स्याह लफ्ज़ – भाग 2
"स्याही की बूंदें, आँसुओं में घुल जाती हैं,
लफ़्ज़ जब रोते हैं, तब कहानियाँ जन्म लेती हैं..."
सुबह की हल्की किरणें पर्दों से छनकर कमरे में आ रही थीं। आर्यन की आँखें अब भी उनींदी थीं, लेकिन दिमाग पूरी तरह जाग चुका था।
स्याह लफ्ज़... यह नाम अब उसके ज़हन से निकल ही नहीं रहा था।
रातभर उसके दिमाग में वही शब्द घूमते रहे, जो उसने उस ब्लॉग पर पढ़े थे। वे महज़ कहानियाँ नहीं थीं, ऐसा लग रहा था मानो कोई गहरे ज़ख्मों को शब्दों में उकेर रहा हो।
उसने करवट बदली, तकिये के नीचे रखा फोन निकाला और बिना कुछ सोचे फिर से वही ब्लॉग खोल लिया।
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"लफ़्ज़ों में छुपे घाव, सिर्फ़ वही समझ सकता है,
जिसकी ख़ामोशी भी किसी दर्द से जन्मी हो..."
आर्यन की नज़रें स्क्रीन पर टिक गईं।
हर एक शब्द में दर्द की परतें थीं, मानो कोई घने अंधेरे में बैठकर अपनी टूटी हुई भावनाओं को शब्दों में ढाल रहा हो।
वह एक के बाद एक पोस्ट पढ़ता गया।
"कभी-कभी हम ख़ुद से इतना दूर चले जाते हैं कि लौटने का रास्ता ही मिट जाता है।
फिर बस स्याही में डूबी यादें रह जाती हैं,
और अनकहे लफ्ज़—जो कभी कहे नहीं जा सके।"
आर्यन को यह ब्लॉग किसी साधारण लेखक का काम नहीं लग रहा था। यह किसी की आत्मा की पुकार थी।
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स्याह लफ्ज़—एक अनकही दास्तान
यह ब्लॉग पिछले दो साल से चल रहा था, लेकिन इसके बारे में कोई ज़्यादा नहीं जानता था।
पोस्ट की तारीख़ें अलग-अलग थीं, मगर एक चीज़ हर बार एक जैसी थी—हर पोस्ट में दर्द की एक स्याही लिपटी होती थी।
"कुछ कहानियाँ अधूरी रह जाती हैं,
कुछ आवाज़ें ख़ामोश रह जाती हैं,
पर लफ्ज़...
लफ्ज़ हमेशा जिंदा रहते हैं!"
आर्यन ने एक गहरी सांस ली।
इतना दर्द, इतनी गहराई... आखिर कौन लिखता है ऐसे?
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स्याह लफ्ज़ की दुनिया में खो जाना
अब वह रुक नहीं पा रहा था। उसकी उंगलियाँ तेजी से स्क्रीन पर स्क्रॉल करने लगीं।
हर पोस्ट एक अलग एहसास थी।
"ख़ुद से ही बातें करने लगी हूँ,
अब कोई सुनने वाला नहीं रहा..."
"आईना देखती हूँ तो कोई और नज़र आता है,
शायद मैं कहीं पीछे छूट गई हूँ..."
आर्यन की धड़कनें तेज़ होने लगीं।
उसने कई ब्लॉग्स पढ़े, लेकिन लेखक का कोई ज़िक्र नहीं था। न कोई नाम, न कोई पहचान।
बस एक छुपा हुआ दर्द था, जो लफ़्ज़ों के जरिए बाहर निकल रहा था।
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स्याह स्याही से लिखे दर्द
हर ब्लॉग की शुरुआत एक नज़्म से होती थी।
"जब खामोशियों में भी शोर सुनाई दे,
तो समझ लेना लफ़्ज़ों ने रोना सीख लिया है..."
और अंत...
सिर्फ़ एक खालीपन।
कोई लेखक का नाम नहीं, कोई कमेंट सेक्शन नहीं, कोई जवाब नहीं।
बस स्याही में लिपटे कुछ सवाल थे।
आर्यन अब उलझ चुका था।
क्या यह सिर्फ़ एक ब्लॉग था?
या किसी अनकही ज़िंदगी का आईना?
---"स्याही की बूंदें जब कागज़ पर गिरती हैं,
तो शब्द नहीं, कहानियाँ जन्म लेती हैं..."
रात का तीसरा पहर... वही ठंडी हवा, वही सन्नाटा। आर्यन ने करवट बदली, लेकिन नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी। स्याह लफ्ज़ के शब्द अब भी उसके ज़हन में घूम रहे थे।
"कभी-कभी लफ़्ज़ों में इतनी तड़प होती है कि वे पढ़ने वाले के अंदर समा जाते हैं, जैसे यह दर्द उनका अपना हो..."
क्या होगा आगे जानने के लिए जरूर पड़े स्याही की आंसू अनकहे लफ्जों की दास्तान का अगला भाग