प्रायश्चित
किसी गहरे जंगल में एक छोटा सा गाँव था, जहाँ लोग बहुत ही साधारण जीवन जीते थे। गाँव के निवासी अपनी खेती-बाड़ी से संतुष्ट रहते थे, लेकिन उनके बीच एक व्यक्ति ऐसा था जिसे सभी जानते थे, और उसकी पहचान थी—शंकर। वह गाँव का सबसे अच्छा शिकारी था, लेकिन उसकी एक आदत थी, जो उसे बाकी सभी से अलग करती थी। शंकर को कभी कोई शिकारी माफी नहीं मिलती थी, चाहे वह कितना ही बड़ा अपराध क्यों न करता। और उसकी सबसे बड़ी गलती यह थी कि वह कभी किसी की मदद नहीं करता था, क्योंकि उसकी नज़र में उसकी अपनी दुनिया ही सर्वोपरि थी।
एक दिन, गाँव में एक बड़ी विपत्ति आई। गाँव के प्रमुख और उनकी पत्नी बीमार हो गए। उनका इलाज करना बहुत मुश्किल था, क्योंकि गाँव के पास कोई अच्छा चिकित्सक नहीं था और उस समय के साधारण इलाज से उनकी हालत और बिगड़ने लगी। पूरे गाँव में हड़कंप मच गया। लोग डॉक्टर के पास जाने का फैसला करते हैं, लेकिन किसी कारणवश, उनका रास्ता बंद हो जाता है।
गाँव के कुछ लोग शंकर के पास गए और उससे मदद माँगी। वे जानते थे कि शंकर के पास जंगल की गहरी जानकारी है, और हो सकता है कि वह कोई औषधि या जड़ी-बूटी जानता हो जो बीमारियों का इलाज कर सके। लेकिन शंकर ने उन्हें सीधे नकार दिया। उसकी जिद थी कि वह किसी की मदद नहीं करेगा, क्योंकि उसे विश्वास था कि उसकी अपनी ज़िंदगी और उसके काम सबसे महत्वपूर्ण थे।
“मुझे अपनी ज़िंदगी में क्या कमी है? मुझे किसी के लिए कुछ नहीं करना चाहिए। सबको अपनी परेशानियाँ खुद सुलझानी चाहिए,” शंकर ने दृढ़ता से कहा।
गाँव वाले निराश होकर वापस लौट गए, लेकिन एक बुजुर्ग आदमी ने शंकर की बातों को सुना था और वह उसे समझाने के लिए उसके पास गया। वह बुजुर्ग आदमी शंकर के पुरखे का मित्र था और जानता था कि शंकर का हृदय कभी अच्छाई से भरा था, लेकिन कुछ घटनाएँ उसे कठोर बना चुकी थीं।
"शंकर," बुजुर्ग आदमी ने कहा, "तेरी आँखों में एक अजीब सी जलन है, जैसे तुझे अपनी गलतियों का एहसास न हो। तेरे अंदर एक समय था जब तू सबसे अच्छा इंसान था, लेकिन तूने अपने हृदय को तंग और कठोर बना लिया है।"
शंकर चुप रहा, उसकी आँखों में उदासी थी। "क्या तुम जानते हो कि मैंने क्या किया है? क्या तुम जानते हो कि मैं कितनी बार अपनी गलती की वजह से अपनों से दूर हो गया?" उसने धीरे से पूछा।
"तुमने बहुत सारी गलतियाँ की हैं, लेकिन हर गलती का एक तरीका होता है, शंकर। अगर तुम अपने भीतर छुपी हुई सफाई की राह पर चलने का प्रयास करो, तो तुम्हें शांति और सुकून मिलेगा।"
शंकर की आँखों में गहरी सोच थी। वह जानता था कि उसकी ज़िंदगी में कुछ तो गड़बड़ थी। लेकिन वह अपने जीवन की गलतियों से भागने की बजाय उन्हें सही करने का फैसला करता है।
अगली सुबह, शंकर जंगल की ओर चल पड़ा। उसने सोचा कि वह उस जड़ी-बूटी को खोजेगा जो गाँव के प्रमुख और उनकी पत्नी के इलाज में मदद कर सके। वह दिन-रात जंगल में घूमता रहा, और उसे एक बहुत ही rare जड़ी-बूटी मिली, जो वर्षों से कहीं खोई हुई थी। शंकर ने उसे तुरंत गाँव वापस लाकर, उस बुजुर्ग आदमी के पास दिया और कहा, “यह जड़ी-बूटी गाँव के प्रमुख और उनकी पत्नी के इलाज में मदद कर सकती है।”
गाँव के लोग शंकर का धन्यवाद करने के लिए दौड़े, लेकिन शंकर चुपचाप जंगल की ओर लौट गया। उसकी आत्मा में अब एक हल्का सा बदलाव महसूस हो रहा था, जैसा कि वह अपने प्रायश्चित की ओर बढ़ रहा था।
गाँव में कुछ ही दिनों में, प्रमुख और उनकी पत्नी ठीक हो गए। पूरे गाँव में खुशियाँ छा गईं। लोग अब शंकर को सम्मान देने लगे, क्योंकि उसने अपनी गलतियों को सुधारने का प्रयास किया था। लेकिन शंकर ने खुद को कभी स्वीकार नहीं किया। वह जानता था कि उसके द्वारा किए गए अपराध और गलतियाँ किसी भी पुरस्कार से अधिक महत्वपूर्ण थीं।
कुछ महीनों बाद, शंकर को एहसास हुआ कि सच्चे प्रायश्चित की शुरुआत अपने आप से होती है। वह खुद को क्षमा करने के बाद, वह दूसरों से भी माफी मांगने गया। गाँव के सभी लोगों से माफी माँगी, और यही वह क्षण था जब शंकर ने अपना जीवन बदलने की असली शुरुआत की।
एक दिन शंकर ने एक नई राह चुनी। अब वह न केवल एक शिकारी था, बल्कि एक शिक्षक भी बन गया। वह गाँव के बच्चों को सिखाने लगा, उन्हें जंगल की अद्भुत और रहस्यमय दुनिया के बारे में बताता और उन्हें अच्छा इंसान बनने के लिए प्रेरित करता। उसकी जीवन यात्रा अब केवल शिकारी बनने तक सीमित नहीं थी, बल्कि उसने अपने जीवन के उद्देश्य को खोज लिया था—आत्म-सुधार और दूसरों की मदद करना।
और इस तरह, शंकर ने अपनी गलतियों के लिए प्रायश्चित किया और एक नया जीवन शुरू किया, जिसमें वह न केवल खुद को, बल्कि अपने पूरे गाँव को भी बदलने की क्षमता रखता था।