गाँव की पगडंडी पर अंधेरा गहराने लगा था। हल्की बारिश, और हवा में वो जानी-पहचानी गंध… जैसे कोई यादें फिर से लौट रही थीं।
साक्षी बार-बार पीछे मुड़कर देखती रही, लेकिन हर बार वो परछाई कहीं गुम हो जाती। आरव और समीर ने उसे समझाया, "अब सब खत्म हो चुका है…"
लेकिन साक्षी जानती थी, कुछ अधूरा है। कुछ अब भी बंधा हुआ है।
राहुल अब धीरे-धीरे सामान्य हो रहा था, लेकिन उसकी आंखों में अजीब सी उदासी थी।
"तुम्हें क्या याद है?" साक्षी ने पूछा।
राहुल ने गर्दन झुकाई, "जब वो महिला मेरे अंदर समा गई थी, तो मुझे दिखा—वो सिर्फ भूत नहीं थी, वो किसी की मां थी… किसी की पत्नी… जिसे ज़िंदा जलाया गया था, झूठे तंत्र के इल्ज़ाम में।"
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**सच सामने आया।**
उस महिला का नाम **"मधुरिमा"** था।
गाँव के ठाकुरों ने उस पर आरोप लगाया कि वह चुड़ैल है, सिर्फ इसलिए क्योंकि वह जड़ी-बूटियों से बीमारों को ठीक करती थी।
एक रात, पंचायत ने फैसला सुनाया… और लोगों ने उसे उसके ही आंगन में बाँधकर आग लगा दी।
लेकिन जलते समय उसने शपथ ली थी—
**"जब तक मेरे दर्द की कहानी कोई नहीं सुनता, मैं मुक्त नहीं हो सकती।"**
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साक्षी के हाथ अब काँप रहे थे।
"इसका मतलब… हमें उसकी आत्मा को शांत नहीं करना था। हमें उसकी *सचाई को उजागर* करना था।"
आरव ने कहा, "हम वापस चलेंगे। इस बार डरने नहीं… उसकी बात कहने।"
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अगले दिन गाँव के मंदिर में, साक्षी ने सबके सामने मधुरिमा की कहानी सुनाई।
पुराने दस्तावेज़, जले हुए घर की राख से मिले चूड़ियाँ, और हवेली में कैद आत्माओं की गवाही… सबने एक साथ मिलकर सच को ज़िंदा कर दिया।
लोगों की आंखों में शर्म थी।
पंडित ने पहली बार, मधुरिमा की आत्मा की शांति के लिए पूजा की।
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और उसी रात…
साक्षी को एक सपना आया।
मधुरिमा, सफेद साड़ी में, मुस्कुराते हुए बोली—
**"अब मैं मुक्त हूँ। अब किसी हवेली में कैद नहीं… किसी याद में बसी रहूंगी।"**
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सुबह हवेली की जगह अब एक खाली ज़मीन थी, जिस पर एक पीपल का पेड़ उग आया था।
उस पेड़ की शाखाएं हवा में ऐसे लहराती थीं… मानो मधुरिमा की आत्मा अब आज़ाद होकर आकाश में उड़ रही हो।
**"मधुरिमा की वापसी: पुनर्जन्म की छाया"**
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**स्थान:** बनारस, वर्ष 2025
**किरदार:**
- *साक्षी* — अब एक प्रसिद्ध पैरानॉर्मल रिसर्चर
- *विवेक* — बनारस विश्वविद्यालय का छात्र, जिसकी प्रेमिका पर "आत्मा-प्रवेश" का शक है
- *अनामिका* — विवेक की प्रेमिका, जो रातों को अलग ही भाषा में बोलती है… और जिनकी आंखों में *मधुरिमा* जैसी वही जली हुई आग दिखती है।
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**कहानी की शुरुआत:**
साक्षी को एक ईमेल आता है:
_"अगर आपको लगता है कि मधुरिमा मुक्त हो गई थी… तो कृपया बनारस आइए। वह लौट आई है… पर इस बार किसी और के शरीर में।"_
— *विवेक शर्मा*
साक्षी एक बार फिर डर और हिम्मत के बीच खड़ी थी।
क्या आत्माएं सच में पुनर्जन्म लेती हैं?
या कोई और ताकत है, जो मधुरिमा के नाम पर *नई हवेली* बनाना चाहती है?
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**स्थान:** बनारस, रात 2:11 AM, एक पुराना छात्रावास
साक्षी बनारस पहुँच चुकी थी। विवेक ने उसे विश्वविद्यालय के पास के एक पुराने हॉस्टल में ठहराया था, जहाँ अनामिका रहती थी। उस हॉस्टल की दीवारें सीलन भरी थीं, खिड़कियाँ बिना पर्दों के, और गलियारे में हर वक्त एक सर्द हवा बहती रहती थी — **बिना किसी पंखे के भी।**
रात के खाने के बाद विवेक और साक्षी बैठकर बात कर रहे थे।
"जबसे अनामिका उस सुनसान घाट पर गई थी… वो बदल गई है। पहले तो वह बहुत शांत और प्यारी थी… अब वो मुझे देखती है तो ऐसा लगता है जैसे वो मुझे पहचानती ही नहीं। एक रात तो उसने मेरी माँ की आवाज़ में बात की।"
साक्षी का दिल धड़कने लगा। "क्या उसे कभी ‘मधुरिमा’ नाम याद आता है?"
"हाँ। सोते-सोते बड़बड़ाती है— 'मैं लौटी हूँ… मुझे अब कोई नहीं रोक सकता…' और एक दिन दीवार पर नाखून से खून में लिखा— **"आरव अब मेरा है।"**
साक्षी की साँस अटक गई।
आरव… जो अब लंदन में था, और जिसने उस श्रापित महिला का सामना किया था।
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**अगली सुबह:**
साक्षी ने अनामिका से मिलने की कोशिश की, लेकिन वो कमरे से बाहर नहीं आई। अंदर से सिर्फ शोर सुनाई दिया— जैसे कोई ज़मीन पर कुछ खींच रहा हो।
साक्षी ने विवेक की ओर देखा और कहा,
"दरवाज़ा तोड़ो।"
जैसे ही दरवाज़ा टूटा, सामने का दृश्य रोंगटे खड़े कर देने वाला था।
कमरे की दीवारों पर सिंदूरी रंग से लिखा था—
**"इस बार मुक्ति नहीं… अब शासन होगा।"**
और बीच कमरे में… अनामिका हवा में उल्टी लटकी हुई थी, उसके बाल ज़मीन तक लटक रहे थे और आँखें लाल अंगारे जैसी चमक रही थीं।
वो ज़ोर से चिल्लाई—
**"मुझे पहचानो, साक्षी! मैं वही हूँ… जिससे तुमने एक बार आत्मा छुड़ाई थी… लेकिन अब मैं किसी और के गर्भ में जन्म ले चुकी हूँ… और मेरा अगला लक्ष्य है— आरव का खून।"**
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क्या साक्षी समय रहते आरव को चेतावनी दे पाएगी?
या मधुरिमा इस बार पूरी ताकत से लौट चुकी है?