Emperor Ashoka in Hindi Mythological Stories by Lokesh Dangi books and stories PDF | सम्राट अशोक

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सम्राट अशोक

सम्राट अशोक का नाम भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है। वह मौर्य साम्राज्य के तीसरे सम्राट थे, जिनका शासन लगभग 268 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व तक रहा। अशोक का जीवन एक संघर्ष, परिवर्तनों और गहरी सोच का प्रतीक बन गया। वह अपनी वीरता, बुद्धिमत्ता, और न्यायप्रियता के लिए प्रसिद्ध हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उनका जीवन उस समय के सबसे बड़े धर्म परिवर्तन का गवाह भी बना। उनके जीवन के कई पहलू हैं, जो इतिहासकारों और शोधकर्ताओं के लिए हमेशा आकर्षण का केंद्र रहे हैं।

प्रारंभिक जीवन और राज्यारोहण

सम्राट अशोक का जन्म 304 ईसा पूर्व में हुआ था। वह मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य के पोते और बिंदुसार के पुत्र थे। उनके प्रारंभिक जीवन के बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं मिलती, लेकिन यह माना जाता है कि अशोक को उनकी मां, महामात्री, ने पाला था। अशोक के बारे में यह भी कहा जाता है कि वह बचपन में क्रूर और उग्र स्वभाव के थे, जो अपने समय के अन्य राजकुमारों से बहुत अलग थे।

अशोक के राज्यारोहण के बाद मौर्य साम्राज्य की सत्ता मजबूत हुई। उनके शासन में भारत के बड़े हिस्से पर मौर्य साम्राज्य का नियंत्रण था, जिसमें वर्तमान भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांगलादेश और अफगानिस्तान के कुछ हिस्से शामिल थे। अशोक ने अपने साम्राज्य की सीमा को और बढ़ाया, जिससे वह एक शक्तिशाली सम्राट बन गए।

कलिंग युद्ध और धर्म परिवर्तन

सम्राट अशोक के जीवन में सबसे बड़ा मोड़ कलिंग युद्ध (265-263 ईसा पूर्व) के बाद आया। यह युद्ध मौर्य साम्राज्य और कलिंग राज्य (वर्तमान ओडिशा) के बीच लड़ा गया था। यह युद्ध अशोक के लिए अत्यंत क्रूर और दर्दनाक अनुभव था, क्योंकि युद्ध के बाद लाखों लोग मारे गए, घायल हुए और अपंग हो गए। इस युद्ध ने अशोक को आंतरिक रूप से प्रभावित किया और उनका दिल बदल गया। उन्होंने युद्ध की क्रूरता और हिंसा को महसूस किया और इसके परिणामस्वरूप उन्होंने अपने जीवन को धर्म और अहिंसा की ओर मोड़ लिया।

कलिंग युद्ध के बाद, सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाया। वह बौद्ध धर्म के महान अनुयायी बने और उसके सिद्धांतों को अपने शासन में लागू किया। अशोक ने अहिंसा, सत्य, और दया के सिद्धांतों का पालन किया और इसे अपने शासन की नीति का हिस्सा बनाया। उन्होंने बौद्ध भिक्षुओं को प्रोत्साहित किया और बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए कई मिशन भेजे। अशोक ने न केवल अपने साम्राज्य में बल्कि विदेशों में भी बौद्ध धर्म का प्रचार किया।

धर्मनिरपेक्ष शासन और नीति

अशोक का शासन धर्मनिरपेक्ष था, जिसमें सभी धर्मों का सम्मान किया गया। उन्होंने अपने राज्य में "धम्म" (धर्म) के सिद्धांतों को लागू किया। उनके द्वारा स्थापित "धम्मीय" नीति में न्याय, समानता, और मानवता की महत्वपूर्ण भूमिका थी। उन्होंने अपनी नीति को लोगों तक पहुँचाने के लिए स्तंभों और शिलालेखों का उपयोग किया, जिनमें उन्होंने अपने धार्मिक और नैतिक संदेश दिए। इन शिलालेखों में अशोक के धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण, अहिंसा और शांति के बारे में लिखा गया है।

