एपीसोड --3
दस साल की काजल यानि बिट्टी ये नहीं समझी कि मौसी कल्ला को हवा नहीं लगने देना चाह रहीं कि वे गढ़ा खजाना खोज रहे हैं। उसने टांग अड़ा दी थी, "फिर बड़ी नानी की आत्मा ने प्लेनचिट पर ----."
"तम चुप रहो बिट्टी !क्या बोल रही हो ?"शारदा मौसी ने उसे बोलने नहीं दिया। कल्ला को पांच रूपये थमा दिये, "जब इसको कोने में खिसकाना होगा तो तुम्हें ही बुलाएंगे। तब और इनाम मिलेगा। "
"अच्छा ?"एक दो रूपये की उम्मीद बांधे कल्ला के लिये इतना रुपया बहुत था। वह दो बार सलाम ठोंककर गया।
बिंदु मौसी ने नाक पर दुपट्टा बांधकर, सिर ढककर कोठरी में झाड़ू लगाई और शारदा मौसी पानी डालती गईं। अब बिट्टी की मम्मी मम्मी ने सिर पर आँचल लेकर पांच अगरबत्तियाँ जलाईं और कोठरी के उस कोने के टूटे हुये प्लास्टर में से झाँकती हुई लाल ईंटों के बीच के गढ्ढों में वे ठूंस दीं। धुले हुए फ़र्श पर दो धूपबत्ती जला दीं, हाथ जोड़कर आँखें बंद कीं और कोई मंत्र का जप करने लगीं और बुदबुदाईं, "अम्मा !जिस काम का तुमने संकेत दिया है, हम उसके लिए तुम्हारा आशीर्वाद चाहते हैं।
इस अर्चना के बाद जैसे ही रज्जू मामा ने फ़र्श पर हथौड़े से वार किया, मानो वह सीधे ही नानी के सीने में जा धंसा--- वे असमंजस में कहने लगीं, "बेटा !रज्जु !फ़र्श तुड़वाना अच्छा नहीं है। कितनी मुश्किल से पाई पाई जोड़कर कितनी मेहनत से तो ये घर बनवाया है। "
"अम्मा !अगर तुमसे देखा नहीं जा रहा है तो यहाँ से हट जाओ। किसी बड़ी चीज़ को पाने के लिए कुछ तो बलिदान करना पड़ता है। "शारदा मौसी किसी जहाज के कप्तान की तरह अकड़ रही थीं।
नानी किसी बड़ी चीज़ को पाने के लालच में व घर टूटने के दर्द के असमंजस में वहां से रसोई में चलीं गईं। उन्हें पता था कि काम करने के कुछ देर बाद ही बच्चे `चाय `, चाय `--`भूख` --`भूख` की रट लगा देंगे। कोने के फ़र्श की सीमेंट की पर्त तोड़कर व थोड़ी मिट्टी को खोदकर रज्जु व बिज्जु मामा कोठरी के दूसरे कोने में दीवार से सटकर बैठ गए। बाकी सबसे बोले, "अब आप सम्भालो। "
कुसुम मौसी ने फावड़ा उठाया व मम्मी छड़ से मिट्टी ढीली करतीं, मौसी फावड़े से उसे खोदकर तसले में डाल देतीं थीं। खोदते खोदते वह गढ्ढा एक फुट गहरा हो गया था। रज्जु मामा ने उत्सुकता से पूछा, "कुछ निकला ?"
"अभी कैसे निकलेगा ? गढ्ढा सिर्फ़ एक फ़ुट गहरा हुआ है। "
बिज्जु मामा ज़ोर से बोले, "आप लोग बेकार मेहनत कर रहे हैं। कुछ नहीं निकलेगा। "
"कैसे नहीं निकलेगा ?"कुसुम मौसी अकड़ गईं थीं, " मम्मी जीजी ने प्लेनचिट अम्मा से पर चार पांच बार घुमा फिराकर पूछा है, तब हमने ये हिम्मत की है।"
"जब कुछ निकलेगा तो सबसे पहले तुम ही अपना हिस्सा मांगने आ जाओगे। "`मम्मी हंस पड़ीं थी।
इस बीच नानी नेपकिन से हाथ पोंछती इधर चक्कर लगाने आ गईं थीं ., "देखना कहीं साँप वाँप न निकल आये। "कुसुम मौसी के हाथ से फावड़ा छूट गया, वे उछलकर बाहर आ गईं .
