Monster the risky love - 46 in Hindi Horror Stories by Pooja Singh books and stories PDF | दानव द रिस्की लव - 46

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दानव द रिस्की लव - 46

तक्ष ने चली अपनी चाल.....

........ now on ..........

आदित्य अदिति को लाकेट पहनाता है उसके थोड़े देर बाद ही अदिति बेहोश हो जाती है.....
अदिति के बेहोश होते ही आदित्य बाहर आते आते बड़बड़ाता है...." अब तू कभी मेरे वशीकरण से दूर नहीं हो पाएगी......(इतना कहकर वो हंसने लगता है).....
आदित्य को कमरे से बाहर आते देख विवेक हैरानी से पुछता है..." भाई क्या हुआ ..."
आदित्य : कुछ नहीं विवेक वो मैंने उसे दवा दी है इसलिए अभी वो सो गई है.... वैसे हुआ क्या था यहां....?   अदिति इतनी परेशान क्यूं लग रही थी...?
विवेक : पता नहीं भैय्या (अपनी किस की बात को छुपाते हुए कहा)....
कंचन : वैसे भाई आप अचानक कैसे....?...आप तो कल आने वाले थे न...
आदित्य इधर उधर देखते हुए बोला...." हां आ गया मुझे अदिति की चिंता हो रही थी इसलिए... तुम्हें परेशानी है..."
विवेक : अरे... नहीं भाई... मुझे क्या परेशानी होगी..ये तो अच्छी बात है आप आ गये.....!
आदित्य थोड़े रूखी आवाज में कहता है..." ठीक है मैं चलता हूं...अब अदिति ठीक है....मेरा काम हो गया (ये बात आदित्य ने धीरे से कहीं)....
विवेक हैरानी से पुछता है..." भाई आप आए और अब चलने के लिए कह रहे हो क्यूं...?..आप रूकोगे नहीं...?
आदित्य : नहीं विवेक मुझे जरूरी काम है इसलिए जाना पड़ेगा और तुम अदिति का ध्यान रखना.... वैसे अब वो कोई हरकत नहीं करेगी.....
आदित्य की इस बात से सब हैरानी से आदित्य को देखकर पुछते है..." हरकत नहीं करेगी मतलब..." 
आदित्य : ओह .... मतलब दवाई दी है न उसे इसलिए अब वो ठीक है.... तुम सब जल्दबाजी में उसकी दवाई घर भूल आए थे....बस ....
विवेक : लेकिन भाई हम तो उसकी मेडिसिन लेकर (आदित्य विवेक की बात को बीच में काटते हुए कहता है)..
" मुझे पता है.... लेकिन तुम क्या बार बार सवाल पर सवाल कर रहे हो.... मैंने कहा न अदिति ठीक है‌ बस ...अब मैं जा रहा हूं..."(इतना कहकर आदित्य वहां से चला जाता है)...
विवेक : मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा है.....(श्रुति विवेक को समझाती है)...
श्रुति : रिलेक्स विवेक.... वो भाई है उसके...उसका बुरा थोड़ी न सोचेंगे.... उन्हें भी तो टेंशन हो रही होगी न अदिति की इसलिए आये होंगे और तुम हो की सी आई डी बने हुए हो सवाल पर सवाल.... उन्हें कितना बुरा लग रहा होगा....
कंचन : श्रुति बस ... कितना समझाएगी .... विवेक तुम आराम कर लो...तक गये होंगे....
विवेक : नहीं कंचन मैं अदिति के पास रूकूंगा.... पता नहीं लेकिन मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा है.....
कंचन : तुम अदिति से इतना प्यार जो करते हो इसलिए तुम्हें उसकी बहुत चिंता रहती है जाओ उसके पास ही जाओ....
हितेन : हां ब्रो ... कंचन ठीक कह रही है अभी अदिति के पास ही रह ..... लेकिन गाइज चलो डीनर तो कर लो.....
विवेक : नहीं तुम लोग खा लो अदिति के उठने के बाद ही मै खाऊंगा....
हितेन : देख भाई अगर उसे सुबह होश‌ आया तो.....
विवेक : तो मैं सुबह खा लूंगा....
हितेन : ओ भाई पागल है क्या....?..तू कुछ नहीं खाएगा...
विवेक : नहीं मतलब नहीं जाओ तुम तीनों.... पता नहीं मेरी अदिति को क्या हो गया है....?...( इतना कहकर विवेक अदिति के पास चला जाता है)...
कंचन : ये नहीं मानेगा रहने दो...
