जंगल में अंधेरी रात को ध्रुव अपनी साधना में लगा हुआ था उस रात साधना का आठवां दिन था और जो साधना वह कर रहा था उसे सिद्ध करने का समय नौवा दिन का था लगातार मंत्र जाप करते हुए वह साधना कर रहा था उसे ऐसा लग रहा था जैसे कि उसके आसपास न जाने कितने जंगली जानवर गुर्रा रहे हो और उसके शरीर पर रेंग रहे हो उसकी गर्दन में अजीब सी घुटन महसूस हो रही मानो किसी ने उसकी गर्दन पकड़ रखी हो इतना सब कुछ होने के बाद भी वह साधना किए जा रहा था उसके मन में सिर्फ एक ही स्त्री थी मृगनैनी जिसे वह सिद्ध करना चाहता था और उसे विश्वास था कि वह उसे पत्नी के रूप में सिद्ध कर ही लेगा वह कोई आम स्त्री नहीं थी यक्षिणी थी यक्षिणी जिसे न जाने कितने साधक सिद्ध करना चाहते हैं। उसने बचपन से ही उसकी कहानियां सुनी थी कि वो कितनी सुंदर होती है और सारी मुराद पूरी करती है लेकिन लोगों का यह भी कहना था कि उसे सिद्ध करना आसान है पर प्रसन्न रखना नहीं अगर वह नाराज हो जाए तो किसी को भी बर्बाद कर सकती है तभी से ना जाने यक्षिणी से उसे प्रेम कैसे हो गया वह तब से उसे प्राप्त करना चाहता था और इसीलिए बिना किसी गुरु के मार्गदर्शन के ही उसने वह साधना शुरू कर दी तब उसकी उम्र करीब 36 साल की थी उसका विवाह भी नहीं हुआ था क्योंकि उसने विवाह करना ही नहीं चाहा उसकी मां बहन और बाबा सब उसके विवाह के पीछे पड़े हुए थे लेकिन उसने कभी उनकी बात नहीं मानी साधना करते समय उसे अजीब सी चीजें महसूस हो रही थी कानों में किसी के पायल की आवाज सुनाई दे रही थी ऐसा लग रहा था जैसे कि उसके चारों तरफ कोई घूम रहा हो बीच बीच में उसे ऐसा लगा जैसे कोई उसे छू रहा हो उसी के साथ उसे एक मधुर सी हंसी भी सुनाई दी और तब उसका मन किया कि वह आंखें खोलकर उसे देख ले लेकिन साधना से पहले यह करना उचित नहीं था इसलिए वह मंत्र का जाप करता गया कुछ घंटों के बाद दसवें दिन की साधना खत्म हो गई। और उसने आंखें खोली तो वहां कोई नहीं था साधना करके वह अपने साधना स्थल पर ही लेट गया और कब उसे नींद आ गई। पता ही नहीं चला रात के करीब एक या दो बज रहे होंगे जब उसे कुछ अजीब सा सपना आया उसने अपने सपने में एक स्त्री को लाल रंग की साड़ी पहने हुए देखा वह उसकी तरफ पीठ करके बैठी हुई थी इसलिए उसका चेहरा दिखाई नहीं दिया उसने उसे आवाज दी कौन हो तुम वह बिना पीछे मुड़े ही हंसने लगी और बोली वही जिसे तुम बचपन से पाना चाहते थे मैं वही हूं उसकी बात सुनकर ध्रुव हैरान हो गया फिर समझ गया कि वह रति प्रिय ही है ध्रुव खुश होकर उससे कहा तुम आ गई। वह हंसने लगी और बोली अभी नहीं तुमने अभी मुझे सिद्ध नहीं किया है लेकिन तुम्हारी जिद्द देखकर लगता है कि तुम मुझे सिद्ध कर ही लोगे यह कहकर ना जाने वह कहां गायब हो गई। और उसी वक्त ध्रुव की आंखें खुली वह जमीन पर लेटा हुआ था उस गोल घेरे के बाहर से उसे झाड़ियों के हिलने की आवाज आ रही थी उसने सोचा कि कोई जानवर होगा और फिर वह वापस सो गया फिर अगले दिन शाम को ध्रुव वापस सारी तैयारी करके साधना करने में व्यस्त हो गया आंखें बंद करके वह मंत्र जाप कर रहा था कि तभी किसी ने उसके कंधे पर अपना हाथ रखा जिसके स्पर्श से उसके शरीर का रोम रोम खड़ा हो गया वह हाथ बहुत ही कोमल थे और उसकी पूरी पीठ पर घूम रहे थे मंत्र जाप में कोई दिक्कत ना आए उसके लिए उसने अपने मन को उस स्पर्श के एहसास से हटने का प्रयास किया लेकिन जैसे जैसे वह हाथ उसे छू रहे थे वैसे वैसे वह अपने आप पर से काबू खोता जा रहा था साधना पूरी करने के लिए उसे एक बार और मंत्र का जाप करना था कि तभी उसे ऐसा लगा जैसे कि कोई उसकी गोद में बैठ गया हो और उसने ध्रुव को जोर से थापड़ मारा हो ध्रुव ने ऐसा कुछ होने की कल्पना नहीं की थी लेकिन फिर भी उसने मंत्र जाप करना नहीं बंद किया फिर उसे पूरे शरीर में अजीब सा दर्द महसूस होने लगा कोई ध्रुव को बुरी तरह से खरोच रहा था और उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि जैसे उसके सीने से खून बह रहा हो उस दर्द में भी उसने साधना नहीं बंद की शायद इसलिए क्योंकि उस पर मृगनैनी के लिए पागलपन सवार हो गया था फिर किसी ने जोर से उसके बाल खींचे और अजीब सी आवाजें निकालने लगा जैसे कि वह बहुत उत्तेजित हो वह आवाज एक औरत की थी और ध्रुव समझ गया था कि वह मृगनैनी ही है और मंत्र जाप खत्म हो तक उसे साधना किसी भी हालत में नहीं बंद करनी है वरना वह उसे सिद्ध नहीं कर पाएगा काफी समय तक वह ध्रुव को उत्तेजित करने की कोशिश करती रही जैसे जैसे उसका शरीर ध्रुव के शरीर से स्पर्श हो रहा था ध्रुव समझ पा रहा था कि उसने ज्यादा कपड़े नहीं पहने हुए और वही उसे सबसे ज्यादा परेशानी में डाल रही थी क्योंकि जाप करने में उसे परेशानी हो रही