Shaheed-e-Azam Bhagat Singh: The Saga of an Immortal Revolution in Hindi Motivational Stories by Tapasya Singh books and stories PDF | शहीद-ए-आज़म भगत सिंह: एक अमर क्रांति की गाथा

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शहीद-ए-आज़म भगत सिंह: एक अमर क्रांति की गाथा

:शहीद-ए-आज़म भगत सिंह: एक अमर क्रांति की गाथा

साल 1907, पंजाब के बंगा गांव में एक बच्चे का जन्म हुआ, जिसने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अपने बलिदान से इतिहास रच दिया। वह बच्चा था भगत सिंह, जिसे आगे चलकर "शहीद-ए-आज़म" के नाम से जाना गया। उनके पिता किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े थे, जिसके कारण बचपन से ही उनके मन में देशभक्ति की भावना जाग्रत हो गई थी।बचपन और देशभक्ति की पहली सीख

भगत सिंह ने अपने पिता और चाचा से अंग्रेजों के अत्याचारों की कहानियाँ सुनी थीं। जब जलियांवाला बाग हत्याकांड (1919) हुआ, तब भगत सिंह मात्र 12 वर्ष के थे। हज़ारों निर्दोष लोगों की हत्या से वे व्यथित हो उठे। अगले ही दिन वे अपने स्कूल से भागकर जलियांवाला बाग पहुंचे और वहाँ की मिट्टी को चूमकर प्रतिज्ञा की कि वे अंग्रेजों से अपने देश का बदला लेंगे।क्रांतिकारी विचारधारा की ओर कदम

भगत सिंह की प्रारंभिक शिक्षा लाहौर के डीएवी स्कूल में हुई। वे पढ़ाई में तेज़ थे, लेकिन उनका झुकाव किताबों की ओर अधिक था। वे कार्ल मार्क्स, लेनिन, और महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित थे। हालांकि, जब गांधीजी ने असहयोग आंदोलन (1921) को वापस लिया, तो वे गांधीजी की अहिंसावादी नीति से असहमत हुए और क्रांतिकारी मार्ग अपनाने का निर्णय लिया।क्रांति की राह

लाहौर में रहकर भगत सिंह ने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) से जुड़ गए, जिसे बाद में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) नाम दिया गया। इस संगठन का उद्देश्य था, "क्रांति के माध्यम से स्वतंत्रता"।लाला लाजपत राय की शहादत का बदला

1928 में साइमन कमीशन का विरोध किया गया, जिसमें लाला लाजपत राय पर पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट ने लाठियां बरसाईं, जिससे उनकी मृत्यु हो गई। भगत सिंह और उनके साथियों ने स्कॉट को मारने की योजना बनाई, लेकिन गलती से जॉन सॉन्डर्स को मार दिया। इसके बाद वे फरार हो गए और कुछ समय तक छिपे रहे।दिल्ली असेंबली में बम विस्फोट

8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की केंद्रीय असेंबली में बम फेंका। इस हमले का उद्देश्य किसी को मारना नहीं था, बल्कि ब्रिटिश सरकार को एक चेतावनी देना था। उन्होंने नारे लगाए— "इंकलाब ज़िंदाबाद!" और फिर स्वयं को गिरफ़्तार करवा लिया।जेल में संघर्ष और विचारधारा

भगत सिंह को लाहौर जेल में रखा गया, जहां उन्होंने जेल में क्रांतिकारियों के साथ अमानवीय व्यवहार का विरोध किया। उन्होंने कैदियों के अधिकारों और बेहतर भोजन की मांग को लेकर भूख हड़ताल शुरू की, जो 116 दिनों तक चली। इस दौरान उन्होंने कई पत्र लिखे, जिनमें उनके समाजवादी विचार स्पष्ट रूप से दिखाई दिए।फांसी और अमरता

7 अक्टूबर 1930 को ब्रिटिश सरकार ने भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई। 23 मार्च 1931, रात 7:30 बजे, इन तीनों वीरों को फांसी दे दी गई। लेकिन वे मरकर भी अमर हो गए।

फांसी से पहले भगत सिंह ने कहा था:"आप मुझसे मेरी जिंदगी छीन सकते हैं, लेकिन मेरे विचारों को नहीं। मैं चाहता हूं कि हर इंसान बगावत करे, अन्याय के खिलाफ खड़ा हो!"निष्कर्ष

