"शुभम - कहीं दीप जले कहीं दिल"( पार्ट -४९)
पापा शुभम की शादी के लिए प्रांजल और दिव्या मार्केट में शोपिंग के लिए जाते हैं।
शुभम और रूपा घर में प्यार भरी बातें करते हैं और बाजार में शोपिंग करने के लिए जाते हैं।
अब आगे....
उधर दिव्या और प्रांजल भी शॉपिंग कर रही थीं और दोस्त हर्ष का इंतज़ार कर रही थीं।
हर्ष ने मैसेज भेजा था कि मैं आ रहा हूं।
प्रांजल:-"दिव्या, जब हर्ष आएगा तो हम डिनर के लिए चलेंगे।"
दिव्या:-" हमने सारी शॉपिंग कर ली है। अब सिर्फ डिनर ही बाकी है। लेकिन हर्ष अभी तक क्यों नहीं आया? मुझे भूख लगी है। उसे बुलाओ या मैं बुलाऊं?"
प्रांजल:-'नहीं..नहीं..मैं करती हूं।'
ओर प्रांजल ने अपने फ्रेंड हर्ष को फोन किया।
प्रांजल ने हर्ष को फोन करने की कोशिश की लेकिन हर्ष ने प्रांजल का फोन नहीं उठाया।
तुरंत प्रांजल और दिव्या को अपने मोबाइल पर हर्ष का संदेश मिला।
'माफ़ करें.. मैं नहीं आ सकता। मैंने कॉल रिसीव नहीं किया क्योंकि मैं अपनी मां के साथ हूं। मुझे माफ़ करना।माँ के साथ डिनर के लिए होटल जा रहा हूँ। आप लोगों को डिनर कर लेना चाहिए। कल मिलते हैं।'
इस मैसेज को पढ़ने के बाद दोनों ने कहा..ओह..नहीं..
दोनों निराश हो गए।
दिव्या:-'अब डिनर पर चलते हैं।'
प्रांजल:-' भूख भी लगी है। इसके सिवाय चारा कहां है! चलतें है।'
दोनों एक अच्छी रेस्टोरेंट में गये।
अच्छे होटल में खाने का ऑर्डर देने के बाद दिव्या बोली-'मां की डायरी मेरे हाथ आ गई थी।माँ यानी रूपा बुआ।'
प्रांजल:-'हम्म..लेकिन किसी की पर्सनल डायरी मत पढ़ा करो।'
दिव्या:-'वैसे मैं पढ़ती नहीं हूं।किसीके पर्सनल मैसेज भी नहीं पढ़ती। लेकिन मुझे लगता है कि मम्मी ने इसे जानबूझ कर बाहर रखा होगा।डायरी पढ़ने के बाद मुझे पता चला कि मम्मी पापा से बहुत प्यार करती हैं। पिताजी मतलब आपके पिताजी । मैंने अपनी मां को फोन किया। पूना में रहते हैं वे। उन्होंने मेरी सच्चाई बताईं और कहा कि वो तो पालक माता है।मेरी पालक माँ ने मुझे बताया कि रूपा माँ एक कुंवारी माँ बन गई थी ।और तुम रूपा की बेटी हो।इसलिए हमने तुम्हें अपने बच्चे की तरह पाला है।अब तुम बुद्धिमान हो, इसलिए तुम्हें सच्चाई जानने की ज़रूरत है। मेरी माता की बातें सुनकर मुझे आघात लगा था। लेकिन मैंने सच्चाई का स्वीकार कर लिया।डायरी पढ़ने के बाद मुझे पता चला कि रूपा माँ सच में मेरी माँ हैं। और शुभम पापा दोनों कॉलेज के दिनों से प्यार करते थे।'
दिव्या थोड़ी देर के लिए शांत हो गई।
प्रांजल:-'ओह...तो मेरे पापा सच में तुम्हारे भी पापा हैं? लेकिन मेरे पापा किसी का भरोसा तोड़ने वालों में से नहीं हैं, जरूर ऐसा कुछ हुआ होगा...लेकिन..फिर पापा ने मेरी युक्ति मां से शादी क्यों की? अपने प्यार से क्यूं दूर हो गये थे? रूपा आंटी से प्यार करने के बावजूद मेरी माता से क्यूं शादी की थी? शायद पापा की मजबूरी रही होगी।'
दिव्या:-'यही तो मैं कह रही हूं, तुम्हारी मां अपराधी थी, उसे अदालत ने सजा दे दी थी। अपनी प्रेमी को बचाने के लिए अपने पिता को मार डाला था। जो अपने पिता की न हो सकी वह किसकी हो सकती है। लेकिन फिर आपकी माँ की मानसिक स्थिति बिगड़ गई और आपके पिता के अस्पताल में भर्ती कराया गया। आपकी माँ ने आपके पिता को जेल जाने से बचने और सुरक्षित जीवन जीने के लिए तैयार किया था। युक्ति ने ऐसी चाल चली जिसमें पिताजी फंस चुके थे और बदनामी के डर से शादी करनी पड़ी। पापा रूपा मम्मी को बहुत चाहते थे। मम्मी अपने पिताजी के खिलाफ हो कर भी पापा से शादी करना चाहती थी और दोनों तैयार भी हो गये थे लेकिन हालात ऐसे बने कि पापा को तुम्हारी मम्मी युक्ति से शादी करनी पड़ी। आपके जन्म के तीन या चार महीने बाद, एक कमजोर क्षण में, पिताजी और माँ का मिलन हुआ और माँ ने मुझे जन्म दिया। माँ एक साल तक पापा से दूर रहीं। मेरे पालक माता पिता को मुझे दे दिया था। मैं भी यह राज़ नहीं जानती थी।पापा को यह बात दो-तीन दिन पहले पता चली। तुम्हें यह बात मालूम नहीं होगी। वो तो मैंने रूपा मम्मी की डायरी पढ़ी तब पता चला। मम्मी ने अपने प्यार की खातिर अपनी जिंदगी अकेले जी रही थी। अब उनको भी अपने प्यार के साथ जीने का हक़ है। हमने जो किया है वह सही किया है।'
प्रांजल:- 'हां.. मुझे ये तो नहीं पता था लेकिन मुझे ये पता था कि मेरे पापा ने हम दोनों भाई-बहनों को मां और पापा का प्यार दिया है। हाँ.. मैं जानती था कि माँ की मानसिक स्थिति कभी-कभी ख़राब हो जाती थी। उन्होंने खराब मानसिक स्थिति के कारण आत्महत्या कर ली, मुझे अपनी मां की याद नहीं आ रही। मैं अपने शुभम पिताजी को ही अपनी माता पिता की भूमिका निभाते हुए देखा है।'
दिव्या:-'अगर तुम्हें यह पहले पता होता तो तुम मेरी दोस्ती तोड़ दोगी, है ना! यह बात जानकर मैं पिताजी से नफरत नहीं करती थी ।पिताजी एक नेक इंसान हैं। हम दोनों बहनें हैं।'
प्रांजल कुछ गंभीर हो गयी.
फिर बोली, 'दीदी, मुझे माफ कर दो, तुम मुझसे भी ज्यादा दृढ़ हो। स्थिति को समझ सकती हो ,अब मेरे मन में ऐसे कोई विचार नहीं आएंगे। हम दोनों बहनें ही है।'
उस समय भोजन ऑर्डर के अनुसार आया।
( आखिरी भाग में क्या कुछ होने वाला है? कौनसी अनहोनी होने वाली है? जानने के लिए पढ़िए मेरी धारावाहिक कहानी)
- कौशिक दवे