थी लेकिन किसी तरह उसने खुद पर काबू रख करीब तीन से चार घंटे तक उसके साथ वही सब होता रहा और फिर आखिरकार उसने मंत्रों की आहुति दे दी तभी ध्रुव को मृगनैनी के हंसने की आवाज सुनाई दी और उसने कहा बहुत अच्छे तुम्हारी इस साधना ने मुझे दिल से प्रसन्न कर दिया है ध्रुव तुमने मुझे सिद्ध कर लिया ध्रुव ने अपनी आंखें खोली और उसने दुनिया की सबसे खूबसूरत स्त्री को अपने सामने पाया वह बेहद सुंदर थी लंबे बाल सुंदर आंखें कोमल होठ और कोमल सुंदर शरीर कोई कमी नहीं थी उस स्त्री में ध्रुव उसे देखकर बेसुध हो गया था और चौक कर उसे देख रहा था इसलिए उसके चेहरे का भाव देखकर मृगनैनी हंसने लगी और उसने कहा क्या हुआ विश्वास नहीं हो रहा कि तुमने मुझे सिद्ध कर लिया ध्रुव ने कहा मैंने जब से तुम्हारे बारे में सुना था तब से तुम्हें सिद्ध करना चाहता था तुमसे विवाह करना चाहता था वह हंसी और बो हां जरूर करूंगी लेकिन पहले मेरी कुछ शर्तें हैं। जो तुम्हें माननी होगी ध्रुव ने कहा मुझे तुम्हारी हर शर्त मंजूर है कहो क्या चाहिए उसने कहा तुम्हें अभी इसी वक्त मुझसे विवाह करना होगा ध्रुव अपने परिवार के सामने उससे विवाह करना चाहता था लेकिन फिर भी ध्रुव ने उसकी बात मान ली उसने कहा मेरी दूसरी शर्त यह है कि मैं तुम्हें पत्नी के रूप में सिद्ध हो रही हूं इसलिए मेरे अलावा तुम किसी पराई स्त्री को नहीं देखोगे और मेरी तीसरी शर्त यह है कि मैं कौन हूं यह तुम्हारे अलावा किसी और को कभी पता नहीं चलना चाहिए ध्रुव बहुत खुश था उसने कहा मंजूर है मुझे तुम्हारी हर शर्त मंजूर है फिर दोनों ने उसी समय विवाह कर लिया ध्रुव को विश्वास नहीं हो रहा था कि उसने सच में मृगनैनी को प्राप्त कर लिया है फिर ध्रुव ने कहा अब हमें घर जाना चाहिए मेरे परिवार वाले तुमसे मिलकर बेहद खुश होंगे लेकिन एक समस्या थी कि जिस तरह के वस्त्र मृगनैनी ने पहन रखे थे उस वस्त्र में ध्रुव उसे घर नहीं ले जा सकता था इसलिए ध्रुव पहले बाजार जाकर उसके लिए एक अच्छी सी साड़ी खरीद लेता है और उसे साड़ी पहनकर ध्रुव उसे अपने घर लेकर चल जाता है जब ध्रुव मृगनैनी को लेकर घर पहुंचा तो उसने अपनी मां को बुलाया मां अरे ओ मां देखो तो जरा मैं किसे लाया हूं जानकी युग और काजल वहां आ गए और जब उन्होंने मृगनैनी को देखा तो वह हैरान हो गए काजल ने कहा यह कौन है भैया ध्रुव ने कहा अरे अपनी भाभी को नहीं पहचाना कब से आप लोग मेरी शादी के पीछे पड़े हुए थे तो मैंने शादी कर ली यह मृगनैनी है और मैं इसी से प्रेम करता हूं उसकी बात सुनकर सबके होश उड़ गए उनके चेहरे पर गुस्सा भी था और खुशी भी क्योंकि जाहिर बात है कि ध्रुव ने उन्हें बिना बताए शादी कर ली थी युग ने कहा यह क्या बिना बताए ही शादी कर ली अरे हमें बताता तो क्या हम तेरी शादी नहीं कराते जानकी ने कहा अरे जाने दो कोई बात नहीं कम से कम मरने से पहले बहू का चेहरा तो देख लिया लेकिन बुरा तो मुझे भी लग रहा है ध्रुव ने कहा हां मां लेकिन स्थिति ही ऐसी बन गई। थी कि हमें शादी तुरंत करनी पड़ी काजल मृगनैनी के पास आई और बोली भाभी आपके मां आप को पता है कि आपने शादी कर ली है मृगनैनी ने कहा मैं इस दुनिया में बिल्कुल अकेली हूं मेरा यहां कोई नहीं है यह सुनकर सबको बहुत बुरा लगा जानकी ने कहा अरे नहीं नहीं हम है ना तुम्हारे पास काजल जा अपनी भाभी को कमरे में ले जा काजल रती प्रिया को कमरे में ले गई। जानकी ने ध्रुव को कहा बेटा कल का दिन शुभ है ऐसा करते हैं। कल बहू की मुंह दिखाई रख देते हैं। ठीक है ना ध्रुव ने कहा जैसा तुम्हें ठीक लगे मां जानकी बहुत खुश हुई और ध्रुव अपने कमरे में चला गया लेकिन तब तक काजल वहां से जा चुकी थी और जब ध्रुव ने मृगनैनी को देखा तो उसके होश उड़ गए वह बिना किसी वस्त्र के पलंग पर बैठी थी मानो उसी का ही इंतजार कर रही हो ध्रुव उसे देखता रह गया और वह भी एक हल्की सी मुस्कान के साथ ध्रुव को निहार रही थी ध्रुव उसके पास गया और मृगनैनी ने अचानक से उसे पलंग पर खींच लिया और देखते ही देखते दोनों हम बिस्तर हो गए और दोनों ने रात भर संभोग किया अगले दिन मृगनैनी की मुंह दिखाई थी और काजल उसे तैयार कर रही थी ध्रुव के कुछ दोस्त भी उसके घर आने वाले थे जो हमेशा ध्रुव की शादी ना होने का मजाक करते थे और ध्रुव इस बात से बहुत ज्यादा खुश था कि मृगनैनी को देखकर सबके होश उड़ने वाले हैं। ऐसा ही हुआ उसके दोस्त घर आए और जब उन्होंने मृगनैनी को देखा तो उसकी खूबसूरती देखकर सबको जलन हो गई। उसके एक दोस्त अजय ने कहा यार ध्रुव कौन से मंदिर में जाकर माथा टेक रहा था जो इतनी सुंदर पत्नी मिली तुझे ध्रुव ने कहा यह किस्मत किस्मत की बात है उसे बहुत अच्छा लग रहा था सारे मोहल्ले वालों ने मृगनैनी की तारीफ की और इससे जानकी भी बेहद खुश थी कुछ दिन ऐसे ही बीत गए ध्रुव मृगनैनी के साथ बहुत खुश था वह पूरा पूरा दिन एक दूसरे के साथ समय बिताया करते थे मानो दोनों को एक दूसरे की लत लग गई। हो लेकिन इस वजह से ध्रुव ने काम पर ध्यान देना छोड़ दिया वह ज्यादातर समय मृगनैनी के साथ कमरे में भोग विलास करता रहता था और यह बात जानकी को पसंद नहीं आ रही थी एक दिन जानकी ने उसे बुलाया और कहा यह सब क्या है अपने बाबा के साथ दुकान पर क्यों नहीं जाता अरे कब तक वह अकेले काम करेंगे माना तेरी नई नई शादी हुई है लेकिन इसका यह मतलब यह तो नहीं है कि तू कमरे से बाहर ही ना निकले ध्रुव दुकान जा और अपने बाबा को बोल कि वह घर आकर खाना खा ले ध्रुव का मन तो नहीं था लेकिन फिर भी वह चला गया उसके जाने के बाद रति प्रिय रसोई में गई। और उसे देखकर जानकी ने कहा चलो तुम्हारे पैर रसोई में तो पड़े आज का खाना तुम बनाना और किसी चीज की जरूरत हो तो मुझसे मांग लेना यह कहकर जानकी भी अपने काम में लग गई। मृगनैनी ने जानकी को अजीब तरीके से देखा और काजल ने यह देख लिया उसने कहा क्या हुआ भाभी मां की ओर ऐसे क्यों घूर रही हो इस घर की बहू हो तो अपनी जिम्मेदारी को निभानी होगी ना चलो मैं भी तुम्हारी मदद करती हूं दोनों काम पर लग गए और जैसे ही खाना तैयार हुआ युग घर पहुंच गया और उसने कहा आज मैं दुकान नहीं जाऊंगा मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही ध्रुव दुकान बंद करके रात को लौट आएगा यह बात जब मृगनैनी ने सुनी तो उसके चेहरे का भाव बदल गया अचानक वह युग की ओर गुस्से से घूरने लगी तभी काजल ने कहा कोई बात नहीं मैं भैया को खाना दे आऊंगी फिर मृगनैनी खुश हो गई। और बोली नहीं तुम नहीं जाओगी मैं दे आऊंगी जानकी ने मृगनैनी को रोकने की कोशिश की लेकिन मृगनैनी उसे नजर अंदाज करके दुकान चली गई। जब ध्रुव ने उसे दुकान में आते देखा तो वह खुश हो गया और दोनों ने दुकान का दरवाजा बंद करके ही संभोग करना शुरू कर दिया दुकान के अंदर से जो आवाज आ रही थी वह सुनकर आसपास रहने वाले बातें करने लगे और इसकी खबर जानकी तक पहुंच गई। जानकी ने जब इसके बारे में जाना तो वह शर्मिंदा हो गई। और उसे गुस्सा आया वह मृगनैनी के घर आने का इंतजार करने लगी करीब दो घंटे के बाद मृगनैनी घर आई तब शाम के 5 बज रहे थे जानकी ने पूछा इतनी देर क्यों लग गई। आने में मृगनैनी ने कहा दुकान में ग्राहक बहुत थे इसलिए उन्हें खाना खिलाने में समय लग गया जानकी ने कहा तुझे उसे खिलाने नहीं खाना पहुंचाने के लिए भेजा था मैं अच्छे से जानती हूं तू क्या करने गई। थी मेरी बात ध्यान से सुन ले तू अब ध्रुव से दूर रहेगी तेरी वजह से उसके काम का नुकसान हो रहा है अब से तू रसोई में सोएगी समझी मृगनैनी को यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आई उसने कहा लेकिन वह मेरे पति हैं। तो उनके साथ समय बिताने में क्या हर्ज है जानकी ने कहा हर एक का समय होता है तू बेशर्म की तरह दुकान में जाकर उसके साथ यह सब करेगी तो हमारी क्या इज्जत रह जाएगी इसलिए अब अगले एक महीने तक तू उससे दूर रहेगी यह कहकर जानकी वहां से चली गई। रात के करीब 9:00 बजे त्रिलोक घर आया और जब वह कमरे में गया तो उसने देखा कि मृगनैनी वहां नहीं है तो वह उसे ढूंढते ढूंढते रसोई में पहुंच गया जहां वह गुस्से में बैठी हुई थी उसने पूछा क्या हुआ तुम यहां क्या कर रही हो मृगनैनी ने गुस्से में कहा तुम्हारी मां ने मुझे तुमसे दूर रहने के लिए कहा है उन्हें पता चल गया कि हम दुकान में क्या कर रहे थे यह बात ध्रुव को भी अच्छी नहीं लगी लेकिन वह जान था कि जानकी किसी की नहीं सुनने वाली है इसलिए उसने कहा कोई बात नहीं मैं भी यही सो जाता हूं मां को नहीं पता चलेगा मृगनैनी के चेहरे पर मुस्कान आ गई। और ध्रुव वहीं सो गया लेकिन आधी रात बीतने के बाद उसे ऐसा लगा कि मृगनैनी उसे स्पर्श कर रही है और वह खुद भी उसे स्पर्श करने के लिए मचल गया दोनों रसोई में ही भोग विलास करने लगे लेकिन तभी रसोई की लाइट चल गई। और जब दोनों ने रसोई के दरवाजे की ओर देखा तो जानकी वहां खड़ी हुई थी जानकी ने गुस्से में चिल्लाकर कहा बेशर्म मेरे रसोई को भी अशुद्ध करने चले हो उसने मृगनैनी का हाथ पकड़ा और उसे बाहर ले गई। उसने कहा क्या जादू कर रखा है तूने मेरे बेटे पर कहां था ना तुझे उससे दूर रहने के लिए लेकिन तू नहीं मानी आसपास में नाक कटा दी तुम लोगों ने उसके बाद भी शर्म नहीं आ रही ध्रुव ने कहा मां क्या हो गया है तुम्हें अरे वह पत्नी है मेरी जानकी ने कहा यह पत्नी सब कुछ हो गई। तेरे लिए अब तू इसके लिए घर की इज्जत अपना काम काज सब कुछ दाव पर लगा देगा ध्रुव ने कहा ऐसा कुछ नहीं होगा तुम बेकार में परेशान हो रही हो