Gomati Tum Bahati Rahna - 12 in Hindi Biography by Prafulla Kumar Tripathi books and stories PDF | गोमती तुम बहती रहना - 12

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गोमती तुम बहती रहना - 12

            सुख के दरवाजे से दुख का प्रवेश  !     

              वर्ष 2005 और उसके बाद के दिन , तेजी से बदलते रहने वाले, सुख किंवा दुख के न भूलने वाले दिन  | तो पाठक गण , शुरुआत सुख से भरे उन दिनो से की जाए या दुख भरे दिनों से ? इसके लिए सिक्का उछालूँ क्या ? 

              5 जुलाई 2005 – आज लखनऊ के मेरे दूसरे नव निर्मित मकान “पावन” का गृह प्रवेश और सहभोज हो रहा   है | लखनऊ के महानगर के  पॉश इलाके  में विज्ञानपुरी नामक कालोनी डी -9 में आज धूमधाम से समारोह है | नहीं नहीं करते करते आमंत्रित लोगों  की संख्या परिजनों सहित लगभग 130 के आसपास हो गई है |पहला निमंत्रण अपने गुरुदेव आनंदमूर्ति जी को और दूसरा अपने पिता और आचार्य को |सपरिवार  भाई लोग प्रोफेसर एस.सी.त्रिपाठी और दिनेश चंद्र त्रिपाठी , बहनोई डा टी.पी.उपाध्याय और राकेश मिश्रा,बुआ जयंती और फूफा जी और फिर ससुर-  साले और अन्य ससुराली जन  आमंत्रित हैं | गोरखपुर से अम्मा- पिताजी,श्वसुर के. सी. मिश्रा,साले अनुपम-नीलम ,सलहज डा अंजली मिश्रा,साढ़ू ओ.पी.मणि -ममता और परिजन ,मीना के मामा मामी  इंजीनियर एस.एन.मिश्रा भोपाल से आ चुके हैं |कुछ परिजन हमारे इस उपलब्धि से जल भुन कर  समारोह का बहिष्कार भी कर रहे हैं | हर घर विशेषकर  संयुक्त परिवार में ऐसा होता रहता है |मेरे साथ की वजह यह है कि हम पति  पत्नी दोनों कमाऊ हैं और अपनी सुख सुविधा के लिए शाह खर्च भी |शादी के बाद सबसे पहले हम लोगों ने फ्रिज ,टू व्हीलर फिर फोर  व्हीलर , कूलर और फिर आवश्यकतानुसार गृहोपायोगी वस्तुएं जुटानी शुरू  कर दी थीं जिसे वे लोग भी कर सकते थे लेकिन अपनी कंजूसी के चलते नहीं करते थे | ऐसे में उनका कुढ़ना और जलन रखना स्वाभाविक था |मेरे इस गृह प्रवेश के समारोह के बायकाट करने का एक और कारण यह था कि हमने इस प्रोजेक्ट की जानकारी किसी को शेयर नहीं की थी |सोचा था कि निगेटिव एफ़ेक्ट से बच कर रहा  जाए | बहरहाल कुछ परिजनों रिश्तेदारों सहित विज्ञानपुरी कालोनी ,आकाशवाणी और केन्द्रीय विद्यालय के लगभग एक सौ लोग आए हुए हैं | इंजीनियर राजेन्द्र कुमार गुप्ता(कांट्रेक्टर)  और इंजीनियर अजय कुमार गुप्ता (आर्किटेक्ट) अपने इस शिल्प और निर्माण को आगंतुकों को दिखा  रहे हैं | समारोह में आने वाले लोग अपनी- अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं|ज़्यादातर की राय है कि कालोनी का यह मकान सभी मकानों से अलग है ,विशिष्ट है |हमलोग अब लखनऊ के अपने कल्याणपुर मुहल्ले के पुराने मकान को छोड़ कर आज यहाँ शिफ्ट हो रहे हैं | सुबह पूजा पाठ और दिन में सहभोज सम्पन्न हुआ |आश्चर्य ,इस समारोह को सम्पन्न हुए अब 20 साल से ऊपर हो रहे हैं लेकिन इसका मेरा बनाया बही खाता अभी तक मेरे पास उपलब्ध है जिसमें उपस्थित/अनुपस्थित और लोगों द्वारा दिए गए गिफ्ट आदि का विवरण दर्ज है |