हितेन : हां ठीक कहा... चलो तुम दोनों डीनर के लिए....(हितेन और कंचन टेबल की ओर बढ़ते है लेकिन श्रुति का ध्यान अभी भी अदिति के रूम की तरफ ही था)
कंचन : ओ मैडम....(चुटकी बजाती है)... कहां खोई हुई है...?.....चल 
श्रुति : कही नहीं.... चलो.......
कंचन : (टेबल पर बैठती हुई बोली).... क्या सोच रही थी वैसे तू....?
श्रुति : कुछ नहीं बस वही सोच रही थी अदिति कितनी लक्की है न.... विवेक उससे कितना प्यार करता है...!
कंचन : वो तो है..... अदिति को कुछ हो जाए बस विवेक ऐसे ही परेशान हो जाता है...... आखिर दोनों बचपन से साथ है और यही साथ उनके प्यार में बदल चुका है....
श्रुति : हां...
**********अदिति का कमरा*****
विवेक अदिति के पास जाकर बैठता है और उसके हाथ को अपने हाथ में लेते हुए उसके बालों पर हाथ फेरता है...
" क्या हो गया अदिति...?..... क्यूं गई तुम उस पुराने किले की तरफ....(विवेक अदिति के माथे पर किस करता है).... मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा स्वीट हार्ट.... तुम मेरी जान हो और मेरे रहते हुए.... तुम्हें कुछ नहीं हो सकता.... मुझे तुम्हें इस मुसिबत से बाहर निकालने के लिए कुछ भी करना पड़े मै करूंगा..."
अदिति को देखते देखते विवेक भी हो जाता है.....
उधर तक्ष के कमरे अभी भी हलचल हो रही थी.........
उबांक : दानव राज आप आ गये...
तक्ष : हां उबांक हां....(शैतानी हंसी से हंसने लगता है)...
उबांक : दानव राज आपके चेहरे की हंसी बता रही है आप अपने मनसूबे में कामयाब रहे....?
तक्ष : बिल्कुल उबांक... किसी को शक भी नहीं हुआ की वो आदित्य नहीं तक्ष है... हां वो विवेक ज्यादा बन रहा था अब क्या करेगा .....(जोर से हंसने लगता है)... अब कोई कितना भी कुछ कर ले अदिति को मुझसे नहीं बचा सकता....बस दो मावस बाद में हमेशा के लिए मैं आजाद हो जाऊंगा.....
उबांक : आपका जवाब नहीं दानव‌ राज .......
तक्ष : हां उबांक......बड़ा आया था उसे मुझसे बचाने वाला...अब नहीं....अब वही होगा जो मैं चाहता हूं....
अगले दिन ........
अदिति को होश आता है.... अदिति की हलचल से विवेक की नींद टूटती है....
विवेक : अदिति.... थैंक गॉड तुम ठीक हो.....
अदिति : मुझे क्या होगा विवेक मैं ठीक हूं...और तुम इस तरह यहां क्यूं होते हो ...
विवेक : अदिति तुम अभी ठीक नहीं हो यहां बैठो आराम से..
अदिति : विवेक तुम्हें क्या हो गया है....?
विवेक सवालिया नज़रों से अदिति को देखता है...." कुछ नहीं तुम पानी पियो और चुपचाप यही बैठो मैं अभी आता हूं..."
अदिति : विवेक कहां जा रहे हो....
विवेक : मैंने कहा न अदिति अभी आया....(इतना कहकर विवेक वहां से चला जाता है)....
कंचन : विवेक क्या अदिति को होश आया....
विवेक : हां आ तो गया है....
कंचन : आ तो गया है मतलब ....
श्रुति : वैसे दवाई का असर काफी टाइम तक रहा है....
विवेक : हां..
कंचन : विवेक तुम रहने दो अदिति के लिए ब्रेकफास्ट में ले जाऊंगी.... तुम भी फ्रेश होकर नाश्ता कर लो कल से कुछ नहीं खाया तुमने भी...
विवेक : मैं खा लूंगा पहले अदिति.....
कंचन : तुम मानोगे नहीं..... ठीक है चलो मैं भी अदिति के पास ही चलती हूं.....
हितेन : तुम्हें दोनों जाओ हम यही है.....(तभी विवेक का फोन रिंग होता है)...किसका फोन है...?
विवेक : भाई.... मैं बात करके आता हूं.....(विवेक आदित्य से बात करने के बाद वापस आता है तो उसके चेहरे पर परेशानी साफ दिख रही थी...).
...........to be continued........
 
आखिर विवेक की आदित्य से क्या बात हुई की वो परेशान हो गया जानेंगे अगले भाग में.....