और मेरी पत्नी से तुम ऐसा बर्ताव मत करो यह सुनकर जानकी के होश उड़ गए ध्रुव ने पहली बार उससे ऐसी बात करी थी मृगनैनी के चेहरे पर मुस्कान थी जानकी ने कहा अच्छा अब तुझे यह इतनी प्यारी हो गई। समझ गई। यह भी उन औरतों में से है जो पति को अपने घर वालों के खिलाफ करती है इसी ने तुझसे कुछ कहा है ना ध्रुव ने कहा अरे ऐसा कुछ नहीं है तुम भी ना फालतू में तमाशा कर रही हो यह कहकर ध्रुव अपने कमरे में चला गया काजल ने जानकी से कहा इसके लक्षण ठीक नहीं है मां इसे तो तुम कोठरी में सुलाव आज की रात तब इसकी अक्ल ठिकाने आएगी जानकी ने मृगनैनी का हाथ पकड़ा और उसे घर के पीछे की तरफ ले गई। जहां एक कमरा था वह कमरा कई महीनों से बंद था और वहां रोशनी भी नहीं थी उसी कमरे में जानकी ने मृगनैनी को बंद कर दिया और बाहर से ताला लगाकर वहां से चली गई। अगली सुबह जब जानकी रसोई में गई। तो उसने जो देखा वह देखकर उसके होश उड़ गए रसोई में मृगनैनी थी जिसे उसने रात को कमरे में बंद कर दिया था और चाबी भी उसी के पास ही थी उसने कहा तू बाहर कैसे आई रथ प्रिया ने उसकी ओर देखा और अजीब तरह से मुस्कुरा कर बोली मां जी आपको क्या लगता है कि आप मुझे कमरे में बंद कर देंगी और सब कुछ सही हो जाएगा आप जानती नहीं है मुझे मैं आपको एक सलाह दे रही हूं कि मेरे और ध्रुव के बीच में आने की कोशिश मत कीजिएगा वरना बाद में मत कहना कि मैंने चेतावनी नहीं दी यह कहकर वह चली गई। और जानकी के पसीने छूट गए दो तीन दिन फिर ऐसे बीत गए और जानकी ने देखा कि काजल की तबीयत कुछ सही नहीं है उसने पूछा क्या हुआ काजल तू ठीक है ना काजल ने कहा नहीं मां दो तीन दिन से मुझे हर रोज उल्टिया हो रही है और शरीर में बहुत भयानक दर्द होता है इस बात पर मृगनैनी हंस रही थी और यह चीज ध्रुव ने देखी जानकी ने कहा पहले क्यों नहीं कहा चल डॉक्टर के पास चलते हैं। जानकी उसे डॉक्टर के पास ले गई। और ध्रुव ने मृगनैनी से कहा यह सब क्या है कहीं उसकी तबीयत खराब होने के पीछे तुम्हारा हाथ तो नहीं है मृगनैनी ने कहा जो भी हमें अलग करने की कोशिश करेगा उसका मंजर तो उसे भुगतना होगा ध्रुव ने कहा यह क्या कर रही हो वह मेरी बहन है देखो मेरे परिवार के साथ कुछ गलत मत करो वह बुरे नहीं है मृगनैनी को उस पर भी गुस्सा आने लगा क्योंकि वह अपने परिवार की तरफदारी कर रहा था उसने कुछ कहा नहीं बल्कि ध्रुव को लेकर कमरे में चली गई। और उसके साथ हम बिस्तर होने की कोशिश करने लगी लेकिन ध्रुव उस समय वह नहीं चाहता था इसलिए वह उससे दूर जाने की कोशिश करने लगा जिससे मृगनैनी को और गुस्सा आया मृगनैनी ने जबरदस्ती खुद को संतुष्ट करने की कोशिश की और उसके ऊपर आकर बैठ गई। उसने ध्रुव के बाल पका रखे थे और उसकी आंखों में ही देख रही थी फिर अचानक से ध्रुव को कुछ होने लगा और उसके चेहरे के भाव बदलने लगे वह भी भी विलास में डूब गया एक दूसरे को संतुष्ट करने के बाद वो दोनों कमरे के बाहर आ गए और तभी जानकी और काजल भी घर आ गए जानकी ने रोते हुए कहा ध्रुव देखना क्या हो गया है तेरी बहन को कैंसर हो गया है डॉक्टर ने कहा है कि इसके इलाज में बहुत पैसे लगेंगे अब हम क्या करेंगे ध्रुव के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे वह बिना कुछ कहे वहां से जा रहा था लेकिन जानकी ने उसका हाथ पकड़ लिया और कहा तू कहां जा रहा है तूने सुना नहीं मैंने क्या कहा अरे तेरी बहन की तबीयत वह आगे कुछ बोलती उससे पहले ही ध्रुव ने उसके बाल पकड़ कर खींचे और जानकी चिल्लाई ध्रुव ने कहा अरे ओ यह तू और तेरी बेटी की समस्या है मुझे बीच में लाने की जरूरत नहीं है समझी जानकी और काजल को मानो झटका लग गया हो काजल ने कहा भैया यह क्या हो गया है तुम्हें मां के साथ ऐसा कैसे कर सकते हो तुम ने कहा चुप जब देखो तब अपनी मां के साथ चापलूसी करती रहती है अच्छा है तुझे यह बीमारी लग गई। काजल ने कहा क्या तुम्हें पता भी है तुम क्या कह रहे हो मैं मर रही हूं और तुम ऐसी बातें कर रहे हो ध्रुव ने अपनी मां को और काजल को मार दिया और बोला रह तभी युग भी वहां पर आ गया और जब उसने यह सब देखा तो उसे भी गुस्सा आने लगा उसने जाकर ध्रुव को थापड़ मारा और बोला नाला लायक यही सब सिखाया मैंने तुझे उस औरत की बातों में आकर यह सब कर रहा है ना तू ध्रुव की आंखें गुस्से से और लाल हो गई। ध्रुव ने कहा मेरी पत्नी के बारे में कुछ मत बोलना युग बोला वरना वरना क्या कर लेगा अपने बाप को भी मारेगा जैसे ही उसने यह बात कही ध्रुव ने सच में उसे मार दिया और उसे धक्का मार करर गिरा दिया फिर उसे लात पर लात मारने लगा जानकी और काजल बीच में आ गए और उसे रोकने की लिए कहने लगे लेकिन ध्रुव को ना जाने क्या हो गया था कि वह अपने पिता को मारे ही जा