अशोक के शिलालेखों में बौद्ध धर्म की शिक्षा का प्रचार किया गया, और उन्होंने अपने राज्य में शिक्षा, चिकित्सा, और कल्याण की दिशा में कई कदम उठाए। उन्होंने विभिन्न स्थानों पर अस्पताल और सड़क किनारे जलाशयों का निर्माण किया, जिससे जनता को स्वास्थ्य सुविधाएँ मिल सकें। इसके अलावा, उन्होंने महिलाओं की स्थिति सुधारने और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए भी कई कदम उठाए।

अशोक के स्तंभ और शिलालेख

सम्राट अशोक के शासन में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए सबसे प्रभावी माध्यम उनके स्तंभ और शिलालेख थे। अशोक ने विभिन्न जगहों पर 14 बड़े शिलालेख और 13 स्तंभ स्थापित किए, जिनमें उनके धार्मिक विचार, शासन की नीतियाँ, और साम्राज्य के विकास की जानकारी दी गई। इन शिलालेखों में अशोक ने अपनी नीति को "धम्म" के सिद्धांतों के तहत प्रस्तुत किया, जिसमें अहिंसा, सत्य, और करुणा का प्रचार किया गया। इन शिलालेखों का ऐतिहासिक महत्व बहुत अधिक है, क्योंकि इनमें उस समय की सामाजिक, धार्मिक, और राजनीतिक परिस्थितियों का प्रतिवेदन मिलता है।

बौद्ध धर्म के प्रचारक और विदेश नीति

अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रचार केवल भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी किया। वह बौद्ध धर्म के मिशनरी कार्यों के समर्थक थे और उन्होंने कई देशों में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भिक्षुओं को भेजा। उन्होंने श्रीलंका में बौद्ध धर्म को फैलाने के लिए अपने बेटे महेंद्र और बेटी संघमित्रा को भेजा, जिनकी उपस्थिति ने श्रीलंका में बौद्ध धर्म की जड़ें मजबूत कीं। इसके अलावा, अशोक ने एशिया के अन्य देशों में भी बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए मिशन भेजे।

अशोक की विदेश नीति भी उल्लेखनीय थी। उन्होंने अपने साम्राज्य के बाहर शांति और सहयोग का संदेश दिया। उनका आदर्श था कि युद्ध केवल अपनी रक्षा के लिए लड़ा जाना चाहिए, और सम्राट को अपने प्रजा के कल्याण के लिए काम करना चाहिए।

सम्राट अशोक की विरासत

सम्राट अशोक का शासन भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। उनका जीवन एक संघर्ष और बदलते हुए विचारों का प्रतीक था। उनका धर्म परिवर्तन और अहिंसा के प्रति समर्पण न केवल उनके समय, बल्कि बाद की पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बना। उनकी नीति और शासन के सिद्धांतों ने भारतीय समाज में गहरी छाप छोड़ी और आज भी उन्हें एक आदर्श शासक के रूप में याद किया जाता है।
सम्राट अशोक की विरासत और उनके योगदान का भारतीय और विश्व इतिहास पर गहरा प्रभाव पड़ा। उनका शासन केवल राजनीतिक और प्रशासनिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी अनोखा था। उन्होंने जिस तरह से अपने विचारों और सिद्धांतों को व्यवहार में उतारा, वह अन्य शासकों के लिए एक आदर्श बन गया।

अशोक और बौद्ध धर्म

सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को न केवल अपनाया, बल्कि उसे अपनी राज्य नीति में भी अपनाया। उनके शासनकाल के दौरान बौद्ध धर्म ने भारतीय उपमहाद्वीप और बाहर के देशों में भी अपनी जड़ें जमाईं। अशोक ने इसे सिर्फ व्यक्तिगत आस्था नहीं माना, बल्कि अपने शासन के मूल सिद्धांतों में इसे शामिल किया। उन्होंने अपने शिलालेखों और स्तंभों के माध्यम से बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का प्रचार किया, जिनमें अहिंसा, सत्य, करुणा, और दया को प्रमुखता दी गई।

