नीलम कुलश्रेष्ठ
एपीसोड --1
"पापा जी ! व सर ! आप दोनों केक कटिंग करने आइये प्लीज़ !" राकेश, यानि उसके भतीजे ने कुछ ज़रुरत से अधिक झुकते हुये सामने बैठे उसके रिश्तेदार भइया व बुज़ुर्ग दंपत्ति से कहा।
काजल ने अपनी आईलाइनर व मैसकरा लगी पलकें फड़फड़ाईं --वो दोनों मतलब राकेश के बॉस व उनकी पत्नी। सुनील ने उसके चहेरे के भाव को पढ़ लिया व मुस्करा उठा, "ये इस थ्री स्टार होटल के मालिक हैं जिसमें राकेश मैनेजर है। "
"ये दोनों ?"उसकी जगह कोई भी होता चौंककर यही पूछता। महंगे कपड़ों में भी उनका दीन हीन व्यक्तित्व चुगली खा रहा था। बात उनके काले पक्के रंग की नहीं है, बात उसकी है कि हमारी बॉडी लैंग्युएज, चेहरे के भाव अक्सर चुगली कर देतें हैं कि हम किस वर्ग के हैं।
केक काटते हुये गोरा निलय उन दोनों के बीच हीरे सा चमक रहा था।सब अपनी कुर्सियों से उठकर मेज़ के पास आ गए थे। सब ताली बजाते गाने लगे, `हैपी बर्थ डे टु यु ---हैपी लॉन्ग लाइफ़ टु यु। "
निलय ने केक का पहला टुकड़ा इन्हीं दोनों को खिलाया, बाद में अपने दादु, मम्मी, पापा को। सबको पेपर कप में केक सर्व किया जाने लगा। उसके बाद बेयरे स्टार्टर सर्व करने लगे। सुनील व वे काउंटर से सूप लेकर कोने वाली मेज़ पर आ गये।
सारे बच्चे केक खाकर गुब्बारों से सजी दीवार के पास जा पहुँचे और एक एक करके सारे गुब्बारे उतार कर ज़मीन पर ---धाड़ --मारने लगे। इधर गुब्बारे की `धाड़ `आवाज़, उधर प्यारी सी खिलखिलाती हंसी। अपनी टेबल पर सूप पीती हुई उसे ये देखकर बहुत मज़ा आ रहा था। उनके इस जंगलीपन को कोई रोकने वाला नहीं था। दस मिनट में सारी दीवार --साफ़ -----
अपने सूप की बाऊल लिये रिश्ते के भइया, राकेश के पापा उनकी मेज़ पर आ गये, " और बताओ कैसी हो ?बहुत दिनों बाद मिल रहे हैं। "
"जी, बिल्कुल ठीक हूँ, आप कैसे हैं ?` `
"जबसे विनीता ऊपर गई है, बस बहुत अकेला हो गया हूँ। "
"जी, मुझे भी सुनकर बहुत बुरा लगा था। भाभी की ये उम्र जाने की थोड़े ही थी। "
फिर वे थोड़ा आवाज़ धीमी करके बोले, "तुमने इस होटल के मालिक देखे ?"
"जी। "वह मुस्करा उठी।
"इनके बैंगलोर और मदुरै में भी इनके होटल की फ़्रेंचाइज़ हैं। "
"क्या ?"उसके हाथ के हिलने से फ़ोर्क से प्लेट से उठाता स्टार्टर का टुकड़ा नीचे फ़र्श पर गिर गया। उसने होशियारी से सेंडिल से उसे मेज़ के नीचे खिसका दिया।
"राकेश बता रहा था कि पहले ये गधे पर मिट्टी या गारा ढोने का काम करते थे। "
"ऐसा कैसे हो सकता है ?फिर ये बेपनाह दौलत ?"
"ज़रूर इन्हें मिट्टी खोदते खोदते कहीं ज़मीन में गढ़ा हुआ धन मिल गया होगा। "
सुनील ने भी सहमति में सिर हिलाया।
"तो खुदा मेहरबान तो ----."उसने इस कहावत को अधूरा छोड़ दिया।यदि इस होटल के मालिक ` वो `होते तो अपने धन को बढ़ाते कैसे ?
"हो सकता है किसी रिश्तेदार की जायदाद इन्हें मिल गई हो ?"
"राकेश ने घुमा फिराकर ये बात पूछी थी इन्होंने बताया कि इनका सारा परिवार गाँव से अहमदाबाद आकर मिट्टी ढोने का काम करता है।मैं शर्त लगाकर कह सकता हूँ ये गढ़े हुए खजाने का चमत्कार है ."
