घर के अंदर कल्पना अपनी सहेली रिया से फोन पर बात कर रही थी, वहीं उसके घर के दरवाजे के बाहर एक काला साया खड़ा था, लेकिन इस बात से बेखबर कल्पना अपनी ही दुनिया में मशगुल थी, कि तभी अचानक से पूरे घर की लाइट्स ऑफ हो गई।
कल्पना का कॉल चल रहा था, उसने अपने आसपास देखा और फोन पर ही कहने लगी -
" ऑफाे यार, सच ए बेड टाइम यार.. ये इलेक्ट्रिसिटी.. इसे भी अभी जाना था.. "
सामने से रिया की आवाज आई -
" क्या हुआ कल्पना? "
" कुछ नहीं यार लाइट चली गई है,, चल ठीक है मैं तुझे ना बाद में कॉल करती हूं,, फिर कल मिलते है.. ओके बाय "
यह कहकर कल्पना ने कॉल कट कर दी और अपने बेड से खड़ी होकर साइड ड्रावर में कुछ ढूंढने लगी, इस तरफ बाहर मौसम ने भी करवट बदल ली थी, बाहर बिजली के कड़ाको के साथ हल्की हल्की बूंदाबांदी चालू हो गई थी।
अभी कल्पना ड्रावर में से टॉर्च निकाल कर उसे चालू करने वाली थी कि तभी उसे हाल में से कुछ आवाज आई, घर पर कोई नहीं था इसलिए काफी सन्नाटा था, जिस वजह से कल्पना को वो आवाज़ साफ सुनाई दे रही थी, कल्पना ने तुरंत टॉर्च लाइट ऑन की और अपने कमरे से बाहर निकलने लगी।
उसने आसपास लाइट की रोशनी में देखने की कोशिश की तो वहां कोई नहीं था, कल्पना वापस अपने कमरे में जाने लगी कि तभी उसे ऐसा महसूस हुआ अभी अभी कोई उसके पास से गुजरा हो,, वह तुरंत पीछे पलटी और टोर्च की रोशनी से उस तरफ देखने लगी, लेकिन वहां कोई नहीं था।
कल्पना ने कुछ देर तक उधर टोर्च की रोशनी से देखने की कोशिश की लेकिन वहां कोई नहीं दिखा, तब जाकर कल्पना वापस अपने कमरे में आइ और अपने कमरे का दरवाजा लगा दिया।
अभी वह कुछ कदम आगे बढी ही थी कि तभी उसे वहाँ किसी की मौजूदगी का एहसास हुआ, उसे ऐसा लगा कि जैसे उसके बाई तरफ कोई खड़ा है, उसने तुरंत अपनी टॉर्च को उस दिशा में घुमाया ही था कि किसी ने उसके हाथ में किसी चीज से वार करके वो टोर्च नीचे गिरा दी, नीचे गिरते ही टोर्च की रोशनी अपने आप बंद चालू होने लगी,, कल्पना घबरा गई उसने चिल्लाते हुए कहा -
" कौन है? कौन है वहा? "
सामने से कोई आवाज नहीं आई लेकिन उसने उस बंद चालू होती हुई टोर्च की रोशनी के सहारे देखा तो कोई साया उसके करीब बढ़ रहा था, साथ ही उस साये के जूते की टक.. टक... की आवाज उसके पास ही आ रही थी।
कल्पना घबरा गई, वो तुरंत कमरे में से बाहर निकल कर नीचे की ओर भागने लगी। वह साया भी बड़े आराम से चलता हुआ उसी के पीछे पीछे आ रहा था। अचानक उस साये ने एक धुन गुनगुनाना शुरू कर दिया, जिसे वो बेहद आहिस्ता से गुनगुना रहा था और उसके साथ ही एक सिटी की धुन बज रहा था, उस भारी सन्नाटे में उसकी वो धुन और सिटी की आवाज बेहद खौफनाक लग रही थी।