रहा था फिर ध्रुव ने अपने हाथ में एक लाठी ली और उसी लाठी से अपनी मां बाबा और बहन तीनों को मारने लगा सब दर्द से चीखने चिल्लाने लगे और उनकी आवाज सुनकर आसपास वाले घर आ गए जब उन्होंने वहां का नजारा देखा तो सबके रोंगटे खड़े हो गए ध्रुव सबको मार रहा था और मृगनैनी वहीं खड़ी होकर मुस्कुरा रही थी गांव वालों ने जैसे तैसे करके ध्रुव को उनसे दूर किया लेकिन जब वह काबू से बाहर हो रहा था तो उसे पकड़कर उसके कमरे में ही बंद कर दिया गया जानकी युग और काजल को बहुत चोट आई थी उन्हें तुरंत डॉक्टर के पास ले जाया गया वहीं मृगनैनी वापस से कमरे में जाकर ध्रुव के साथ संभोग करने लगी जानकी युग और काजल अस्पताल में थे और उनके साथ गांव का एक आदमी भी था जानकी ने कहा पक्का उस औरत ने हमारे बेटे पर कोई जादू टोना किया है हमें तुरंत कुछ करना होगा तभी युग ने कहा हां हमारा बेटा ऐसे बर्ताव कभी नहीं करेगा तभी उस आदमी ने कहा अगर ऐसा है तो आपको तुरंत मुक्तिनंद बाबा के पास जाना चाहिए जानकी ने पूछा वह कौन है उस आदमी ने कहा बहुत बड़े तांत्रिक हैं। अभी कुछ दिन पहले पास के एक गांव में आए थे शमशान में ही रहते हैं। इन सब चीजों के उसकी बात मानकर तीनों उस आदमी के साथ ही शमशान चले गए जहां उन्हें वह बाबा मिल गए जानकी ने उन्हें सारी बातें बताई तो बाबा ने तुरंत किसी मंत्र का उच्चारण किया और फिर कहा हमें तुम्हारे घर जाकर देखना होगा कि क्या मामला है जानकी ने कहा हां बाबा अभी चलिए ना जाने मेरे बेटे को क्या हो गया है जो बेटा कभी हमसे ऊंची आवाज में बात नहीं करता था देखिए ना उसने क्या हालत की है हमारी बाबा ने कहा मैं जो सोच रहा हूं अगर वह हुआ तो तुम्हारे बेटे को कोई नहीं बचा पाएगा मैं भी नहीं यह सुनकर तीनों के दिल दहल गए बाबा के साथ तीनों घर पहुंचे जहां से ध्रुव के जोर जोर से चीखने की आवाज आ रही थी और सब बहुत ज्यादा डर गए चारों घर के अंदर पहुंचे तो देखा कि ध्रुव के कमरे का दरवाजा बंद था और अंदर से उसकी चीख निकल रही थी सबने खूब दरवाजा पीटा लेकिन दरवाजा नहीं खुला सिर्फ ध्रुव की भयानक चीख सुनाई दे रही थी मुक्तिनंद बाबा ने कई बार कोशिश की लेकिन दरवाजा नहीं खुला मानो किसी बहुत ताकतवर शक्ति ने दरवाजा बंद किया हो फिर अचानक ध्रुव की चीख निकलनी बंद हो गई। और झटके से दरवाजा अपने आप खुल गया फिर अंदर का जो मंजर चारों ने देखा उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती ध्रुव की आंखें खुली थी शरीर में प्राण नहीं थे और उसका पूरा शरीर सुख चुका था मुक्तिनंद बाबा ने सिर्फ एक बात कही देर हो गई। उसे वह ले गई। और इसी के साथ ध्रुव और मृगनैनी की प्रेम की कहानी इस दुनिया में खत्म हो गई। और शायद मृगनैनी उसे अपनी दुनिया में ले गई।
गाँव में एक गहरी सन्नाटा छा चुका था।
ध्रुव की भयानक मौत और उसके कमरे से गूंजती चीखों की दहशत के बाद, हर दिल में अजीब सा भय बस गया था। मुक्तिनंद बाबा के शब्द – “देर हो गई। उसे वह ले गई।” – अब केवल एक रहस्यमय पुकार लगते थे, जो अंधेरी रात में अनसुलझे सवाल छोड़ गई थी।
जानकी, युग और काजल अस्पताल से लौटकर घर आए, तो हर दीवार मानो एक अंधेरी याद बयाँ कर रही थी। जानकी की आँखों में चिंता की लकीरें साफ दिख रही थीं। “हमने जो देखा, उससे ऐसा लग रहा है कि ध्रुव की आत्मा अब किसी और लोक में खो गई है,” उसने धीरे धीरे कहा, मानो शब्दों में भी डर समा गया हो।
गाँव के पुरोहित और कुछ अनुभवी तांत्रिक भी ध्रुव की मौत की खबर सुनकर एकत्र हो गए थे। किसी ने बताया कि उस रात जब ध्रुव ने साधना पूरी की थी, तो उसकी आत्मा ने दो दुनियाओं के बीच एक असामान्य से पुल का निर्माण कर दिया था। मृगनैनी, जो ध्रुव की इच्छाओं का उत्तर बन चुकी थी, उसे अपनी दुनिया में ले जाने के लिए अब तैयार लग रही थी।
उसकी आत्मा – या शायद वह प्रेत स्वरूप मृगनैनी – अब धुंधली रोशनी में प्रकट होती नजर आई। कई रातों से गाँव के किनारे पर अजीब सी घटनाएं घटने लगी थीं। कुछ लोग तो कहते थे कि रात के अंधेरे में, एक लम्बी साड़ी में सजी हुई सुंदर छवि धीमे धीमे किनारों पर घूमती हुई दिखाई देती है, मानो वह किसी खोए हुए प्रेम की तलाश में हो।
जानकी ने कई बार कोशिश की कि मुक्तिनंद बाबा के उच्चारण से उस श्राप को हटाया जाए, ताकि ध्रुव की आत्मा को शांति मिले और मृगनैनी का जादू गाँव से दूर हो जाए। बाबा ने गहराई से अपने मंत्रों का जप किया, लेकिन हर प्रयास पर ऐसा प्रतीत हुआ कि दो दुनियाओं के बीच की दीवार पहले से ही और भी गहरी हो चुकी है।