सुनील ने भी उनकी बात पर मुहर लगा दी, "भइया !आप सही कह रहे हैं। ये खजाने का चमत्कार हो सकता है। कोई गधे पर मिट्टी ढोकर इतना रईस नहीं बन सकता। "
-- - - गढ़ा हुआ खजाना ?बिरलों के नसीब में होता है ---अगर मिल जाए तो इस काले कलूटे होटल के मालिक की तरह वल्ले ---वल्ले। प्राचीन काल के खजाने पर कितनी कहानियाँ लिखी गईं हैं, फ़िल्में बनीं हैं । इतिहास गवाह है कि कितनी जानें खजाने को पाने के चक्कर में गईं, कितने क़त्ल हुये। वह खजाना हासिल करने वाले वाले ऐसे व्यक्ति को पहली बार देख रही है---- हाय !वो मम्मी की अम्मा का खजाना --हाय !वो अपना ही था ---- वो नाना जी के घर की कोठरी की खुदाई --घर आकर भी वह बिस्तर पर करवटें बदलती रही ---तब वह सिर्फ़ नौ दस साल की रही होगी --कैसे एक एक दृश्य याद है ----. वह आँख बन्द किये लेटी है लेकिन बरसों बाद भी आज भी मौसियों, मामाओं की आवाज़ें जैसे कान में गूँज रहीं हैं ---------.
---------"अंदर ज़रूर कुछ है। जैसे ही लोहे की छड़ से गढ्ढे में मिट्टी खोदी तो ऐसी आवाज़ आई जैसे वह मिट्टी के बर्तन से टकराई हो ."रज्जु मामा ने माथे पर बहते हुये पसीने को पोंछकर कहा था ।
"हैं ---."
"क्या ?"
"सच ?"कितने ही स्वर किलक उठे थे क्योंकि मरी हुई अम्मा के किसी मटके की तलाश थी, जिसमें ज़रूर उन्होंने मरने से पहले अपने सारे सोने के गहने छिपाकर ज़मीन में गाढ़ दिए होंगे ।रज्जु मामा के चेहरे पर जो ख़ुशी, उत्तेजना छलक रही थी, ये बात सुनकर जैसे सबके चेहरे पर छलक गई थी ।
अब कोई किसी को क्या कहता ये तो सभी की मिलीभगत थी कि प्लेनचिट पर बताये दादी के रहस्य को आजमाया जाये। सब उस घड़ी को कोसने लगे जब काजल यानि बिट्टी की मम्मी मम्मी का शामला बहन जी से परिचय हुआ था। वह आते ही पूरे स्कूल में मशहूर हो गईं थीं। स्वभाव से हंसमुख दोहरे बदन वाली शामला जी जी के माथे पर बड़ी बिंदी व आँखों में मोटा काजल चमकता रहता था। उनकी लोकप्रियता का राज़ तो बाद में खुला जब ये पता लगा कि वे प्लेनचिट यानि सादे कागज़ पर लोगों के मृतक परिवार वालों की कथित आत्मा बुलातीं थीं । अजीब बात ये थी कि उन्हें भी जो बात नहीं पता होती वह भी कथित आत्मा बता जाती थी।
कुसुम मौसी ही सबसे पहले नानी के घर ख़बर लेकर पहुंचीं थीं, " मम्मी जीजी को प्लेनचिट पर आत्मा बुलाना आ गया है."
नाना जी खीज उठे थे, "वह व तुम स्कूल में पढ़ाती हो और बात जाहिलों जैसी कर रही हो."
"बाबूजी !मैंने ये सब अपनी आँखों से देखा है . तीन दिन की छुट्टियों में दीदी के घर, उनकी मित्र शामला जी के घर यही सब तो देखती रही थी। "
"रवि ये सब कैसे ढोंग बर्दाश्त करता है ?"
"पहले जीजाजी को भी विश्वास नहीं हो रहा था, वे गुस्सा भी होते थे लेकिन प्लेनचिट पर उनकी माँ ने उनके बचपन की ऐसी बात बता दी कि वे भी विश्वास करने लगे। "
" समझ में नहीं आता कि ये सब मूर्खता है ?ये लोग अपने साथ बिट्टी को भी अंधविश्वासी बना देंगे। "
नानी एक कोने में पटरे पर बैठी हँसिये से पालक काट रहीं थीं। जब वे पालक काटकर उठीं तो उन्होंने कुसुम मौसी को रसोई में आने का इशारा किया था।उनके मन में उम्मीद जाग चुकी थी कि अपने माता पिता की आत्मा से वो शायद बात कर पायें।
उन्होंने उनसे बहुत उत्सुकता से पूछा, "क्या मम्मी सच ही आत्मा बुला लेती है ?"
"हाँ, मैंने अपनी आँखों से देखा है। "
"वो क्या करती है ?"