अशोक ने बौद्ध धर्म को एक "राज्य धर्म" के रूप में प्रस्तुत किया, जिसका उद्देश्य समाज में शांति, समानता और सद्भावना की स्थापना करना था। उनकी नीति में युद्ध की निंदा की गई और उन्होंने युद्धों के दौरान होने वाली हिंसा को सख्ती से नकारा। इस परिवर्तन का प्रमुख कारण कलिंग युद्ध था, जिसके परिणामस्वरूप अशोक का दृष्टिकोण पूरी तरह से बदल गया। उन्होंने बौद्ध धर्म के माध्यम से अपने लोगों को अहिंसा, सत्य, और शांति के रास्ते पर चलने की प्रेरणा दी।

शांति और सामाजिक कल्याण के लिए प्रयास

अशोक ने अपने साम्राज्य में कई सुधार किए, जो समाज के हर वर्ग के लिए लाभकारी थे। उन्होंने राज्य में सामाजिक कल्याण के लिए कई योजनाएं लागू कीं। उन्होंने अस्पतालों, जलाशयों, वृक्षारोपण, और धर्मशालाओं का निर्माण किया, ताकि जनता को स्वास्थ्य और कल्याण की सुविधाएँ मिल सकें। उन्होंने सड़कों पर जलाशय और भोजनालय भी बनाए, ताकि यात्रा करते समय यात्रियों को कोई कठिनाई न हो।

इसके अतिरिक्त, अशोक ने महिलाओं के अधिकारों को भी बढ़ावा दिया। उन्होंने महिलाओं के लिए विशेष रूप से न्यायालयों में न्याय प्राप्त करने की प्रक्रिया को सरल बनाया और उनकी सामाजिक स्थिति सुधारने के लिए कई कदम उठाए। अशोक की यह नीति उनके शासन में सामाजिक समरसता और समानता को बढ़ावा देने वाली थी।

सम्राट अशोक का प्रशासन

अशोक का प्रशासन अत्यंत कुशल और सुव्यवस्थित था। उन्होंने अपने साम्राज्य के सभी हिस्सों में न्यायपूर्ण शासन स्थापित किया। उनके शासनकाल में एक केंद्रीय प्रशासन था, जिसमें मंत्री और प्रशासनिक अधिकारी अपनी जिम्मेदारियों को निष्पक्षता से निभाते थे। अशोक ने अपनी शासन प्रणाली में सुधार करते हुए एक ऐसे प्रशासनिक ढांचे का निर्माण किया, जो साम्राज्य के प्रत्येक नागरिक की भलाई के लिए काम करता था।

अशोक ने अपने साम्राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में नियमित रूप से निरीक्षण करने के लिए अधिकारियों को नियुक्त किया। उनका उद्देश्य था कि प्रशासन में पारदर्शिता बनी रहे और उनके प्रजाजन को किसी भी प्रकार की कठिनाई का सामना न करना पड़े। उन्होंने अधिकारियों से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि हर नागरिक को न्याय मिले और उन्हें कोई अन्याय न झेलना पड़े।

अशोक के शिलालेख और स्तंभ

अशोक के शिलालेख और स्तंभ भारतीय इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज़ हैं। इन शिलालेखों में अशोक के धार्मिक, सामाजिक, और राजनीतिक दृष्टिकोण का स्पष्ट रूप से वर्णन किया गया है। ये शिलालेख मुख्य रूप से पत्थर और धातु पर खुदे हुए थे और भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न हिस्सों में पाए जाते हैं।

इन शिलालेखों में अशोक ने बौद्ध धर्म की शिक्षा दी, अहिंसा का प्रचार किया, और शांति की आवश्यकता पर जोर दिया। कुछ शिलालेखों में उन्होंने अपने राज्य के विभिन्न हिस्सों में भिक्षुओं को भेजने का आदेश दिया, ताकि बौद्ध धर्म का प्रचार किया जा सके। इसके अलावा, कुछ शिलालेखों में उन्होंने अपने प्रशासन के सिद्धांतों और जन कल्याण के उपायों का विवरण दिया।

सम्राट अशोक की विदेश नीति

अशोक का विदेश नीति भी उनके शासन के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में देखा जाता है। उनका प्रमुख उद्देश्य शांति और सहयोग था, और उन्होंने युद्ध से बचने की कोशिश की। हालांकि, कलिंग युद्ध ने उन्हें अहिंसा के महत्व को समझने का अवसर प्रदान किया, लेकिन इसके बाद उनकी विदेश नीति में बदलाव आया।

