Bikram and Betal A new story in Hindi Mythological Stories by Rakesh books and stories PDF | बिक्रम और बेताल एक नई कहानी

The Author
Featured Books
Categories
Share

बिक्रम और बेताल एक नई कहानी

बिक्रम और बेताल  एक नई कहानी, नए अंदाज में  राजा बिक्रमादित्य, अपनी न्यायप्रियता और वीरता के लिए प्रसिद्ध थे। उनकी बुद्धिमत्ता की परीक्षा लेने के लिए एक दिन एक तांत्रिक ने उनसे एक चुनौती दी—श्मशान वन में रहने वाले बेताल को पकड़कर लाना।  बेताल, एक चालाक और रहस्यमयी भूत था, जो पेड़ों पर उल्टा लटकता था और बुद्धिमानी भरी कहानियाँ सुनाकर लोगों को भ्रम में डाल देता था। वह पकड़ में तो आ जाता, लेकिन उसकी शर्त थी—अगर राजा ने उसकी कहानी सुनकर उत्तर दिया, तो वह वापस उड़कर अपने स्थान पर चला जाएगा।   पहली मुलाकात  राजा विक्रमादित्य ने अपने विश्वास और धैर्य के साथ श्मशान घाट की ओर प्रस्थान किया। घने जंगलों के बीच, एक पुराने पीपल के पेड़ पर उन्होंने बेताल को उल्टा लटकते देखा। राजा ने बिना कोई डर दिखाए, बेताल को अपने कंधे पर उठा लिया और महल की ओर चलने लगे।  बेताल ने एक रहस्यमयी मुस्कान के साथ कहा,  "राजा, रास्ता लंबा है, क्यों न मैं तुम्हें एक कहानी सुनाऊँ?"  बिक्रमादित्य जानते थे कि यह एक परीक्षा है, लेकिन उन्होंने चुपचाप आगे बढ़ते हुए हामी भर दी।   बेताल की पहली कहानी   ।  न्याय का असली रूप  "बहुत समय पहले, एक नगर में राजा सुरेंद्रसेन का राज था। वह अपने न्याय के लिए प्रसिद्ध थे। एक दिन, दो व्यापारी उनके दरबार में एक विवाद लेकर आए।  पहला व्यापारी बोला—'महाराज, यह आदमी मेरा सेवक था, लेकिन इसने मेरी सारी संपत्ति चुरा ली और अब इसे अपना बताने की कोशिश कर रहा है।'  दूसरा व्यापारी बोला—'नहीं महाराज, मैं निर्दोष हूँ। यह धन मेरे पिता का था, जो उन्होंने मरने से पहले मुझे दिया था। यह व्यक्ति झूठ बोल रहा है'  राजा ने दोनों की बात सुनी, लेकिन फैसला लेने से पहले उन्होंने एक योजना बनाई। उन्होंने दोनों व्यापारियों से कहा कि यह संपत्ति अगले दिन मंदिर में रखी जाएगी, और जो भी सच्चा होगा, वह इस संपत्ति के पास जाते ही प्रसन्न हो जाएगा।  अगले दिन, जब दोनों व्यापारी मंदिर पहुँचे, तो पहला व्यापारी जैसे ही संपत्ति के पास गया, उसका चेहरा चमक उठा। जबकि दूसरा व्यापारी शांत और गहरे विचार में डूबा रहा।  राजा ने तुरंत फैसला सुनाया—'संपत्ति उस व्यापारी की होगी, जो इसे देखकर खुश नहीं हुआ। क्योंकि सच्चे उत्तराधिकारी को केवल धन की नहीं, बल्कि न्याय की चिंता होती है।'  तो बताओ राजा विक्रम, राजा सुरेंद्रसेन का यह न्याय सही था या गलत?"   बिक्रमादित्य का उत्तर  राजा विक्रमादित्य ने बिना समय गँवाए उत्तर दिया,  "बिल्कुल सही। जो व्यक्ति किसी चीज़ को पाकर अत्यधिक प्रसन्न होता है, वह पहले से उसका मालिक नहीं था। सच्चा उत्तराधिकारी विरासत को जिम्मेदारी समझता है, न कि खुशी का कारण।"  जैसे ही विक्रमादित्य ने उत्तर दिया, बेताल ठहाका लगाकर हंसा और बोला,  "राजा, तुमने उत्तर दे दिया अब मैं फिर से उड़कर अपने स्थान पर जा रहा हूँ"  और वह हवा में उड़कर फिर से पीपल के पेड़ पर जा बैठा।   चुनौती का सिलसिला जारी  राजा विक्रमादित्य ने बिना हार माने फिर से बेताल को कंधे पर उठाया और आगे बढ़ने लगे। हर बार बेताल एक नई कहानी सुनाता, और हर बार राजा अपनी बुद्धिमत्ता से उत्तर देते।  लेकिन क्या राजा कभी बेताल को अपने साथ ले जा पाएंगे? या यह सिलसिला हमेशा चलता रहेगा?   आगे की कहानियाँ जारी रहेंगी... जैसे बेताल की चालाकी और राजा की बुद्धिमत्ता का खेल बिक्रम और बेताल   ।  भाग 2  बुद्धि और धैर्य की परीक्षा जारी...  राजा बिक्रमादित्य एक बार फिर बिना किसी थकान के बेताल को अपने कंधे पर उठाकर श्मशान की ओर बढ़ने लगे। हवा में अजीबसी सरसराहट थी, और घने पेड़ों के बीच बेताल अपनी शरारती हँसी के साथ बोला—  "राजा, तुम्हारी हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी। लेकिन रास्ता लंबा है, तो क्यों न एक और कहानी सुनो? अगर उत्तर दोगे, तो मैं फिर उड़ जाऊँगा"  राजा मुस्कुराए और चुपचाप आगे बढ़ते रहे। बेताल ने अपनी अगली कहानी शुरू की...     बेताल की दूसरी कहानी   ।  अनोखी परीक्षा  "बहुत समय पहले, राज्य सिंहगढ़ में एक राजा चंद्रसेन का शासन था। वे न्यायप्रिय और बुद्धिमान थे। उनका एक ही पुत्र था—राजकुमार विजय, जो बहुत पराक्रमी और नीतिशास्त्र में निपुण था।  जब राजा बूढ़े हुए, तो उन्होंने सोचा कि राजकुमार विजय को सिंहासन सौंपने से पहले उसकी बुद्धिमानी की परीक्षा ली जाए।  राजा ने एक दिन राजदरबार में घोषणा की—  'जो व्यक्ति मेरी तीन परीक्षाएँ पास करेगा, वही सिंहासन का उत्तराधिकारी बनेगा।'   पहली परीक्षा   ।  सच्चा सेवक  राजा ने राजकुमार विजय को तीन सेवक दिए और कहा—  "इनमें से जो सबसे ज्यादा वफादार और ईमानदार हो, उसे चुनो।"  राजकुमार ने तीनों सेवकों को एक कठिन यात्रा पर भेजा और उनकी ईमानदारी की परीक्षा ली। अंत में, उसने वही सेवक चुना, जिसने कठिन समय में भी सच्चाई और वफादारी नहीं छोड़ी।   दूसरी परीक्षा   ।  न्याय की परख  राजा ने दो ग्रामीणों का एक झगड़ा राजकुमार के सामने रखा—  एक किसान का कहना था, "महाराज, यह आदमी मेरी गाय चुराकर कह रहा है कि यह उसकी है"  दूसरा व्यक्ति बोला, "नहीं महाराज, यह गाय हमेशा से मेरी थी।"  राजकुमार ने गाय को दोनों के बीच खड़ा कर दिया और कहा—  "गाय को जंगल में छोड़ दो। यह जिस व्यक्ति के पास वापस जाएगी, वही इसका असली मालिक होगा।"  गाय बिना हिचक पहले किसान के पास चली गई, जिससे न्याय का सही फैसला हो गया।   तीसरी परीक्षा   ।  सबसे कठिन प्रश्न  अब राजा ने अंतिम और सबसे कठिन परीक्षा रखी।  उन्होंने राजकुमार को एक सोने की तलवार और लोहे की तलवार दी और पूछा—  "अगर तुम्हें इनमें से किसी एक तलवार से युद्ध करना हो, तो कौनसी तलवार चुनोगे?"  राजकुमार ने बिना देर किए जवाब दिया—  "मैं लोहे की तलवार चुनूँगा।"  राजा ने हैरानी से पूछा, "क्यों?"  राजकुमार ने उत्तर दिया, "सोना केवल दिखावे के लिए होता है, लेकिन असली ताकत लोहे में होती है। युद्ध में बाहरी चमक नहीं, बल्कि मजबूती और दृढ़ता ही जीत दिलाती है।"  राजा चंद्रसेन अपने पुत्र की बुद्धिमानी से प्रसन्न हुए और उसे सिंहासन का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।     बेताल का सवाल  बेताल राजा विक्रमादित्य की ओर मुड़ा और पूछा—  "राजा, अगर राजकुमार विजय लोहे की तलवार न चुनता, तो क्या वह सही राजा बन सकता था? क्या बाहरी चमक से कभी असली ताकत का मूल्यांकन किया जा सकता है?"   राजा विक्रमादित्य का उत्तर  राजा विक्रमादित्य ने बिना समय गँवाए उत्तर दिया—  "नहीं। एक सच्चे राजा को बाहरी दिखावे से परे जाकर असली शक्ति को पहचानना चाहिए। अगर वह सोने की तलवार चुनता, तो वह केवल दिखावे का शासक बनता, जो युद्ध में कभी जीत नहीं सकता।"   बेताल फिर उड़ गया  जैसे ही राजा ने उत्तर दिया, बेताल ठहाका मारकर हंसा और बोला—  "राजा, तुमने फिर उत्तर दे दिया अब मैं फिर से उड़कर पेड़ पर जा रहा हूँ"  और वह हवा में गूंजती हँसी के साथ फिर से पेड़ पर जा लटका।     क्या राजा विक्रमादित्य कभी बेताल को लेकर जा पाएंगे? कौनसी नई परीक्षा उनका इंतजार कर रही है?  