Sanyasi - 31 in Hindi Motivational Stories by Saroj Verma books and stories PDF | सन्यासी -- भाग - 31

Featured Books
Categories
Share

सन्यासी -- भाग - 31

अब जयन्त अपना सामान पैक करके रात होने का इन्तजार करने लगा,उसने सभी से कहा कि वो हरिद्वार जा रहा है किसी गुरूजी के पास,कुछ दिन उनकी शरण में रहकर आत्मचिन्तन करेगा,उसके इस निर्णय से घरवाले खुश थे कि शायद जयन्त हरिद्वार जाकर कुछ सुधर जाएँ,लेकिन उन्हें क्या पता था कि जयन्त तो कोई काण्ड करने जा रहा था और उसके इस कर्मकाण्ड में डाक्टर अरुण भी शामिल थे और इधर जयन्त के  हरिद्वार जाने के नाम से सुहासिनी परेशान हो उठी,क्योंकि वो ही उसका आखिरी सहारा था जो उसकी डूबती हुई नइया को पार लगा सकता था,लेकिन वो आखिरी सहारा भी अब हरिद्वार जा रहा था,इसलिए सुहासिनी फूट फूटकर रो पड़ी और वो रोते हुए जयन्त के पास पहुँची औयर उससे बोली..."भइया! तुमने भी मेरा साथ छोड़ दिया""भरोसा रख अपने भाई पर,मैं कुछ भी ऐसा नहीं होने दूँगा जिससे तेरा जीवन बरबाद हो जाएँ,मैं जल्द ही लौटूँगा,तू बस हिम्मत हारकर कोई भी ऐसा वैसा कदम मत उठाना",  और सुहासिनी से ऐसा कहकर जयन्त घर से निकल पड़ा....वो घर से निकलकर सीधा डाक्टर अरुण की क्लीनिक पहुँचा,जहाँ पहले से ही डाक्टर अरुण उसका इन्तजार कर रहे थे,जयन्त के वहाँ पहुँचते ही डाक्टर अरुण ने उससे कहा...."आप आ गए जयन्त बाबू!""जी! आप तैयार हैं ना मेरे साथ चलने के लिए",जयन्त ने पूछा..."जी! हाँ! जो जो आपने कहा था वो सामान भी ले लिया है मैंने साथ में",डाक्टर अरुण बोले..."बहुत बढ़िया! चलिए तो फिर मोटर में बैठिए,चलते हैं चन्द्रविजय सिंह के गाँव की ओर",जयन्त बोला...."चन्द्रविजय....क्या उस लड़के का यही नाम है?",डाक्टर अरुण ने जयन्त से पूछा..."जी! एकदम सही पकड़े हैं,यही नाम है उस लड़के का,मेरे पास विवाह पत्रिका है उसमें उसका पूरा पता ठिकाना है,अब तो हम दोनों अपने मकसद में जरूर कामयाब होगें",जयन्त ने डाक्टर अरुण से कहा....       और फिर क्या था,जयन्त और अरुण मोटर में सवार होकर चन्द्रविजय के गाँव की ओर चल पड़े,दोनों रातभर के सफर के बाद भोर होते होते उसके गाँव भी पहुँच गए,जयन्त तो जाग रहा था लेकिन डाक्टर अरुण अभी भी सो रहे थे,ड्राइवर ने गाँव की सीमा पर मोटर रोकी और बोला...."साहब! गाँव आ चुका है""तो ड्राइवर साहब अगर गाँव आ चुका तो फिर आपका काम खतम,अब आप हम दोनों को यहीं छोड़कर वापस चले जाइएँ",जयन्त ने ड्राइवर से कहा..."लेकिन पहले साहब को तो जगा लीजिए",ड्राइवर ने जयन्त से कहा..."अरे! हाँ! मैं अभी जगाता हूँ उन्हें",     और ऐसा कहकर जयन्त ने डाक्टर अरुण को जगाया और जब डाक्टर अरुण जाग उठे तो उन्होंने जयन्त से पूछा..."हम पहुँच गए क्या?","जी! पहुँच गए महाराज! और यहाँ ये साफ पानी की नहर बह रही है,यहीं नित्य-कर्म करके गाँव के भीतर चलते हैं",जयन्त बोला..."नित्य-कर्म से आपका यहाँ क्या मतलब है नहाधोकर",डाक्टर अरुण ने पूछा..."जी! यही मतलब था मेरा",जयन्त बोला..."यहाँ...खुले में...मैं खुले में नहीं नहाऊँगा ,मुझे आदत नहीं है",डाक्टर अरुण घबराते हुए बोले..."महाराज! अब तो आपको रोज ही खुले में ही सब करना होगा,जरा प्रकृति के साथ जुड़िए,इसका भी आनन्द उठाइए,बन्द स्नानघर में तो आप रोज नहाते होगें",जयन्त ने डाक्टर अरुण से कहा..."मैंने खुले में कभी भी ये सब काम नहीं किए",डाक्टर अरुण परेशान होकर बोले..."इन्सान हर काम पहली ही बार करता है ,फिर उसे वो काम करने की आदत हो जाती है",जयन्त ने डाक्टर अरुण से कहा...."लेकिन....मैं...कैंसे.....",डाक्टर अरुण बोले..."अच्छा! ठीक है तो फिर आप सुहासिनी को भूल जाइए,वापस घर चलते हैं,मोटर भी मौजूद है और ड्राइवर साहब भी अभी यहीं हैं",जयन्त ने डाक्टर अरुण से कहा...."नहीं....नहीं....मैं यहीं खुले में नहा लूँगा,मुझे कोई दिक्कत नहीं है",डाक्टर अरुण बोले...      