एक रात, जब चाँद अपनी पूरी चमक के साथ आसमान पर विद्यमान था, जानकी ने अचानक एक अजीब सी खटखटाहट सुनी। धीरे धीरे वह अपनी झोपड़ी की ओर बढ़ी। दरवाज़ा खोलते ही उसे वह ठंडी हवा लगी, मानो किसी रहस्यमय शक्ति ने अंदर कदम रख रखा हो। कमरे के कोने में एक परछाई झांक रही थी – वह मृगनैनी थी, लेकिन इस बार उसका चेहरा उदासी और पीड़ा से भरपूर दिखाई दे रहा था।
मृगनैनी ने धीमी, किंतु गंभीर आवाज में कहा,
जानकी, मेरा कर्म और मेरा प्रेम अब दो अलग दुनिया में बंट चुका है। ध्रुव की आत्मा, जिसे मैंने अपनी राह में बाँध लिया था, अब अटक गई है। मुझे तो उसका उद्धार करना होगा – या फिर उसे अपनी दुनिया में हमेशा के लिए खो जाना होगा।
जानकी की आँखों में भय और आशंका के मिश्रण झलकने लगे। उसने मृगनैनी से पूछा,
तो अब तुम क्या चाहती हो । क्या वो वापस आ सकता है । या फिर… ।
मृगनैनी ने सिर झुका कर कहा,
उसके पास लौटने का कोई रास्ता नहीं है। जो बंधन हमने साधना में बाँध लिए थे, उन्हें तोड़ने के लिए अब एक और अनुष्ठान करना होगा – एक ऐसा अनुष्ठान, जो दो दुनिया के दरमियान के पुल को फिर से तोड़ दे। लेकिन सावधान रहो, जानकी, इस अनुष्ठान का हर शब्द, हर मंत्र, एक नयी विपदा ला सकता है।
उस क्षण जानकी के मन में कई उलझनें उठीं – एक ओर वह अपनी बेटी काजल और युग के लिए चिंतित थी, तो दूसरी ओर अपने खोए हुए बेटे की आत्मा की पीड़ा भी उसे चुभ रही थी। वह जानती थी कि अब कोई साधारण उपाय नहीं बचा था। मृगनैनी की बातें सुनकर उसके दिल में एक ठंडी सच्चाई बस गई थी:
ध्रुव का बंधन अब केवल धरती पर नहीं, बल्कि उन दो दुनिया के बीच एक अटूट कड़ी बन चुका था।
गाँव में धीरे धीरे एक नई रात की तैयारी हो रही थी। बाबा ने अगले अनुष्ठान के लिए विशेष सामग्री और मंत्रों का संग्रह किया था। जानकी, युग, और काजल ने मिलकर तय किया कि अगली चाँदनी रात, जब सारी दुनिया नींद में होगी, तब वह अनुष्ठान किया जाएगा – ताकि ध्रुव की आत्मा को मुक्ति मिल सके या फिर उसे उस अंधेरी दुनिया में हमेशा के लिए बंधा कर दिया जाए।
क्या इस अनुष्ठान से ध्रुव की आत्मा को उद्धार मिलेगा । क्या मृगनैनी की पीड़ा कभी दूर होगी ।
इन सवालों का जवाब आने को था – अगली चाँदनी रात के साथ, जब दोनों दुनियाओं के दरमियान की दीवार फिर से हिलने लगी।
नीचे अगली चाँदनी रात का अगला भाग प्रस्तुत है:
अगली चाँदनी रात
गाँव के बाहर, प्राचीन श्मशान घाट के पास अँधेरे में जब चाँद अपनी पूरी रोशनी बिखेर रहा था, जानकी, युग और काजल, मुक्ति नंद बाबा के नेतृत्व में एक वृहत círculo में एकत्र हो गए थे। हवा में सर्द कंपकंपी थी, और चारों ओर गूंजते पुराने मंत्रों की फुसफुसाहट ने वातावरण को और भी रहस्यमय बना दिया था।
बाबा ने ध्यानपूर्वक कहानियों में वर्णित सभी विशेष सामग्रियाँ – अग्नि, जल, पृथ्वी और वायु – एक साफ़ पितली पर सजाकर अनुष्ठान के लिए तैयार रखी थीं। उन्होंने सभी को चेतावनी दी थी कि यह अनुष्ठान दो दुनियाओं के बीच का पतला पुल फिर से हिला सकता है; अगर मन में संदेह या भय होगा, तो विपदा का सामना करना पड़ सकता है।
जब अनुष्ठान प्रारंभ हुआ, तो बाबा की गहरी, रूहानी आवाज में प्राचीन मंत्रों का जप शुरू हुआ। मंत्रों के उच्चारण के साथ ही चारों ओर हवा तेज़ हो गई, मानो प्रकृति स्वयं इस रहस्यमय समारोह में भाग लेने आई हो। जानकी का दिल भारी था – उसके मन में ध्रुव की दर्द भरी यादें तैर रही थीं, परन्तु वह अब अपनी बेटी काजल और युग की सुरक्षा के लिए दृढ़ हो चुकी थी।
धीरे धीरे, दीवारों पर अजीब सी छाया नाचने लगीं, और उस बंद कमरे की ओर से जो ध्रुव के अंतिम क्षणों का गवाह था, एक हल्की सी कंपन सी महसूस होने लगी। जैसे ही अनुष्ठान अपनी चरम सीमा पर पहुंचा, बाबा ने कहा,
अब वो समय आया है जब दो संसारों का सामना होगा। ध्रुव की आत्मा, जिसने इस शरीर में अपना अंश छोड़ दिया, अब अपने बंधनों से मुक्त होने को तरस रही है।
तभी अंधेरे में एक धीमी सी पुकार सुनाई दी एक नरम, किंतु दर्द भरी आवाज़।
मुझे छोड़ दो मुक्ति दो
सभी की निगाहें उस दिशा में गिरीं जहाँ से पुकार आई। एक क्षण के लिए, चाँदनी में एक धुंधली आकृति प्रकट हुई। मृगनैनी, अब मानो भूतिया स्वरूप में, उस अजीब सी झलक में नजर आई। उसके चेहरे पर अब पहले की चमक थी ही नहीं बल्कि पीड़ा, तन्हाई और गहरे खेद की परछाई साफ दिखाई दे रही थी।
जानकी ने भय और करुणा का मिश्रित भाव लिए पूछी, क्या अब तुम इस बंधन को तोड़ना चाहती हो । या फिर ध्रुव की आत्मा को वहीं अटका छोड़ना ।
मृगनैनी की आँखों में गहरी आंसुओं जैसी चमक आई।
मैंने जो किया, उसके दुष्परिणाम मेरे भी लिए दर्दनाक हैं। ध्रुव की आत्मा इस अधूरी साधना में फंसी है। मुझे उसे मुक्ति देने का रास्ता तलाशना होगा, चाहे वह मुझे ही उस अंधेरी दुनिया में ले जाए।