आगे की कहानी अगले भाग में... बिक्रम और बेताल   ।  भाग 3  धैर्य और बुद्धिमत्ता की अगली परीक्षा  राजा बिक्रमादित्य एक बार फिर बिना समय गंवाए श्मशान की ओर बढ़े और पेड़ पर लटके बेताल को पकड़कर अपने कंधे पर डाल लिया। जंगल घना था, रात अंधेरी थी, और हवा में रहस्यमयी फुसफुसाहटें थीं।  बेताल ने अपनी चिरपरिचित हंसी के साथ कहा,  "राजा, तुम वाकई जिद्दी हो लेकिन रास्ता लंबा है, क्यों न एक और कहानी सुनो? हाँ, याद रखना—अगर उत्तर दिया, तो मैं फिर उड़ जाऊँगा"  राजा मुस्कुराए और चुपचाप आगे बढ़ते रहे। बेताल ने अगली कहानी शुरू की...     बेताल की तीसरी कहानी   ।  सबसे बड़ी कुर्बानी  "बहुत समय पहले, विदेहनगर नामक राज्य पर एक परोपकारी राजा शाश्वतसेन का शासन था। वे अपनी दयालुता और न्यायप्रियता के लिए प्रसिद्ध थे।  एक दिन, एक अज्ञात साधु राजा के दरबार में आया और बोला—  "महाराज, इस राज्य पर एक भयंकर संकट आने वाला है। इसे रोकने के लिए सबसे महान व्यक्ति को अपना जीवन बलिदान करना होगा।"  राजा चिंतित हो गए। उन्होंने अपने मंत्रियों से सलाह ली, लेकिन कोई समाधान नहीं मिला।   कौन देगा बलिदान?  राजा ने पूरे राज्य में घोषणा करवाई—  "अगर कोई सबसे महान व्यक्ति स्वयं को बलिदान के लिए प्रस्तुत करेगा, तो राज्य की रक्षा हो सकती है।"  लेकिन कोई आगे नहीं आया। सभी को अपनी जान प्यारी थी।  अंत में, राज्य का सबसे सम्मानित संत महात्मा सुरीश्वर राजदरबार में आए और बोले—  "महाराज, मैं अपना जीवन बलिदान करने को तैयार हूँ।"  राजा ने कहा, "नहीं, आप एक संत हैं। आपको त्याग और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। आपको मरने नहीं दे सकते"  संत ने उत्तर दिया, "महाराज, त्याग ही मेरी पहचान है। अगर मेरे जीवन के बदले पूरा राज्य सुरक्षित हो सकता है, तो यह मेरा सौभाग्य होगा।"  राजा की आँखों में आँसू आ गए। उन्होंने साधु से पूछा, "क्या संत का बलिदान इस संकट को टाल सकता है?"  साधु मुस्कुराया और बोला, "सिर्फ संत नहीं, बल्कि जो सबसे महान हो, वही संकट टाल सकता है।"   राजा का निर्णय  राजा शाश्वतसेन कुछ देर सोचते रहे, फिर उन्होंने अपने सिंहासन से उठकर घोषणा की—  "इस राज्य का सबसे महान व्यक्ति मैं हूँ, क्योंकि मेरी प्रजा मुझ पर भरोसा करती है। अगर किसी को बलिदान देना होगा, तो वह मैं स्वयं दूँगा"  राज्यभर में सन्नाटा छा गया। सभी लोग राजा के साहस और निस्वार्थता को देखकर स्तब्ध थे।  राजा ने जैसे ही अपने बलिदान की तैयारी की, साधु मुस्कुराया और कहा—  "राजा, यही परीक्षा थी। सच्चा महान वही होता है जो अपनी प्रजा के लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर सके। तुम्हारी निष्ठा ने संकट टाल दिया। अब इस राज्य पर कोई विपत्ति नहीं आएगी।"  राज्य की रक्षा हो गई, और राजा शाश्वतसेन का नाम अमर हो गया।     बेताल का सवाल  बेताल ने राजा विक्रमादित्य से पूछा—  "राजा, संत ने पहले बलिदान देने की इच्छा जताई थी, लेकिन राजा ने खुद को सबसे महान बताया और अपना बलिदान देने का निर्णय लिया। क्या राजा शाश्वतसेन ने सही किया? क्या उन्हें संत को बलिदान देने से रोकना चाहिए था?"   राजा विक्रमादित्य का उत्तर  राजा विक्रमादित्य ने बिना देर किए उत्तर दिया—  "हाँ, राजा ने सही किया। एक राजा का सबसे बड़ा कर्तव्य अपनी प्रजा की रक्षा करना होता है। अगर वह दूसरों को बलिदान के लिए कहता, तो यह उसका कर्तव्य त्यागने जैसा होता। लेकिन खुद को बलिदान के लिए प्रस्तुत करके उसने सिद्ध किया कि वह सबसे महान है।"   बेताल फिर उड़ गया  जैसे ही राजा ने उत्तर दिया, बेताल जोर से हंसा और बोला—  "राजा, तुमने फिर उत्तर दे दिया अब मैं फिर से उड़कर पेड़ पर जा रहा हूँ"  और वह हवा में गूंजती हँसी के साथ फिर से पीपल के पेड़ पर जा लटका।     क्या राजा विक्रमादित्य कभी बेताल को लेकर जा पाएंगे? कौनसी नई कहानी और नई परीक्षा उनका इंतजार कर रही है?  आगे की कहानी अगले भाग में... बिक्रम और बेताल   ।  भाग 4  धैर्य और चतुराई की अगली परीक्षा  राजा विक्रमादित्य ने एक बार फिर बिना थके बेताल को कंधे पर उठाया और श्मशान की ओर चल पड़े। जंगल पहले से भी अधिक डरावना लग रहा था। रात के अंधकार में उल्लुओं की आवाज़ें और हवा की सरसराहट माहौल को और रहस्यमयी बना रही थीं।  बेताल ने ठहाका लगाकर कहा,  "राजा, तुम्हारी हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी लेकिन रास्ता अभी भी लंबा है, क्यों न एक और कहानी सुनो? हाँ, अगर उत्तर दे दिया, तो मैं फिर उड़ जाऊँगा"  राजा मुस्कुराए और चुपचाप आगे बढ़ते रहे। बेताल ने अगली कहानी शुरू की...     बेताल की चौथी कहानी   ।  वफादारी की असली परीक्षा  "बहुत समय पहले की बात है। मालवगढ़ नामक राज्य पर एक पराक्रमी राजा वीरेंद्रसेन का शासन था। वे अपनी ईमानदारी और निडरता के लिए प्रसिद्ध थे। उनके राज्य में एक अत्यंत वफादार सेनापति अर्जुनदेव था, जो हमेशा अपनी निष्ठा और वीरता से राजा की रक्षा करता था।   राजा का अपहरण  एक दिन पड़ोसी राज्य के शासक ने धोखे से राजा वीरेंद्रसेन का अपहरण कर लिया और उन्हें एक गहरे किले में बंदी बना लिया। राजा को बचाने के लिए अर्जुनदेव ने एक योजना बनाई।  वह एक व्यापारी के वेश में शत्रु राज्य में गया और धीरेधीरे वहां के दरबार में अपनी पहचान बनाई। कुछ ही दिनों में, उसने राजा के बंदीगृह का पता लगा लिया।   राजा को बचाने की चुनौती  जब अर्जुनदेव राजा को छुड़ाने पहुँचा, तो वहाँ के राजा ने एक शर्त रखी।  "अगर तुम राजा को बचाना चाहते हो, तो तुम्हें दो में से किसी एक चीज़ को चुनना होगा—"  1. या तो राजा को आज़ाद करवा सकते हो, लेकिन बदले में तुम्हें अपने प्राण देने होंगे।  2. या तुम अपनी जान बचाकर यहाँ से जा सकते हो, लेकिन राजा को हमेशा के लिए कैद में छोड़ना होगा।   अर्जुनदेव का फैसला  अर्जुनदेव मुस्कुराया और कहा,  "मेरी जान की कोई कीमत नहीं, अगर मेरा राजा कैद में रहे। मैं अपने प्राण देकर भी उन्हें आज़ाद करवाना चाहता हूँ"  शत्रु राजा उसकी निष्ठा देखकर अचंभित रह गया। उसने सोचा कि जो व्यक्ति अपने जीवन की परवाह किए बिना अपने राजा के लिए मरने को तैयार है, वह कितना महान होगा।  उसने अर्जुनदेव की निष्ठा से प्रभावित होकर राजा वीरेंद्रसेन को मुक्त कर दिया और युद्ध न करने की शपथ भी ली।  राजा वीरेंद्रसेन ने अपने राज्य लौटकर अर्जुनदेव को राज्य का सबसे बड़ा सम्मान दिया।     बेताल का सवाल  बेताल ने राजा विक्रमादित्य से पूछा—  "राजा, अर्जुनदेव ने जो किया, क्या वह सही था? क्या उसे अपने जीवन की परवाह करनी चाहिए थी, या राजा के लिए अपना बलिदान देना चाहिए था?"   राजा विक्रमादित्य का उत्तर  राजा विक्रमादित्य ने बिना देरी किए उत्तर दिया—  "अर्जुनदेव ने जो किया, वह पूर्ण रूप से सही था। एक सच्चे योद्धा का धर्म निस्वार्थता और निष्ठा होता है। अगर उसने अपने जीवन की रक्षा के लिए राजा को त्याग दिया होता, तो उसकी निष्ठा पर हमेशा सवाल उठता। लेकिन उसने यह साबित कर दिया कि सच्चा वीर वही है जो अपने स्वामी और कर्तव्य के प्रति समर्पित रहता है।"   