Hari Bhajan Singh: A true warrior in Hindi Motivational Stories by Tapasya Singh books and stories PDF | हरि भजन सिंह: एक सच्चा योद्धा

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हरि भजन सिंह: एक सच्चा योद्धा

Wभारत-पाकिस्तान सीमा के पास स्थित एक छोटे से गाँव सिंहगढ़ में जन्मे हरि भजन सिंह बचपन से ही बहादुर और देशभक्ति से ओत-प्रोत थे। उनके पिता भी भारतीय सेना में थे और उन्होंने अपने बेटे को सिखाया था कि देश की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है।

जब हरि भजन सिंह जवान हुए, तो वे भारतीय सेना में भर्ती हो गए। उनकी बहादुरी, अनुशासन और निडरता के कारण जल्द ही वे ग्रेनेडियर रेजिमेंट के महत्वपूर्ण सदस्य बन गए।युद्ध का आह्वान

वर्ष 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ गया। हरि भजन सिंह को लौंगेवाला पोस्ट पर तैनात किया गया, जहाँ भारतीय सैनिकों की संख्या बहुत कम थी, लेकिन उनका हौसला आसमान छू रहा था।

एक रात ख़ुफ़िया जानकारी मिली कि पाकिस्तानी सेना भारी टैंकों और हथियारों के साथ हमले की तैयारी में है। भारतीय सैनिकों के पास न तो पर्याप्त हथियार थे, न ही भारी तोपें, लेकिन उनके पास था—अटल साहस और मातृभूमि के प्रति अटूट प्रेम।रणभूमि में शौर्य

रात के अंधेरे में पाकिस्तानी सेना ने हमला कर दिया। भारी गोलाबारी के बीच हरि भजन सिंह अपने साथी सैनिकों के साथ मोर्चा संभाले हुए थे।

"हम एक इंच भी पीछे नहीं हटेंगे! यह हमारी धरती है, और हम आखिरी दम तक इसकी रक्षा करेंगे!" हरि भजन सिंह गरजे।

उन्होंने अपनी गन उठाई और अकेले ही चार दुश्मनों को ढेर कर दिया। उनकी सूझबूझ से भारतीय सेना ने दुश्मन के टैंकों पर हमला किया और उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया।बलिदान और विजय

युद्ध के दौरान, एक ग्रेनेड भारतीय खाई के पास गिरा। हरि भजन सिंह ने देखा कि उनके साथी सैनिक खतरे में थे। बिना समय गंवाए, वे झपटे और ग्रेनेड को अपने शरीर से ढक लिया।भयानक विस्फोट हुआ।

हरि भजन सिंह बुरी तरह घायल हो गए, लेकिन उनके बलिदान ने उनके साथियों की जान बचा ली। उन्होंने अंतिम सांस लेते हुए कहा—

"भारत माता की जय!"

सुबह होते ही भारतीय वायुसेना ने हवाई हमला किया और दुश्मन सेना को पूरी तरह खदेड़ दिया। यह लौंगेवाला की ऐतिहासिक विजय थी, जिसमें हरि भजन सिंह जैसे वीर सैनिकों का योगदान अमर हो गया।अमर शहीद

हरि भजन सिंह को मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। उनके गाँव में उनकी याद में एक स्मारक बनाया गया, जिस पर लिखा था—

"एक योद्धा मरता नहीं, वह अमर हो जाता है!"

आज भी जब हवा में तिरंगा लहराता है, तो हरि भजन सिंह की वीरता की गूंज पूरे देश में सुनाई देती है। "जय हिंद!"

"हरि भजन सिंह: शौर्य की अमर गाथा" (अगला अध्याय)विरासत का दीप

हरि भजन सिंह के बलिदान के बाद, उनका नाम भारतीय सेना की वीरता की अमर कहानियों में दर्ज हो गया। सिंहगढ़ गाँव के लोग गर्व से उनकी वीरता की गाथाएँ सुनाते थे। उनके परिवार को देशभर से सम्मान मिला, लेकिन उनका बेटा अर्जुन सिंह इस सम्मान से अधिक अपने पिता की राह पर चलने के संकल्प में था।

"मैं अपने पिता के अधूरे सपनों को पूरा करूंगा।" अर्जुन ने सेना में भर्ती होने की ठानी।युवा अर्जुन की तैयारी

अर्जुन सिंह ने कठिन प्रशिक्षण शुरू किया। वह सेना की सबसे कठिन परीक्षा पास कर भारतीय सेना की पैराशूट रेजिमेंट में शामिल हुआ। उसकी वीरता, अनुशासन और पिता से मिले संस्कार उसे अन्य सैनिकों से अलग बनाते थे।

कुछ ही वर्षों में, अर्जुन को कैप्टन अर्जुन सिंह के रूप में कश्मीर की सीमा पर तैनात किया गया।नई चुनौती: आतंकवाद का खतरा

