Dreams in Hindi Motivational Stories by ekshayra books and stories PDF | सपने

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सपने

"सपने देखो, पर खुली आँखों से, और नींद को पीछे छोड़कर। क्योंकि जो नींद में खो जाए, वो सपना नहीं, धोखा होता है।"

ये लाइन आरव के कमरे की दीवार पर चिपकी थी। एक पुराना, थोड़ा सा फटा हुआ चार्ट पेपर था वो, जो पिछले पाँच सालों से वहीं टँगा था। लेकिन सच तो ये था कि आरव ने खुद बहुत समय से कोई सपना नहीं देखा था — या शायद, देखना छोड़ दिया था।

आरव दिल्ली के एक पुराने मोहल्ले में, एक कमरे के मकान में रहता था जहाँ बगल में माँ का सिलाई मशीन होता था और कोने में बीमार पिता की खाँसी की आवाज़ें गूँजती थीं। घर के बाहर एक पुराना साइकल खड़ा रहता था, जिसपर बैठकर आरव सुबह पाँच बजे दूध बाँटने निकलता। उसके बाद कॉलेज, फिर शाम को पास की चाय की दुकान पर काम, और रात में बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर ही घर लौटता।

आरव का सपना था कुछ बड़ा करना। पर सपनों की बुनियाद जब पैसों पर टिकती हो, तो वो अकसर ज़मीन पर गिर जाते हैं।

"तेरा सपना क्या है?" माँ ने एक दिन पूछा था, जब वो रात के खाने में बासी रोटी और नमक खा रहे थे।

"सपना? अब तो यही है कि पापा का इलाज अच्छे से हो जाए और तू दो टाइम आराम से खाना खा सके।"

माँ चुप हो गई थी, पर उसकी आँखों में उम्मीद की रौशनी फिर भी टिमटिमा रही थी।

एक दिन कॉलेज में एक सेमिनार हुआ — "सपने जो नींद न आने दें", और वहाँ आये थे आयुष मेहरा, एक ऐसे शख्स जो खुद कभी स्लम में रहते थे और अब करोड़ों का बिज़नेस चला रहे थे।

"तुम्हारी गरीबी तुम्हारी ताकत है। ये तुम्हें वो सिखाती है जो कोई स्कूल नहीं सिखा सकता। अगर तुम इस हालात से बाहर निकल सकते हो, तो तुम कुछ भी कर सकते हो। बस डरना मत, और रुकना मत।" — उन्होंने कहा।

आरव के अंदर कुछ जागा। उस दिन घर आकर वो बहुत देर तक सोचता रहा। पहली बार उसे खुद पर थोड़ा भरोसा महसूस हुआ।

और वहीं से शुरू हुई उसकी असली लड़ाई — खुद से, हालात से, दुनिया से।

उसने ठाना कि अब और नहीं। अब वो सिर्फ जीने के लिए नहीं, बल्कि कुछ बनने के लिए जियेगा। उसके पास कोई बड़ी डिग्री नहीं थी, न ही पैसा, लेकिन एक चीज़ थी — मेहनत। और हिम्मत।

उसे याद आया — उसकी माँ की रेसिपीज़ हमेशा मोहल्ले में तारीफ पाती थीं। “घर का खाना” — यही तो वो चीज़ थी जो आज के बिजी लोगों को चाहिए। और वहीं से जन्म हुआ उसके आइडिया का — एक टिफ़िन सर्विस, जिसमें घर का बना खाना, सस्ता, स्वादिष्ट और हेल्दी होगा।

पर जैसा हर सपने के साथ होता है — शुरूआत आसान नहीं थी।

उसके पास ना तो किसी बिज़नेस का अनुभव था, ना ही ऑनलाइन ऑर्डर कैसे लिया जाए, इसकी जानकारी। उसने यूट्यूब से वीडियो देख-देख कर सीखा, फेसबुक पर पेज बनाया, और पहले दिन सिर्फ दो ऑर्डर आये। लेकिन उन दो ऑर्डरों में से एक को खाना ठंडा मिलने की शिकायत थी — और उसने इंस्टाग्राम पर खराब रिव्यू दे दिया।

आरव को झटका लगा। उसने उस दिन खुद से पूछा — "क्या मैं गलत था? क्या मुझे ये करना ही नहीं चाहिए था?"