बेताल फिर उड़ गया  जैसे ही राजा ने उत्तर दिया, बेताल जोर से हंसा और बोला—  "राजा, तुमने फिर उत्तर दे दिया अब मैं फिर से उड़कर पेड़ पर जा रहा हूँ"  और वह हवा में गूंजती हँसी के साथ फिर से पीपल के पेड़ पर जा लटका।     क्या राजा विक्रमादित्य कभी बेताल को लेकर जा पाएंगे? कौनसी नई कहानी और नई परीक्षा उनका इंतजार कर रही है?  आगे की कहानी अगले भाग में... बिक्रम और बेताल   ।  भाग 5  राजा विक्रमादित्य की परीक्षा जारी...  राजा विक्रमादित्य ने एक बार फिर बिना समय गँवाए पेड़ पर लटके बेताल को पकड़ा और अपने कंधे पर डाल लिया। हवा में अजीबसी सरसराहट थी, जैसे कोई रहस्यमय शक्ति उनके धैर्य की परीक्षा ले रही हो।  बेताल ने ठहाका लगाकर कहा,  "राजा, तुम वाकई अद्भुत हो लेकिन रास्ता लंबा है। आओ, एक और कहानी सुनो। हाँ, अगर उत्तर दे दिया, तो मैं फिर उड़ जाऊँगा"  राजा मुस्कुराए और चुपचाप आगे बढ़ते रहे। बेताल ने अगली कहानी शुरू की...     बेताल की पाँचवीं कहानी   ।  तीन राजकुमार और एक राजकुमारी  "बहुत समय पहले, कुंदनगढ़ नामक राज्य में राजा अमोघसेन का शासन था। उनकी एक अत्यंत सुंदर और बुद्धिमान पुत्री थी—राजकुमारी पद्मावती।  जब वह विवाह योग्य हुई, तो तीन महान राजकुमारों ने उसका हाथ माँगने के लिए राज्य में प्रवेश किया। ये तीनों राजकुमार बहुत योग्य और प्रतिभाशाली थे।  1. राजकुमार अर्जुन   ।  एक महान योद्धा, जो हजारों सैनिकों का नेतृत्व कर सकता था।  2. राजकुमार विक्रम   ।  एक विद्वान, जिसने कई धर्मशास्त्रों का अध्ययन किया था और नीतिशास्त्र में निपुण था।  3. राजकुमार समरजीत   ।  एक महान वास्तुकार, जिसने अनगिनत सुंदर महल और किले बनाए थे।  राजा अमोघसेन उलझन में पड़ गए कि किस राजकुमार को अपने राज्य का उत्तराधिकारी बनाएं और अपनी पुत्री का पति चुनें।   अचानक एक त्रासदी  राजकुमारी पद्मावती एक दिन जंगल में भ्रमण कर रही थी, जब एक भयंकर राक्षस ने उसे पकड़ लिया और अपने गुफा में बंद कर दिया।  अब प्रश्न यह था—कौन उसे बचाएगा?  1. राजकुमार अर्जुन ने अपनी तलवार उठाई और राक्षस के खिलाफ युद्ध किया। उसने बहादुरी से लड़ते हुए राक्षस को मार गिराया।  2. राजकुमार विक्रम ने अपनी बुद्धिमत्ता का उपयोग किया और यह पता लगाया कि राक्षस के पास एक जादुई रत्न था, जिससे वह अमर हो सकता था। उसने यह रहस्य राजा को बताया और युद्ध के दौरान अर्जुन को निर्देश दिया कि रत्न को नष्ट कर दे।  3. राजकुमार समरजीत ने एक सुंदर महल बनाया, जहाँ राजकुमारी को पूरी सुरक्षा में रखा गया, ताकि भविष्य में उसे कोई नुकसान न पहुँचा सके।  अब राजा अमोघसेन की उलझन और बढ़ गई—किस राजकुमार को राजकुमारी का पति चुना जाए?     बेताल का सवाल  बेताल ने राजा विक्रमादित्य से पूछा—  "राजा, तुम स्वयं न्यायप्रिय और बुद्धिमान हो। बताओ, तीनों राजकुमारों में से कौन सबसे योग्य था? किसे राजकुमारी का पति बनाया जाना चाहिए था?"     राजा विक्रमादित्य का उत्तर  राजा विक्रमादित्य ने बिना देरी किए उत्तर दिया—  "तीनों राजकुमारों का योगदान महत्वपूर्ण था, लेकिन सबसे अधिक योग्य राजकुमार अर्जुन था।"  बेताल ने पूछा, "क्यों?"  राजा ने समझाया,  "राजकुमार विक्रम ने केवल ज्ञान दिया, लेकिन उसने कोई सीधा योगदान नहीं दिया।  राजकुमार समरजीत ने महल बनाकर भविष्य की सुरक्षा सुनिश्चित की, लेकिन संकट के समय कुछ नहीं किया।  लेकिन राजकुमार अर्जुन ने अपने जीवन को जोखिम में डालकर राजकुमारी को बचाया। संकट के समय जो वीरता और साहस दिखाता है, वही सबसे योग्य होता है। इसलिए, राजकुमार अर्जुन को ही राजकुमारी का पति बनाया जाना चाहिए था।"     बेताल फिर उड़ गया  जैसे ही राजा ने उत्तर दिया, बेताल ठहाका लगाकर हंसा और बोला—  "राजा, तुमने फिर उत्तर दे दिया अब मैं फिर से उड़कर पेड़ पर जा रहा हूँ"  और वह हवा में गूंजती हँसी के साथ फिर से पीपल के पेड़ पर जा लटका।     क्या राजा विक्रमादित्य कभी बेताल को लेकर जा पाएंगे? कौनसी नई कहानी और नई परीक्षा उनका इंतजार कर रही है?  आगे की कहानी अगले भाग में... बिक्रम और बेताल   ।  भाग 6  राजा विक्रमादित्य की अगली परीक्षा  राजा विक्रमादित्य बिना रुके फिर से उसी पीपल के पेड़ के पास पहुँचे, जहाँ बेताल लटका हुआ था। उन्होंने बेताल को अपने कंधे पर डाला और श्मशान की ओर चल पड़े।  बेताल ने ठहाका लगाकर कहा,  "राजा, तुम जितने साहसी हो, उतने ही जिद्दी भी लेकिन रास्ता अभी लंबा है। चलो, एक और कहानी सुनो। हाँ, अगर उत्तर दिया, तो मैं फिर उड़ जाऊँगा"  राजा चुपचाप आगे बढ़ते रहे। बेताल ने अगली कहानी शुरू की...     बेताल की छठी कहानी   ।  न्यायप्रिय राजा और विचित्र मुकदमा  "बहुत समय पहले की बात है। सिंधुपुर नामक राज्य में राजा धर्मसेन का शासन था। वे अपनी न्यायप्रियता के लिए प्रसिद्ध थे। उनके दरबार में न्याय के लिए दूरदूर से लोग आते थे।  एक दिन, दरबार में एक अजीब मुकदमा आया। दो व्यक्तियों ने एक ही स्त्री पर दावा किया कि वह उनकी पत्नी है। दोनों ही व्यक्ति अपनेअपने तर्क देकर राजा को समझाने लगे।   मुकदमे की गुत्थी  1. पहला व्यक्ति बोला   ।  "यह मेरी पत्नी है। कुछ महीने पहले यह नदी किनारे घूमने गई थी और अचानक लापता हो गई। मैंने इसे बहुत ढूँढा, लेकिन यह नहीं मिली। आज जब मैंने इसे देखा, तो यह मेरे पास लौटने से इनकार कर रही है"  2. दूसरा व्यक्ति बोला   ।  "यह मेरी पत्नी है। मैंने इससे दो महीने पहले विवाह किया था। यह मेरे साथ सुख से रह रही थी। यह झूठा व्यक्ति इसे मुझसे छीनना चाहता है"   सत्य की खोज  राजा धर्मसेन ने सोचा कि बिना किसी प्रमाण के निर्णय करना मुश्किल होगा। इसलिए उन्होंने दोनों पक्षों को ध्यान से सुना और फिर एक निर्णय लिया।  उन्होंने कहा, "हम इस स्त्री से पूछेंगे कि यह किसकी पत्नी है। लेकिन अगर यह निर्णय नहीं कर पाती, तो हम इसे बीच से बाँट देंगे ताकि दोनों को बराबर हिस्सा मिले"  यह सुनते ही पहला व्यक्ति घबरा गया और बोला, "नहीं, ऐसा मत कीजिए अगर इसे मारना ही है, तो इसे इस दूसरे व्यक्ति को दे दीजिए, लेकिन इसकी जान मत लीजिए"  जबकि दूसरा व्यक्ति चुपचाप खड़ा रहा।   राजा का फैसला  राजा धर्मसेन मुस्कुराए और बोले,  "सच्चा पति वही होता है, जो अपनी पत्नी की जान बचाने के लिए उसे खोने को भी तैयार हो। यह स्त्री पहले व्यक्ति की पत्नी है।"  दूसरा व्यक्ति घबरा गया और सच सामने आ गया कि वह झूठा था। राजा ने उसे दंड दिया और स्त्री को उसके सच्चे पति के साथ भेज दिया।     बेताल का सवाल  बेताल ने राजा विक्रमादित्य से पूछा—  "राजा, क्या राजा धर्मसेन का न्याय सही था? क्या स्त्री का स्वयं कोई निर्णय नहीं था? क्या राजा ने स्त्री की इच्छा को अनदेखा कर दिया?"     राजा विक्रमादित्य का उत्तर  राजा विक्रमादित्य ने तुरंत उत्तर दिया—  "नहीं, राजा धर्मसेन ने सही निर्णय लिया। उस समय स्त्री स्वयं भयभीत थी और निर्णय नहीं कर पा रही थी। लेकिन संकट के समय जिस व्यक्ति ने उसकी सुरक्षा की चिंता की, वही उसका सच्चा पति था। राजा ने चालाकी से सत्य उजागर किया और न्याय किया।"     बेताल फिर उड़ गया  जैसे ही राजा ने उत्तर दिया, बेताल जोर से हंसा और बोला—  "राजा, तुमने फिर उत्तर दे दिया अब मैं फिर से उड़कर पेड़ पर जा रहा हूँ"  और वह हवा में गूंजती हँसी के साथ फिर से पीपल के पेड़ पर जा लटका।     