एपिसोड 30:डर और हकीकत का सामना
रहस्यमयी मैसेज का डर
समीरा देर रात तक जागती रही। वह मैसेज को बार-बार पढ़ रही थी –
"मुझे भूल मत जाना... मैं लौट आया हूँ।"
यह सिर्फ एक इत्तेफाक हो सकता है, लेकिन उसके दिल को यकीन था कि यह राहुल ही हो सकता है।
अगली सुबह उसने खुद को शांत किया और ऑफिस जाने की तैयारी करने लगी। लेकिन डर अभी भी उसके मन में था। उसने विजय को इस बारे में बताने का सोचा, लेकिन फिर खुद को रोक लिया। वह नहीं चाहती थी कि कोई उसे कमजोर समझे।
ऑफिस में बेचैनी
ऑफिस में भी समीरा का ध्यान भटका हुआ था। विजय ने यह महसूस किया और ब्रेक के दौरान समीरा के पास आया।
"सब ठीक है?" उसने चिंतित स्वर में पूछा।
"हाँ, बस नींद पूरी नहीं हुई," समीरा ने मुस्कुराने की कोशिश की।
विजय को यकीन नहीं हुआ, लेकिन उसने ज्यादा पूछना ठीक नहीं समझा।
एक अजनबी की परछाईं
शाम को जब समीरा घर लौट रही थी, तो उसे फिर वही अजीब सा अहसास हुआ – कोई उसका पीछा कर रहा था। उसने तेजी से चलना शुरू किया, लेकिन हर बार जब वह मुड़कर देखती, कोई नजर नहीं आता।
"यह सब सिर्फ मेरा वहम है," उसने खुद को समझाने की कोशिश की।
लेकिन जैसे ही वह अपने अपार्टमेंट के गेट तक पहुँची, उसके फोन पर फिर से मैसेज आया –
"तुम जितना भागोगी, मैं उतना पास आऊँगा।"
अब उसके सब्र का बांध टूट चुका था। उसने तुरंत विजय को कॉल किया।
"मुझे तुमसे मिलना है, अभी," समीरा की आवाज़ घबराई हुई थी।
"क्या हुआ? तुम ठीक तो हो?"
"बस मिलो मुझसे।"
राहुल की चालें
दूसरी ओर, राहुल समीरा को डराने के अपने इरादे में कामयाब हो रहा था। वह चाहता था कि समीरा खुद उसके पास आए।
"देखता हूँ, कब तक मुझसे बचती है," राहुल ने मुस्कुराते हुए कहा।
योगेश ने उसे चेताया, "संभल कर, ज्यादा जल्दबाजी मत कर। पुलिस की नजर फिर से हम पर आ सकती है।"
"इस बार मैं ऐसा कोई सबूत नहीं छोड़ूँगा," राहुल ने आत्मविश्वास से कहा।
सच का सामना
विजय और समीरा एक कैफे में मिले। समीरा ने बिना देर किए विजय को सबकुछ बता दिया – रहस्यमयी मैसेज, पीछा किए जाने की फीलिंग और राहुल की रिहाई की संभावना।
विजय का चेहरा गुस्से से भर गया।
"यह बर्दाश्त से बाहर है! हमें पुलिस को बताना चाहिए।"
"नहीं विजय, अभी नहीं। मेरे पास कोई ठोस सबूत नहीं है," समीरा ने कहा।
"लेकिन तुम अकेली यह सब झेल नहीं सकती। मैं तुम्हारे साथ हूँ, और अगर राहुल फिर से तुम्हारी जिंदगी में दखल देने की कोशिश करेगा, तो उसे मुझसे सामना करना पड़ेगा।"
समीरा ने पहली बार राहत की सांस ली। अब उसे यकीन था कि वह अकेली नहीं थी।
खतरे का बढ़ता साया
अगले कुछ दिनों तक समीरा ने कोशिश की कि वह सामान्य रहे, लेकिन उसे हर वक्त ऐसा लगता जैसे कोई उसकी हर हरकत पर नजर रख रहा हो। उसने अपने आसपास के माहौल को पहले से ज्यादा ध्यान से देखना शुरू कर दिया।
एक दिन जब वह ऑफिस से घर लौट रही थी, तभी एक काले रंग की गाड़ी बार-बार उसके सामने आकर धीमी हो रही थी। उसका दिल तेजी से धड़कने लगा। वह तेजी से चलने लगी, लेकिन तभी गाड़ी रुकी और शीशा नीचे हुआ।
"कहाँ भाग रही हो, समीरा?" अंदर से राहुल की आवाज़ आई।
समीरा का शरीर सुन्न पड़ गया। राहुल वापस आ गया था – और इस बार वह खुलेआम उसके सामने था।
सामना या भागना?
समीरा ने खुद को मजबूत किया और बिना घबराए सीधे उसकी आँखों में देखा।
"तुम यहाँ क्या कर रहे हो?" उसने सख्ती से पूछा।
राहुल हँस पड़ा, "बस तुम्हें देखने आया था। इतने साल हो गए, पर तुम अब भी उतनी ही खूबसूरत लगती हो।"
"मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी," समीरा ने कहा और आगे बढ़ने लगी।
"लेकिन मुझे करनी है," राहुल ने उसका रास्ता रोक लिया। "क्या तुम्हें मुझसे डर नहीं लगता?"
समीरा ने गहरी सांस ली और कहा, "नहीं, अब नहीं। मैं तुमसे नहीं डरती।"
राहुल को यह जवाब पसंद नहीं आया। उसने समीरा का हाथ पकड़ने की कोशिश की, लेकिन तभी विजय वहाँ आ गया।
"हाथ हटाओ उससे, राहुल!" विजय की आवाज़ गूंज उठी।
राहुल ने विजय को घूरा, फिर मुस्कुराया, "अरे वाह! तो अब बॉडीगार्ड भी मिल गया है? चलो ठीक है, देखते हैं कब तक साथ देता है।"
यह कहकर राहुल गाड़ी में बैठा और वहाँ से चला गया, लेकिन जाते-जाते उसने एक और मैसेज भेज दिया –
"खेल अभी शुरू हुआ है, समीरा... जल्द ही मिलते हैं।"
समीरा ने फोन की स्क्रीन देखी और विजय की ओर देखा। अब उसे यकीन हो गया था कि यह लड़ाई सिर्फ उसके अकेले की नहीं थी। विजय ने उसकी ओर देखा और कहा, "अब हम इसे खत्म करके ही रहेंगे।"
(अगले एपिसोड में जारी...)