"क्या हुआ दी आपको !!!"विराट तेजी से परिणीति के कमरे में भाग कर आया और उसके बेड के सिरहाने बैठ बेचैनी से पूछा और उसके माथे को सहलाने लगा ।
परी जो अब डॉक्टर प्रिया के दी हुई इंजेक्शन के बाद बेसुध सी लेटी हुई थी अचानक से विराट की आवाज और उसके हाथों के स्पर्श से चीख कर उठी और विराट कुछ सोच समझ पाता उससे पहले ही लगातार एक के बाद एक कई थप्पड़ विराट की गालों पर लगा दिए। दोनों नर्स घबराकर भागते हुए परिणीति के पास आई लेकिन विराट ने उन्हें हाथों के इशारों से वहीं पर रोक दिया।
"तू हवेली गया था ना !!मेरे मना करने के वाबजूद भी गया था!! कितनी बार मना किया तुझे तपस्या से दूर रह पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान दे... हमारी औकात नहीं है.. उन महलों के रहने वालों के सपने देखने की....लेकिन तू ... तू... सुनता क्यों नहीं मेरी बात ... वो... उन्होंने... दादाजी ने मेरा मतलब है शस्वर्धन जी ने मना किया है ना तपस्या से नहीं मिलना है देख.. मैं भी तो नहीं मिल रही हूं ना अभय जी से.. हम अगर उनके साथ कोई वास्ता रखेंगे तो वो हम सबको मार डालेंगे..… तुझे ...बाबा को ...मुझे मेरे .. मेरे... बच्चे को!! हम चले जाएंगे यहां से कहीं दूर.. उन लोगों से दूर..."... कभी विराट के गालों को छूकर तो कभी अपने पेट को सहलाते हुए परिणीति पागलों की तरह बडबडा रही थी। विराट असमंजस में चौंकते हुए परिणीति की हालत देख रहा था.. परिणीति उसे बिल्कुल वैसे ही बात कर रही थी जैसे विराट वही 15 -16 साल का वीर हो। परिणीति इस वक्त उसे बिल्कुल वैसे ही गुस्से से समझा रही थी जैसे उस रात समझाया था शायद वही आखिरी रात था जब परिणीति को उसने अपनी बड़ी बहन के तौर पर एक नॉर्मल इंसान जैसा देखा था।
12 साल पहले
(अनंत कश्यप यशवर्धन जी के पर्सनल ड्राइवर तब से थे जब से शायद अभय तपस्या या वीर और परिणीति पैदा भी नहीं हुए थे। वो यशवर्धन रायचंद की बेहद खास थे और भरोसेमंद भी। वीर यानी विराट को जन्म देने के बाद अनंत जी की पत्नी का देहांत हो गया था तभी से जब भी यशवर्धन रायचंद को लेकर अनंत जी शहर से बाहर जाते या कहीं दूर जाते तो अपने दोनों बच्चों को वो रायचंद हवेली में छोड़ जाते थे। और वही अभय और तपस्या के साथ-साथ वीर और परिणीति भी आपस में खेलते मुस्कुराते बड़े हुए।)
एक रोज....