रज्जु मामा झुंझला उठे, " आप भी क्या बात करतीं हैं ?सीमेंट के फ़र्श के नीचे कोई साँप होगा। "
"मैं तो सुनी सुनाई बात कह रही थी। घर के खजाने पर हमारे पुरखे साँप बनकर कुण्डली मारे बैठे रहते हैं। उसकी रक्षा करते हैं। "
"हा --हा---हा --पुरखे इतनी गर्मी में बैठने के स्थान पर सीधे बता क्यों नहीं देते कि खजाना कहाँ रक्खा है। "
नानी खिसिया कर वापिस रसोई की तरफ़ चल दीं थीं, "तुम्हें तो हर समय मज़ाक सूझता है। ".
अभियान फिर शुरू हुआ। इस बार खुदाई का काम रज्जु व बिज्जु मामा करने लगे।अब तक तसला मिट्टी से भर गया था। शारदा मौसी व कुसुम मौसी वह तसला उठाकर बाहर के विशाल गेट से बाहर गईं तो पड़ौस की कुमकुम चाची ने देख लिया, " क्या बात है ?आज सुबह से तुम दिखाई नहीं दे रहीं। कोई सब्ज़ी लेने भी बाहर नहीं नहीं आया। "
उन्होंने वही पुराना बहाना बनाया, " छुट्टी में ही हम लोगों का आना होता है सोचा सफ़ाई कर लें। "
चाची ने लोहे के फाटक से झाँकते हुये कहा, "तो कम्पाउंड की खुदाई क्यों कर रही हो ?मज़दूर ना मिल रहे ?"
चाची जब तक पीछे घूमें वे दोनों भागकर अंदर आ गईं . कोठरी में छड़ व फावड़ा कभी किसी के हाथ में होता के, कभी किसी के। सब पसीने में लतपथ थे। इस कोठरी को स्टोर की तरह काम में लाया जाता था इसलिये उसमें सीलिंग फ़ैन भी नहीं था। एक कोने में स्टूल पर रक्खा छोटा पँखा "घड़-- घड़ `करके किस किस को हवा देता? जब छड़ किसी चीज़ से टकराती, `टन्न `आवाज़ होती तो सबका मन झूम उठता, "अम्मा की मटकी आखिर मिल ही गई `.`
थोड़ा और खोदने के बाद सब पाते कि छड़ ईंट के टुकड़े से टकराई थी।एक बार छड़ व फावड़ा आपस में टकरा गए कुसुम मौसी की चीख निकल गई, " मिल गई ---मिल गई। "
पर थोड़ी और खुदाई के बाद सबके चेहरे लटक गये थे। तभी नानी ट्रे में चाय लड्डु व मठरी लेकर आ गईं, "अब बंद भी करो यह खुदाई। पहले चाय पी लो। कुछ नहीं मिलना मिलाना। "
सबने बाथरूम में जाकर हाथ मुंह धोये .कपड़ों से मिट्टी झाड़ी व केतली से चाय ढालकर पीने लगे। कुसुम मौसी चाय का घूँट भरते हुए मम्मी से बोलीं थीं, "जीजी !अब तो मुझे भी शक है कि ---- ."
"चुप रह, मेरी बात बात आज तक कभी झूठी नहीं निकली। "
"कुछ मिला बेवकूफ़ों !"नाना जी भी अपनी चाय लिए बीच में आ बैठे थे। उनके चेहरे के खिल्ली उड़ाते भाव को देखकर सबके तन बदन में आग लग गई थी। सब चुपचाप चाय पीने में लगे रहे थे। मम्मी ही तेज़ी से बोलीं थीं, "मिलेगा क्यों नहीं ?"