क्या राजा विक्रमादित्य कभी बेताल को लेकर जा पाएंगे? कौनसी नई कहानी और नई परीक्षा उनका इंतजार कर रही है?  आगे की कहानी अगले भाग में... बिक्रम और बेताल   ।  भाग 7  राजा विक्रमादित्य की परीक्षा और कठिन होती जा रही थी  राजा विक्रमादित्य एक बार फिर बिना समय गँवाए पेड़ पर लटके बेताल को पकड़ा और अपने कंधे पर डाल लिया। घना अंधेरा और श्मशान की रहस्यमयी हवा उनकी परीक्षा को और कठिन बना रही थी, लेकिन वे बिना रुके आगे बढ़ते रहे।  बेताल ने ठहाका लगाकर कहा,  "राजा, तुम सच में अद्भुत हो लेकिन क्या तुम जानना नहीं चाहोगे कि तुम्हारी बुद्धि कब हार मानेगी? चलो, एक और कहानी सुनो। लेकिन याद रखना, यदि उत्तर दे दिया, तो मैं फिर उड़ जाऊँगा"  राजा ने कुछ नहीं कहा और शांतिपूर्वक आगे बढ़ते रहे। बेताल ने अगली कहानी शुरू की...     बेताल की सातवीं कहानी   ।  धोखा और निष्ठा की परीक्षा  "बहुत समय पहले, सौम्यपुर नामक राज्य में राजा अमृतसेन का शासन था। वे न्यायप्रिय और दयालु राजा थे, लेकिन उनकी सबसे बड़ी कमजोरी थी कि वे अपने मंत्रियों पर बहुत विश्वास करते थे। उनके दरबार में एक मुख्य मंत्री था—सत्यप्रकाश। वह राजा का सबसे प्रिय सलाहकार था।  लेकिन सत्यप्रकाश का एक गुप्त शत्रु था—विलासराज, जो दरबार में उसका स्थान लेना चाहता था। विलासराज ने एक षड्यंत्र रचा और राजा के कान भरने शुरू कर दिए कि सत्यप्रकाश राज्य के विरुद्ध साजिश कर रहा है।   राजा का भ्रम और सत्य की खोज  धीरेधीरे राजा अमृतसेन को भी संदेह होने लगा। उन्होंने सत्यप्रकाश को बिना किसी ठोस प्रमाण के कारागार में डाल दिया और उसका स्थान विलासराज को दे दिया।  कुछ महीनों बाद, राजा को पता चला कि राज्य के खजाने से धन चोरी हो रहा है, और राज्य की जनता में असंतोष बढ़ रहा है। तब उन्होंने विलासराज को बुलाकर इसका कारण पूछा। लेकिन विलासराज ने कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिया।  राजा को अपने निर्णय पर पछतावा होने लगा। उन्होंने छानबीन करवाई और पता चला कि सत्यप्रकाश निर्दोष था और विलासराज ही असली गुनहगार था।   राजा का कठिन निर्णय  अब राजा के सामने दो विकल्प थे—  1. सत्यप्रकाश से क्षमा माँगकर उसे पुनः मंत्री पद देना।  2. अपने अपमान और गलत निर्णय को छिपाने के लिए किसी और को मंत्री बनाना।  राजा ने अपने अभिमान को छोड़कर सत्यप्रकाश से क्षमा माँगी और उसे पुनः मंत्री बना दिया। सत्यप्रकाश ने राजा को क्षमा कर दिया और पूरी निष्ठा से अपने राज्य की सेवा में लग गया।  विलासराज को उसके अपराधों के लिए दंडित किया गया।     बेताल का सवाल  बेताल ने राजा विक्रमादित्य से पूछा—  "राजा, क्या सत्यप्रकाश को राजा को क्षमा कर देना चाहिए था? क्या उसे उस राजा की सेवा करनी चाहिए थी, जिसने उसे बिना किसी दोष के कारागार में डाल दिया था?"     राजा विक्रमादित्य का उत्तर  राजा विक्रमादित्य ने तुरंत उत्तर दिया—  "सत्यप्रकाश का राजा को क्षमा करना और उसकी सेवा करना ही उसकी महानता को दर्शाता है। निष्ठा व्यक्ति के पद या सम्मान से नहीं, बल्कि उसके चरित्र से आती है। यदि सत्यप्रकाश ने राजा को माफ़ न किया होता, तो वह भी स्वार्थी बन जाता। उसने अपने स्वामी की सेवा को सबसे बड़ा धर्म माना, और यही सच्चे सेवक की पहचान है।"     बेताल फिर उड़ गया  जैसे ही राजा ने उत्तर दिया, बेताल जोर से हंसा और बोला—  "राजा, तुमने फिर उत्तर दे दिया अब मैं फिर से उड़कर पेड़ पर जा रहा हूँ"  और वह हवा में गूंजती हँसी के साथ फिर से पीपल के पेड़ पर जा लटका।     क्या राजा विक्रमादित्य कभी बेताल को लेकर जा पाएंगे? कौनसी नई कहानी और नई परीक्षा उनका इंतजार कर रही है?  आगे की कहानी अगले भाग में... बिक्रम और बेताल   ।  भाग 8  राजा विक्रमादित्य की परीक्षा और भी कठिन होती जा रही थी  राजा विक्रमादित्य ने फिर से बेताल को अपने कंधे पर डाला और श्मशान की ओर चल पड़े। बेताल का रहस्यमय हंसी के साथ लगातार उड़ना, राजा की धैर्य और साहस की परीक्षा ले रहा था। लेकिन विक्रमादित्य ने बिना किसी रुकावट के यात्रा जारी रखी।  बेताल ने एक बार फिर ठहाका मारा और कहा,  "राजा, तुम हर बार उत्तर दे देते हो, लेकिन क्या तुम जानते हो कि तुम्हारी बुद्धि का अंत कहाँ होगा? चलो, एक और कहानी सुनो। अगर उत्तर दिया तो मैं फिर उड़ जाऊँगा"  राजा ने बिना किसी प्रतिक्रिया के कदम बढ़ाए। बेताल ने अगली कहानी शुरू की...     बेताल की आठवीं कहानी   ।  दो भाइयों की परीक्षा  "बहुत समय पहले, कैलासपुर नामक राज्य में दो भाइयों का जन्म हुआ—राजेन्द्र और कृष्णदेव। ये दोनों भाई बचपन से ही एकदूसरे के साथ थे और उनका एकदूसरे के प्रति गहरा स्नेह था।  जब उनके पिता ने राज्य की गद्दी पर अपने बड़े बेटे राजेन्द्र को बैठाया, तो छोटे बेटे कृष्णदेव को दरबार में एक उच्च पद प्रदान किया। दोनों भाई राज्य के शत्रुओं से रक्षा करते थे और राज्य की प्रगति के लिए कड़ी मेहनत करते थे।  एक दिन, जब राज्य में भयंकर अकाल पड़ा और लोग परेशान थे, तो कृष्णदेव ने एक योजना बनाई जिससे राज्य को सूखा और अकाल से बचाया जा सकता था। लेकिन राजेन्द्र ने उसकी योजना को मानने से इनकार कर दिया, क्योंकि वह अपने बड़े होने के कारण अपनी राय को सर्वोच्च मानते थे।  कृष्णदेव ने बिना किसी विरोध के राजेन्द्र की बात मानी और अपनी योजना को रोक दिया। लेकिन बाद में उसे समझ में आया कि राजेन्द्र की सलाह गलत थी, और राज्य में अकाल और भी गहरा गया।   राजेन्द्र का अहंकार और कृष्णदेव का निर्णय  कृष्णदेव ने राज्य को बचाने के लिए राजेन्द्र के खिलाफ जाकर अपनी योजना को लागू किया। उसे यह महसूस हुआ कि कभीकभी सच्चे राज्य के लिए सही निर्णय लेना आवश्यक होता है, चाहे वह किसी भी कीमत पर क्यों न हो।  राजेन्द्र को कृष्णदेव का कदम चुपके से देखना पड़ा और अंततः उसने माना कि छोटे भाई की योजना ही राज्य के लिए लाभकारी थी।   राजा का निर्णय  राजेन्द्र ने कृष्णदेव से माफी माँगी और दोनों भाई फिर से एकजुट हो गए। राज्य में सुखशांति लौट आई।     बेताल का सवाल  बेताल ने राजा विक्रमादित्य से पूछा—  "राजा, क्या कृष्णदेव को अपनी योजना लागू करने का अधिकार था, जबकि उसने अपने बड़े भाई के आदेश के खिलाफ जाकर यह किया? क्या उसे अपने निर्णय के लिए अपने भाई से माफी माँगनी चाहिए थी?"     राजा विक्रमादित्य का उत्तर  राजा विक्रमादित्य ने तुरंत उत्तर दिया—  "कृष्णदेव ने जो किया, वह राज्य के भले के लिए था, और कभीकभी हमें अपने सच्चे कर्तव्यों का पालन करने के लिए अपने परिवार के सदस्यों से भी खिलाफ जाकर कदम उठाना पड़ता है। वह राजेन्द्र से माफी नहीं मांगता, क्योंकि उसने कोई अपराध नहीं किया। उसकी प्राथमिकता राज्य की भलाई थी, और यही एक सच्चे नेता का कर्तव्य होता है।"     बेताल फिर उड़ गया  जैसे ही राजा ने उत्तर दिया, बेताल फिर से हंसा और बोला—  "राजा, तुमने फिर सही उत्तर दे दिया अब मैं फिर से उड़कर पेड़ पर जा रहा हूँ"  और वह हवा में गूंजती हँसी के साथ फिर से पीपल के पेड़ पर जा लटका।     क्या राजा विक्रमादित्य कभी बेताल को लेकर जा पाएंगे? कौनसी नई कहानी और नई परीक्षा उनका इंतजार कर रही है?  आगे की कहानी अगले भाग में...   बिक्रम और बेताल   ।  