लेकिन फिर माँ ने उसका कंधा थपथपाया और कहा —
“बेटा, सपना अगर सच्चा है ना, तो वो खुद ही तकलीफ बनकर तेरी हिम्मत को आज़माएगा। तू टूटेगा, बिखरेगा, पर अगर फिर भी उठ गया, तो जीत तेरा इंतज़ार करेगी।”

उस दिन आरव ने सोने से मना कर दिया। पूरी रात उसने प्लानिंग की — कैसे पैकिंग बेहतर हो सकती है, खाना कैसे टाइम पर पहुँच सकता है, और क्या चीज़ लोगों को अट्रैक्ट करेगी।

अगले दो हफ्तों में उसने हर ग्राहक से फीडबैक लिया, उनके घर जाकर बात की। और धीरे-धीरे उसका “घर का खाना टिफ़िन सर्विस” एक नाम बनने लगी।

अब उसके पास 10 रेगुलर क्लाइंट थे। कुछ स्टूडेंट्स, कुछ ऑफिस वर्कर्स। लोगों को उसके खाने में माँ का स्वाद महसूस होता था।
और उस लड़की ने — जिसने सबसे पहले खराब रिव्यू दिया था — दोबारा ऑर्डर दिया। इस बार उसने लिखा — "Today felt like maa made lunch. Thank you."

आरव की आँखों में आँसू थे, लेकिन पहली बार वो आँसू कमज़ोरी के नहीं थे। वो जीत की पहली झलक थे।

पर ये कहानी सिर्फ एक जीत की नहीं है। क्योंकि असली कहानी तब शुरू होती है, जब रास्ते में धोखा आता है।

एक दिन उसका सबसे भरोसेमंद दोस्त विशाल, जिसने उसके साथ शुरुआत में सपने देखे थे, उसके सारे कस्टमर डिटेल्स और रेसिपीज़ लेकर अलग ब्रांड खोल बैठा। और उसने वही नाम रखा, बस थोड़ा बदलकर — “माँ का स्वाद” बनाम आरव की “माँ के हाथों का खाना”।

कस्टमर कन्फ्यूज हो गए। कई पुराने क्लाइंट वहाँ चले गए, क्योंकि विशाल ने उन्हें सस्ता रेट ऑफर किया।

आरव फिर से ज़मीन पर आ गिरा। पहली बार उसने हार मानने का सोचा। उसने माँ से कहा — “शायद मैं बिज़नेस के लिए बना ही नहीं।”

माँ ने उसकी आँखों में देखा और बोली —
“शायद तू बिज़नेस के लिए नहीं बना, पर तू हिम्मत से बना है। और बेटा, दुनिया की कोई भी यूनिवर्सिटी हिम्मत नहीं सिखा सकती। वो तू लेकर पैदा हुआ है।”

उसने फिर से शुरुआत की। इस बार अकेले।
उसने अपने ब्रांड को एक नई पहचान दी — "जड़ से जुड़ा खाना" — एक ऐसा टिफ़िन ब्रांड जो सिर्फ खाना नहीं, यादें परोसता है। उसने हर टिफ़िन के साथ एक छोटी सी चिट लगाना शुरू किया, जिसमें माँ की लिखी हुई एक प्यारी सी लाइन होती थी — जैसे,
"बेटा, गर्म पानी पीना आज ज़रा ठंड ज़्यादा है",
या
"आज खाना हल्का है, तुम थके हुए लगते होगे शायद।"

लोगों को वो एहसास छू गया। धीरे-धीरे उसका काम दोबारा बढ़ने लगा। इस बार और तेज़ी से। अब उसके पास 100+ रेगुलर ग्राहक थे, और 4 लोग उसकी टीम में थे।

तीन साल बाद आरव ने खुद का एक छोटा किचन लॉन्च किया — “जड़” नाम से।

आज वो अपने जैसे 15 लड़कों को रोजगार दे रहा है, जिनके पास सपने तो थे, पर रास्ता नहीं।

एक दिन एक जर्नलिस्ट ने उससे पूछा —
“आरव, आप इतने बड़े मुकाम पर पहुँचकर क्या महसूस करते हैं?”

आरव मुस्कराया और बोला —
“मैं आज भी बस सपने ही देख रहा हूँ। फर्क सिर्फ इतना है कि अब मैं उन्हें जी रहा हूँ। और हाँ, सबसे ज़रूरी बात — कभी ये मत समझना कि सपना पूरा हो गया। सपना जब भी पूरा लगता है, तो असल में वो नया सपना जन्म ले चुका होता है।”



"सपने रुकते नहीं, बस बदलते हैं। और हर बार, थोड़ा और बड़ा हो जाते हैं।
इसलिए मत रुकिए।
क्योंकि शायद अगला सपना, आपकी नहीं, किसी और की ज़िन्दगी बदल दे।"