          शनिवार , 9 जुलाई 2005 – मेरे विवाह की पच्चीसवीं वर्षगांठ |इसे हमलोग महानगर के प्रतिष्ठित रेस्टोरेंट Ritz के फर्स्ट फ्लोर पर म्यूजिकल इवेंट विद डिनर के साथ धूमधाम से मना रहे  हैं | छोटे बेटे यश आदित्य ट्रेनिंग से छुट्टी  पर आए हुए हैं |वह और साढ़ू की बिटिया पूजा सारे आयोजन को संचालित करने में लगे हैं | पूजा एंकर बनी हैं |मेरे सहयोगी और मित्र आकाशवाणी के म्यूजिक कम्पोजर हेम सिंह अपने साथ गायक कुलतार सिंह, मिथिलेश श्रीवास्तव,रश्मि चौधरी ,पंडित धर्मनाथ मिश्रा,ठाकुर प्रसाद मिश्रा , पंकज आदि के साथ महफ़िल में वाह वाही लूट रहे   हैं |साउंड सिस्टम सुरेंदर भाई का है | और हाँ, इन कलाकारों ने कुछ भी पारिश्रमिक नहीं लिया है |बस,दो बोतल आर्मी का सबसे मंहगा गंगा जल पारिश्रमिक के लिए दिया गया है | इस समारोह की यादें आज भी मन में रची बसी हुई हैं |हालांकि वख्त  ने किया क्या हंसी सितम कि तुम रहे ना तुम हम रहे ना हम !उम्र के इस पड़ाव पर आते आते हम पति  पत्नी अपने अपने विचार और कर्म के चलते नदी के दो किनारे हो गए हैं |.. ..  दाम्पत्य संबंध लगभग टूटने के दौर में |

                 उस दौर में मेरे बड़े पुत्र  दिव्य आदित्य सेना में नौकरी करने लगे थे और अब कैप्टन होकर हिसार में पोस्टेड थे| उनके लिए जीवन साथी की तलाश हम कर रहे थे |पहले के समय में गाँव घर में यह काम  नाऊ- बारी या गाँव जवार के पंडित आदि किया करते थे |वे अच्छी तरह जानते थे कि किस कुल में कौन सी कन्या “फिट “ हो सकती थी |कुंडली मिलान करना सर्वप्रथम आवश्यक होता था | विश्वनाथपुर (सरया तिवारी) के अपने मूल गाँव से गोरखपुर   शहर में आ चुके इस परिवार में विवाह के लिए कुंडली मिलाने का यह काम उन दिनों काशीवासी मेरे पितामह पंडित भानु प्रताप राम त्रिपाठी ही किया करते थे |कुंडली का सूक्ष्म निरीक्षण करके  पहले वे स्वयं संतुष्ट हुआ करते थे और फिर  गोरखपुर में पंडित सुबंश झा से वे परामर्श लिया करते थे |हम सभी भाई बहनों की शादी में कुंडली का मिलान उन्होंने ही  किया था |अब वे तो रहे नहीं |पिताजी को इस कुंडली मिलान में कोई विश्वास ही नहीं था |वे तो दान दहेज के भी विरुद्ध  रहते थे |मतलब दिव्य के विवाह तय करने का सारा दारोमदार हम पति पत्नी पर ही था जो बहुत ही  मुश्किल काम था | मुझे पितामह खूब खूब याद आ रहे थे क्योंकि दिव्य और यश दोनों की जन्म कुंडली उन्होंने ही बनवाई थी और जन्म के बाद जनेऊ और विवाह संस्कार अगर उनकी देखरेख में सम्पन्न होता तो मुझे खुशी होती |