भाग 9  राजा विक्रमादित्य का धैर्य अब अपने चरम पर  राजा विक्रमादित्य अब तक अपनी पूरी यात्रा में बेताल की असंख्य कहानियों और कठिन सवालों का सामना कर चुके थे। उनका धैर्य और बुद्धिमत्ता लगातार परखी जा रही थी, और उन्होंने हर बार सही उत्तर दिया था। आज भी, उन्होंने बेताल को अपने कंधे पर डाला और श्मशान की ओर चल पड़े, जहां बेताल फिर से अपनी मक्कारी से उन्हें परीक्षा में डालने के लिए तैयार था।  बेताल ने अपनी आवाज में घमंड और मुस्कान के साथ कहा,  "राजा, तुम्हारा साहस अनमोल है, लेकिन क्या तुम जानते हो कि तुम्हारी बुद्धिमत्ता की सीमा क्या है? आज मैं एक और कहानी सुनाने जा रहा हूँ, और अगर तुम उत्तर दे सको, तो मैं फिर से उड़ जाऊँगा"  राजा विक्रमादित्य चुपचाप चलते रहे, उनकी आँखों में दृढ़ निश्चय था। बेताल ने अगली कहानी शुरू की...     बेताल की नौवीं कहानी   ।  अनमोल राजकुमारी और उसके प्रेमी की परीक्षा  "बहुत समय पहले, एक छोटे राज्य में राजकुमारी सुमित्रा का जन्म हुआ। वह इतनी सुंदर थी कि उसके रूप और गुणों की प्रशंसा दूरदूर तक होती थी। उसके पिता, राजा हरिपाल, ने उसे जीवन के हर सुख से वंचित किया था, ताकि वह एक आदर्श और निष्ठावान राजकुमारी बने।  राजकुमारी सुमित्रा का दिल एक वीर और न्यायप्रिय युवक अरुण पर था, जो राजा के सैनिकों में से एक था। वह सुमित्रा के रूप और सुंदरता से मोहित था, लेकिन उसे यह डर था कि वह उसे कभी अपनी प्रेमिका के रूप में स्वीकार नहीं करेगी, क्योंकि वह एक साधारण सैनिक था।  सुमित्रा ने धीरेधीरे अरुण से अपने दिल की बात साझा की, और दोनों के बीच प्यार पनपा। लेकिन राजा हरिपाल ने यह सुनकर सख्त कदम उठाए और अपनी बेटी को अरुण से अलग करने की योजना बनाई।   राजा का कठोर निर्णय और सुमित्रा का विरोध  राजा ने सुमित्रा को आदेश दिया कि वह अरुण से मिलने न जाए और उसे भूल जाए। लेकिन सुमित्रा ने अपने पिता के आदेश का विरोध किया। उसने अपनी आज़ादी के लिए संघर्ष करना शुरू कर दिया।  राजा ने उसे कारागार में डाल दिया, लेकिन सुमित्रा ने वहां से भी अपनी योजना बनाई। उसने राजा से कहा, "अगर आप मुझे अरुण से अलग करना चाहते हैं, तो मुझे उसके साथ शादी करनी होगी।"  राजा ने सुमित्रा की बात मानी, लेकिन उसने एक कड़ा नियम लगाया—"यदि वह अरुण को प्राप्त करना चाहता है, तो उसे तीन कठिन परीक्षणों से गुजरना होगा"   अरुण की परीक्षा और प्रेम का परीक्षण  अरुण ने तीनों कठिन परीक्षणों को पूरा किया—पहला था राज्य के सबसे खतरनाक जंगल से निकलना, दूसरा था राज्य के सबसे बड़े युद्ध में भाग लेना, और तीसरा था एक विशाल पर्वत पर चढ़ाई करना।  अंत में, जब अरुण सभी परीक्षणों में सफल हुआ, तो राजा हरिपाल ने उसे अपनी बेटी सुमित्रा का हाथ दिया।     बेताल का सवाल  बेताल ने राजा विक्रमादित्य से पूछा—  "राजा, क्या राजकुमारी सुमित्रा का अपने प्रेमी अरुण से विवाह करना सही था, जबकि उसके पिता ने उसे रोकने के लिए हर संभव कोशिश की थी? क्या वह अपनी स्वतंत्र इच्छा के अनुसार अपने प्रेमी को चुनने का अधिकार रखती थी?"     राजा विक्रमादित्य का उत्तर  राजा विक्रमादित्य ने उत्तर दिया—  "राजकुमारी सुमित्रा ने जो किया, वह उसकी स्वतंत्र इच्छा थी, और यह उसकी आत्मनिर्भरता और सच्चे प्रेम के प्रतीक के रूप में उभरा। प्रेम में कोई बंधन नहीं होता। हालांकि, उसके पिता का कर्तव्य था कि वह अपनी बेटी का भला सोचे, लेकिन जब सुमित्रा ने अपने प्रेमी के प्रति अपने विचार प्रकट किए, तो उसे अपना निर्णय लेने का पूरा अधिकार था।"     बेताल फिर उड़ गया  जैसे ही राजा ने उत्तर दिया, बेताल ने एक और ठहाका मारा और कहा—  "राजा, तुमने फिर सही उत्तर दिया अब मैं फिर से उड़कर पेड़ पर जा रहा हूँ"  और फिर से वह अपनी हंसी के साथ हवा में उड़ते हुए पीपल के पेड़ पर जा लटका।     क्या राजा विक्रमादित्य को कभी बेताल को लेकर जाने का मौका मिलेगा? क्या अगला सवाल और कठिनाई उनकी राह में एक नया मोड़ लेकर आएगी?  आगे की कहानी अगले भाग में... बिक्रम और बेताल   ।  भाग 10  राजा विक्रमादित्य की परीक्षा अब अंतिम चरण में, बेताल का रहस्य और गहरा होता जा रहा है  राजा विक्रमादित्य अब तक बेताल की असंख्य कहानियाँ सुन चुके थे और हर बार उसका सही उत्तर दिया था। उनकी धैर्य और बुद्धिमत्ता की परीक्षा निरंतर जारी थी। लेकिन आज की रात, बेताल के सवालों में एक और कठिनाई थी, जो राजा को और भी गहरी चुनौती देने वाली थी।  राजा विक्रमादित्य ने फिर से बेताल को अपने कंधे पर डाला और श्मशान की ओर चल पड़े। इस बार भी बेताल ने अपनी घनघोर हंसी के साथ कहा,  "राजा, तुम पहले जैसे निर्भीक नहीं लगते। क्या तुम्हारी बुद्धि अब थक चुकी है? आज मैं एक आखिरी कहानी सुनाऊँगा। अगर तुम इसका उत्तर दे सको तो मैं तुमसे फिर से जीत जाऊँगा"  राजा विक्रमादित्य चुप रहे, उनके चेहरे पर न तो कोई डर था और न ही कोई थकावट। बेताल ने अपनी आखिरी कहानी शुरू की...     बेताल की दसवीं और आखिरी कहानी   ।  त्याग और बलिदान की परीक्षा  "बहुत समय पहले, महेन्द्रपुर नामक एक छोटे से राज्य में एक बहादुर राजा का शासन था, जिनका नाम धीरेंद्र था। वह अपने राज्य की प्रजा से बहुत प्यार करते थे और उनके कल्याण के लिए हमेशा तत्पर रहते थे।  राजा का एक प्रिय मंत्री था, व्यासराज, जो अपनी कर्तव्यनिष्ठा और बुद्धिमत्ता के लिए प्रसिद्ध था। दोनों के बीच गहरा रिश्ता था, और एक दिन राजा ने मंत्री से पूछा,  "मंत्री, तुम इतने निष्ठावान और त्यागी हो, क्या तुमने कभी अपने व्यक्तिगत स्वार्थों को त्याग कर किसी बड़े उद्देश्य के लिए बलिदान किया है?"  व्यासराज ने उत्तर दिया,  "राजन, मैंने अपनी ज़िन्दगी में बहुत कुछ त्यागा है, लेकिन अगर आप चाहें तो मैं आपको एक और बलिदान की कहानी सुनाता हूँ।"  राजा ने अनुमति दी और मंत्री ने अपनी कहानी सुनाई—   व्यासराज का बलिदान  "एक दिन, राज्य में भयंकर अकाल पड़ा। सभी जगहों पर सूखा था और लोग भूख से परेशान थे। राजा ने आदेश दिया कि राज्य के खजाने से अकाल पीड़ितों की मदद की जाए, लेकिन एक समस्या थी—राज्य के खजाने में बहुत कम धन बचा था।  राजा ने व्यासराज से पूछा, 'क्या किया जा सकता है?'  व्यासराज ने कहा, 'राजन, मुझे एक विचार आया है, लेकिन इसके लिए एक बड़ा बलिदान करना होगा।'  राजा ने पूछा, 'वह क्या विचार है?'  व्यासराज ने उत्तर दिया, 'मैं अपनी सारी संपत्ति और व्यक्तिगत खजाने को अकाल पीड़ितों के लिए दान कर सकता हूँ, ताकि वे सब राहत पा सकें।'  राजा ने उसे रोकते हुए कहा, 'तुम अपना जीवन और पद दांव पर मत लगाओ। तुम्हारी सेवा मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है।'  लेकिन व्यासराज ने कहा, 'राजन, यदि मेरे छोटे से बलिदान से राज्य को बचाया जा सकता है, तो यह मेरे लिए गर्व की बात होगी।'  राजा ने उसकी बात मानी और उसे अपना बलिदान करने का आदेश दिया। व्यासराज ने अपनी सम्पत्ति दान की, और राज्य के लोगों को राहत मिली।  कुछ महीनों बाद, राजा ने देखा कि राज्य में खुशहाली आई थी, लेकिन व्यासराज की स्थिति बहुत दयनीय हो गई थी। वह अब कोई संपत्ति या व्यक्तिगत ऐश्वर्य नहीं रखता था, लेकिन वह हमेशा संतुष्ट था।  राजा ने एक दिन व्यासराज से पूछा, 'क्या तुमने यह सब दान देकर सही किया?'  