अब डाक्टर अरुण को मजबूरी में वहीं खुले में नित्यकर्म करने पड़े,नहर के ठण्डे पानी से नहाकर उनकी रुह काँप गई,जब दोनों नहा चुके तो जयन्त ने डाक्टर अरुण से गाँव वाला परिधान पहनने को कहा और खुद ने भी गाँव का परिधान पहन लिया,इसके बाद जयन्त की माँ ने सफर के लिए जो उसे पूरियाँ और अचार बाँधा था,उसका तीनों ने नाश्ता किया,ड्राइवर साहब ने भी उस दिन खुले में स्नान करने का आनन्द उठाया था और रात भर मोटर चलाने के कारण उन्हें भूख भी लग आई थी,फिर खाने के बाद जयन्त और डाक्टर अरुण ने ड्राइवर साहब को अलविदा कहा,फिर ड्राइवर साहब मोटर लेकर घर वापस चले गए, इसके बाद डाक्टर अरूण और जयन्त चन्द्रविजय सिंह के घर का पता ठिकाना पूछते पूछते उसके घर पहुँचे,वे दोनों घर के द्वार पर पहुँचे,घर के द्वार खुले हुए थे,द्वार से आँगन दिखाई दे रहा था और वहाँ एक नौकर आँगन के कुएँ से पानी भर रहा था,तब जयन्त ने उस नौकर से पूछा..."भाई...क्या चन्द्रविजय सिंह जी का घर यही है""हाँ! यही है",नौकर बोला..."भाई! जरा उन्हें बुला दोगें,हम दोनों बड़ी दूर से उनके दर्शन करने आएँ हैं",जयन्त ने नौकर से कहा..."ठीक है,वहीं ठहरो,मैं अभी मालिक को तुम्हारा संदेशा देकर आता हूँ"    ऐसा कहकर वो नौकर भीतर चला गया और फिर थोड़ी देर में वहाँ चन्द्रविजय हाजिर हुआ,चन्द्रविजय कद काठी से तो खूब लम्बा चौड़ा था,लेकिन रंग ज्यादा साफ नहीं था उसका,उस पर से उसकी उम्र भी बहुत ज्यादा दिख रही थी,वो उन दोनों के सामने आकर बोला...."हाँ! बोलो! क्या काम है?","मालिक! बहुत दूरी से बड़ी आस लेकर आएँ हैं,कुछ काम मिल जाता तो बड़ी मेहरबानी हो जाती ",जयन्त ने बेचारा सा चेहरा बनाकर कहा..."चलो...हटो यहाँ से,यहाँ कोई काम वाम नहीं है तुम लोगों के लिए,ना जाने कहाँ कहाँ से चले आते हैं मुँह उठाकर", चन्द्रविजय दोनों को दुत्कारते हुए बोला..."मालिक! सुना है,आपका ब्याह होने वाला है तो ब्याह काज में बहुत से काम होते हैं घर में,दे दीजिए ना कोई काम,हम दोनों कोई भी काम कर लेगें",जयन्त ने हाथ जोड़कर उकड़ूँ बैठते हुए कहा...."क्या काम कर सकते हो तुम दोनों?",चन्द्रविजय ने पूछा..."जी! कुछ भी,खेत खलिहान,घर कहीं का कोई भी काम कर लेगें",जयन्त बोला..."ठीक है,तो खलिहान में जो गौशाला है वहीं पशुओं को सम्भालने का काम कर लो,रहना भी वहीं होगा,वहीं पर एक कोठरी है,रह लोगे ना वहाँ पर",चन्द्रविजय ने पूछा..."जी! मालिक रह लेगें,बस सिर छुपाने को छत और दो बखत की रोटी चाहिए",जयन्त बोला..."नाम क्या तुम दोनों का और कहाँ से आएँ हो?",चन्द्रविजय ने पूछा..."जी! इलाहाबाद के पास के गाँव से आएँ हैं हम दोनों,हमरा नाम जोगी और इसका नाम बिरजू है",जयन्त बोला..."गाँव क्यों छोड़ा तुम लोगों ने?",चन्द्रविजय ने पूछा...तब जयन्त चन्द्रविजय से बोला..."का बताई हुजूर! अपन राम कहानी,ई बिरजू है ना तो ये पराई औरतों पर मुँह मारता फिरता है,सो इसकी मेहरिया ने इसे मार मारके घर से निकाल दिया,सो ये भाग के हमारे घर आ गया और हम ठहरे ठलुवा नाकारा मनई ( इन्सान) कुछु काम धन्धा नहीं है हमरे पास सो,हमारे घरवाले हमें बड़ी मुश्किल से खिला पाते हैं सो इसे कहाँ से खिला पाते,सो हमारे घरवालों ने हम दोनों को ही घर से क्या गाँव से बाहर निकाल दिया","तुम दोनों पर भरोसा कैंसे करूँ?",चन्द्रविजय ने पूछा..."मालिक! ई हम दोनों की गठरिया(पोटली) है,विश्वास ना हो तो तलाशी ले लो और तभई पर भरोसा ना हो तो बेचारे बिरजू की पीठ देख लो,इत्ता मारा है....इत्ता मारा है इहके मेहरिया ने की बेचारी की पीठ पर खून उतर आया है और फिर ऐसा कहकर जोगी बने जयन्त ने बिरजू बने अरुण से कहा...."भाई! अपने कपड़ा उतार के मालिक को अपनी पीठ तो दिखा दो"   जयन्त की बात सुनकर डाक्टर अरुण सकपका गए,क्योंकि उनकी पीठ पर तो चोट के कोई निशान थे, अगर उन्होंने अपनी पीठ दिखाई तो फिर उनकी चोरी पकड़ी जाऐगी",यही सब सोचकर डाक्टर अरुण परेशान हो उठे...

क्रमशः......

सरोज वर्मा....