" तब मैं सबसे अधिक माल तुझे ही दूंगा जो प्लेनचिट पर अम्मा की आत्मा बुलाकर खजाना ढूँढ़ने की आग लगाकर बैठी है। "
ज़रूर नानी जल भुन गई होंगी और सोच रहीं होंगी कि बच्चे मेहनत कर रहे हैं और खजाना बांटेंगे ये घर के मुखिया. उनकी व्यंग भरी दृष्टि को देखने की ताब किसी में नहीं थी इसलिए सब कोठरी में आकर काम में लग गये . दनादन की खुदाई से तसला जल्दी भर गया था। इस बार गिट्टी अधिक निकलीं थी। रज्जु मामा ने बिज्जु मामा को आदेश दिया था, "जाओ बाहर देखकर आओ गेट के पास कोई है तो नहीं। "उन्होंने लौटकर ख़बर दी, "मैदान साफ़ है। "
दोनों भाइयों ने तसला उठाया और बाहर जाकर ख़ाली कर दिया। काम पुन :आरम्भ हो गया था। जैसे जैसे कोने की मिट्टी खोदते जाते, सबकी हिम्मत पस्त होने लगी थी। बिज्जु मामा माथे पर आये पसीने को हाथ से पोंछते बोले, "मैं तो पहले ही कह रहा था कि कुछ नहीं मिलेगा।
कुसुम मौसी भी फावड़ा छोड़कर बाहर फ़र्श पर आ बैठीं, ``उँह --अब नहीं हो रहा है। सबसे पहले तो तूने ज़िद की थी कि अम्मा की आत्मा को बुलवाओ। "
" तो मैंने ये थोड़े ही कहा था कोठरी खोद डालो। " सब कोठरी से निकलकर दीवार से टिककर हारे से बैठ गए .सबसे अंत में मम्मी कोठरी से निकलीं और खिसियाई सी बोलीं थीं, "प्लेनचिट की बात आज तक कभी झूठी नहीं निकली। "
बिज्जु मामा चिड़े स्वर में बोले, " ये बात तो आप कब से कह रहीं हैं। अब तो प्लेनचिट की बात ग़लत निकल गई। "
शारदा मौसी ने नाक चढ़ाई, "तुझे पहले सोच लेना चाहिए था."
मम्मी तमक उठीं, "आप सब भी तो साथ थे। आपने देखा नहीं कि प्लेनचिट पर दादी की आत्मा ने क्या कहा था। "
सब थके हारे कमरे में इधर उधर पड़े हुये थे। कोई सोफ़े पर पैर ऊपर करे निढाल बैठा था, कोई पलँग पर चित पड़ा था। जिनके कपड़े मिट्टी सने हुए थे वे दीवार से टिककर फ़र्श पर बैठे हुए थे।
"चलो शुरू हो जाओ। "रज्जु मामा की तेज़ आवाज़ ने सबमें जैसे बिजली भर दी थी। सब आख़िरी कोशिश करने दनादन जुट गए। शारदा मौसी ने ज़ोर से छड़ गढ्ढे में घुसाई, एक ज़ोरदार `टन्न `की आवाज़ सुनाई दी थी। शारदा मौसी ने मुँह बनाते हुये कहा, "जब लोहे की छड़ किसी मिट्टी के बर्तन से टकराती है तब ऐसी आवाज़ आती है। इससे पहले तो ऐसी आवाज़ नहीं सुनाई दी थी। "
शारदा मौसी की हर बात काटने वाली कुसुम मौसी चहक उठीं, " जीजी !आप सच कह रही हैं।लगता है मटकी की ही आवाज़ है।"
फिर सबने एक एक करके छड़ को बार बार मिट्टी में घुसाकर इस `टन्न `के मधुर संगीत का आनंद लिया था।
