Gomti Tum Bahati Rahna - 7 in Hindi Biography by Prafulla Kumar Tripathi books and stories PDF | गोमती, तुम बहती रहना - 7

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गोमती, तुम बहती रहना - 7

        जिन दिनों मैं लखनऊ आया यहाँ की प्राण गोमती माँ लगभग सूख चुकी थीं |यहाँ के लोगों की तरह उनका भी पानी सूख चुका था और जो था उनमें गंदगी और शैवाल ने अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था |चित्रों में , फिल्मों में कहानियों में गोमती की सर्पीली सुंदरता बहुत देख सुन चुका था लेकिन असलियत में मैंने कुछ और पाया |घर से आकाशवाणी आते जाते निशातगंज के आगे गोमती पुल पार करना पड़ता था और हर बार गोमती माँ मुझसे मानो कुछ कहना चाह रही थी | ऑफिस पहुँचने की जल्दी में मैं रुक नहीं पाता था और मन में एक अपराध बोध बाना रहता था |लेकिन एक दिन मैंने निश्चय कर लिया कि आज मैं गोमा (गोमती को इस नाम से भी पुकारते हैं) से बातें करूंगा |उनकी पीड़ा सुनूँगा |वैसा ही हुआ |आज मैं गोमती के आँचल के साये में था ठीक कुछ उसी तरह .. उसी तरह जैसे बचपन में जब बदे या छोटे भाई मुझे मारने के लिए दौड़ाया करते थे तो मैं माँ  जे आँचल में जाकर छिप जाया करता था | माँ का    आँचल ! भला उससे ज्यादा सुरक्षित स्थान कोई और हो सकता है क्या ?    

      उस दिन गोमा ने मुझे खूब प्यार दिया |देश की  आजादी के पहले और उसके बाद के ढेर सारे किस्से सुनाए |अपनी यादें शेयर करते हुए उन्होंने बताया कि किस तरह उनका आँचल ससम्मान नवाबों को सरक्षण देता था और बदले में नवाब भी  उसे सम्मान और  सरक्षण दिया करते थे | गोमा ने अपने ऊपर लगातार बनते जा रहे पुल  और पाँच सितारा संस्कृति के रिवर फ्रंट निर्माणों पर दुख व्यक्त किया और कहा कि नदियों को उनके स्वाभाविक स्वरूप में ही रहने देना चाहिए| गोमा ने कहा तो बहुत कुछ लेकिन यहाँ मैं उल्लेख सिर्फ़ उस बात का करूंगा जिसने मुझे, मेरे नैतिक और रचनात्मक  दायित्व का बोध कराया | गोमा ने कहा – “वत्स ! मैं तुम्हारी ही प्रतीक्षा में थी |तुम्हें मैंने ही भागीरथ से कह कर इस शहर में भिजवाया है |तुम्हें मेरा सम्मान वापस दिलाना होगा |” मैं आश्चर्य चकित हो उठाया |मैंने आश्वासन दिया ठीक है माँ , मैं अपने कर्तव्य बोध के प्रति संकल्पित हुआ |आज , इतने वर्षों बाद आप लखनऊ में गोमती का जो निखरा हुआ रुप उसका सौन्दर्य  देख पा रहे  हैं उसमें प्रभु श्री राम के लंका जाने के लिए बन रहे पुल  के लिए किये गए गिलहरी सदृश मेरा भी प्रयास रहा है |उसकी चर्चा आगे, समय आने पर करूंगा | मेरी ज़िंदगी समय रुपरूपी  पहियों पर सरपट दौड़ लगा रही थी |मैंने अब तक अपने बचपन और यौवन से उसे छकाया था अब मेरी तरुणाई में वह मुझे छका रही थी |वर्ष 1980 में मेरी शादी के बाद से ही जाने क्यों मेरे आराध्य मेरे “बाबा” मुझसे दूर होते जा रहे थे |कभी लगता कि मैं यौवन के नशे में शरीर और रूप रूपी मदिरा के नशे में हूँ तो कभी लगता कि मैंने अपने पहले प्यार धीरा को खो  देने के गम में डूबा हुआ हूँ |असल में यह भी एकदम सच बात है जिसे आज मैं स्वीकार करना      चाहूँगा कि धीरा जोशी के साथ आकाशवाणी स्टूडियो में उस 6 महीने के प्यार के अंकुर उगने और पौध बनने की अवधि में जाने क्यों मुझे ऐसा लगने लगा था कि मेरे बाबा मुझे उसका आजीवन सानिध्य ,साहचर्य और  साथ  दिला ही देंगे | उधर उसके माँ बाप राधा बाबा के तिलस्म में फंसे थे |यह भी सच था कि धीरा की शादी तंय करने में उनकी हार ने उनको राधा बाबा की शरण में भेज दिया था |ज्ञातव्य हो कि राधा बाबा अपने ऐसे श्रद्धालुओं के मर्म को पहचान कर उनकी समस्या (खास तौर से जोड़ा बनाने की  ) का देर सबेर समाधान बीभी कर देते थे और जैसा कि उन्होंने इस मामले में जोशी परिवार के साथ किया भी | लेकिन राधा  बाबा का यह काला जादू  तात्कालिक सिद्ध हुआ और धीरा को शादी के तीन दशक  बाद ही वैधव्य जीवन बिताना पड़ रहा है | वैधव्य ही नहीं परिजनों से लगभग परितक्य भी | लेकिन वह प्रसंग आगे , फिर कभी |धर्म के मामले में मेरी पत्नी मीना कट्टरपंथी निकलीं और घर में मूर्ति पूजा और पारंपरिकता का बोलबाला होने लगा था जो आज भी जारी है | उधर मैं अपने पिता जी की तरह इन मूर्ति पूजन आदि की परंपराओं में विश्वास नहीं रखता था |हाँ , विरोध भी नहीं कर पाता था क्योंकि विरोध करने का मतलब पत्नी जी की नाराजगी और उससे घर खासतौर से बेडरूम से जुड़े तमाम बवाल काटने पड़ते थे | हालांकि मेरे आराध्य मेरे मन में उन दिनों और आज , अब भी रचे बसे हैं  लेकिन उनके प्रति जितनी समर्पित भावना होनी चाहिए थी, कम से कम दोनों समय उनके द्वारा दी  गई योग और साधना करनी चाहिए थी  उसमें निरंतर हलास होता चला जा रहा   था | इस का मुझे दंड भी मिलता चला गया | मुझको अनपेक्षित शारीरिक और मानसिक पीड़ाएं तो उठानी हि पड़ीं ,मुझे अपने सैन्य युवा पुत्र लेफ्टिनेंट यश आदित्य को भी असमय गंवाना पड़ गया |         