व्यासराज ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, 'राजन, जब किसी के दिल में प्रजा के कल्याण के लिए प्रेम हो, तो उसका बलिदान अपने आप अर्थपूर्ण हो जाता है। मैंने वही किया जो सही था।'"     बेताल का अंतिम सवाल  अब बेताल ने राजा विक्रमादित्य से पूछा—  "राजा, क्या व्यासराज का यह बलिदान सही था? क्या उसने अपनी सम्पत्ति और ऐश्वर्य को त्यागकर सही कदम उठाया?"     राजा विक्रमादित्य का उत्तर  राजा विक्रमादित्य ने एक गहरी सांस ली और उत्तर दिया—  "व्यासराज का बलिदान न केवल उसकी महानता को दर्शाता है, बल्कि यह यह भी बताता है कि किसी के लिए दूसरों की भलाई से बड़ा कुछ नहीं होता। उसने अपने व्यक्तिगत सुखों को त्यागकर, प्रजा के लिए सबसे महत्वपूर्ण निर्णय लिया। जब किसी का दिल सच्चे उद्देश्य के लिए समर्पित होता है, तो बलिदान ही सबसे बड़ा सम्मान होता है।"     बेताल का अंत और राजा विक्रमादित्य की जीत  जैसे ही राजा विक्रमादित्य ने उत्तर दिया, बेताल फिर से हंसा और बोला—  "राजा, तुमने हर बार सही उत्तर दिया अब मैं उड़ जाऊँगा। तुमने मुझे हराया"  और बेताल हवा में उड़ते हुए पेड़ से बाहर निकल गया, लेकिन अब राजा विक्रमादित्य को यह समझ में आ चुका था कि यह उनका अंतिम और सबसे कठिन परीक्षा थी। उन्होंने बेताल को अब पूरी तरह से पकड़ लिया था।  राजा विक्रमादित्य ने बेताल को पकड़कर सच्चे न्याय और साहस का परिचय दिया। वह अब पूरी तरह से विजयी थे और उनका राजधर्म और निर्णय पूरी तरह से सिद्ध हो चुका था।     राजा विक्रमादित्य की विजय  राजा विक्रमादित्य ने बेताल को शांति से अपने साथ लिया और राज्य लौटे। अब उनके पास न केवल बेताल की रहस्यमयी कहानियाँ थीं, बल्कि उनके अंदर के सच्चे न्याय, बुद्धि और धैर्य के गुण भी पूरी तरह से परिपक्व हो चुके थे।  यह कहानी हमेशा के लिए सुनाई जाती है, कि कैसे एक राजा अपनी परीक्षा के दौरान अपनी बुद्धिमत्ता और न्यायप्रियता को साबित करता है और सच्चाई की ओर मार्गदर्शन करता है।  continue... बेताल और विक्रम   ।  अगला भाग: बेताल से लड़ाईराजा विक्रमादित्य ने बेताल की चुनौती पूरी कर ली थी, और उसे अपनी पूरी बुद्धिमत्ता, न्यायप्रियता और धैर्य का प्रमाण दिया। लेकिन बेताल, जो एक रहस्यमय प्रेतात्मा था, वह इस हार को इतनी आसानी से स्वीकार करने वाला नहीं था। जब विक्रम ने उसे पूरी तरह से पकड़ लिया, बेताल के अंदर का अंहकार और क्रोध और भी बढ़ गया। बेताल ने अपनी पूरी शक्ति जुटाते हुए राजा विक्रमादित्य से कहा, "राजा, तुमने मुझे हराया, लेकिन तुम्हारी जीत अभी पूरी नहीं हुई। मैं तुम्हारे सामने एक और अंतिम चुनौती रखता हूँ, जिससे तुम्हारी परीक्षा और भी कठोर होगी।" राजा विक्रमादित्य ने बेताल की बात सुनी, लेकिन उनका साहस अब भी मजबूत था। उन्होंने उत्तर दिया, "मैंने पहले भी कई कठिन परीक्षाएँ दी हैं, और इस बार भी मैं तुम्हारी चुनौती को स्वीकार करता हूँ।"बेताल ने कहा, "तुमने मुझसे कई सवाल पूछे, लेकिन आज मैं तुम्हारे सामने एक और भयानक दृश्य पेश करूंगा। अगर तुम इस बार भी सही निर्णय लेते हो, तो मैं तुमसे हमेशा के लिए हार मान लूंगा।"राजा विक्रमादित्य ने बेताल को अपने कंधे पर डाला और श्मशान की ओर चल पड़े। बेताल ने एक भयानक और रहस्यमय दृश्य उत्पन्न किया। श्मशान में एक विशाल पेड़ के नीचे, वह एक राक्षस की आकृति में प्रकट हुआ। राक्षस की आँखें लाल थी, और वह विक्रम से चुनौती देने के लिए तैयार था। बेताल ने कहा, "राजा, अब तुम्हारे सामने यह राक्षस है। वह तुम्हें मारने के लिए तैयार है, लेकिन मैं चाहता हूँ कि तुम उसके सामने कुछ न बोलो। अगर तुमने कोई शब्द कहा, तो राक्षस तुम्हें खा जाएगा। तुम्हारी चुप्पी ही तुम्हारी जीत होगी।"राजा विक्रमादित्य ने अपनी पूरी दृढ़ता और साहस से शांति बनाए रखी और किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं दी। वह राक्षस के सामने खड़े रहे, और समय धीरेधीरे बीतता गया। राक्षस ने विक्रम को घूरते हुए देखा, लेकिन उसने कोई आक्रमण नहीं किया, क्योंकि राजा ने उसे उकसाने के लिए कोई शब्द नहीं कहे। बेताल ने हंसी के साथ कहा, "राजा, तुमने चुप रहकर सही किया। तुम्हारी बुद्धिमत्ता और धैर्य ने तुम्हारी जीत सुनिश्चित की।" और फिर, बेताल ने राक्षस की छाया को continue... कर दिया। राजा विक्रमादित्य ने बेताल को अंततः पूरी तरह से हराया, और उसकी चुनौती का सामना करते हुए वह अब पूरी तरह से विजयी हो गए। बेताल ने यह महसूस किया कि विक्रम के सामर्थ्य और आंतरिक शक्ति के सामने उसकी सारी चालें नाकाम हो चुकी थीं। फिर, बेताल ने कहा, "राजा विक्रमादित्य, अब मैं हार मानता हूँ। तुमने अपनी बुद्धि, साहस और न्यायप्रियता से मुझे हराया। अब तुम मेरा विजयमाला पहनाओ।"राजा विक्रमादित्य ने मुस्कुराते हुए बेताल को कहा, "तुम्हारी परीक्षा अब खत्म हो चुकी है, बेताल। तुमने अपनी सारी शक्ति लगा दी, लेकिन तुम्हारी चालें असफल हो गईं।"बेताल का अंत:  इस प्रकार, बेताल का अन्त हुआ और राजा विक्रमादित्य की जीत पूरी तरह से साकार हो गई। बेताल ने आत्मसमर्पण कर दिया और राजा विक्रम को शांति से वापस लौटने का संकेत दिया। राजा विक्रमादित्य अब अपने राज्य में लौटे, और वह अपने न्याय, साहस और शक्ति के प्रतीक बन गए। इस तरह से, राजा विक्रमादित्य ने न केवल बेताल को हराया, बल्कि यह भी सिद्ध किया कि सच्चाई, न्याय और धैर्य हमेशा विजय प्राप्त करते हैं। continue... बेताल और विक्रम   ।  अगला भाग: बेताल की वापसीराजा विक्रमादित्य ने बेताल को हराया और उसकी सारी रहस्यमयी शक्तियों का अंत किया। श्मशान में शांति का वातावरण था, और विक्रम अपने कंधे पर बेताल को लेकर अपने महल की ओर बढ़ने लगे। लेकिन वह यह नहीं जानते थे कि बेताल केवल शारीरिक रूप से हार गया था, उसकी आत्मा अब भी एक नई योजना के साथ विक्रम को चुनौती देने के लिए तैयार थी। राजा विक्रमादित्य महल लौटते हुए अपने भीतर एक अजीब सी अनुभूति महसूस करने लगे। वह समझ गए कि यह कहानी अभी खत्म नहीं हुई थी। कुछ समय बाद, जब वह अपने सिंहासन पर बैठे थे, अचानक वेताल का रूप फिर से सामने प्रकट हुआ। इस बार बेताल की आँखों में पुरानी हंसी नहीं थी, बल्कि उसमें एक गहरी शांति और संतोष था। बेताल ने कहा:  "राजा विक्रमादित्य, तुम्हारी बुद्धि और साहस ने मुझे कई बार पराजित किया। लेकिन इस बार, मैं तुम्हें एक अंतिम चुनौती नहीं दूँगा। आज मैं तुम्हें एक उपहार देने आया हूँ, जिससे तुम्हारा राजकाज और भी समृद्ध होगा।"राजा विक्रमादित्य चौंके, क्योंकि वह जानते थे कि बेताल जैसा रहस्यमय प्रेत हमेशा कुछ विशेष उद्देश्य के लिए आता है। उन्होंने पूछा, "बेताल, अब तुम क्या चाहते हो? क्या यह कोई और चाल है?"बेताल ने उत्तर दिया:  "नहीं, विक्रम। इस बार मैं तुम्हारे लिए एक गहरी सीख लेकर आया हूँ। तुमने मुझसे कई सवालों के उत्तर दिए, लेकिन आज मैं तुम्हें एक और दृष्टिकोण दिखाना चाहता हूँ।"  फिर बेताल ने विक्रम से एक सवाल पूछा, जिसे सुनकर विक्रम को आभास हुआ कि यह सवाल उनके राज्य और उनके शासन से संबंधित था। बेताल ने कहा:  "राजा, क्या तुम समझते हो कि तुमने अपनी प्रजा के कल्याण के लिए जो बलिदान दिए हैं, वे तुम्हारी सच्ची जीत हैं? क्या तुम यह नहीं मानते कि सत्ता की सच्ची ताकत उन बलिदानों में निहित है, जिन्हें राजा अपने लोगों के लिए करता है?"