subah-shaam in Hindi Short Stories by ekshayra books and stories PDF | सुबह-शाम

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सुबह-शाम

सुबह (थोड़ी ताज़गी भरी आवाज़ में):
"नमस्ते शाम! मैं फिर से दुनिया को नई उम्मीदों के साथ जगाने आई हूँ।"

शाम (हल्की मुस्कराहट के साथ):
"नमस्ते सुबह! मैं तो बस दिनभर की थकान को अपनी बाहों में लेकर सुकून देने आई हूँ।"

सुबह:
"मैं तो हर रोज़ नए इरादों, नए सपनों के साथ आती हूँ। सबको नई ऊर्जा देती हूँ!"

शाम:
"मैं उन्हीं सपनों का आइना हूँ। जिसने जो किया, मैं उसका हिसाब लेकर आती हूँ — कभी शांति, कभी परेशानी।"

सुबह (थोड़ा छेड़ते हुए):
"तुम थोड़ी उदास सी क्यों लगती हो हमेशा?"

शाम (मुस्कराते हुए):
"क्योंकि मैं चुप रहकर भी दिल की सब बातें सुन लेती हूँ। तुम तो सिर्फ जगाती हो, मैं सुलझाती हूँ।"

सुबह:
"फिर भी, तुम आती हो तो लोग थक जाते हैं, और मैं आती हूँ तो लोग फिर से चल पड़ते हैं।"

शाम:
"पर जब मैं आती हूँ न, तो लोग अपनों के पास बैठते हैं, कहानियाँ कहते हैं, कुछ को याद करते हैं, कुछ को भूल जाते हैं…"

सुबह (हल्के जज़्बात से):
"तुम सही कहती हो... तुम आती हो, तभी तो मैं फिर से आने के लिए तैयार हो पाती हूँ।"

शाम (प्यार से):
"हम दोनों ही ज़रूरी हैं... एक दिन को जीने के लिए।"

सुबह (हल्के से हँस कर):
"मैं सूरज को साथ लाती हूँ, रोशनी के गीत गुनगुनाती हूँ, लेकिन तुम्हारा अंधेरा भी कितना सुकूनभरा लगता है, कभी-कभी तो मैं भी चाहती हूँ, थोड़ा सा तुम जैसी हो जाऊँ…"

शाम (गहरे जज़्बात से):
"मैं सितारों की चादर ले आती हूँ, चाँदनी में ख्वाबों को सुलाती हूँ, पर सच कहूँ? कभी-कभी मैं भी चाहती हूँ, तुम्हारी तरह खुद से रोशन हो जाऊँ…"

सुबह:
"और लोग... उन्हें भी हम दोनों चाहिए, एक को अपना 'नया शुरू' कहते हैं, और दूसरी को 'आख़िरी आराम'।"

शाम:
"एक दिन में, हम दोनों का होना ज़रूरी है, वरना या तो ज़िंदगी रुक जाती, या फिर कभी शुरू ही नहीं होती।"

सुबह:
"तो चलो, आज से एक वादा करें —
मैं जगाऊँगी, तुम संभालोगी,
मैं उम्मीद दूँगी, तुम सुकून दोगी।"

शाम:
"डील!
और जब कोई थक कर तेरे सीने में गिरा हो,
तो बता देना —
शाम इंतज़ार में
बैठी है, बात करने को…"

सुबह:
"मैं हर रोज़ नए इरादे लेकर आती हूँ,
लेकिन लोग मुझे सिर्फ़ अलार्म समझते हैं…"

शाम:
"मैं हर रात दर्द समेट लाती हूँ,
फिर भी लोग मुझे सिर्फ़ 'ख़त्म' कहते हैं।"

सुबह (थोड़ा उदास होकर):
"हमें कोई समझता ही कहाँ है?
मैं रोशनी हूँ, पर अक्सर अंधेरे से डर लगता है।"

शाम:
"मैं अंधेरा हूँ, पर तेरी रोशनी जैसे लोग ही तो मुझे जीने लायक बनाते हैं।"

सुबह:
"मैं दुनिया को आगे बढ़ने का जुनून देती हूँ।"

शाम:
"और मैं उन्हें रात के सुकून में खुद से मिलने का वक़्त।"

सुबह:
"अगर मैं हूँ तो ख्वाब बनते हैं…"

शाम:
"और अगर मैं हूँ तो ख्वाब पलते हैं।"

सुबह (मुस्कराते हुए):
"हम दोनों अलग होकर भी एक जैसे हैं…"

शाम:
"ज़िंदगी हम दोनों के
बीच ही तो जीती जाती है।"

सुबह:
"मैं हर रोज़ नए इरादे देती हूँ,
पर लोग बस थकान से उठते हैं।"

शाम:
"मैं सुकून बनकर आती हूँ,
फिर भी लोग मुझे उदासी कह देते हैं।"

सुबह:
"हम दोनों ज़रूरी हैं, ना?"

शाम:
"बिलकुल।
तू सपने जगाती है,
मैं उनमें रंग भरने देती हूँ।"

दोनों:
"ज़िंदगी हमसे ही तो चलती है…"

सुबह:
"मैं शुरू हूँ।"

शाम:
"मैं ठहराव हूँ।"

दोनों:
"हम दोनों मिलके ही तो ज़िंदगी हैं।
सुबह ने जगाया,
शाम ने संभाला,
ज़िंदगी बीच में मुस्कुराई।"


❤️


"सुबह कह गई चलो,
शाम बोली रुक जा,
दोनों में मैं था।"


इसलिए सुबह और शाम — दोनों की कद्र करो,
यही दो पल तो ज़िंदगी को मुकम्मल बनाते हैं।"