" मेरी बेटी के कोख में आपकी खानदान की बारिश पल रहा है बड़े साहब अगर छोटे साहब ने मेरी बेटी को नहीं अपनाया तो उसकी जिंदगी बर्बाद हो जाएगी बच्ची पर रहम खाई बड़े मालिक!!".... वीर और परी के पिता अनंत कश्यप घुटनों के बल यशवर्धन जी के पैरों तले हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ा रहे थे। उनकी बात सुनकर यशवर्धन जी भड़कते हुए अपनी साइड में रखें फ्लावर वास अनंत जी के ऊपर फेंके जो उनके बेहद करीब आकर टूटा ।कांच का एक टुकड़ा उनके सिर पर लगा जिस वजह से खून की धार बहने लगी।
"अपनी जवान बेटी को खुद संभाल नहीं पाए और इल्ज़ाम हमारे पोते के ऊपर लगा रहे हो!!अगर तू मेरा पुराना खास मुलाजिम नहीं होता तो तुम्हारी इस हिमाकत पर काटकर यहीं पर गाड़ देते हम तुझे।"... यशवर्धन जी गुस्से और नफरत से गरजते हुए बोले।
"दोनों बच्चे एक दूसरे से प्यार करते हैं बड़े मालिक आप एक बार अभय साहब से बात
"खामोश!!!! एकदम खामोश!!! तेरी औकात तक नहीं है हमारे पोते का नाम अपने जुबान से लेने की और तू अपनी बेटी को हमारे घर की इज्जत बनाने पर तुला है और वहां तेरा बेटा हमारी पोती को अपने बस में करने पर तुला है!! अमीर बनने के लिए अपने बच्चों का इस्तेमाल कैसे किया जाता है खासकर अपनी जवान बेटी का इस्तेमाल कैसे किया जाता है ये तो कोई तुझसे सीखे अनंत!!"... यशवर्धन जी तंज से मुस्कुराते हुए बोले जिसे सुनकर अनंत जी ने अपनी आंखें कसकर बंद कर ली।
उन्हें पता था कि जो वो मांगने जा रहे हैं वो ना मुमकिन था और इसका नतीजा कितना बुरा हो सकता था लेकिन फिर भी एक बाप होने के नाते अपनी बेटी की इज्जत और उसकी खुशियों के लिए वो मजबूर हो गए थे।
"एक बार छोटे साहब आकर मेरे सामने कह दें के वो मेरी बेटी से प्यार नहीं करते तो मैं चुपचाप यहां से चला जाऊंगा यहां तक की अपने बच्चों को लेकर ये शहर छोड़ कर चला जाऊंगा।"... अनंत जी ने अपनी बेटी के लिए हाथ जोड़कर सर झुकाए एक बार और कोशिश की थी।
"नहीं करते हम आपकी बेटी से प्यार अंकल!! शायद आपकी बेटी को गलतफहमी हो गई है हमारी दोस्ती और अपनेपन को उन्होंने गलत समझ लिया होगा।"... इससे पहले की यशवर्धन जी कुछ कहते अभय ने अनंत जी के सामने आकर सर झुकाए कहा। लेकिन इस बार अनंत जी भड़क गए थे। अपनी बेटी के नाम पर इतना बड़ा कलंक कोई बाप कैसे भला बर्दाश्त कर सकता था...
"दोस्ती!!! सच में छोटे मालिक!!! क्या आप और मेरी बेटी सिर्फ दोस्त थे!! क्या आप दोनों के बीच कोई और रिश्ता नहीं था!! क्या मेरी बेटी के कोख में
"अनंत!! तमीज से बात कर इस घर की बारिश और यशवर्धन रायचंद की पीते से बात कर रहा है तू!! अपनी औकात मत भूल!! जो तू सुनना चाहता था वो सुन लिया अब दफा हो जा यहां से सिर्फ इस घर से नहीं बल्कि इस शहर से वरना इस जिंदगी से दफा कर दूंगा तुझे भी और तेरे बच्चों को भी ।"....यशवर्धन जी जलती नजरों से अनंत जी की तरफ देख चीख कर बोले.. उन्होंने अभय के सामने अनंत जी को ये बताने का मौका भी नहीं दिया के परिणीति उसके बच्चे की मां बनने वाली है। और नौकरों को बुलाकर अनंत जी को हवेली से बाहर फेंकवाए दिया। अभय अपनी मजबूरी की के जहर भरी घूंट पीकर वहां से चला गया।
