रात्रि का गहरा अंधकार स्वर्ग और पाताल दोनों पर छाया हुआ था। कैलाश पर्वत के शिखर पर भगवान शिव ध्यान में लीन थे, और उनके चारों ओर दिव्य आभा फैली हुई थी। उसी समय, एक रहस्यमयी शक्ति ब्रह्मांड में आकार ले रही थी एक स्त्री, जो इतनी सुंदर थी कि स्वयं देवता और असुर भी उसकी ओर देखने पर विवश हो जाएँ।
यह मोहिनी थी।
कहते हैं, जब देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया, तब अमृत निकालने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया था। परंतु इस बार, वह एक स्वतंत्र चेतना के रूप में जन्मी थीना पूरी तरह देव, ना पूरी तरह असुर। वह कामना और मोह का प्रत्यक्ष स्वरूप थी।
स्वर्ग में उसकी चर्चा आग की तरह फैल गई। इंद्रदेव तक जब यह समाचार पहुँचा, तो वह स्वयं उसकी खोज में निकल पड़े। लेकिन पाताल में भी इस रहस्य को सुनकर असुरों के राजा वज्रदंत ने अपने दूतों को आदेश दिया कि वह स्त्री असुरों के लिए सबसे महत्वपूर्ण हो सकती है।
मोहिनी का सौंदर्य किसी के नियंत्रण में नहीं था, और शायद, वह स्वयं भी नहीं जानती थी कि उसका जन्म किस उद्देश्य से हुआ है। लेकिन एक बात निश्चित थीउसका अस्तित्व देवताओं और असुरों की दुनिया को हमेशा के लिए बदलने वाला था।
रात्रि अपने चरम पर थी। चंद्रमा की शीतल रौशनी पृथ्वी, स्वर्ग और पाताल को आलोकित कर रही थी, लेकिन स्वर्ग और पाताल के स्वामी इस समय केवल एक ही विचार में मग्न थे मोहिनी को पाने का।
स्वर्ग में इंद्र की योजना
इंद्र अपने राजसिंहासन पर चिंतित बैठे थे। अप्सराएँ उनके समक्ष नृत्य कर रही थीं, किंतु उनका मन कहीं और था। यदि मोहिनी स्वर्ग में आ जाए, तो यह स्थान पुनः अपराजेय हो जाएगा, उन्होंने सोचा।
उन्होंने विश्वकर्मा को बुलाया, जो देवताओं के शिल्पकार थे।
तुम्हें एक ऐसा महल बनाना होगा, जो मोहिनी जैसी स्त्री को मोहित कर सके। ऐसा स्वर्णमहल, जो प्रेम और वासना का केन्द्र बन जाए। इंद्र ने आदेश दिया।
विश्वकर्मा ने सिर झुकाया। यह कार्य कठिन होगा, देवराज, किंतु मैं इसे पूर्ण करूँगा।
इसके साथ ही, इंद्र ने अपने गंधर्वों को भेजा ताकि वे मोहिनी तक यह संदेश पहुँचाएँ कि स्वर्ग में उनका स्वागत है। उन्होंने यह भी योजना बनाई कि यदि मोहिनी आने से इनकार करे, तो वे अपने दिव्य आकर्षण से उसे वश में कर लेंगे।
पाताल में वज्रदंत की रणनीति
वहीं, पाताल में वज्रदंत अपने सेनापतियों से मंत्रणा कर रहे थे।
देवताओं ने हमें सदा छल से हराया है। अब समय आ गया है कि हम भी एक चाल खेलें।
उनका महामंत्री आगे बढ़ा। स्वामी, मोहिनी को पाने के लिए केवल बल ही नहीं, चातुर्य भी चाहिए। हमें उसके मन की इच्छाएँ जाननी होंगी।
वज्रदंत ने क्रूर मुस्कान भरी। तो जानो। जो भी मोहिनी के विचारों को समझ सकेगा, वही असुरों का सबसे बड़ा हितैषी होगा।
असुरों ने अपनी माया शक्तियों से मोहिनी के पास दूत भेजे, जो उसकी पसंद-नापसंद जानने के लिए तैयार थे।
मोहिनी का निर्णय
उधर, मोहिनी एक रहस्यमयी वन में विचरण कर रही थी। वह जानती थी कि देव और असुर, दोनों उसे पाने के लिए व्याकुल हैं। लेकिन वह स्वयं क्या चाहती थी।
क्या मैं केवल किसी की कामना मात्र हूँ। उसने स्वयं से प्रश्न किया।