         हमने  इस बारे में लोगों से कह रखा था लेकिन कोई विशेष परिणाम आता नहीं देख कर मैंने “टाइम्स ऑफ इंडिया” के मैट्रिमोनियल  कॉलम में विज्ञापन दे दिया |इसके बाद एक एक कर अनेक प्रस्ताव आने लगे | इतने पत्र और फ़ोटो आने लगे कि हम “कन्फ्यूज” होने लगे |इन्हीं में फैजाबाद से एक प्रस्ताव आया था जिसे हम लोगों ने प्रथम दृष्टया स्वीकार कर लिया |लड़की के पिता (स्व. )दिनेश शुक्ल उत्तर प्रदेश सरकार में बी. डी. ओ.थे | लड़की ने एम.ए. कर रखा था |कुंडली मिलान उन्होंने ही कराया | दान दहेज के लिए हमने उनसे यही कहा कि हम अपने पास से कुछ भी खर्च  नहीं करेंगे  और बाकी लड़के का जो शौक  हो वह आप पूरी कर डालें | लड़के को स्कार्पियो बड़ी गाड़ी चाहिए थी जो उन दिनों लगभग 12 लाख में आ रही  थी |शुक्ला जी ने राजी खुशी यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और फैजाबाद में 31 जनवरी 2007 को इंगेज़मेंट और पहली जुलाई 2007 को लखनऊ में शादी निश्चित हुई |जब इस प्रस्ताव को फाइनल टच दिया गया तो  सेना में ट्रेनिंग कर रहे छोटे बेटे यश आदित्य छुट्टियों में घर आए हुए थे और उनके ही हस्तक्षेप से यह विवाह प्रस्ताव स्वीकार करने की ना – नुकुर को विराम मिला था  |

          आज जब उन दिनों का लेखा जोखा आप तक पहुंचा रहा हूँ तो सच मानिए मुझे लगता है कि यह मेरे जीवन का अजीब दौर था | अदृश्य विधाता अपनी अगली योजनाएं  बना रहे थे और हम साधारण मनुष्य के रूप में अपनी आगामी योजनाओं पर काम करने  में लगे थे |घर की  पहली शादी हो रही थी और मेरी पत्नी पूरे उत्साह उमंग में थीं | एकल परिवार ,घर के बड़े बुजुर्ग साथ नहीं और इतनी बड़ी जिम्मेदारी ! लेकिन  लखनऊ में जो साथ हैं , आसपास हैं (जैसे मेरी बड़ी बहन विजया   उपाध्याय  ) उनके साथ भी तो पत्नी जी की ट्यूनइंग का  गंभीर मसला जुड़ा हुआ था |उल्टे मेरा  ससुराल पक्ष (मीना की बहन -बहनोई) हर मामले में हावी होता चला जा रहा था |अपनों से छूटने और गैरों से जुडने के इस मामले का अंजाम आगे चल कर मेरे निजी जीवन के लिए अच्छा नहीं हुआ |कैक्टस की तरह वह मेरे साथ आज भी जुड़ा हुआ है |

