Udaan: A Tale of Struggle in Hindi Short Stories by Tapasya Singh books and stories PDF | उड़ान - एक संघर्ष की कहानी

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उड़ान - एक संघर्ष की कहानी

अध्याय 1: नए सफर की शुरुआत

गाँव की कच्ची सड़कों पर दौड़ता हुआ एक किशोर, जिसका नाम अद्वितीय था, अपनी किताबें सीने से लगाए तेज़ी से स्कूल की ओर भाग रहा था। धूल से सनी उसकी चप्पलें और हल्के से फटे कपड़े उसकी आर्थिक स्थिति बयां कर रहे थे, लेकिन उसकी आँखों में एक अलग ही चमक थी—सपनों की चमक।

अद्वितीय का जन्म एक छोटे से गाँव सतपुरा में हुआ था। उसके पिता किसान थे, जो दिन-रात मेहनत करके घर चलाते थे। माँ एक साधारण गृहिणी थी, जो अद्वितीय और उसकी छोटी बहन रश्मि का बहुत ख्याल रखती थी। अद्वितीय पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहता था, लेकिन गाँव के हालात ऐसे नहीं थे कि उसे आगे पढ़ने का अवसर आसानी से मिल पाता।

"बेटा, पढ़ाई ज़रूरी है, पर हमारी स्थिति भी तो देखो।" माँ ने एक दिन प्यार से समझाया।"माँ, मैं कुछ भी करके अपने सपनों को पूरा करूंगा। देखना, एक दिन हम भी गरीबी से बाहर निकलेंगे!" अद्वितीय ने आत्मविश्वास से कहा।अध्याय 2: पहली चुनौती

गाँव में सिर्फ़ एक सरकारी स्कूल था, जहाँ बार-बार शिक्षक अनुपस्थित रहते थे। लेकिन अद्वितीय के हौसले को यह सब डिगा नहीं सका। उसने खुद से पढ़ाई करने की ठानी और पास के कस्बे से पुरानी किताबें जुटा लीं।

स्कूल में बोर्ड परीक्षा की तैयारियाँ शुरू हो गई थीं। अद्वितीय के पास न तो अच्छे नोट्स थे और न ही कोई गाइड। लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। गाँव के एक बुजुर्ग शिक्षक, श्रीराम सर, जो अब रिटायर हो चुके थे, ने उसकी प्रतिभा को पहचाना और उसकी मदद करनी शुरू कर दी।

"बेटा, ज्ञान ही सबसे बड़ी पूँजी है। इसे कोई तुमसे छीन नहीं सकता," श्रीराम सर ने कहा।

अद्वितीय ने जी-जान लगाकर पढ़ाई की और जब बोर्ड परीक्षा के परिणाम आए, तो पूरे गाँव में उसकी चर्चा होने लगी। उसने पूरे जिले में टॉप किया था।अध्याय 3: शहर की ओर कदम

पर अब अगली चुनौती थी—आगे की पढ़ाई। अद्वितीय को शहर जाकर कोचिंग करनी थी, लेकिन पैसों की कमी एक बहुत बड़ी बाधा थी। गाँव के सरपंच और कुछ दयालु लोगों ने मिलकर उसकी फीस का इंतजाम कियाशहर में आकर उसे महसूस हुआ कि असली संघर्ष अब शुरू हुआ है। यहाँ के स्टूडेंट्स महंगी किताबों और संसाधनों से पढ़ते थे, जबकि अद्वितीय के पास सिर्फ़ मेहनत का सहारा था। लेकिन उसने हार नहीं मानी।अध्याय 4: सफलता की ओर

दिन-रात की मेहनत और कई संघर्षों के बाद अद्वितीय ने प्रतिष्ठित प्रतियोगी परीक्षा पास कर ली। उसने अपने गाँव का नाम रोशन किया और अब वह एक सफल अफसर बन चुका था। जब वह गाँव वापस लौटा, तो लोग उसे गर्व से देख रहे थे।

"आज मैं जो कुछ भी हूँ, अपनी मेहनत और गाँव के लोगों की वजह से हूँ," अद्वितीय ने सभा में कहा।

उसने गाँव में एक स्कूल खुलवाने का संकल्प लिया ताकि कोई और अद्वितीय शिक्षा के अभाव में अपने सपनों से वंचित न रहे।