बाबा ने गंभीर स्वर में कहा, इस अनुष्ठान में दो विकल्प हैं। एक – ध्रुव की आत्मा को पूरी तरह से इस लोक से पृथक करना, जिससे उसका बंधन टूट जाएगा; या दो – उसे मृगनैनी की दुनिया में स्थानांतरित करना, जहां उसकी पीड़ा सदैव बनी रहेगी। निर्णय अब तुम्हारे हाथ में है, जानकी।
जानकी का मन विचलित था। उसकी ममता और परिवार के प्रति चिंता ने उसे उस निर्णय के गहरे दायरे में ले जाया था। युग और काजल भी चुपचाप बाबा की अगुवाई में खड़े थे, उनके चेहरों पर भय और अनिश्चितता की लकीरें स्पष्ट थीं।
अनुष्ठान के दौरान, बाबा ने मंत्रों के उच्चारण को और गहन किया। जैसे जैसे मंत्रों का जादुई प्रभाव चारों ओर फैलता गया, कमरे के बंद दरवाजे पर हल्की हल्की खड़खड़ाहट सुनाई देने लगी। आकाश में गहराई से गुज़रती बिजली की चमक और गूंजते बादलों की गर्जना ने वातावरण को चरम तक तनावपूर्ण बना दिया था।
एक क्षण ऐसा आया कि ध्रुव की आत्मा की झलक प्रकट होने लगी। उसकी पीड़ित, बेसुध सी छवि दीवारों पर उभरने लगी, मानो वह अपने अर्ध भूतिया रूप में परेशान होकर चीख रहा हो। उस स्वर में, जिसने सबको हिलाकर रख दिया, उसने पुकारा,
मुझे शांति दो मुझे बचाओ ।
मृगनैनी ने धीरे धीरे अपने हाथ फैलाए, मानो किसी अंतिम प्रयास में अतीत की भूल भुलैया से निकलने की कोशिश कर रही हो। उसके चेहरे पर अब संकल्प की एक झलक थी। उसने कहा, अगर मैं उसे मुक्त नहीं कर सकी, तो यह बंधन हमेशा के लिए मेरी आत्मा का बोझ बनकर रह जाएगा।
उस क्षण, जानकी, युग और काजल ने आपस में निहायत गंभीरता से देखा। अनुष्ठान की दिशा तय होने वाली थी। बाबा ने अंतिम मंत्र का उच्चारण किया, और हवा में जादुई चमक सी फैल गई। सभी की सांसें थम गईं, और चाँदनी में समय मानो ठहर सा गया।
नीचे अगली सुबह की कहानी का अगला भाग प्रस्तुत है:
अगली सुबह: मुक्ति का अथाह प्रश्न
सूरज की पहली किरणें जैसे ही गाँव के गलियारों में उतरीं, एक अजीब सी शांति और ठंडक फैल गई थी। पिछली रात के अनुष्ठान की भयावहता और रहस्यमयी घटनाओं की गूँज अभी भी हर घर के आंगन में बसी हुई थी। जानकी, युग और काजल अभी भी उस रात की घबराहट और उलझन से जूझते हुए धीरे धीरे अपने अपने घर लौटे।
जब जानकी ने ध्रुव के कमरे का दरवाज़ा खोला, तो उसकी आँखों के सामने एक अकल्पनीय दृश्य उभर आया कमरे में तो अब कुछ भी वैसा जैसा था वैसा नहीं रहा था। जहां कभी ध्रुव का शरीर मोजूद था, अब वहाँ केवल दीवारों पर एक हल्की सी नीली आभा नाच रही थी, मानो किसी दिव्य ऊर्जा ने उसकी जगह ले ली हो। जानकी की साँसें थम गईं।
ध्रुव कहाँ चले गए । उसने धीरे से पूछा, लेकिन उत्तर में केवल आभा की मंद झलक और उस अजीब सी शांति ने अपना संदेश दिया।
उसी क्षण, कमरे के एक कोने में मृगनैनी की आकृति उभरने लगी। पहले की चंचल मुस्कान अब कहीं खो गई थी; उसकी आँखों में गहरी पीड़ा, पश्चाताप और एक अदम्य दुःख झलक रहा था। उसकी धीमी, तरस भरी आवाज ने वातावरण को भर दिया,
मैंने जो किया, उसके दाम हमें चुकाने ही पड़ेंगे। ध्रुव की आत्मा अब दो राहों पर खड़ी है या तो उसे पूरी तरह से इस लोक से विदा कर दिया जाए, या फिर उसे मेरे साथ, उस अंधेरी दुनिया में बाँध लिया जाए।
युग, जो अभी अभी बाहर प्रवेश कर चुका था, उसकी बात सुनते ही अंदर आ गया। डर और उलझन से उसकी आवाज कांप उठी, मां, क्या अब हम सही निर्णय ले पाएंगे ।
जानकी ने गहरे दर्द भरे स्वर में उत्तर दिया, बाबा ने कहा था कि हर मुक्ति का दाम होता है। हमने कल रात अनुष्ठान में वो विकल्प चुनने की कोशिश की, लेकिन अब परिणाम सामने आ गए हैं।
मुक्तिनंद बाबा के अंतिम मंत्रों के प्रभाव से, कमरे में एक पल के लिए समय मानो ठहर सा गया। दीवारों पर झलकती नीली आभा में धीरे धीरे एक अस्पष्ट आकृति उभरने लगी वह ध्रुव था, पर उसका चेहरा अव्यक्त, दर्द और पीड़ा से भर चुका प्रतीत हो रहा था। उसकी आत्मा की झलकें अब धीरे धीरे विलीन होने लगीं, मानो वह इस लोक से अपना अंतिम विदाई ले रहा हो।
मृगनैनी की आँखों से आँसू बहने लगे। मैं अपने कर्मों का प्रायश्चित करना चाहती हूँ, उसने धीरे से कहा, और मैं चाहती हूँ कि ध्रुव की आत्मा को अंततः शांति मिले। पर अगर मैं उसे यहाँ से मुक्त नहीं कर सकी, तो ये बंधन हमारे परिवार पर हमेशा के लिए एक अभिशाप बनकर रह जाएगा।
उस क्षण, हवा में एक हल्की सी कंपकंपी सी दौड़ गई, जैसे दो दुनियाओं के बीच का पतला पुल आखिरी बार हिलने लगा हो। जानकी ने अपने दिल की धड़कनों को सुनते हुए कहा, अब तो फैसला हो चुका है। हमें ध्रुव को उस अज्ञात दुनिया में विदा करना होगा, ताकि उसकी पीड़ा अंततः खत्म हो सके।
युग और काजल भी चुपचाप देख रहे थे उनके मन में डर था, लेकिन जानकी के दृढ़ निश्चय में भी एक आशा झलक रही थी। बाबा ने अंतिम मंत्र का उच्चारण किया, और उस क्षण, जैसे ही सूर्य की किरणें पूरी तरह से फैल गईं, ध्रुव की आकृति धीरे धीरे हवा में घुलती चली गई। उसकी आत्मा का हल्का सा झिलमिलाता सा स्वरूप, कुछ क्षणों के लिए वहीं स्थिर रहा, फिर पूरी तरह से अदृश्य हो गया।