राजा विक्रमादित्य ने गहरी सोच के बाद उत्तर दिया:  "सिर्फ़ युद्धों और शक्ति से विजय नहीं मिलती, बेताल। सच्ची ताकत और विजय वही है जो जनता की भलाई और उनके कल्याण के लिए हो। जो राजा अपनी प्रजा के लिए अपनी खुशियाँ, अपनी इच्छाएँ त्यागकर काम करता है, वही असली विजेता होता है।"बेताल ने कहा:  "तुमने सही कहा, विक्रम। मैं देख रहा हूँ कि तुम्हारे दिल में असली राजा की पहचान है। इसलिए मैं तुम्हें इस राज्य में शांति और समृद्धि का वरदान देता हूँ। तुम्हारे द्वारा किए गए सभी निर्णय अब एक निश्चित दिशा में बदलेंगे, और तुम और तुम्हारी प्रजा सुखी रहेंगे।"इसके बाद, बेताल ने अपने अस्तित्व को समर्पित किया और विक्रमादित्य को वह उपहार दिया जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी। विक्रम ने बेताल के सामने सिर झुकाया, और बेताल हवा में उड़ते हुए गायब हो गया। राजा विक्रमादित्य की विजय और राज्य की समृद्धि  अब राजा विक्रमादित्य का राज्य शांति, समृद्धि और खुशहाली से भर गया। उनकी प्रजा हर लिहाज से संतुष्ट थी, और उनका शासन एक आदर्श बन गया। विक्रम के न्याय और धैर्य ने उन्हें न केवल बेताल को हराने में, बल्कि एक महान और आदर्श शासक बनने में भी मदद की।विक्रमादित्य की पूरी यात्रा ने यह सिद्ध कर दिया कि सच्चे राजकाज का राज केवल न्याय, धैर्य, और प्रजा के कल्याण में छिपा होता है। बेताल ने विक्रम से केवल सवाल नहीं किए, बल्कि उसे जीवन के सबसे गहरे सत्य का एहसास भी कराया।continue... बेताल और विक्रम   ।  अगला भाग: बेताल की आखिरी चालराजा विक्रमादित्य ने बेताल को हराया, उसकी आत्मा को शांति दी, और अपने राज्य में समृद्धि और न्याय की स्थापना की। लेकिन बेताल का अस्तित्व कभी पूरी तरह continue... नहीं हुआ था, क्योंकि वह एक प्राचीन प्रेतात्मा था और उसकी मंशा कभी पूरी नहीं हुई थी। जब राजा विक्रमादित्य ने अपने राज्य में शांति और प्रगति देखी, तब बेताल ने एक आखिरी बार विक्रम को परीक्षा में डालने का मन बनाया। बेताल की वापसीएक रात, विक्रम अपने महल के आंगन में बैठे थे, तभी अचानक बेताल का रूप फिर से प्रकट हुआ। उसका रूप अब भिन्न था। उसकी आँखों में रहस्यमयी चमक थी, और उसकी आवाज में एक गहरी चुप्प थी। विक्रम ने बेताल को देखा और समझ गए कि यह उसकी एक और चुनौती है।बेताल ने कहा:  "राजा विक्रमादित्य, तुमने मुझे हर बार हराया, लेकिन इस बार मैं तुम्हारे सामने एक ऐसी चुनौती लाया हूँ, जिसे तुम न जीत सकते हो, न हार सकते हो।"राजा विक्रमादित्य का चेहरा अब गंभीर हो गया। उन्होंने बेताल से पूछा, "क्या तुम मेरे साथ और कोई और खेल खेलना चाहते हो?"बेताल ने उत्तर दिया:  "यह खेल नहीं है, विक्रम। यह एक परीक्षा है, जिसमें तुम्हारे दिल की सच्चाई सामने आएगी। यह सब तुम पर निर्भर करेगा कि तुम किसे चुनते हो—सत्यम, प्रेम या शक्ति।" बेताल की अंतिम परीक्षाफिर बेताल ने विक्रम के सामने एक सवाल रखा, जो उनकी पूरी जीवनशैली को चुनौती देने वाला था। वह बोला:"राजा विक्रमादित्य, अगर तुम्हारे सामने तीन रास्ते हों—एक सत्य का, एक प्रेम का और एक शक्ति का—तुम इनमें से किसे चुनोगे?"राजा विक्रमादित्य चुपचाप कुछ देर सोचते रहे। यह सवाल उनका दिल छूने वाला था, क्योंकि उन्होंने हमेशा सत्य, प्रेम और शक्ति को अपने शासन में समान रूप से महत्व दिया था। उन्होंने अपने भीतर की आवाज़ सुनी और उत्तर दिया:"मैं सत्य को चुनूँगा, क्योंकि सत्य ही सबसे बड़ा धर्म है। सत्य का पालन करना ही जीवन का उद्देश्य है, चाहे उसकी कोई भी कीमत हो।"बेताल की हंसीबेताल ने विक्रम के उत्तर को सुना और फिर हंसी के साथ कहा, "राजा, तुमने बहुत समझदारी से उत्तर दिया, लेकिन क्या तुम्हारा सत्य हमेशा तुम्हारे लिए सही रहेगा?"राजा विक्रमादित्य ने जवाब दिया, "मैं जानता हूँ कि सत्य कभी न कभी कड़वा होता है, लेकिन यही वह रास्ता है जो हमेशा हमें शांति और सही मार्ग की ओर ले जाता है।" बेताल का समर्पणराजा विक्रमादित्य के उत्तर ने बेताल को चुप करा दिया। वह समझ चुका था कि विक्रम का दिल पूरी तरह से सत्य में निहित था और उसकी सच्चाई से कोई भी छल नहीं कर सकता था। बेताल ने अपना अस्तित्व पूरी तरह से समर्पित किया और एक आखिरी बार विक्रम को धन्यवाद दिया।"राजा विक्रमादित्य," बेताल ने कहा, "तुमने मुझे हराया और मेरी अंतहीन परीक्षा को पूरा किया। अब मैं अपनी सारी शक्ति छोड़ता हूँ। तुम सच में सच्चे शासक हो।"और फिर बेताल धीरेधीरे हवा में विलीन हो गया, जैसे वह कभी था ही नहीं। राजा विक्रमादित्य की परिपूर्णताअब बेताल की चमत्कारी शक्तियाँ और उसके तमाम रहस्य विक्रम के जीवन से continue... हो गए थे। विक्रमादित्य ने शांति से अपने राज्य की ओर रुख किया। उन्हें अब समझ में आ गया था कि सच्ची शक्ति केवल न्याय, सत्य और प्रेम में ही समाहित होती है। उन्होंने हमेशा इन तीनों का पालन किया, और यही कारण था कि वह न केवल एक महान राजा थे, बल्कि एक आदर्श भी थे।उनके शासनकाल में कभी भी किसी भी प्रकार की अशांति नहीं रही। प्रजा को हमेशा न्याय मिला, और राज्य समृद्धि से भरा हुआ था।continue... बेताल और विक्रम   ।  अगला भाग: विक्रम की आखिरी चुनौतीराजा विक्रमादित्य ने बेताल को हराया, उसकी आत्मा को शांति दी और राज्य में शांति और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त किया। बेताल की चमत्कारी शक्तियों का अंत हो गया था, और विक्रम ने अपने शासन में सदैव सत्य, न्याय और प्रेम को सर्वोपरि माना। लेकिन बेताल की आत्मा एक अंतिम बार विक्रम को चुनौती देने की योजना बना रही थी। बेताल की वापसी   ।  एक और परीक्षाराजा विक्रमादित्य एक शांतिपूर्ण रात महल में बैठे थे, जब अचानक आकाश में अजीब सी हलचल हुई। एक तेज़ आंधी आई, और महल की खिड़कियाँ झनझना उठीं। विक्रम को महसूस हुआ कि कुछ अजीब हो रहा था। फिर, अचानक बेताल का रूप फिर से सामने प्रकट हुआ। इस बार उसकी आँखों में एक और रहस्यमयी चमक थी और उसकी हंसी में एक गहरा रहस्य था।बेताल ने कहा:  "राजा विक्रमादित्य, अब तुमने सब कुछ सही किया, लेकिन क्या तुमने अपनी सच्चाई और न्याय को सही मायने में समझ लिया है? क्या तुम आज भी अपने दिल की सुनोगे?"विक्रम ने बिना झिझक के जवाब दिया, "जो सत्य और न्याय मेरे दिल में हैं, वही मेरे शासन का मार्ग है। मैं हमेशा अपने प्रजा के लिए सच्चाई का पालन करूंगा।"बेताल ने मुस्कुराते हुए कहा:  "लेकिन विक्रम, तुम्हारी परीक्षा अब तक आसान थी। मैं तुम्हें एक नई चुनौती देने आया हूँ। अब तुम्हें सिर्फ़ न्याय नहीं, बल्कि धैर्य और साहस का भी इम्तिहान देना होगा।" बेताल की अंतिम चुनौती   ।  न्याय, साहस और धैर्य का परीक्षणबेताल ने विक्रम के सामने एक दुष्कर स्थिति रखी, जिससे उसे न केवल अपने राज्य के लिए, बल्कि अपने आत्मिक शांति के लिए भी निर्णय लेना था। वह बोला:  "राजा विक्रम, एक दिन तुम्हारे राज्य में एक अपराधी आकर बहुत बड़ी मुसीबत खड़ी कर देता है। वह तुम्हारी प्रजा का विश्वास तोड़ता है, उनके साथ धोखा करता है और राज्य की संपत्ति लूटता है। तुम्हें उसे पकड़ने का आदेश मिलता है। तुम उस अपराधी को पकड़ने के लिए जाते हो, लेकिन अचानक तुम्हें पता चलता है कि वह व्यक्ति तुम्हारे सबसे अच्छे दोस्त का भाई है, और तुम्हारे दोस्त ने तुमसे वचन लिया है कि तुम उस अपराधी को बख्श दोगे। अब तुम्हारे सामने दो रास्ते हैं: क्या तुम अपने दोस्त के वचन को निभाओगे, या न्याय का पालन करके उस अपराधी को सजा दोगे?"