद था — अब खुला हुआ था।
कमरे में छत से एक लाश लटकी थी — डीएसपी राघव।
सुखी अवाक रह गया। राघव, जो उसका मेंटर था, जिसने उसे इस केस की जिम्मेदारी सौंपी थी — वो मरा हुआ था?
राघव की जेब में एक नोट मिला, स्याही से लिखा हुआ:
“जिस पर सबसे ज़्यादा भरोसा किया, वही सबसे बड़ा गुनहगार निकलेगा। अब अगला नंबर तुम्हारा है, सुखी।”
सुखी के हाथ काँपने लगे। तभी एक और आवाज़ — कोठी के बाहर कोई दौड़ते हुए निकला। सुखी ने पीछा किया लेकिन अंधेरे में वो परछाई गायब हो गई।
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अंत में सिर्फ सन्नाटा बचा था।
लेकिन अब कहानी बदल चुकी थी।
प्रीत ज़िंदा था। डीएसपी राघव मारा गया था।
और एक साया था जो हर क़दम पर सुखी को देख रहा था।
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अगले भाग में:
कौन है असली गुनहगार? क्या प्रीत ने खुद सब कुछ रचा? या कोई तीसरी परछाई इस खेल का मास्टरमाइंड है?
क्या सुखी खुद इस कहानी का अगला शिकार बनने वाला है?