तभी उसे सामने एक जलाशय दिखाई दिया, जिसमें उसका प्रतिबिंब चमक रहा था। उसने स्वयं को देखाएक स्त्री, जिसकी सुंदरता लोकों को विचलित कर सकती थी। किंतु उसकी आत्मा।
वह अभी भी खोज में थी।
मोहिनी अभी भी जलाशय के किनारे खड़ी थी। चंद्रमा की शीतल रौशनी जल में प्रतिबिंबित हो रही थी, और मंद हवा उसके लंबे, काले केशों से खेल रही थी। उसके मन में एक ही प्रश्न थाक्या वह किसी एक को चुनेगी, या स्वयं अपनी राह बनाएगी।
तभी, दो पक्षियों की आवाज़ ने उसका ध्यान भंग किया। एक सफेद हंस था, और दूसरा काला कौआ। हंस ने प्रेमपूर्वक गायास्वर्ग जाओ, वहाँ सौंदर्य और विलास है। कौआ कर्कश हँसापाताल जाओ, वहाँ शक्ति और अधिकार है।
मोहिनी मुस्कुराई। उसने कोई उत्तर नहीं दिया, बल्कि अपने प्रतिबिंब को निहारा और धीमे स्वर में बोलीमैं किसी की वस्तु नहीं हूँ। मैं स्वयं अपने भाग्य की रचयिता हूँ।
इंद्र का संदेश
स्वर्ग के गंधर्व मोहिनी के समक्ष खड़े थे। उन्होंने अत्यंत मधुर स्वर में कहा
देवराज इंद्र ने तुम्हारे लिए स्वर्णमहल बनवाया है। वहाँ अप्सराएँ, संगीत, और ऐश्वर्य तुम्हारा स्वागत करने के लिए प्रतीक्षा कर रहे हैं। स्वर्ग तुम्हारी शोभा से पूर्ण होगा।
मोहिनी ने गंधर्वों की आँखों में झाँका। वहाँ आकर्षण था, लेकिन भय भी। वे जानते थे कि यदि वह मना कर दे, तो इंद्र कुपित होंगे।
स्वर्ग विलास का स्थान है, मोहिनी ने कहा, किन्तु क्या वहाँ स्वतंत्रता है।
गंधर्वों ने उत्तर नहीं दिया। वे लौट गए, इंद्र के क्रोध की आशंका लिए।
असुरों का प्रस्ताव
इसी बीच, पाताल से वज्रदंत के दूत आए। उन्होंने मोहिनी के समक्ष सिर झुकाया और कहा
असुरराज ने संदेश भेजा है। यदि तुम पाताल आओगी, तो वहाँ तुम्हें असीम शक्ति प्राप्त होगी। देवताओं का पतन तुम्हारे चरणों में होगा, और सम्पूर्ण संसार पर तुम्हारा आधिपत्य होगा।
मोहिनी ने दूतों की आँखों में देखा। वहाँ लोभ था, और एक छिपी हुई अधीरता भी।
शक्ति मेरे पास स्वयं है, उसने कहा। किन्तु क्या वहाँ प्रेम होगा।
दूत मौन रह गए। वे लौट गए, वज्रदंत के उत्तर की प्रतीक्षा में।
तीसरी शक्ति का उदय
जब स्वर्ग और पाताल के दूत चले गए, तो जंगल में एक अजीब-सी शांति छा गई। मोहिनी ने आकाश की ओर देखा, और तभी पेड़ों के पीछे से एक रहस्यमयी पुरुष प्रकट हुआ।
उसकी आँखें गहरी थीं, स्वर गंभीर। उसके वस्त्र साधारण थे, किंतु उसकी उपस्थिति में अपार शक्ति थी।
कौन हो तुम। मोहिनी ने पूछा।
पुरुष मुस्कुराया। मैं वह हूँ, जिसे देवता और असुर दोनों भूल चुके हैंतपस्वी, जो neither स्वर्ग चाहता है, न पाताल। मैं केवल सत्य चाहता हूँ।
मोहिनी पहली बार किसी से प्रभावित हुई थी।
तुम मुझसे क्या चाहते हो। उसने पूछा।
तपस्वी ने उत्तर दियायह प्रश्न यह होना चाहिए कि तुम स्वयं क्या चाहती हो।
और पहली बार, मोहिनी के पास कोई उत्तर नहीं था।
रात्रि घनी हो चुकी थी, लेकिन मोहिनी के भीतर कुछ जाग चुका थाएक अभूतपूर्व बोध।
तपस्वी का प्रश्न उसके हृदय में गूँज रहा था
तुम स्वयं क्या चाहती हो।
अब तक देव और असुर, दोनों उसे पाने के लिए आतुर थे। किंतु पहली बार, उसे लगा कि वह केवल एक इच्छा-पूर्ति का साधन नहीं है।
तपस्वी का रहस्य