कल्पना घबरा गई, वह अपने घर के मेन दरवाजे से बाहर जाने लगी, लेकिन उसने देखा कि दरवाजा बाहर से लॉक है.. उसने दरवाजा खोलने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह दरवाजा नहीं खुला। वो डर के मारे डायनिंग एरिया में भाग गई, और डाइनिंग टेबल के नीचे जाकर छुप गइ,, उसने अपनी उखड़ती हुई सांसों से हो रही आवाज को दबाने के लिए उसने अपने दोनों हाथ मुंह पर रख लिए थे,
कल्पना इस वक्त अपने दोनों पैरों को सिकुड़ कर बैठी हुई थी, तभी उसने टेबल के नीचे से किसी के कदम को हॉल की तरफ जाते हुए देखा, कल्पना बहुत घबरा रही थी, आज से पहले उसे इतना डर कभी नहीं लगा था। बाहर बिजली के साथ बारिश गिरना शुरू हो गई थी और उस बिजली के कड़कों की रोशनी में थोड़ी थोड़ी देर में कल्पना को उस साये की झलक दिखती,, तो उसे केवल उसके काले रंग के जूते वाले पैर दिखते जोकि आधे ओवर कोट से ढ़के हुए थे,
कल्पना देख ही रही थी कि वह साया वहां से आगे बढ़ गया, कुछ पल वो यूँ ही बिना आवाज़ किये शांत बैठी रही, फिर कल्पना ने धीरे से अपने मुंह से हाथ हटाया हटाया और डाइनिंग टेबल के नीचे से ही इधर उधर झाकने की कोशिश करने लगी कि तभी उसके पास से एक बेहद सर्द और गंभीर आवाज सुनाइ दी -
" क्या तुम मुझे ढूंढ रही हो?"
वो आवाज इतनी डरावनी थी कि उस को सुनकर ही कल्पना की चीख निकल चल गई। वह जल्दी से घुटनों के बल उस टेबल से बाहर निकलने की कोशिश करने लगी, लेकिन वो अभी आगे बढ़ पाए कि तभी उसके पैरों पर उस साये ने अपनी पकड़ कस ली, और उसे पैरों से ही घसीट कर टेबल के नीचे से बाहर निकाल दिया।
कल्पना चिल्लाती रही -
" छोड़ दो मुझे... कौन हो तुम? मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? तुम्हें जो चाहिए वह ले लो.. लेकिन मुझे छोड़ दो.. "
कल्पना की बात सुनकर उस साये की गंभीर आवाज सुनाई दी -
" मुझे जो चाहिए वही तो मैं ले रहा हूं तुमसे... "
वह आदमी कल्पना के पैर को खींचते हुए उसे हॉल की तरफ घसीटते हुए ले जा रहा था। कल्पना ने रोते हुए कहा -
" प्लीज मुझे छोड़ दो.. तुम्हें क्या चाहिए मुझसे??" यह सुनते ही उस आदमी के कदम एक पल के लिए रुक गए,, उसने कल्पना की तरफ मुड़कर देखा और अपनी गर्दन को टेढ़ी करके उसे देखते हुए अपनी भारी आवाज में कहा -
" मुझे चाहिए.. निर्वाणा... "
यह कहने के साथ ही वो बिजली की रफ्तार से वह आदमी पलटा, और उसके हाथ में एक धारदार चाकू था, जिसे उसने एक ही झटके में कल्पना की गर्दन के दाएं से बाएं ओर घुमा दिया,, एक ही बार में कल्पना की जान चली गई और कल्पना की बॉडी में कुछ पल के लिए हरकत हो रही थी जो कुछ पल बद बंद हो गई।
उस आदमी ने कल्पना को ऊपर से नीचे देख फिर उसने अपने उसी चाकू से कल्पना के दाएं हाथ की पहली उंगली को काट दिया, कल्पना की गर्दन के पास से बहुत सारा खून निकल रहा था और अब उसकी उंगली से भी खून की धारा बह गई, उस आदमी ने उसी की उंगली को उसके खून में डूबाइ और कुछ बडबडाते हुए जमीन पर कुछ लिखने लगा।
*
अगली सुबह