"एक दो कौड़ी की औकात वाली लड़की के कोख में रायचंद खानदान की बारिश कभी नहीं पल सकती.... हमें सारी मुसीबत को एक साथ ही जड़ से उखाड़ना पड़ेगा।"....यशवर्धन जी घिन भरी आवाज में बोले और किसी को फोन लगा दिए।
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"आपने मेरे बाबा और आपके दादू के सामने ये कहा कि हम दोनों के बीच में सिर्फ दोस्ती का रिश्ता है और में ही इसे गलत समझ बैठी हूं!!!"... परिणीति अभय की तरफ देख तंज से मुस्कुराते हुए बोली। परिणीति की बात सुनकर अभय खामोश रहा।
"आपकी खामोशी को भी समझ रही हूं और अपने बाबा के सामने ऐसा क्यों कहा ये भी शायद मैं समझ रही हूं। परिणीति अभय की हर सांस से बाकी है।".... परिणीति आंखों में नमी लिए और होठों पर अपनी मुस्कान कायम रखते हुए बोली।
"अगर आप हमें इतनी अच्छी तरह से समझते हैं परी... तो थोड़ा और समझ जाइए और बिना कोई सवाल जवाब कुछ वक्त के लिए हमसे दूर चले जाइए।"... अभय उसके नम पलकों को चूमते हुए बोला।
"कुछ वक्त के लिए क्यों अभय!!आपकी खुशी के लिए मैं आखिरी सांस तक आपसे दूर रह सकती हूं।".. अभय के हाथों को अपने चेहरे से हटाकर तल्खी से कहते हुए परिणीति वहां से चली गई।
"कुछ वक्त दे दीजिए हमें परी बगावत हम भी कर सकते हैं लेकिन आपकी जान की कीमत पर हरगिश नहीं।".. मन ही मन कहते हुए परिणीति को जाते हुए अभय ने तब तक देखा जब तक वो उसकी आंखों से पूरी तरह से ओझल ना हो गई। उसे कहां पता था कि अपने परी को वो सही सलामत शायद आखरी बार देख रहा है....उस पल के बाद सब की जिंदगी इस कदर बदलने वाली है ये शायद उन चार मासूम जिंदगियों को पता ही ना था।
..................
"प्रिंसेस कहां जा रही है आप!!"... यशवर्धन जी 14 साल की तपस्या को चुलबुले अंदाज में भागते हुए देख मुस्कुरा कर पूछे हालांकि उन्हें पता था की तपस्या कहां जा रही है।
" दादू वो डफर आया हुआ है बाहर ....आप यहां हो तो डर रहा है अंदर आने से.. हम उससे मिलने जा रहे है । एग्जाम है ना हमने डफर को हमारे लिए नोट्स बनाने के लिए कहा था।"तपस्या चहक कर बोली।
"अच्छा ठीक है अगर आप अपने डफर से मिल ही रहे है तो हमारा भी एक काम कर दीजिए।"यशवर्धन जी तपस्या की तरफ एक पैकेट बढ़ा ते हुए बोले।
" ये क्या है दादू??".. तपस्या पैकेट को उलट पुलट कर कर देखते हुए पूछी।
"अनंत के लिए कुछ खास है। उसने हमारे लिए इतने सालों से इतना कुछ किया है तो बदले में हम भी कुछ खास करना चाहते हैं उसके लिए। लेकिन आप तो जानते ही हैं उसे कितना खुद्दार है... कुछ नहीं लेगा हमसे। इसीलिए ये आप अपने डफर को दे दीजिएगा और बोल दीजिएगा की ध्यान से अनंत के कमरे में रखदे लेकिन अनंत को कुछ भी पता न चले इसका खास ध्यान रखिएगा।"यशवर्धन जी ने प्यार से मासूम सी तपस्या को समझा दिए थे।
"लेकिन दादू फिर अंकल को कैसे पता चलेगा कि आपने उनके लिए कुछ खास दिया है??"तपस्या मासूमियत से पूछी।
"वो सब हम देख लेंगे प्रिंसेस आप बस अपनी डफर से यही बोलिएगा कि वो छुपा कर अपने बाबा के कमरे में रखदे।"इस बार यशवर्धन जी ने अपने रौबदार आवाज में कहा।