कमरे में एक मौन छा गया। जानकी ने धीरे से कहा, हो सकता है कि अब ध्रुव को वह शांति मिल गई हो जिसकी वह हमेशा तलाश में था।
लेकिन जैसे ही सब सोच में डूबे थे, बाहर के आंगन में एक हल्की सी आहट सुनाई दी किसी अजनबी की तरह, मृगनैनी की परछाई फिर से दीवारों पर झांकने लगी। उसकी आँखों में अब आशा की एक चमक थी, पर साथ ही एक अजीब सी उदासी भी थी। उसने धीरे से कहा, मैं अपने बंधन से मुक्त होना चाहती हूँ। यदि ध्रुव की मुक्ति में मेरा हाथ है, तो मुझे भी उस अज्ञात दुनिया में जाना होगा।
जानकी ने चिंतित स्वर में पूछा, तो क्या तुम अब भी हमारे साथ रहोगी । या फिर ।
मृगनैनी ने अपना चेहरा झुकाते हुए उत्तर दिया, मैंने अपने सारे कर्मों का दाम चुका दिया है। अब मुझे भी उस अंधेरे संसार में जाना है, जहाँ मैं अपने अतीत के साए से मुक्ति पा सकूँ।
युग और काजल की आँखों में भय और आशंका का मेल था, क्योंकि उन्हें अब समझ में आ गया था कि इस मुक्ति का दाम केवल ध्रुव तक सीमित नहीं रहेगा यह मृगनैनी की आत्मा को भी उस अज्ञात संसार में बाँध सकता है।
गाँव की गलियों में अब एक अजीब सी खामोशी छा गई थी, मानो प्रकृति ने भी उस कठिन निर्णय का सम्मान किया हो। जानकी ने अपने परिवार की ओर देखा, और अपने भीतर यह संकल्प किया कि चाहे जो भी हो, वे अपने प्रियजनों की रक्षा के लिए तैयार रहेंगे।
अगली सुबह की इस अनसुलझी दहशत ने एक नया अध्याय शुरू कर दिया था जहाँ प्रेम, पश्चाताप और मुक्ति की लड़ाई अब भी जारी थी। ध्रुव की आत्मा को शांति मिली या नहीं, मृगनैनी का भविष्य क्या होगा, यह सवाल अब अनिश्चित था। बस इतना तय था कि उस दिन की हल्की सी रोशनी में, हर किसी के दिल में गहरे अंधेरे के निशान रह गए थे।
कुछ दिनों के सन्नाटे और अनिश्चेत मौन के बाद, गाँव में एक नई सुबह ने दस्तक दी। प्रकृति ने धीरे धीरे अपनी दिनचर्या फिर से शुरू कर ली थी, पर गाँव के लोगों के मन में उस रात की अंधेरी गूँज और ध्रुव व मृगनैनी की विपतपूर्ण कथा एक अमिट छाप छोड़ गई थी।
जानकी, युग और काजल ने अपने अपने जीवन में धीरे धीरे उस दर्द और भय को स्वीकार करना सीखा। जानकी की आँखों में अब भी चिंता के अंश थे, पर उसने अपने परिवार की रक्षा के लिए एक दृढ़ निश्चय बना लिया था कि आगे कभी भी बिना सही मार्गदर्शन के साधना और अनियंत्रित प्रेम की आग नहीं लगनी चाहिए।
अंतिम अनुष्ठान के उस पल की याद में, मुक्तिनंद बाबा ने गाँव के केंद्र में एक छोटा सा मंदिर स्थापित कराया। मंदिर के मुख्य प्रांगण में एक मूर्ति रखी गई, जिसमें एक साधक और एक सुंदर यक्षिणी का सम्मिलित चित्र था ध्रुव और मृगनैनी के रूप में। उस मूर्ति के पास एक श्लोक की पंक्तियाँ खुदी हुई थीं:
अंधकार में चाहे कितनी भी चमक हो,
सच्चा प्रकाश संयम और ज्ञान में बसता है।
जो प्रेम में डूब कर राह भटक जाए,
वह अंततः स्वयं को खो देता है।
उस दिन, जब सूरज ने अपनी सुनहरी किरणों से मंदिर और गाँव को नवजीवन प्रदान किया, मृगनैनी की अंतिम उपस्थिति गाँव के किनारे पुराने बरगद के पास देखी गई। उसकी परछाई धीरे धीरे धुंधली होती चली गई, मानो वह अपने कर्मों का प्रायश्चित करते हुए उस अज्ञात, अंधकारमय लोक में विलीन हो रही हो। उसकी आँखों में अब पीड़ा के साथ साथ एक गहरी शांति भी झलक रही थी जैसे उसने अपने भीतर के तमाम कलुष को समेट, अंततः मुक्ति पा ली हो।
ध्रुव की आत्मा, जिसकी पीड़ा अनगिनत रातों में चुपचाप संघर्ष करती रही थी, अब उस चमकती आभा के संग अदृश्य हो गई। बाबा ने अंतिम मंत्र का उच्चारण करते हुए कहा, जिस आत्मा ने इस धूप छाँव के खेल में अपना अंश छोड़ दिया, वह अब शांति के मार्ग पर अग्रसर हो गई है।
युग और काजल ने एक दूसरे की ओर देखा, उनके मन में भय के साथ साथ एक नई समझ भी थी कि जीवन के हर मोड़ पर संतुलन और संयम की आवश्यकता होती है। जानकी ने अपने भीतर ठान लिया कि भविष्य में वे न केवल अपने परिवार की रक्षा करेंगे, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी यह चेतावनी देंगे कि अनियंत्रित इच्छा और बिना मार्गदर्शन के साधना, अपार दुःख का कारण बन सकती है।
गाँव में धीरे धीरे जीवन सामान्य हो गया, पर उस रात की घटनाएँ सदैव एक स्मृति के रूप में बनी रहीं। ध्रुव और मृगनैनी की कथा, एक प्रेम और विपत्ति की अनंत कहानी के रूप में, अब केवल एक चेतावनी बनकर रह गई।
तो दोस्तों आज की कहानी यही समाप्त होती है कहानी कैसी लगी कमेंट में जरूर बताएं अगर अच्छी लगी हो तो वीडियो को लाइक और चैनल को सब्सक्राइब कर लें