Sanyasi - 32 in Hindi Classic Stories by Saroj Verma books and stories PDF | सन्यासी -- भाग - 32

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सन्यासी -- भाग - 32

तब जोगी बने जयन्त की बात सुनकर चन्द्रविजय बोला...."ये सब क्या कह रहे हो तुम,मुझे इसकी कोई पीठ नहीं देखनी,जाओ और अभी से काम पर लग जाओ""जी! मालिक!"जयन्त बोला...फिर दोनों अपनी जगह से उठने लगे तो चन्द्रविजय दोनों से बोला..."तुम्हारा ये दोस्त बिरजू गूँगा है क्या?,जब से देख रहा हूँ कि बस तुम ही तुम बोले जा रहे हो","अब का बताई मालिक! पहले ई हमार दोस्त बिरजू बहुतई हँसमुख और बातूनी रहा है,लेकिन जब से इसकी मेहरिया आई है तो तब से उसने इसका जीना दूभर कर रखा है,बेचारा रोज खून के आँसू रोता है,ऐसी चण्डालिनी मेहरिया है इसकी कि बस पूछो ही मत,बेचारा मेहनत मजदूरी करके घर आता है तो दोनों बच्चों को इसकी छाती पर लाद देती है,कहती है कि मैं दिनभर सम्भालती हूँ इन्हें,अब तू सम्भाल,इत्ता जुलुम करती है कि पूछो ही मत",जयन्त ने बड़े भावुक होकर ये बात चन्द्रविजय को बताई और इधर जयन्त की हरकत से डाक्टर अरुण का पारा चढ़ गया,तब वे जयन्त से बोले...."जोगी भाई! अब बस भी करो,काहें हमारे जख्मों पर नून-मिरचा छिड़क रहे हो,सबके सामने हमारी किस्मत का रोना ना रोया करो","अच्छा! चलो! अब ना बताऐगें कुछ भी मालिक को अगर तुम्हें अच्छा नहीं लगता तो",जोगी बने जयन्त ने बिरजू बने अरुण से कहा..."सुनो! अब ज्यादा बकवास मत करो,तुम  दोनों हरिया के साथ खलिहान चले जाओ,हरिया तुम्हें सब समझा देगा और सुनो खलिहान में एक लड़की रहती है जिसका नाम रज्जो है,वो खलिहान में काम करने वाले सभी लोगों का खाना  पकाती है,अब से तुम दोनों का खाना भी वही पका दिया करेगी",चन्द्रविजय ने जोगी और बिरजू से कहा..."जी! मालिक! बहुत अच्छा!",    और ऐसा कहकर दोनों वहाँ से जाने लगे तो चन्द्रविजय ने दोनों को रोकते हुए कहा..."एक बात बताओ तुम दोनों?","जी! मालिक पूछिए",जोगी बने जयन्त ने घबराकर पूछा..."सच में शादी के बाद पत्नियाँ पतियों की पिटाई करतीं हैं क्या?" चन्द्रविजय बोला..."लेकिन आप काहें पूछ रहें हैं मालिक! कहीं ऐसा तो नहीं कि आपका ब्याह होने वाला है तो आप घबरा रहे हो कि कहीं आपकी दुल्हन भी आप पर हाथ ना उठाएँ",जोगी बने जयन्त ने चन्द्रविजय से पूछा....."क्या बकवास कर रहे हो तुम!,अब जाओ यहाँ से",चन्द्रविजय जोगी को झिड़की देते हुए बोला....     और फिर जयन्त मुस्कुराते हुए हरिया और डाक्टर अरुण के साथ घर के बाहर आ गया, इसके बाद हरिया उन दोनों को खलिहान लिवा ले गया और वहाँ एक कोठरी दिखाते हुए बोला...."ई कोठरी है,यहीं डेरा डाल लो तुम दोनो और ई रहा कुआँ,ई रही बाल्टी,खूब नहाओ,खूब पानी पिओ और पशुओं को भी नहलाओ,हम रज्जो से बोलकर आते हैं कि वो दो लोगों का खाना और बढ़ा लेगी और सुनो ऊ रज्जो के सामने ज्यादा चू-चपड़ मत करना,वो चन्द्रविजय बाबू की खास नौकरानी है,अगर उसने चन्द्रविजय बाबू से तुम लोगों की शिकायत लगा दी तो फौरन काम से निकाल दिए जाओगें","ठीक है! हमें किसी से क्या लेना देना,बस वो हम दोनों को दो बखत की रोटी दे दे और क्या चाहिए हम दोनों को",जोगी बना जयन्त बोला..."ठीक है तो अब हम जा रहे हैं वहाँ घर पर भी बहुत काम हैं हमें", हरिया खलिहान से जाते हुए बोला..  और फिर हरिया के जाते ही दोनों कोठरी के भीतर पहुँचे जहाँ एक ही चारपाई पड़ी हुई थी तो जोगी बने जयन्त ने डाक्टर अरुण से कहा..."जाइए! डाक्टर साहब! आप जरा आराम कर लीजिए,पैदल चल चलकर थक गए होगें","और आप आराम नहीं करेगें जयन्त बाबू?",डाक्टर अरुण ने पूछा..."जी! मैं तो धरती पर भी लेट जाऊँगा,मैं तो कहीं भी गुजारा कर लेता हूँ और वैसे भी आप मेरे बहनोई बनने वाले हैं तो आपका आदर करना मेरा कर्तव्य है",जयन्त ने डाक्टर अरुण से कहा..."