मम्मी ने जैसे ही कहा, "अब ये खुदाई महत्वपूर्ण है। "शारदा मौसी ने घबराकर छड़ उनके हाथ में दे दी कि कहीं मटकी फूट गई तो उनका ही नाम लगेगा। मम्मी ने धीरे धीरे ऐसे आस पास की मिट्टी हटानी शुरू की जैसे गाजर का हलुवा भून रहीं हों। बिज्जु मामा ने मिट्टी आहिस्ता से तसले में डाली। तब तक बिट्टी ख़ुशख़बरी देने नाना जी के कमरे की तरफ़ दौड़ गई, चिल्लाती हुई, "मटकी मिल गई --मटकी मिल गई। "सब गुस्से से उसे जाते देखते रहे। तीर तो छूट चुका था।
"क्या ? "बाबूजी भी अविश्वास होते हुए भी हॉल में भागे चले आये लेकिन ये देखकर हैरान रह गए कि तसले की मिट्टी के सबसे ऊपर चमक रहा था एक घड़े का टुकड़ा। उस टन्न करते टुकड़े को निकाल कर आस पास की मिट्टी को खोदने के बाद सबके चेहरे मुरझाये हुए थे।
बाबूजी के वापिस जाते ही जल्दी जल्दी और मिट्टी खोदी गई। आख़िरी तसल्ली के लिये और आधा फ़ीट खुदाई कर ली गई.मटकी को न मिलना था, वह नहीं मिली। अब सारे लोग हॉल में आकर फिर बिखर गये, बेपनाह थकान व खिसिआहट से भरे हुये। कमरे में फैली हुई गन्दगी, सामान व कपड़ों की पोटली देखकर सबके शरीर में झुरझुरी हो रही थी-कैसे कर पायेंगे उतनी ही मेहनत ? नानी सबसे सबसे अधिक निराश थीं। कहाँ तो सोचे बैठीं थीं कि सभी बच्चों की शादी के लिए गहनों का इंतज़ाम अम्मा की गहनों की मटकी कर देगी। कमरे में खुदे गढ्ढे को देखकर उन्हें लग रहा था कि उनके दिल में ही छेद कर दिया है।
--------- अब तक आठ नौ साल तो उस थ्री स्टार होटल वाली पार्टी को भी हो चुके हैं। काजल वैब सीरीज़ ` लास्ट आवर ` देखकर हैरान हो रही है --- भारत के उत्तर पूर्व के एक पहाड़ी स्थल पर एक मृतक के शरीर के पास आँखें बंद किये मन्त्र बुदबुदाता झाकरी [जन मान्यता के अनुसार आत्माओं से बात करने वाला विशेष शक्ति प्राप्त स्थानीय व्यक्ति ] मृतक की आत्मा से बातचीत कर पता करने की कोशिश कर रहा है कि उसकी हत्या किसने की थी ?क्या हमारा प्यार, हमारा स्वार्थ अपने प्रियजनों की आत्मा से सम्पर्क चाहता है ? बरसों पहले जो काजल के नानाजी के घर में हुआ था, वह भी इस चाहत की विश्व भर में फ़ैली इस चाहत की कड़ी भर था ?काजल टीवी में उस झाकरी की हरकतों को देखती उलझी हुई है -आत्मा है या नहीं ?मान लो होती है भी तो क्या ब्रह्माण्ड में भटकती हुई किसी के इशारे पर इंजेक्शन की शीशी में समा सकती है ? फड़फड़ाती इधर उधर नाचती कांच पर घूम सकती है--जैसे पृथ्वी पर हम सब ?--नहीं --नहीं --आत्मा वात्मा कुछ नहीं होता --सब झूठ है। अगर कोई छल का सहारा लेता है तो वह दूसरे को ठगता है --धोखा देता है। तो वह क्या था जब कोई आत्मा शीशी से वापिस जाने से इंकार कर देती थी ? चलो मान लें आत्मा नहीं होती तो वह क्या चीज़ है जिसके निकल जाने से मानव शरीर मृत कहलाने लगता है ?
e mail—kneeli@rediffmail.com