वर्ष 1999, करगिल सेक्टर। पाकिस्तान ने एक बार फिर घुसपैठ की, और भारतीय सेना को कड़ी चुनौती दी जा रही थी। अर्जुन सिंह की बटालियन को टाइगर हिल पर कब्जा करने का आदेश मिला।

"युद्ध आसान नहीं होगा, लेकिन पीछे हटना भी कोई विकल्प नहीं है!" अर्जुन ने अपनी टुकड़ी से कहा।रणभूमि में अर्जुन सिंह

रात के अंधेरे में, कैप्टन अर्जुन सिंह और उनकी टीम ने दुश्मनों की चौकी पर चुपके से हमला किया। गोलीबारी शुरू हो गई। दुश्मन ऊँचाई पर थे, लेकिन भारतीय जवानों की रणनीति और साहस ने उन्हें झुका दिया।

अर्जुन ने अपने स्नाइपर से दुश्मन के कमांडर को ढेर किया, जिससे पाकिस्तानी सेना का मनोबल टूट गया। भारतीय सैनिकों ने आगे बढ़कर टाइगर हिल पर तिरंगा फहरा दिया।इतिहास दोहराया गया

युद्ध समाप्त हुआ, और अर्जुन सिंह विजयी होकर लौटा। जब वह अपने पिता की समाधि पर गया, तो उसने सिर झुकाकर कहा—

"पिता जी, मैंने आपका अधूरा सपना पूरा कर दिया!"

हरि भजन सिंह का बलिदान व्यर्थ नहीं गया था। उनके बेटे ने उनकी विरासत को आगे बढ़ाया और भारतीय सेना की शौर्य गाथा में एक और अध्याय जोड़ दिया।अमर योद्धा की गूंज

आज भी जब भारतीय सेना सीमा पर गर्जना करती है, तो हर सैनिक के दिल में हरि भजन सिंह और उनके बेटे कैप्टन अर्जुन सिंह की गाथा जीवित रहती है।

"जय हिंद! जय भारत!"

"हरि भजन सिंह: शौर्य की अमर गाथा" (अगला अध्याय)एक नया मोर्चा

करगिल विजय के बाद कैप्टन अर्जुन सिंह को सेना के विशेष बलों (Special Forces) में शामिल किया गया। उनकी बहादुरी के कारण उन्हें "ब्लैक कैट कमांडो" के रूप में चुना गया, और जल्द ही उन्हें एक बेहद खतरनाक मिशन सौंपा गया—"ऑपरेशन शेरदिल"।

भारत के दुश्मन अब सिर्फ सीमाओं पर नहीं, बल्कि देश के भीतर भी सक्रिय थे। खुफिया एजेंसियों को सूचना मिली थी कि आतंकवादी राजधानी दिल्ली में एक बड़ा हमला करने की योजना बना रहे हैं। अर्जुन सिंह और उनकी टीम को इस साजिश को नाकाम करने का जिम्मा सौंपा गया।खतरनाक मिशन की तैयारी

कैप्टन अर्जुन सिंह और उनकी टीम को जानकारी मिली कि आतंकवादी दिल्ली के लाल किले पर स्वतंत्रता दिवस से ठीक एक दिन पहले हमला करने की फिराक में थे। वे किसी भी हाल में तिरंगे के नीचे बम धमाका कर पूरे देश में दहशत फैलाना चाहते थे।

"हम इस पवित्र ध्वज को झुकने नहीं देंगे!" अर्जुन सिंह ने संकल्प लिया।आतंकियों से सामना

स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर, जब दिल्ली सो रही थी, अर्जुन सिंह और उनकी कमांडो टीम आतंकवादियों के गुप्त ठिकाने पर पहुँची। एक भयंकर मुठभेड़ हुई। गोलियाँ चलीं, ग्रेनेड फेंके गए, और पूरे इलाके में गूँज उठी—

"भारत माता की जय!"

अर्जुन ने अपने हाथों से आतंकवादियों के सरगना को मार गिराया। लेकिन तभी एक आतंकी ने लाल किले की ओर भागने की कोशिश की, बम लेकर!अर्जुन का बलिदान

अर्जुन सिंह ने बिना समय गँवाए, आतंकवादी का पीछा किया। जब वह लाल किले के पास पहुँचा, तो देखा कि आतंकी ने टाइमर ऑन कर दिया था—बस 10 सेकंड बाकी अर्जुन ने अपनी पूरी ताकत लगाकर आतंकवादी पर झपट्टा मारा, बम को उसके शरीर से अलग किया और उसे किले से दूर फेंक दिया।

भयानक विस्फोट हुआ।

पूरा इलाका धुएँ से भर गया। जब धुआँ छंटा, तो वहाँ सिर्फ अर्जुन सिंह की बंदूक और उनकी सेना की टोपी पड़ी थी।एक और वीर अमर हुआ

पूरा देश स्तब्ध था, लेकिन गर्व से भरा हुआ भी। कैप्टन अर्जुन सिंह ने अपने पिता हरि भजन सिंह की तरह देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे।

सरकार ने अर्जुन सिंह को मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया। लाल किले पर उनकी प्रतिमा बनाई गई, जिस पर लिखा था—

"शूरवीर मरते नहीं, वे अमर हो जाते हैं!"