जी! जितना अभी आप मुझे मान दे रहे हैं उससे ज्यादा इज्जत की धज्जियाँ आपने उस चन्द्रविजय के सामने उड़ा दीं हैं मेरी,मुझे लफंगा बना दिया,मुझे दो बच्चों का बाप बना दिया,बीवी से मार खाने वाला बना दिया,थोड़ी देर वहाँ और रुकना पड़ता ना तो आप तो मुझे शराबी भी बना देते",डाक्टर अरुण ने शिकायत करते हुए कहा...."अगर आपको बुरा लगा तो माँफी चाहता हूँ आपसे,मजबूरी में कहना पड़ा वो सब,नहीं तो बात ना बनती", जयन्त ने डाक्टर अरुण से कहा..."जी! कोई बात नहीं,लेकिन मुझे तो अब बहुत प्यास लग रही है,यहाँ पानी नहीं है क्या?",डाक्टर अरुण ने जयन्त से पूछा..."जी! वो रखा है मटका,शायद उसमें पानी हो",जयन्त ने कोने में रखे मटके को देखकर कहा..."छीः...वो तो बहुत ही पुराना मटका लग रहा है,ऊपर से उसके बाहर कितनी काई भी लगी है,ऐसा लगता है कि सालों से मटका बदला नहीं गया",डाक्टर अरुण बोले..."डाक्टर साहब! ये परदेस है,यहाँ आपको घर जैसी सफाई नहीं मिलेगी",जयन्त ने डाक्टर अरुण से कहा..."सच कहा जयन्त बाबू! मेरी तो एक ही दिन में हालत खस्ता हो गई,अभी तो बहुत दिन रहना है यहाँ", डाक्टर अरुण बोले..."आप चिन्ता ना करें,मैं इसे कुएँ के पास ले जाकर धो देता हूँ और साफ पानी भरकर रख देता हूँ,देखता हूँ अगर आस पास कहीं हाट लगती होगी तो नया मटका भी खरीद लाऊँगा",  और ऐसा कहकर जयन्त मटका उठाकर उसका पानी बदलने चला गया,वो मटके का पानी बदलकर लौटा  फिर उसने मटके को उसके यथास्थान पर दिया और डाक्टर अरुण को मटके से एक लोटा पानी भरकर देते हुए बोला..."लीजिए! डाक्टर साहब! पानी पी लीजिए"    फिर डाक्टर अरुण ने पानी पिया उसके बाद जयन्त ने पानी पीकर जैसे ही लोटा घड़े के पास रखा तो कोठरी के बाहर से किसी लड़की के पुकारने की आवाज़ आई..."कोई है भीतर! खाना बन गया आकर खा लो",फिर जयन्त बाहर गया और उसने उस लड़की से कहा..."कहीं तुम रज्जो तो नहीं!","हाँ! मैं ही रज्जो हूँ,तुझे कोई दिक्कत है",रज्जो ठसके के साथ बोली..."हाँ! आते हैं खाना खाने,वैसे कहाँ आना होगा खाना खाने",जयन्त ने रज्जो से पूछा..."वो जो आम के पेड़ के नीचे झोपड़ी दिखाई दे रही है वहीं पर",रज्जो बोली..."ठीक है आते हैं हम दोनों", जयन्त रज्जो से बोला...."जल्दी आ जाना खाने,फिर खाना खतम हो गया तो मैं दोबारा नहीं बनाऊँगीं",रज्जो जाते हुए बोली...     फिर जयन्त कोठरी के भीतर आकर डाक्टर अरुण से बोला..."डाक्टर बाबू! खाना खाने चलिए,रज्जो आई थी खाने के लिए बुलाने""हाँ! चलिए! जब यहाँ का पानी पी लिया तो फिर खाना खाने में भी कसर नहीं रहनी चाहिए",डाक्टर अरुण बोले..."वैसे बड़ी दमदार लड़की थी,ठसा भी बहुत था उसमें,चन्द्रविजय की खास नौकरानी है,इसलिए मुझे तो कोई झोल नजर आ रहा है",जयन्त ने डाक्टर अरुण से कहा..."अब जो भी हो,वो तो यहाँ रहने के बाद पता चलेगा कि कौन कैसा है?",डाक्टर अरुण बोले....    इसके बाद दोनों खाना खाने पहुँचे तो रज्जो दो पत्तलों पर दाल भात,आलू की भुजिया और दो रोटियाँ रखते हुए बोली..."लो खा लो!","लेकिन पत्तलों पर?",डाक्टर अरुण मुँह बनाते हुए बोले..."अब क्या तेरे लिए सोने की थाली में भोजन परोसूँ,अगर मैं सबके लिए थाली में खाना परोसूँ तो इतनी थालियाँ लाऊँगी कहाँ से",रज्जो गुस्से से बोली..."मालिक से थाली लाने के लिए क्यों नहीं कहती तुम",डाक्टर अरुण रज्जो से बोले..."ए...खाना है तो खा,नहीं तो निकल यहाँ से,मुझे भी ऐसे लोगों को खाना खिलाने की जरुरत नहीं है",रज्जो ने धमकी देते हुए डाक्टर अरूण से कहा..."खा ले बिरजू भाई! ये घर नहीं है जो थाली में खाना परोसा जाऐगा" जयन्त ने बात को सम्भालते हुए कहा...    इसके बाद दोनों खाना खाकर कोठरी में पहुँचे तो डाक्टर अरुण जयन्त से बोले..."सफाई का तो सब सत्यानाश हो गया"तब जयन्त ने डाक्टर अरुण से एक शेर कहा...."क्यों पानी के रोने रोता है,क्यों खाने की शिकायत करता है,"ये तो प्यार है, इश्क़ है,मौहब्बत है,इसमें तो यही होता है"फिर जयन्त का शेर सुनकर डाक्टर अरुण खिलखिला कर हँस पड़े....

क्रमशः....
सरोज वर्मा.....