Love and Cross - 2 in Hindi Love Stories by Saurabh Sangani books and stories PDF | Love and Cross - 2

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Love and Cross - 2

अध्याय 5: तेरा होना, मेरा क्रूस था

तुम्हें पाना एक दर्द था,

लेकिन तुम्हारे बिना तो सांस लेना भी अंधकारमय लगता है।

तुम मुझे मिल गए -

लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे कोई पत्थर मिल गया हो।

जिनको इसे अपनी छाती पर पहनना है,

भले ही इससे दर्द हो

लेकिन आपको हार नहीं माननी है।

1. तेरे साथ… और फिर भी अकेला

तेरे होने का एक वज़न था।

जिसे हर रोज़ मैंने अपनी हड्डियों में महसूस किया।

हम साथ थे,

पर तू इतना दूर था

जैसे मैं हर बार तुझसे हाथ मिलाने जाऊं

और तू मुझे सिर्फ़ देख कर मुस्कुरा दे।

2. मेरा प्रेम, तेरा भार

मैंने तुझे सहेजा —

जैसे कोई टूटता हुआ शब्द।

तू अक्सर थका हुआ लगता था मुझसे,

जैसे मैं बोझ बन गया हूँ

तेरी ही बाँहों में।

और फिर भी…

मैंने कभी उतरना नहीं चाहा

उस क्रूस से,

जिसका भार मैं खुद ही बन गया था।

3. छोड़ा नहीं, तड़पाया ज्यादा

तू गया नहीं कभी —

बस धीरे-धीरे दूर होता गया।

तुम्हारी याददाश्त उस नागपुरी जैसी थी —

जो बढ़ना तो चाहते हैं, लेकिन बार-बार गिरना भी चाहते हैं।

और मैं,

हर बार यही सोचता रहा —

शायद तुम वापस आओगे.

शायद वह समस्या भी प्रेम ही है।

अंतिम पंक्तियाँ:

कितना अजीब है, है ना?

यहां तक ​​कि किसी और का होना भी तुम्हें तोड़ देगा।

और फिर भी आप उनका होना चुनते हैं।

तेरा होना, मेरा क्रूस था —

जिसे मैं प्रेम समझकर

हर रोज़ उठाता रहा।


अध्याय 6: वो रात जब मैंने खुद को छोड़ दिया

उस रात कुछ टूटा नहीं था,

सब कुछ थक गया था।

ना चीख थी,

ना आंसू।

बस एक लंबी साँस थी

जो अब अपने ही वजूद से ऊब गई थी।

1. हर रोज़ थोड़ा कम

मैं हर दिन थोड़ा-थोड़ा ख़ुद को मारता रहा।

हर बार जब तेरी बातों में मेरा ज़िक्र नहीं होता था।

हर बार जब तुझे मेरी परवाह नहीं थी

और फिर भी मैं समझौता करता रहा।

तू नहीं बदला —

मैंने खुद को इतना मोड़ लिया

कि मैं, मैं ही नहीं रहा।

2. वो आख़िरी रात

उस रात मैंने तुझसे कोई लड़ाई नहीं की,

ना ही सवाल किया —

मैं थक चुका था।

मैं बस तुझे “अच्छे से रहना” लिखकर

फोन साइड में रख दिया।

तेरी तरफ़ से कोई जवाब नहीं आया।

और पहली बार,

मुझे फर्क भी नहीं पड़ा।

क्योंकि उस रात,

मैं तुझे नहीं — खुद को छोड़ रहा था।

3. क्या खोया?

मैंने तुझे नहीं खोया,

मैंने वो हिस्सा खो दिया

जो तुझसे उम्मीद करता था।

जो खुद को तेरे प्यार के काबिल बनाना चाहता था।

अब न उम्मीद है,

न शिकायत।

अब मैं हूं — बस अधूरा, पर सच्चा।

अंतिम पंक्तियाँ:

वो रात कोई मोड़ नहीं थी,

वो पूरा अंत नहीं था —

वो बस वो पल था

जहां मैंने पहली बार खुद को चुना

और तुझे जाने दिया…

बिना कुछ कहे,

बिना कुछ मांगे।


अध्याय 7: मौन में मिलना

हम अब बात नहीं करते।

ना गुड मॉर्निंग, ना गुड नाइट।

ना याद करने का इज़हार,

ना नज़रअंदाज़ करने का इल्ज़ाम।

हम अब… बस मौन में मिलते हैं।

1. नज़रें जो बोलती हैं

अगर कभी रास्ता क्रॉस हो जाए,

तो नज़रें टकरा जाती हैं —

एक सेकंड के लिए।

उस एक सेकंड में

हम दोनों सब कुछ कह देते हैं

जो कभी कह नहीं पाए।

2. तुम्हारी ख़ामोशी, मेरी समझ

तुम जब चुप होती हो,

मैं डरता नहीं।

क्योंकि मैंने तुम्हारी चुप्पियों को पढ़ना सीख लिया है।

और शायद…

तुमने भी मेरी चुप्पियों में

वो आवाज़ें पकड़ ली हैं

जो मैं कभी बोल नहीं पाया।

3. अब कोई शब्द भारी नहीं

हम अब ‘कैसे हो?’ नहीं पूछते।

क्योंकि जवाब पता है।

हम अब ‘मिस यू’ नहीं कहते,

क्योंकि जो कभी गए ही नहीं,

उन्हें मिस कैसे करें?

अंतिम पंक्तियाँ:

कभी-कभी सबसे गहरी बातें

किसी आवाज़ में नहीं होतीं —

वो किसी मौन में होती हैं,

जहाँ दो आत्माएं

बस एक-दूसरे की उपस्थिति को महसूस करती हैं।

बिना शोर, बिना वादा, बिना शब्द।


अध्याय 8: Crosses हम उठाते रहे

हमने कभी व्रत नहीं लिया,

ना मंदिर में कोई मन्नत मांगी।

पर फिर भी

हम रोज़ एक क्रूस उठाते रहे

जिसे हमने “प्रेम” कहा।

1. हर दिन थोड़ा भार

हर सुबह जब तुम कुछ नहीं पूछती थीं,

मैं फिर भी बताता रहा।

हर बार जब तुम चुप रहती थीं,

मैं दो लोगों की तरह बोलता रहा।

क्योंकि ये रिश्ता एकतरफ़ा नहीं था —

ये बस अधूरा था,

और मैं उस अधूरेपन को पूरा मान बैठा था।

2. न कहना भी एक जिम्मेदारी है

कई बार लगा,

क्यों नहीं कह देती कि अब नहीं चाहिए

ये सब।

पर तू कुछ नहीं बोली।

और मैं…

तेरी ख़ामोशी को भी जिम्मेदारी समझकर ढोता रहा।

3. थक चुके हैं, पर रुके नहीं

कभी-कभी लगता है

अब और नहीं होगा।

फिर तेरा एक स्टेटस देख लेता हूँ,

तेरा नाम स्क्रीन पर चमकता है

और मैं फिर से

वही क्रूस अपने कंधे पर रख लेता हूँ।

अंतिम पंक्तियाँ: 

प्रेम सिर्फ़ पाने का नाम नहीं है।

कभी-कभी प्रेम बस झेलने का नाम है।

जहाँ कोई पूछे नहीं —

फिर भी तुम जवाब देने को तैयार रहो।

हमने क्रूस उठाए,

ताकि तू बोझ-मुक्त रह सके।