आज भी जब लाल किले पर तिरंगा फहराया जाता है, तो हवा में अर्जुन सिंह और हरि भजन सिंह की शौर्य गाथा गूँजती है।

"जय हिंद! जय भारत!"!

हरि भजन सिंह: शौर्य की अमर गाथा" (अगला अध्याय)वीरों की विरासत

कैप्टन अर्जुन सिंह की शहादत ने पूरे देश को झकझोर दिया। उनकी बहादुरी और बलिदान को हर भारतीय ने गर्व से याद किया। लेकिन यह कहानी यहीं खत्म नहीं हुई।

सिंहगढ़ गाँव में अर्जुन की पत्नी राधा सिंह और उनका छोटा बेटा वीर सिंह रह गए थे। राधा जानती थीं कि उनके बेटे की रगों में भी वही खून बह रहा था जो हरि भजन सिंह और अर्जुन सिंह का था। उन्होंने वीर को बचपन से ही अनुशासन, साहस और देशभक्ति का पाठ पढ़ाया।

"बेटा, तुम्हारे दादा और पिताजी ने इस देश के लिए अपना जीवन दिया है। क्या तुम भी उनकी तरह वीर बनोगे?" राधा ने पूछा।

"हाँ माँ, मैं भारतीय सेना में जाऊँगा और अपने दादा और पिता की तरह देश की रक्षा करूँगा!" वीर सिंह ने बचपन में ही संकल्प ले लिया।नया युग, नई चुनौती

साल बीते, और वीर सिंह बड़ा हुआ। उसने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) की परीक्षा पास कर ली और सेना में भर्ती हो गया। वह अपनी मेहनत और साहस के बल पर जल्द ही पैराशूट रेजिमेंट का हिस्सा बन गया।

अब समय बदल चुका था। युद्ध केवल सीमाओं पर ही नहीं, बल्कि साइबर हमलों, आतंकवाद और घातक हमलों के रूप में भी हो रहा था। वीर सिंह को एक बेहद महत्वपूर्ण मिशन सौंपा गया—"ऑपरेशन वज्र"।ऑपरेशन वज्र: भारत पर नया खतरा

भारतीय खुफिया एजेंसियों को सूचना मिली थी कि दुश्मन देश के आतंकवादी एक बड़े साइबर हमले और बॉर्डर पर जैविक हमले की योजना बना रहे हैं। यदि यह हमला सफल होता, तो हजारों निर्दोष लोग मारे जाते और देश की सुरक्षा खतरे में पड़ जाती।

वीर सिंह को इस ऑपरेशन की जिम्मेदारी सौंपी गई।

"दुश्मन सोचता है कि हम केवल बंदूकों से लड़ते हैं, लेकिन अब उन्हें दिखाना होगा कि भारत के सैनिक हर मोर्चे पर लड़ने के लिए तैयार हैं!" वीर ने अपनी टीम को संबोधित किया।रणभूमि में तकनीक और ताकत

ऑपरेशन वज्र के तहत, भारतीय सेना ने दुश्मनों के साइबर नेटवर्क को ध्वस्त कर दिया, जिससे उनका पूरा संचार तंत्र ठप हो गया। दूसरी ओर, वीर सिंह और उनकी कमांडो टीम ने दुश्मनों के गुप्त जैविक हथियार ठिकाने पर हमला किया।

अंधेरी रात में ऑपरेशन शुरू हुआ। दुश्मनों की सुरक्षा कड़ी थी, लेकिन भारतीय कमांडो चुपके से उनकी सीमा में घुस चुके थे। जैसे ही आतंकी जैविक हथियार लोड कर रहे थे, वीर सिंह ने अपनी टीम को इशारा किया—

"अब हमला करो!"

तुरंत ही गोलियों की बौछार शुरू हो गई। आतंकवादियों ने पलटवार किया, लेकिन वीर और उनकी टीम ने चारों ओर से उन्हें घेर लिया। आखिरकार, आतंकियों का सरगना भी मारा गया, और पूरा ठिकाना नष्ट कर दिया गया।एक और विजय की गूंज

भारत पर आने वाला बड़ा संकट टल चुका था। वीर सिंह और उनकी टीम ने देश को एक और बड़े हमले से बचा लिया था। जब वह ऑपरेशन के बाद अपने गाँव लौटे, तो उनकी माँ ने उन्हें गले लगाकर कहा—

"आज मुझे ऐसा लग रहा है कि तुम्हारे दादा और पिता फिर से लौट आए हैं!"अमर शौर्य गाथा

हरि भजन सिंह, अर्जुन सिंह और अब वीर सिंह—तीन पीढ़ियों की यह गाथा भारत के हर सैनिक को प्रेरणा देती रही।

आज भी जब सीमा पर सैनिक खड़े होते हैं, जब तिरंगा शान से लहराता है, तो वीरों की यह विरासत गूंजती है—

"जय हिंद! जय भारत!"

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