"ठीक है दादू हम कर देंगे आप का काम... हम कुछ बोले और डफर ना करें ऐसा तो हो ही नहीं सकता।" तपस्या बेफिक्रे से बोली और वो पैकेट लेकर बाहर भाग गई।
"ए डफर हमारे नोट्स दे और ये ले।"तपस्या विराट के हाथों से अपने नोटिस लेकर उसके हाथों में वो पैकेट थमा कर बोली जो उसे यशवर्धन जी ने दिया था।
"ये क्या है प्रिंसेस???"..वीर भी उस पैकेट को उलट पलट कर देखते हुए पूछा।
"तेरे लिए नहीं है डफर!! खबरदार जो खोला तो... अंकल केलिए सरप्राइज़ है.. ... उनके कमरे में रख देना।"तपस्या अपने नोटिस चेक करते हुए बोली।
"तू घर के अंदर क्यों नहीं आ रहा डफर??"तपस्या मुंह फुला कर वीर की तरफ देखकर बोली।
"बाबा और दी ने मना किया है हवेली आने से। मैं तो अभी भी दी से छुपते छुपाते आया हूं... आपको ये नोट्स देना जरूरी था ना इसलिए।".... विराट हमेशा की तरह तपस्या का गुस्सा कम करने के लिए अपनी पॉकेट से चॉकलेट का एक छोटा सा पैकेट उसके तरफ बढ़ा ते हुए मुस्कुरा कर बोला जो तपस्या ने झट से उससे छीन भी लिया था।
"कल बर्थडे है हमारा याद है ना तुम्हें!! हमारी गिफ्ट कहां है?? तपस्या अपना एक हाथ वीर की तरफ बढ़ते हुए इतरा कर बोली।
"बर्थडे कल है प्रिंसेस तो गिफ्ट भी कल ही मिलेगा ना! आप हर बार इतनी उतावली क्यों हो जाती हैं??".. वीर उसकी मासूम चेहरे पर बिखरे बालों को कान के पीछे समेटते हुए प्यार से बोल।
"उतावली नहीं डफर एक्साइड रहती हूं !क्योंकि हमें बर्थडे पर जितनी भी कीमती गिफ्ट्स मिले लेकिन तुम्हारी गिफ्ट हमारी सबसे ज्यादा पसंदीदा होती है।".. तपस्या वीर के बालों को उंगलियों से बिगाड़ते हुए बोली।
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"दी आप कहीं जा रहे हैं?? ये पैकिंग किस लिए??"जैसा की तपस्या ने कहा था वीर यशवर्धन जी के दिए गए पैकेट को अपने बाबा के कमरे के अंदर रखकर परिणीति के पास आया और उसे पैकिंग करता देख असमंजस में पूछा।
"मैं नहीं हम जा रहे हैं।"... अपने कपड़ों को सूटकेस में भरते हुए परिणीति ने बिना किसी भाव के कहा।
"लेकिन कहां और क्यों ??"वीर गुस्से और परेशानी से पूछा। तपस्या से दूर जाना उसके लिए सपनों में भी मुमकिन नहीं था।
"मुझे नहीं पता बस बाबा ने कहा की पैकिंग करनी है और हमें कल सुबह ही निकलनी है।"... परिणीति अभी भी बिना किसी एक्सप्रेशन के पैकिंग में ही बिजी थी।
"मुझे कहीं नहीं जाना है दी मैं यहीं रहूंगा आप को और बाबा को जाना है तो आप लोग जाइए मैं प्रिंसेस को छोड़कर कहीं नहीं जा
वीर ने अपनी बात खत्म भी नहीं किया था एक जोरदार तमाचा उसके गाल पर पड़ा।
और इसके साथ ही विराट अग्निहोत्री वीर कश्यप के यादों से बाहर निकला।
प्रेजेंट डे
" सॉरी दी गलती हो गई एक आखरी बार अपने छोटे भाई को माफ कर दीजिए प्रॉमिस करता हूं आगे से कभी हवेली नहीं जाऊंगा और ना ही प्रिंसेस के प्यार में बहक कर आपसे लढ़ूंगा।"... छटपटाती परिणीति को अपने बाजुओं के घेरे में कस ते हुए विराट ने सर्द आवाज में कहा। इंजेक्शन और थकावट की असर से परिणीति विराट के बाजुओं में ही बेहोश हो गई। परिणीति को आराम से बेड पर लेटा कर विराट ने उसे ब्लैंकेट से कवर कर लिया । उसके माथे को चुनकर पलट कर दोनों नर्स की तरफ जलती नजरों से घूर ने लगा।
"सर... वो.. हम.. वो..