अशोक ने अपने सम्राटी शासन की ताकत का उपयोग शांति और मित्रता के लिए किया। उन्होंने अपने पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंध स्थापित किए और बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने मिशन भेजे। इसके अतिरिक्त, उन्होंने श्रीलंका, एशिया के अन्य देशों और यहां तक कि अफगानिस्तान में भी बौद्ध धर्म का प्रचार किया।

सम्राट अशोक की मृत्यु और धरोहर

सम्राट अशोक का निधन 232 ईसा पूर्व में हुआ। उनकी मृत्यु के बाद मौर्य साम्राज्य धीरे-धीरे कमजोर हो गया, लेकिन उनका धरोहर और उनके द्वारा किए गए कार्य आज भी जीवित हैं। उनके शिलालेख, स्तंभ और बौद्ध धर्म के प्रति उनका योगदान भारतीय समाज में उनकी स्थायी उपस्थिति का प्रमाण है।


सम्राट अशोक की यात्रा केवल एक राजनेता की नहीं, बल्कि एक महान परिवर्तनकामी की थी। उनका जीवन न केवल भारतीय इतिहास, बल्कि विश्व इतिहास में एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करता है, जो यह बताता है कि एक शासक का उद्देश्य केवल साम्राज्य का विस्तार नहीं, बल्कि समाज की भलाई और शांति को बढ़ावा देना होना चाहिए। उनका शासनकाल दुनिया के सबसे प्रभावशाली और प्रेरणादायक युगों में से एक माना जाता है, खासकर उनके द्वारा अपनाए गए नीति, धर्म, और समाज सुधार के दृष्टिकोण के कारण।

अशोक का धर्म परिवर्तन और उसकी प्रेरणा

सम्राट अशोक का धर्म परिवर्तन इतिहास का एक सबसे महत्वपूर्ण मोड़ था। कलिंग युद्ध में हजारों निर्दोष लोग मारे गए, और इस युद्ध ने अशोक को गहरे मानसिक आघात दिया। वह स्वयं इस युद्ध के परिणाम से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने युद्ध और हिंसा के विकल्प के रूप में बौद्ध धर्म को अपनाया।

बौद्ध धर्म ने अशोक को न केवल आत्म-ज्ञान और आंतरिक शांति प्रदान की, बल्कि यह उन्हें एक नैतिक और न्यायपूर्ण शासक के रूप में ढालने में सहायक रहा। उन्होंने बौद्ध धर्म की शिक्षा को न केवल व्यक्तिगत जीवन में, बल्कि साम्राज्य के शासन में भी लागू किया। उनके द्वारा शांति, अहिंसा, और करुणा का प्रचार भारतीय समाज में एक नई जागरूकता लेकर आया, और यह संदेश न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी फैल गया।

अशोक का शिलालेख और उनके विचार

अशोक के शिलालेख उनके शासन के सबसे महत्वपूर्ण अवशेष हैं, जो आज भी उनकी सोच और विचारधारा का प्रमाण प्रदान करते हैं। उनके शिलालेखों में न केवल धर्म के सिद्धांतों का प्रचार किया गया, बल्कि उनके प्रशासन की नीतियाँ, न्याय, और उनके प्रजाजनों के प्रति दया भी स्पष्ट रूप से व्यक्त की गई हैं।

अशोक के शिलालेखों में विशेष रूप से यह देखा जाता है कि उन्होंने अपने शासन के दौरान धर्म के विविध रूपों के प्रति सम्मान व्यक्त किया। वह सभी धर्मों को समान रूप से मान्यता देते थे, और उन्होंने अपने राज्य में सभी नागरिकों को स्वतंत्र रूप से अपने धर्म का पालन करने का अधिकार दिया। उनका यह दृष्टिकोण एक समृद्ध और धर्मनिरपेक्ष समाज की ओर संकेत करता है, जो आज के समय में भी प्रासंगिक है।

