स्याही के आँसू – अनकहे लफ्ज़ों की दास्तान
(भाग 1 – स्याह लफ्ज़ और एक अनजान आवाज़)
"स्याही से लिखे लफ्ज़ कभी मिटते नहीं,
बस वक्त की धुंध में खो जाते हैं..."
रात का तीसरा पहर था। घड़ी की टिक-टिक कमरे की नीरवता में गूंज रही थी, मानो समय भी अपनी गति से थककर ठहर गया हो। खिड़की के बाहर दूर कहीं एक आवारा कुत्ता भौंक रहा था, लेकिन बाकी सबकुछ सन्नाटे में डूबा था।
कमरे में सिर्फ़ लैपटॉप की हल्की नीली रोशनी थी, जो अंधेरे दीवारों पर अजीब-सी परछाइयाँ बना रही थी। यह परछाइयाँ स्थिर नहीं थीं, वे जैसे हल्के-हल्के हिल रही थीं। या शायद यह सिर्फ़ आर्यन का भ्रम था?
आर्यन की निगाहें स्क्रीन पर जमी थीं।
स्याह लफ्ज़।
एक ब्लॉग, जो बाकी किसी भी ब्लॉग से अलग था।
यह कहानियों का संग्रह नहीं था।
यह शब्दों में ढली चीखों की गूँज थी।
हर पोस्ट जैसे किसी अनदेखे दर्द की परछाईं हो।
आर्यन ने धीमे से पढ़ना शुरू किया—
"कभी-कभी लफ़्ज़ों में इतनी तड़प होती है कि वे पढ़ने वाले के अंदर समा जाते हैं, जैसे यह दर्द उनका अपना हो।"
"हर बार जब मैं अंधेरे में खुद को ढूंढने निकलती हूँ, तो मेरे ही लफ्ज़ मुझे और गहरा धकेल देते हैं..."
"स्याही से बहता हर लफ्ज़ किसी कहानी की मौत है, और मैं बस उन कहानियों को जिंदा रखने की कोशिश कर रही हूँ..."
आर्यन को कुछ अजीब महसूस हुआ।
यह शब्द सिर्फ़ लिखे हुए अक्षर नहीं थे, बल्कि उनमें कुछ था—कुछ अनकहा, कुछ ऐसा जो पढ़ने वाले को अंदर तक महसूस हो।
---
स्याह लफ्ज़ – एक नाम, जो मौजूद होकर भी गायब था
इस ब्लॉग का लेखक कभी सामने नहीं आया था।
बस एक नाम था—"अल्फ़िज़िशा"।
नाम सुनने में जितना अजीब लगता था, उतना ही रहस्यमय भी था।
आर्यन ने कई बार इसे गूगल पर खोजा, फेसबुक, इंस्टाग्राम, हर जगह तलाशा, लेकिन कुछ नहीं मिला।
कोई तस्वीर नहीं।
कोई परिचय नहीं।
कोई अतीत नहीं।
बस यह नाम, और यह ब्लॉग।
स्याह लफ्ज़।
क्या यह किसी का छद्म नाम था?
क्या इसके पीछे कोई और राज़ छुपा था?
आर्यन की जिज्ञासा अब बेचैनी में बदलने लगी थी।
---
स्याह लफ्ज़ के अनदेखे निशान
आर्यन ब्लॉग पर पिछली पोस्ट्स पढ़ने लगा। हर पोस्ट के नीचे सैकड़ों कमेंट्स थे, लेकिन कभी कोई जवाब नहीं आया था।
लोग लगातार सवाल पूछते—
"कौन हो तुम?"
"क्या यह सब तुम्हारी अपनी कहानियाँ हैं?"
"क्या तुम्हें मदद की जरूरत है?"
लेकिन कोई उत्तर नहीं।
सिर्फ़ एक ठंडी चुप्पी।
आर्यन को पहली बार एहसास हुआ कि यह सिर्फ़ एक ब्लॉग नहीं था, यह किसी के दर्द का प्रतिबिंब था।
---
एक पोस्ट, जिसने आर्यन को जकड़ लिया
स्क्रॉल करते-करते आर्यन की नजर एक पुरानी पोस्ट पर पड़ी—
"स्याही से लिखे हर लफ़्ज़ के पीछे कोई छुपा सच होता है।
पर सच को पढ़ने के लिए हिम्मत चाहिए...
क्या तुममें है वो हिम्मत?"
उसके दिल की धड़कन तेज़ हो गई।
यह सवाल सिर्फ़ शब्द नहीं थे।
यह किसी की चुनौती थी।
आर्यन ने उस पोस्ट को ध्यान से पढ़ना शुरू किया।
"कुछ कहानियाँ बस कहानियाँ नहीं होतीं।
कुछ दर्द बस दर्द नहीं होते।
अगर तुम इन लफ्ज़ों को समझ सकते हो,
तो तुम मुझे भी समझ सकते हो... शायद।"
आर्यन को पहली बार लगा, जैसे यह सिर्फ एक ब्लॉग नहीं, बल्कि किसी की अनकही पुकार थी।
किसी की अनदेखी आवाज़, जो शब्दों के सहारे बाहर आना चाहती थी।
उसका कर्सर कमेंट बॉक्स पर गया। उसने टाइप किया—
"क्या तुम सच में हो?
लेकिन फिर उसने बैकस्पेस दबाया।
वह खुद से सवाल करने लगा—
"अगर यह सिर्फ एक लेखिका का तरीका है अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का, तो मैं क्यों इसे इतना गंभीरता से ले रहा हूँ?"
लेकिन कहीं न कहीं, उसे लग रहा था कि यह कुछ और था।
---
स्याह रहस्य का दरवाजा
आर्यन ने अपनी सीट से पीछे हटकर गहरी सांस ली।
कमरे में चारों ओर अंधेरा था। सिर्फ लैपटॉप की स्क्रीन की हल्की नीली रोशनी थी, जो दीवारों पर अजीब-सी परछाइयाँ बना रही थी।
एक अजीब एहसास उसके अंदर पनप रहा था—
"क्या यह सिर्फ एक ब्लॉग है? या इससे कहीं ज्यादा?"
कहीं ऐसा तो नहीं कि यह कोई असली कहानी हो?
क्या अल्फ़िज़िशा वास्तव में कोई है, जो अपने दर्द को छुपाकर लफ्ज़ों में बिखेर रही है?
यह सोचते ही आर्यन को लगा, जैसे खिड़की के बाहर से कोई देख रहा हो।
उसने धीरे से गर्दन घुमाई।
कुछ नहीं।
सिर्फ़ पर्दे हल्के-से हिल रहे थे।
लेकिन उसे यकीन था—वह अकेला नहीं था।
---
स्याह लफ्ज़ का अगला पन्ना
आर्यन ने लैपटॉप बंद कर दिया। उसकी उंगलियाँ ठंडी पड़ गई थीं।
वह बिस्तर पर लेट गया, लेकिन दिमाग में वही सवाल गूँज रहा था—
"क्या सच में अल्फ़िज़िशा कोई है?"
"अगर है, तो वह दुनिया से छुप क्यों रही है?"
"क्या यह महज़ एक ब्लॉग है, या फिर कोई संकेत?"
रात गहराती गई, और स्याह लफ्ज़ की परछाइयाँ उसके मन में उतरने लगीं।
(भाग 2 में जारी...*)