"गेट लॉस्ट कल सुबह से तुम दोनों मुझे दी के पास नजर नहीं आनी चाहिए!!".. विराट के जहरीली आवाज के आगे दोनों नर्स अपनी जुबान से एक लफ्ज़ भी निकाल नहीं पाए और खामोशी से सर झुका लिए।
...…............
नीचे दरवाजे के पास बिना विराट के मौजूदगी में ही अनुपमा जी ने आरती और भरी हुई कलश के साथ तपस्या की गृह प्रवेश करवाई। तपस्या अपने भारी लहंगे को दोनों हाथों में उठाकर चारों तरफ देखते हुए घर के अंदर आई।
"हम भी विराट के पास जाएं??".. तपस्या चारों तरफ नजर घुमा कर विराट को ढूंढते हुए बोली।
"नहीं!!".... अनुपमा जी श्लोक और पीहू तीनों ही एक साथ बोले। तपस्या असमंजस और सवालिया नजरों से तीनों को देखने लगी।
"भाभी बात ये है कि हमारी दी किसी भी अनजान शक्श को देखकर डर जाती है इसीलिए तो सबसे अलग थर्ड फ्लोर पर उनके रहने की बंदोबस्त की गई है। अभी तो आप आई हैं धीरे-धीरे सब समझ जाएंगी।"... श्लोक उसे समझाते हुए बोला।
"लेकिन विराट!!"... विराट का उसे छोड़कर यूं भागते हुए जाना तपस्या को अभी भी बेचैन कर रही थी।जगह और माहौल के साथ-साथ लोग भी उसके लिए नए थे अगर वो यहां पर किसी के भरोसे आई थी तो वो बस विराट ही था।
"बेटा वैसे भी बहुत रात हो गई है और आप भी थक चुकी होगी!इसीलिए आप अपनी और विराट के कमरे में जाकर आराम कीजिए। विराट थोड़ी देर के बाद वहीं पर आ जाएगा ।"अनुपम जी प्यार से उसके गाल पर हाथ रख बोले तो तपस्या मुस्कुरादी।
"मैं आपको पार्टनर के कमरे में छोड़ देती हूं।" पीहू तपस्या के दोनों हाथों को अपनी नन्ही हाथों में भरते हुए मुस्कुरा कर बोली। लेकिन उसके मुस्कान में भी छुपी हुई दर्द तपस्या महसूस कर पा रही थी। तपस्या उसके साथ ही विराट के कमरे की ओर चली गई।
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"भाई आप इतनी रात को बाहर कहां जा रहे हैं भाभी आपका कमरे में इंतजार कर रही हैं।".. परिणीति के कमरे से आने के बाद विराट को तेजी से घर से बाहर निकलता देख श्लोक उसे रोकते हुए पूछा। विराट श्लोक की बातों को पूरी तरह से इग्नोर कर तेजी से बाहर की तरफ जा रहा था। श्लोक भाग कर उसके सामने खड़ा हुआ और दरवाजे की दोनों तरफ अपने दोनों हाथ रख विराट को आगे बढ़ने से रोक लिया।
"सब ठीक है भाई आप यूं परेशान होकर बाहर मत जाइए। परी दी अब बिल्कुल ठीक
" ख़ाख ठीक है परी दी !!तूने देखा है उनकी हालत!! समझता है उनके दर्द को!! महसूस किया है उनकी ज़ख्म को!! नहीं समझ सकता.... ना कुछ कर सकता है.... एक छोटा सा काम दिया था जब तक मैं ना आऊं परी दी का ख्याल रखना तुझसे इतना भी नहीं हुआ। हट यहां से....किसी पर भी भरोसा नहीं है अब मुझे।".. विराट गुस्से से धक्का देकर श्लोक को दरवाजे से हटाया और अपने तेज कदम बाहर की तरफ बढ़ा दिए।
विराट की बात श्लोक को तीर की तरह चुभी लेकिन श्लोक से ज्यादा अनुपमा जी को दर्द महसूस हुआ था जो वही हॉल में खड़ी विराट को देख रहे थे। लेकिन दोनों ही इस बख्त विराट की हालत समझ रहे थे।