        धर्म के मामले में मेरी पत्नी मीना कट्टरपंथी निकलीं और घर में मूर्ति पूजा और पारंपरिकता का बोलबाला था |हालांकि मेरे आराध्य मेरे मन में अब भी रचे बसे थे लेकिन जितनी समर्पित भावना होनी चाहिए थी उसमें निरंतर हलास होता चला जा रहा था | अपने “आनंद मार्ग “ धर्म पथ  और गुरुदेव  श्री आनंदमूर्ति जी से दूर होते जाना  मेरे जीवन की सबसे बड़ी गलती थी जिसे आज मैं आप सभी के सामने अपने गुरुदेव को साक्षी मानकर स्वीकाराना चाहूँगा |वर्ष 2003 से वर्ष 2013 (मेरे रिटायरमेंट   तक ) तक व्यतीत अवधि में लखनऊ मेरे लिए प्रयोगशाला सिद्ध हुआ |इस कर्मभूमि में मुझे बिना किसी हथियार और सुविधा अथवा रेडियो और समाज के आकाओं की कृपा के अपनी  मंजिल तलाशनी थी |अपने व्यक्तित्व का प्रकाश फैलाना था | मेरा शरीर अलग से साथ नहीं दे रहा था |समय समय पर किसी न किसी बड़े  हास्पिटल और उसके बड़े आर्थो सर्जन की  शरण में जाना  ही पड़  रहा था |लेकिन मेरा मन मजबूत बाना रहा और इसके लिए संकल्पित रहा कि अपनी मातृभूमि गोरखपुर की तरह अपनी  इस नई कर्मभूमि लखनऊ में भी अपनी प्रतिभा ,अपने काम और अपने व्यक्तित्व की छाप छोड़नी ही है | भगवान की कृपा  से यह संभव हो सका इस बात का मुझे संतोष है और मैं पूर्ण निश्चिंतता के साथ अब शरीर छोड़ सकूँगा |जैसा मैनें बताया कि मुझे अंधेरे में तीर चलानी थी और यह भी कि निशाना चूकने ना पाए |मैं लक्षमण, कर्ण या अर्जुन तो था नहीं और न ही एकलव्य | हाँ, मेरे साथ मेरे कृष्ण अवश्य थे |लखनऊ के उन शुरुआती दिनों में आकाशवाणी के अंदर मेरा कोई  ऐसा संगी साथी नहीं बन सका था जिस पर विश्वास किया जा सके |मुझे अप्रत्याशित रूप से पद्मश्री डा. योगेश प्रवीण , डा. ध्रुव कुमार त्रिपाठी,डा. विजय कुमार कर्ण, वरिष्ठ और आकाशवाणी से सेवानिवृत्त संगीत संयोजक केवल कुमार और उनके युवा पुत्र अमिताभ का साथ मिला और मैने आकाशवाणी लखनऊ में  रह कर कालजयी कार्यक्रम बनाए |भले ही वे कार्यक्रम आकाशवाणी लखनऊ के वर्तमान भाग्य नियंताओं के हठ और अहंकार  के चलते अब लाइब्रेरी में कैद हों लेकिन प्रसारण रूपी काल(समय) के कपोल पर मैने अपना चुंबन तो अंकित कर ही दिए हैं |मुझे याद आ अरहा है पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी कि वे पंक्तियाँ जिनमें उन्होंने जीवन के दो चरणों (सुख- दुख) की बहुत सुंदर व्याख्या कुछ ही पंक्तियों में कर दी हैं-

”बेनकाब चेहरे हैं ,दाग बडे  गहरे हैं |

टूटता तिलस्म आज सच से भी भय खाता हूँ |

गीत नहीं गाता हूँ !”

और फिर,

"गीत नया गाता हूँ |

काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूँ |

गीत नया गाता हूँ |"