           इस वर्ष की शुरुआत ही मानो  सुख के दरवाजे से दुख के प्रवेश करने से हुई थी |पहला कारण | यश छुट्टियों पर इस लिए भेजे गए थे क्योंकि उनकी लेह की  पोस्टिंग में अत्यधिक ठंढक के चलते उनकी त्वचा और शरीर के ऊतक लंबे समय तक ठंढे तापमान में रहने के कारण उनको शीतदंश  (Frostbite )हो गया था |लखनऊ में मिलिट्री अस्पताल से वे दवाइयाँ ले रहे थे |यह एक गंभीर बीमारी थी और अगर उनकी जगह नहीं बदलती और उचित दवा नहीं होती तो पैर की उँगलियाँ काटने की नौबत तक आ सकती थी |दूसरा कारण | मेरा अस्थि रोग ,हिप  ज्वाइंट में इन्फेक्शन  | 29 अक्टूबर 2004 को एम्स नई दिल्ली में डा. आर . मल्होत्रा द्वारा किये गए हिप रिपलेसमेंट सर्जरी में अब अचानक इन्फेक्शन आ गया था | लखनऊ के चिकित्सकों ने कहीं बाहर जाकर फिर से सर्जरी का सुझाव दिया |मेरे साढ़ू ओम प्रकाश जी के पुत्र  इंजीनियर अनुराग उन दिनों चेन्नई में काम कर रहे थे | उन्होंने वहाँ के एक अस्पताल में मेरे ऑपरेशन की  व्यवस्था कर दी | Revised S-Rom THR (Right) जटिल सर्जरी चेन्नई के MIOT अस्पताल में डॉ.  पी.  वी.  के.  मोहनदास ने 24 अप्रैल 2007 को सम्पन्न किया |परदेस में कोई अपना नहीं सिवाय साढू  के लड़के के | कुछ दिन दिव्य छुट्टी लेकर  साथ रहे तो  कुछ दिन यश | ज्यादातर दिन तो पत्नी ही देखभाल के लिए साथ रहीं | मेरे इस ऑपरेशन में  भी बहुत- बहुत खेला हुआ | पैसा तो लगा ही मेरे शरीर और मन के साथ डा. पी वी के मोहनदास ने  घृणित बलात्कार तक कर डाला था  | उसकी  दुखद और शर्मनाक प्रसंग की चर्चा आगे , फिर कभी |चर्चा क्या मुझे जितने ऑपरेशनों और भिन्न  भिन्न अस्पताल और डाक्टरों द्वारा किये गए शारीरिक चीड़ फाड़ से गुजरना पड़ा है , जीने की जद्दोजहज में तन, मन  और धन की  जो -जो दुर्गति हुई है उस पर तो पूरा उपन्यास लिखना चाहूँगा | अगर जीवित रहा तो अवश्य लिखूँगा क्योंकि धरती के भगवान कहे जाने वाले इन तथाकथित डाक्टरों के दानवी और मानवी चेहरों पर प्रकाश डाला जाना आवश्यक है |

                 अंतत: 31 जनवरी को फैजाबाद में इंगेजमेंट और पहली जुलाई 2007 को दिव्य के विवाह की तारीख तय  हुई | विवाह की तैयारियों के लिए तय  हुआ था कि छोटे बेटे यश छुट्टियाँ लेकर जून के पहले हफ्ते में आ जाएंगे |लेकिन  यश को छुट्टियाँ  नहीं मिल सकीं  क्योंकि उनके सी. ओ. करनाल संजीव शर्मा  ने उन्हें सलमान खान  अभिनीत एक फिल्म यूनिट की देखभाल का जिम्मा सौंप दिया था जो उन दिनों लेह में शूटिंग कर रही थी | अंतत: वे जून अंतिम सप्ताह में लखनऊ आ सके |

           निमंत्रण पत्र सभी को भेजे जा चुके थे |31 जनवरी इंगेजमेंट में शुक्ला जी की आवभगत से मेरे नातेदार रिश्तेदार सभी प्रसन्न  थे | पहली जुलाई को यश के नेतृत्व में बारात इंदिरा नगर के बंधन मैरेज हॉल पहुंची |रास्ते में इंद्रदेव की भी कृपा हुई |बरसात का मौसम चल रहा था इसलिए यह तो होना ही था |दूसरी जुलाई की सुबह दिव्य अपनी नई नवेली पत्नी अनामिका को लेकर विज्ञानपुरी  आवास पर आए |अब रिसेप्शन की  तैयारी होने लगी |