मोहिनी ने तपस्वी की आँखों में झाँका। वहाँ न तो वासना थी, न अधिकार की भूखबस एक रहस्यमयी शांति थी।
तुम कौन हो। उसने पुनः पूछा।
तपस्वी मुस्कुराया। जिसे लोग भूले नहीं, बस पहचान नहीं सके। मैं वही हूँ जिसे शक्ति चाहिए, पर अधिकार नहीं। जिसे सत्य चाहिए, पर स्वामित्व नहीं।
मोहिनी ने अनुभव किया कि इस पुरुष में कोई दैवीय तत्व है।
तुम मेरे साथ चलोगी। तपस्वी ने पूछा।
मोहिनी ने गहरी सांस ली। नहीं, उसने कहा, लेकिन मैं अब किसी के नियंत्रण में नहीं रहूँगी। न इंद्र के, न वज्रदंत के, न तुम्हारे।
तपस्वी मुस्कुराया। फिर युद्ध होगा। तुम जानती हो न।
स्वर्ग और पाताल का क्रोध
इंद्र को जब यह समाचार मिला कि मोहिनी ने उनके स्वर्णमहल को ठुकरा दिया, तो वे क्रोधित हो उठे।
क्या मैं त्रिलोकपति नहीं। उन्होंने गरजकर कहा। क्या कोई स्त्री मुझे अस्वीकार कर सकती है।
उन्होंने स्वर्ग की सेनाओं को संगठित किया। यदि मोहिनी मेरी नहीं हो सकती, तो मैं उसे किसी और का भी नहीं होने दूँगा।
उधर, पाताल में वज्रदंत अट्टहास कर रहा था।
इंद्र मूर्ख है। मोहिनी पर केवल बल का अधिकार चलेगा।
असुरों की सेनाएँ एकत्र होने लगीं।
मोहिनी की चाल
मोहिनी जानती थी कि स्वर्ग और पातालदोनों उसे पाने के लिए युद्ध छेड़ देंगे। किंतु उसने भी एक योजना बनाई।
वह एक पर्वत की चोटी पर खड़ी हो गई, जहाँ से पूरा आकाश दिखाई देता था।
तभी, उसने अपनी मायावी शक्ति का उपयोग किया।
रात के अंधकार में, मोहिनी ने अपने सौंदर्य को कई रूपों में विभाजित कर दिया। आकाश में सैकड़ों मोहिनियाँ प्रकट हुईंहर दिशा में, हर स्वरूप में।
स्वर्ग और पाताल की सेनाएँ भ्रमित हो गईं।
कौन असली है। इंद्र चिल्लाए।
यह छल है। वज्रदंत गरजा।
लेकिन तब तक, मोहिनी स्वयं लुप्त हो चुकी थी।
रात्रि के स्याह आकाश में युद्ध की ज्वाला धधक रही थी। स्वर्ग और पाताल की सेनाएँ आपस में टकरा रही थीं। देवताओं के शस्त्रों से बिजली कौंध रही थी, और असुरों की गदा पृथ्वी को थर्रा रही थी।
लेकिन जिस कारण यह युद्ध शुरू हुआ था मोहिनी वहाँ पर थी ही नहीं।
इंद्र और वज्रदंत की व्याकुलता
इंद्रदेव अपनी वज्र से गगन को चीरते हुए गरजे
यह युद्ध तब तक नहीं रुकेगा जब तक मोहिनी मेरी नहीं हो जाती।
वज्रदंत हँसा। यदि तुम उसे नहीं पा सकते, तो मैं भी उसे स्वर्ग में नहीं जाने दूँगा। यह युद्ध अब एक स्त्री के लिए नहीं, बल्कि हमारी महाशक्ति के लिए है।
लेकिन सत्य तो यह था कि दोनों ने मोहिनी को खो दिया था।
मोहिनी का नया संसार
जब स्वर्ग और पाताल विनाश में डूबे हुए थे, तब मोहिनी एक नए लोक में प्रवेश कर रही थीभूलोक।
वह अब न स्वर्ग की अप्सरा थी, न पाताल की रानी।
वह मनुष्यों के बीच एक रहस्यमयी शक्ति बनकर आई।
मोहिनी: देवता, असुर या कुछ और।
कहा जाता है कि मनुष्यों के बीच मोहिनी ने प्रेम, आकर्षण, और छल की कला सिखाई।
कुछ ने उसे देवी माना, कुछ ने मायावी।
परंतु सच्चाई यह थी कि उसने स्वयं अपना भाग्य चुना।
अब वह किसी की दासी नहीं थी। न इंद्र की, न वज्रदंत की, न किसी तपस्वी की।
वह थी
स्वतंत्र, अमर, और अजेय।
और इस तरह, स्वर्ग और पाताल की सबसे वांछित स्त्री एक अज्ञात लोक में विलीन हो गई।
(समाप्त)