समाजिक और सांस्कृतिक सुधार

सम्राट अशोक का शासन सामाजिक और सांस्कृतिक सुधारों के लिए भी जाना जाता है। उन्होंने अपने साम्राज्य में शिक्षा के प्रचार के लिए कई कदम उठाए, विशेषकर बौद्ध धर्म के अध्ययन और प्रसार के लिए। उन्होंने भिक्षुओं और साधुओं को प्रोत्साहित किया और उन्हें विभिन्न स्थानों पर जाकर बौद्ध धर्म का प्रचार करने का आदेश दिया।

अशोक ने चिकित्सा और स्वास्थ्य सुविधाओं को प्राथमिकता दी। उन्होंने अस्पतालों और चिकित्सा केंद्रों का निर्माण करवाया, जहां जनता को नि:शुल्क चिकित्सा सुविधाएँ मिलती थीं। उनके शासन में प्रजा के भले के लिए अनेक कल्याणकारी योजनाओं का संचालन हुआ। इसके अतिरिक्त, उन्होंने सड़कों के किनारे जलाशयों का निर्माण किया, ताकि यात्रा करते समय लोगों को पानी मिल सके, और राहगीरों को विश्राम करने के लिए धर्मशालाएँ प्रदान की।

सम्राट अशोक की विदेश नीति

सम्राट अशोक की विदेश नीति में शांति और सहयोग के सिद्धांत पर बल दिया गया था। उन्होंने अपने साम्राज्य के बाहर किसी भी प्रकार की आक्रामकता या युद्ध के बजाय, अन्य देशों से शांतिपूर्ण संबंध बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने विदेशी नेताओं को संवाद और साझेदारी का प्रस्ताव दिया और अपने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भिक्षुओं को विभिन्न देशों में भेजा।

उनकी विदेश नीति ने भारतीय उपमहाद्वीप से बाहर शांति और मित्रता के सिद्धांत को फैलाया। उन्होंने श्रीलंका, अफगानिस्तान, और अन्य एशियाई देशों में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने मिशन भेजे। इस प्रकार, अशोक की विदेश नीति ने न केवल भारत में, बल्कि विश्वभर में भारतीय संस्कृति और धर्म का प्रचार किया।

सम्राट अशोक का उत्तराधिकार

सम्राट अशोक का निधन 232 ईसा पूर्व में हुआ, और उनके निधन के बाद मौर्य साम्राज्य का पतन शुरू हो गया। हालांकि, उनके द्वारा स्थापित बौद्ध धर्म, उनके शिलालेख, और उनके शासन की नीतियाँ भारतीय इतिहास का अभिन्न हिस्सा बनीं। उनकी मृत्यु के बाद उनके साम्राज्य का विघटन हुआ, लेकिन उनका आदर्श और उनके द्वारा किए गए कार्य आज भी जीवित हैं।

अशोक के योगदान को हम आज भी याद करते हैं, न केवल उनके धार्मिक और शैक्षिक योगदान के रूप में, बल्कि एक शासक के रूप में भी, जिन्होंने अपनी व्यक्तिगत यात्रा के दौरान एक नई दिशा अपनाई और एक ऐसे समाज की नींव रखी, जो शांति, समानता, और मानवता पर आधारित हो।


सम्राट अशोक का जीवन एक अद्भुत परिवर्तन की कहानी है। उनका शासनकाल और उनकी नीतियाँ आज भी समाज को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं। उनके द्वारा अपनाए गए सिद्धांत और कार्य आज भी हमारे लिए एक दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं। सम्राट अशोक न केवल एक महान शासक थे, बल्कि एक महान मानवता के सिद्धांतों के अनुयायी भी थे। उनका जीवन और कार्य भारतीय और वैश्विक इतिहास का अभिन्न हिस्सा बन चुका है, और उनका आदर्श हमेशा हमारे लिए एक प्रेरणा स्रोत रहेगा।



अशोक का शासन एक परिवर्तनकारी युग था, जो केवल उनके समय तक सीमित नहीं था, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक आदर्श बन गया। उन्होंने अपने शासनकाल में जो शांति, समृद्धि और धर्मनिरपेक्षता की नींव रखी, वह आज भी भारतीय और वैश्विक समाज में महत्वपूर्ण मानी जाती है।