भगत सिंह मात्र 23 वर्ष की आयु में शहीद हो गए, लेकिन उनकी विचारधारा आज भी जीवित है। उन्होंने सिद्ध किया कि स्वतंत्रता केवल याचना से नहीं मिलती, बल्कि इसके लिए संघर्ष करना पड़ता है। उनका बलिदान हर युवा को प्रेरित करता रहेगा और उनका नाम सदैव "शहीद-ए-आज़म" के रूप में अमर रहेगा।

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सिंह का प्रभाव और विरासत

भगत सिंह केवल एक क्रांतिकारी नहीं थे, बल्कि वे एक विचारधारा थे। उनका सपना था कि भारत केवल अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त न हो, बल्कि हर नागरिक को समानता, न्याय और स्वतंत्रता मिले। उन्होंने समाजवाद और समानता का समर्थन किया और जाति-धर्म से ऊपर उठकर एक नए भारत की कल्पना की।स्वतंत्रता संग्राम पर प्रभाव

भगत सिंह और उनके साथियों की शहादत ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में नई ऊर्जा भर दी। उनकी फांसी के बाद देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए, और युवाओं के बीच क्रांति की भावना और तेज़ हो गई। कांग्रेस, जो पहले केवल अहिंसा का मार्ग अपना रही थी, अब और अधिक आक्रामक हो गई।

महात्मा गांधी ने भी स्वीकार किया कि भगत सिंह की लोकप्रियता इतनी अधिक थी कि अगर उन्होंने उनके लिए संघर्ष किया होता, तो पूरा देश उनके समर्थन में खड़ा हो जाता।भगत सिंह के विचार

भगत सिंह सिर्फ बंदूक उठाने वाले क्रांतिकारी नहीं थे, बल्कि वे एक विचारशील नेता थे। जेल में रहते हुए उन्होंने कई किताबें पढ़ीं और लेख लिखे। उनके कुछ प्रमुख विचार इस प्रकार हैं:धर्म और अंधविश्वास से ऊपर उठना – उन्होंने कहा था कि "ईश्वर में विश्वास करना व्यक्ति की निजी पसंद हो सकती है, लेकिन सच्चा इंसान वही है जो अपने विवेक से काम करे।"समानता और समाजवाद – वे चाहते थे कि भारत में हर व्यक्ति को शिक्षा, रोजगार और सम्मान मिले।क्रांति का सही अर्थ – उनका मानना था कि "क्रांति का मतलब सिर्फ हथियार उठाना नहीं, बल्कि समाज में बदलाव लाना है।"नौजवानों की भूमिका – उन्होंने युवाओं से अपील की थी कि वे सिर्फ अपने करियर के बारे में न सोचें, बल्कि देश और समाज के लिए भी काम करें।भगत सिंह की विरासत

आज भी भगत सिंह के विचार भारतीय युवाओं को प्रेरित करते हैं। उनके नाम पर कई सड़कें, विश्वविद्यालय और स्मारक बनाए गए हैं। शहीद भगत सिंह विश्वविद्यालय, दिल्ली और शहीद भगत सिंह अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, चंडीगढ़ उन्हीं के नाम पर हैं।

फिल्में और किताबें:उनके जीवन पर कई फ़िल्में और किताबें बनी हैं, जैसे:"द लेजेंड ऑफ भगत सिंह" (फिल्म)"शहीद" (फिल्म)"भगत सिंह के दस्तावेज़" (किताब)अंतिम संदेश

भगत सिंह का जीवन हमें यह सिखाता है कि त्याग, साहस और दृढ़ संकल्प से हम किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने सिर्फ अंग्रेजों से आज़ादी के लिए लड़ाई नहीं लड़ी, बल्कि एक ऐसे भारत की नींव रखी, जहां समानता, न्याय और स्वतंत्रता हो।

"वे हमें मार सकते हैं, लेकिन हमारे विचारों को नहीं। क्रांति जिंदा रहेगी!"

आज भी जब भी अन्याय और शोषण के खिलाफ आवाज़ उठती है, तब भगत सिंह के शब्द गूंजते हैं:

"इंकलाब जिंदाबाद!"