" पहले वो कागज़ पर `हाँ `व `न `लिखतीं हैं। उसके बाद`अ `से लेकर `ज्ञ` तक एक कागज़ पर गोलाई में अक्षर, एक से दस तक गिनती, मात्रायें व दिन, महीनों व वर्षों के नाम लिख लेतीं हैं। उसके बाद उसे मेज़ पर रखकर कांच के एक चौरस टुकड़े ढक देतीं हैं। फिर एक शीशी लेतीं हैं। "
"कैसी शीशी ? तेल की शीशी ?"
"वो तो बहुत बड़ी होती है।इसके लिये तो छोटी सी कांच की इंजेक्शन की शीशी चाहिये। दीदी उसे कांच पर रखकर दो तीन धूपबत्ती जलाकर आँख बन्द करके प्रार्थना करतीं हैं। जिसकी आत्मा को बुलाना हो उसकी आत्मा से प्रार्थना करतीं हैं कि वे सूक्ष्म होकर उस शीशी में प्रवेश करे। शीशी पर दो तीन लोग धीरे से एक ऊँगली शीशी पर रख देते हैं। प्रार्थना के बाद जैसे ही आत्मा शीशी में प्रवेश करती है, वह शीशी कांच पर गोल गोल चक्कर काटने लगती है। जब उससे पूछो तो जवाब देती है कि मैं आ गई। "
"हैं----तो शीशी बोल पड़ती है ?"
मौसी की हल्की सी हंसी निकल गई, "शीशी कैसे बोल सकती है ?यदि उससे जिस आत्मा को बुलाया है उसे सम्बोधित करके पूछो कि आप आ गये ?तो शीशी गोल घूमकर `हाँ `पर की जायेगी। फिर उससे पूछो कि आपका नाम क्या है तो शीशी अक्षरों व उनकी मात्राओं पर घूम घूमकर नाम बता देती है। अक्सर प्रश्न ऐसे पूछे जाते हैं जिनके उत्तर `हाँ `या `न ` में हों । "
"हाय राम !मम्मी भी ये सब सीख गई है लेकिन क्या बिट्टी भी आत्मा बुलाना देखती थी ?"
" जानती तो हैं कि वह कितनी ज़िद्दी है। कितना भी मना करो, उसी कमरे में जमकर बैठ जाती थी. शीशी पर भी उंगली रखती फिर रात भर भूतों से डरती हुई बिस्तर पर करवट बदलती रहती।पता नहीं आगरा जैसे शहर में लोगों को आत्मा बुलाने का चस्का लग गया है .एक लड़की तो स्टोव में आत्मा बुलाती थी। "
"स्टोव कौन सा बत्ती वाला या सादा ?"
"अरे वही सादा केरोसिन का। "
"हाय ! उस पर कैसे आत्मा आती होगी ?"
"ऐसे ही जैसे शीशी में आ जाती है। एक लड़की वहां अपना बरामदा धोकर स्टोव को बीच में रखकर उसके चारों तरफ़ चॉक से ऐसा ही अक्षरों का चार्ट बना देतीं हैं जैसे अभी बताया था। उसके चारों ओर औरतें दरी बिछाकर, सिर पर पल्ला लेकर हाथ जोड़कर बैठ जातीं। बस स्टोव पर उंगली की जगह हाथ रख दिए जाते हैं। बाबूजी तो कह रहे हैं कि ये सब ढोंग है। "
"उनकी बात रहने दे। हमारे शस्त्रों में भी आत्मा की बात लिखी है कि नहीं ?"
" सो तो है। "
उसके बाद ही गर्मियों में जब छुट्टियों में सब इकठ्ठे हुये तो जैसे ही बाबूजी दफ़्तर जाते तो शौकिया घर के लोगों की आत्मायें बुलाई जातीं। बाहर के कमरे को बंद करके, उसमें लगी चिक को भिगोकर, कमरा ठंडा करके बीच की मेज़ पर प्लेनचिट रखकर उस पर कांच ढक दिया जाता, तीन चार धूपबत्तियाँ जलाईं जातीं। मम्मी आँखें बंद कर हाथ जोड़कर बुदबुदाते हुए कभी अपने बाबा, जो रहस्यमय ढंग से गायब हो गए थे, कभी अम्मा, कभी बुआ, नाना, नानी की आत्मा का आवाह्नन करतीं। सब टकटकी लगाये शीशी पर नज़र गढ़ाए बैठे रहते, कुछ लोग उस पर उंगली रख लेते थे। थोड़ी देर बाद उस शीशी में हरकत होने लगती, वह थोड़ी हिलने लगती, फिर धीरे धीरे घूमने लगती। जैसे ही वह तेज़ी से गोल गोल कांच पर चक्कर काटती, कुछ होंठ फुसफुसा उठते ---"बाबा आ गए --बाबा आ गए। "
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