सुबह के चार बज रहे थे,, जिरो घाटी के पास एक घर के आगे बहुत भीड़ लगी थी, वहां देखकर ऐसा लग रहा था कि कुछ लोग किसी जिज्ञासावश वहाँ ताक झाँक कर रहे हैं,, कुछ लोग तो घर के अंदर भी मौजूद थे, वहां से रोने और चीखने चिल्लाने की आवाजे आ रही थी।
तभी वहां पर एक पुलिस की जीप आकर खड़ी हो गई, उस जीप में से एक छः फीट लंबा और काफी मस्कुलर बॉडी वाला आदमी नीचे उतरा, उसने पुलिस की वर्दी पहनी हुई थी वह आदमी दिखने में काफी हैंडसम था,उसने काले गॉगल्स लगा रखे थे और उसकी चाल में ही एक अलग ही रुआब था, उसका औरा दूसरे पुलिस वालों से बेहद अलग दिखाई दे रहा था, पुलिस की वर्दी में वो आदमी बेहद जच रहा था, उसकी वर्दी के शोल्डर में नीचे की ओर आईपीएस लिखा था, साथ ही उसके ऊपर तीन स्टार लगे हुए थे, उस की मसकुलर बॉडी वर्दी की बाजुओं से साफ झलक रही थी, उस की चेस्ट के पास नेम्पलेट लगी हुई थी, जिसमे लिखा था - " क्षितिज आचार्य.. "
उसके पास से ही एक कांस्टेबल उस पुलिस इंस्पेक्टर के आगे बढ़कर आया और लोगों की भीड़ को हटाते हुए कहने लगा -
" ए चलो साइड हो जाओ,, रास्ता दो जाने का... चलो चलो हटो यहां से.. भीड़ मत जमा करो.. चलो अपने अपने घर जाओ.. "
ये कहते हुए वह कांस्टेबल उस भीड़ को लगातार हटाता रहा था और बीच बीच में उस पुलिस इंस्पेक्टर को अंदर की ओर आने का इशारा कर रहा था। कांस्टेबल ने एक के बाद एक करके वहां पर मौजूद सभी भीड़ को हटा दिया,, जैसे ही कांस्टेबल अंदर गया, वहां पर पहले से ही एक इन्वेस्टिगेशन टीम मौजूद थी, पास में ही एक दूसरा पुलिस वाला खड़ा था, जो हैरानी से नीचे पड़ी हुई लाश को देख रहा था। उस कांस्टेबल ने उस पुलिस वाले से कहा -
" एस एस पी साहब आ गए है.. "
ये सुनते ही वो पुलिस इंस्पेक्टर सीधा खड़ा हो गया। जैसे ही एसएसपी साहब अंदर आए वो पुलिस इंस्पेक्टर तुरंत उनके पास जाकर रिपोर्ट देने लगा -
" गुडमॉर्निंग सर.. "
लेकिन क्षितिज की नजरें केवल लाश पर थी, उसने अपने गॉगलस उतारे और बॉडी का मुआयना करने लगा, पुलिस इंस्पेक्टर ने कहा -
" कल रात ये लड़की घर पर अकेली थी, आज शाम को इस की बड़ी बहन की सगाई थी, इसलिये इसके माँ बाप इसकी बहन के साथ बाहर गए थे, वो लोग केवल डेढ़ घंटे में ही लौट आए, तब उन्होंने देखा कि दरवाजा बाहर से बंद है, और ज़ब अंदर आए तो हॉल में ये... "
क्षितिज ने एक नजर कुछ दूर सोफे के पास रो रहे परिजनों पर डाली, जहां कल्पना की माँ और दीदी रो रही थी, उनके आस पास उनकी रिश्तेदार औरते उन्हें संभालने की कोशिश कर रही थी, पास में ही कल्पना के पिता खडे सुबक रहे थे।
फिर क्षितिज दोबारा लाश को देखने लगा, उसने लाश को गौर से देखा, साथ ही उसकी नजर उसके आस पास फैले खून पर गई, फिर उसने कल्पना की लाश के ठीक ऊपर देखा, और उसकी नजरें वहीं सख्त हो गई, वहा खून से कुछ लिखा हुआ था।
क्या लिखा था उस किलर ने वहाँ? जानने के लिए इंतजार करे अगले भाग का..
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