श्लोक विराट के पीछे भागा और पीछे से ही उसके इर्दगिर्द लिपट गया।
"सॉरी भाई.. आप दो थप्पड़ लगा दीजिए मुझे लेकिन यूं नाराज़ हो कर खुद से अलग मत करिए।".. श्लोक लगभग रोते हुए ही बोला। विराट ने कसकर अपनी आंखें भींच लिए और गहरी सासें भर कर अपने गुस्से को कंट्रोल करने लगा।
"सॉरी मेरे कहने का वो मतलब नहीं था। बस दी को उस हालत में देख कर"... विराट गहरी सांस छोड़ कर बोला।
"कोई बात नहीं भाई हक है आप का कुछ भी बोल सकते है मुझसे।".. श्लोक उसके सामने आया और उसके गले लग गया। विराट उसका पीठ थपथपा दिया।
"चल जा अब सो जा बहत रात हो गई है।"विराट उसे खुद से अलग करते हुए बोला।
" आप भी.... चलो ना भाई भाभी ऊपर आपका
"पीहू को बोलना उनके साथ सो जाए।"।... श्लोक की बात पूरी होने से पहले ही विराट उसे टोक कर बोला और गाड़ी में बैठ तूफान की तेजी से वहां से निकल गया।
"क्या भाई अभी भी उस छिपकली के पास..... क्या बकवास बातें सोच रहा है श्लोक!!भाई भाभी से कितना प्यार करते है ये जानने के बाद भी अगर तु इतनी बकवास बातें सोचेगा तो तुझ में और उस छिपकली में क्या ही फर्क रह जाएगा !!"....श्लोक खुद से ही सवाल पूछ कर खुद से ही जवाब देते हुए उलझ कर अंदर चला गया।
..................
तपस्या विराट के कमरे में हर एक चीज को बारीकी से निहार रही थी। न जाने क्यों उसे उस कमरे की हर एक सजावट हर एक चीज में खुद की झलक महसूस हो रही थी।
"भाभी वो भाई को एक अर्जेंट काम के लिए बाहर जाना पड़ा । वो जल्दी आ जाएंगे तब तक आप चेंज करके आराम कर लीजिए और जब तक भाई नहीं आते भाई ने कहा है कि उनकी छोटी प्रिंसेस उनकी बड़ी प्रिंसेस के साथ रहेगी।"... श्लोक ने दरवाजे के पास नॉक करते हुए वहीं खड़े रहकर ही कहा।
"लेकिन हमें बताए बगैर विराट कैसे चले गए!! हमसे मिले भी नहीं!!"... तपस्या रुआंसी हो कर बोली।
"कोई बात नहीं जब पार्टनर आ जाएंगे तो आप नानी से उनकी शिकायत कर लेना उन्हें डांट पड़ेगी। हम और श्लोक मामू भी यही करते है।" श्लोक ने पीहू के ओर इशारा किया तो पीहू उसका ध्यान भटकाने के लिए बोली।
"आने दीजिए उन्हें हम तो बात ही नहीं करेंगे।" तपस्या गुस्से से बोली और अपने कपड़े निकाल कर चेंजिंग रूम के ओर चली गई।
"मामू पार्टनर मम्मा की वजह से बहत डिस्टर्ब है अब क्या होगा?? " पीहू अपने मासूम दिमाग पर जोर डालकर बोली।
"हम्ममम प्रिंसेस में भी यही सोच रहा हूं... भाई भाभी की शादी के पहले दिन ही सियप्पा हो गया। अब दोनों में से कौन किस से नाराज रहेगा और कौन किसको समझाएगा ???" श्लोक थके हुए हालत में ही पीहू के पास बेड पर लेट गया।
दूसरे तरफ विराट अपने पुराने घर पर अपने बाबा के कमरे के दरवाजे के पास खड़ा खामोशी से पूरे कमरे को सुनी नजरों से देख रहा था। उसके आंखों के आगे वो मंजर बार बार आ रही थी जहां अनंत जी अपने कमरे के पंखे पर रस्सी से लटके हुए थे और परी उनके पैरों को पकड़ चीख चीख कर रो रही थी।
कहानी जारी है ❤️ ❤️