अध्याय 5: नई ज़िम्मेदारियाँ

अद्वितीय अब एक प्रशासनिक अधिकारी बन चुका था, लेकिन उसके मन में हमेशा अपने गाँव की चिंता रहती थी। उसने महसूस किया कि शिक्षा ही गाँव की सबसे बड़ी जरूरत है।

"अगर मुझे आगे बढ़ने के लिए संघर्ष करना पड़ा, तो बाकियों को भी इसी समस्या का सामना करना पड़ेगा।" उसने सोचा।

उसने प्रशासन से मदद लेकर अपने गाँव में एक मॉडल स्कूल खोलने की योजना बनाई। लेकिन यह आसान नहीं था। गाँव के कुछ प्रभावशाली लोग, जो अशिक्षा को अपने फायदे के लिए बनाए रखना चाहते थे, उसके खिलाफ खड़े हो गए।

"शिक्षा से क्या होगा? बच्चे पढ़-लिखकर शहर भाग जाएंगे और गाँव का काम कौन करेगा?" सरपंच के भतीजे रघु सिंह ने विरोध किया।

लेकिन अद्वितीय अडिग था। उसने गाँव के लोगों को समझाया कि शिक्षा से सिर्फ रोजगार ही नहीं, बल्कि जागरूकता भी आएगी। आखिरकार, लोगों को उसकी बात समझ आई, और स्कूल की नींव रखी गई।अध्याय 6: विरोध और संघर्ष

जब स्कूल निर्माण का कार्य शुरू हुआ, तो विरोध करने वालों ने इसमें बाधाएँ डालनी शुरू कर दीं। कभी निर्माण सामग्री चोरी हो जाती, तो कभी मजदूरों को धमकाया जाता।

अद्वितीय ने कड़े कदम उठाने का फैसला किया। उसने प्रशासन से मदद मांगी और दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी। धीरे-धीरे स्थिति नियंत्रण में आने लगी और स्कूल का काम पूरा हो गया।

जब स्कूल में पहली बार बच्चों की घंटी बजी, तो अद्वितीय की आँखें नम हो गईं। उसका सपना अब साकार हो चुका था।अध्याय 7: बदलाव की बयार

गाँव के बच्चे अब अच्छी शिक्षा पाने लगे। श्रीराम सर, जो अद्वितीय के मार्गदर्शक थे, को स्कूल का प्रधानाध्यापक बनाया गया। गाँव में शिक्षा का स्तर बढ़ा, और धीरे-धीरे लोगों की सोच में भी बदलाव आने लगा।

रघु सिंह, जो स्कूल का सबसे बड़ा विरोधी था, एक दिन अद्वितीय के पास आयामैं गलत था, भाई। मैंने सोचा नहीं था कि शिक्षा से गाँव में इतना सुधार आ सकता है। मेरी बेटी भी इस स्कूल में पढ़ना चाहती है।"

अद्वितीय ने मुस्कुराते हुए कहा, "देर आए, दुरुस्त आए! शिक्षा किसी की दुश्मन नहीं होती, यह तो सबसे बड़ी ताकत है।"अध्याय 8: एक नई उड़ान

समय बीतता गया, और सतपुरा गाँव अब जिले का सबसे शिक्षित गाँव बन चुका था। स्कूल से पढ़कर निकले बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर और शिक्षक बनने लगे।

अद्वितीय को जब सरकार ने ‘राष्ट्रीय शिक्षा प्रेरणा पुरस्कार’ से सम्मानित किया, तो पूरे गाँव में जश्न का माहौल था। लेकिन उसके लिए सबसे बड़ा सम्मान वह था, जब उसकी छोटी बहन रश्मि, जो अब एक शिक्षिका बन चुकी थी, पहली बार उसी स्कूल में पढ़ाने आई।

"भैया, यह सब आपके कारण संभव हुआ है," रश्मि ने कहा।

"नहीं, यह सब शिक्षा की शक्ति का कमाल है," अद्वितीय ने जवाब दिया।निष्कर्ष

  1. अद्वितीय की यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची सफलता सिर्फ खुद तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि उसे समाज की भलाई में लगाना ही असली उपलब्धि है। जब एक इंसान शिक्षा को प्राथमिकता देता है, तो पूरा समाज तरक्की की ओर बढ़तa