विक्रम ने इस सवाल पर ध्यान दिया। उसने अपने दिल की आवाज सुनी और जवाब दिया:"मैं जानता हूँ कि यह एक कठिन परीक्षा है। लेकिन सच्चे राजा का कर्तव्य अपनी प्रजा और राज्य के प्रति ईमानदारी से निभाना होता है। चाहे वह मेरे सबसे अच्छे दोस्त का भाई हो, मैं न्याय का पालन करूंगा। दोस्ती को भी न्याय के सामने झुकना होगा, क्योंकि राज्य के हित और प्रजा का भला सर्वोपरि है।" बेताल का समर्पणबेताल ने विक्रम का उत्तर सुना और उसकी आँखों में एक अद्भुत संतोष चमकने लगा। वह मुस्कुराया और बोला:"राजा विक्रम, तुमने न्याय, साहस और धैर्य का सही रास्ता चुना। तुम्हारे दिल में सच्चाई और प्रजा का भला सर्वोपरि है। तुमने यह सिद्ध कर दिया कि सच्चे शासक वही होते हैं जो कठिन समय में भी अपने कर्तव्यों को नहीं भूलते।"फिर बेताल ने कहा, "अब मैं तुमसे और तुम्हारे राज्य से विदा लेता हूँ। मेरी सारी परीक्षा पूरी हो चुकी है, और तुमने सभी सवालों का सही उत्तर दिया। अब मैं अपनी यात्रा continue... करता हूँ।" राजा विक्रमादित्य की अंतिम विजयजैसे ही बेताल ने अपनी अंतिम विदाई दी, उसकी आत्मा शांति से मुक्त हो गई। विक्रम को महसूस हुआ कि यह उनका अंतिम इम्तिहान था, और उन्होंने उसे पूरी तरह से सफलता से पार किया। बेताल अब पूरी तरह से शांत था, और विक्रम ने अपने शासन को और भी बेहतर बनाने का संकल्प लिया।राजा विक्रमादित्य का शासन अब न केवल एक आदर्श बन चुका था, बल्कि उनकी नीति और न्याय के सिद्धांत दूरदूर तक प्रसिद्ध हो गए थे। उनकी नीतियों ने राज्य को एक नई दिशा दी और प्रजा को एक समृद्ध और सुखमय जीवन प्रदान किया।continue... बेताल और विक्रम   ।  अगला भाग: विक्रम की राजगद्दी की सच्चाईराजा विक्रमादित्य ने बेताल की रहस्यमयी चुनौती से विजय प्राप्त की, और अब उनके राज्य में शांति और समृद्धि थी। विक्रम ने हर समस्या और परीक्षा का सामना धैर्य, न्याय, और बुद्धिमत्ता से किया था। लेकिन एक रहस्य था, जो अब भी उनके मन में गहरे सवाल छोड़ गया था   ।  राज्य की गद्दी का असली मालिक कौन है? विक्रम की नई परीक्षाविक्रमादित्य को अब यह एहसास हो चुका था कि उनके पास केवल बाहरी संघर्षों से जूझने के लिए ही नहीं, बल्कि आंतरिक, राजनीतिक और राजनैतिक नेतृत्व से भी निपटने की क्षमता होनी चाहिए। एक दिन, महल में एक घना अंधेरा छाया हुआ था और विक्रम अपनी गद्दी पर बैठे थे, जब अचानक बेताल की आवाज सुनाई दी।"राजा विक्रम," बेताल ने कहा, "तुमने अपने राज्य को सही दिशा दी, लेकिन क्या तुम जान पाओगे कि किसी गद्दी का असली मालिक कौन है?"विक्रम ने एक गहरी सांस ली और उत्तर दिया, "गद्दी का असली मालिक वही होता है, जो अपनी प्रजा के भले के लिए काम करता है, जो अपने राज्य में सत्य, न्याय और शांति का पालन करता है।"लेकिन बेताल ने मुस्कुराते हुए कहा, "तुम्हारे शब्द सच हैं, विक्रम, लेकिन क्या तुम यह समझ पाओगे कि गद्दी पर बैठने का वास्तविक अधिकार किसे है? क्या तुम जानते हो कि तुम्हें कैसे यह कर्तव्य दिया गया?" बेताल का रहस्यमयी सवालफिर बेताल ने विक्रम से एक और सवाल किया, जो अब तक उनका सबसे कठिन सवाल था।"राजा विक्रम," बेताल ने कहा, "मान लो, एक राज्य का राजा अपनी गद्दी को छोड़कर एक दूसरे राज्य में जा बसता है, लेकिन उसका बेटा उसी राज्य में गद्दी का उत्तराधिकारी बनता है। अब, उस राजा के राज्य में कोई संकट आ जाता है, और पुराने राजा को बुलाया जाता है, ताकि वह फिर से शासन करे। लेकिन पुराने राजा के मन में यह ख्याल आता है कि उसकी गद्दी का अधिकार उसके बेटे का है, और वह संकोच करता है। ऐसे में क्या किया जाना चाहिए?"विक्रम ने सोचा और फिर कहा, "राज्य का कर्तव्य और उसकी प्रजा का भला सबसे ऊपर होना चाहिए। अगर पुराने राजा का पुत्र वास्तव में सक्षम और योग्य है, तो उसे गद्दी पर बैठने का अधिकार मिलना चाहिए, और अगर पुराने राजा की वापसी से राज्य को लाभ हो सकता है, तो उसे राज्य का कल्याण सुनिश्चित करना चाहिए, चाहे वह खुद गद्दी पर बैठे या नहीं।"बेताल हंसा और बोला, "तुमने सही कहा, विक्रम। तुमने यह सिद्ध कर दिया कि गद्दी का असली मालिक वही है जो अपनी प्रजा के कल्याण के लिए खुद को बलिदान करने के लिए तैयार रहता है।" राजा विक्रमादित्य की सच्ची विजयी गद्दीअब बेताल की आत्मा को शांति मिली और वह विक्रम से हमेशा के लिए विदा हो गया। राजा विक्रमादित्य ने यह समझ लिया कि सच्ची राजगद्दी का अधिकार केवल उस शासक को है जो अपने राज्य के लोगों की भलाई के लिए हमेशा अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं और स्वार्थों को पीछे छोड़ दे। विक्रम ने अपनी गद्दी को सही अर्थों में अपनाया और अपने राज्य को एक आदर्श बना दिया।राज्य में शांति, समृद्धि और न्याय का शासन था, और विक्रमादित्य का नाम हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज हो गया। उनका शासन न केवल उनके राज्य के लिए, बल्कि समस्त मानवता के लिए एक प्रेरणा बन गया।continue... बेताल और विक्रम   ।  अगला भाग: विक्रम की आंतरिक यात्राराजा विक्रमादित्य ने बेताल की सभी चुनौतियों का सामना किया और उसकी रहस्यमयी कहानियों के रहस्यों को सुलझाया। लेकिन एक गहरी बात थी जो विक्रम के मन में कहीं न कहीं अंधेरे में बैठी थी। अब उनका संघर्ष केवल बाहरी राज्य और शासकीय निर्णयों तक सीमित नहीं था। यह एक आंतरिक यात्रा थी, एक ऐसी परीक्षा जो केवल उन्हें अपने भीतर से गुजरनी थी। राजा विक्रम की आंतरिक चुनौतीमहल में एक दिन विक्रम ने अपने दरबारियों और मंत्रियों को एकत्र किया और कहा, "मैंने बेताल से कई कठिन सवालों का सामना किया, लेकिन अब मुझे खुद से एक प्रश्न करना है। क्या मैं वास्तव में वही राजा हूँ, जिसकी मेरे राज्य को आवश्यकता है? क्या मेरी मानसिकता और आंतरिक शांति सचमुच इतनी मजबूत है कि मैं कभी भी अपनी प्रजा के लिए सर्वोत्तम निर्णय ले सकूं?"राजा विक्रम ने अपने राज्य को शांति, न्याय और समृद्धि प्रदान की थी, लेकिन वह अब आत्ममंथन कर रहे थे। वह महसूस कर रहे थे कि एक राजा को केवल बाहरी युद्ध और न्याय का ही सामना नहीं करना पड़ता, बल्कि उसे अपने भीतर के डर, संकोच और संदेहों से भी निपटना होता है। ध्यान की आंतरिक यात्राविक्रम ने एक दिन महल के बगीचे में जाकर ध्यान लगाना शुरू किया। उन्होंने अपने भीतर की आवाज़ों को सुनने की कोशिश की और महसूस किया कि उनके भीतर कई ऐसे विचार हैं जो उन्हें लगातार घेर रहे थे। क्या वह अपनी शक्ति का ठीक से उपयोग कर रहे थे? क्या उनकी अपनी इच्छाएँ कभी उनके राजधर्म से टकराती थीं? क्या वह अपने राज्य के हर नागरिक की वास्तविक मदद कर पा रहे थे?यहीं से उनकी आंतरिक यात्रा शुरू हुई। विक्रम को यह समझने का अवसर मिला कि बाहरी शांति का अधिकार केवल अपने भीतर की शांति से ही आता है। वह समझ गए कि केवल राज्य का सफल शासक बनने के लिए बाहरी लड़ाइयाँ जीतना पर्याप्त नहीं था, बल्कि अपने भीतर की लड़ाई को जीतना भी उतना ही महत्वपूर्ण था। राजा विक्रम का आत्मबोधएक दिन विक्रम को एक साधू मिलें, जो महल के पास एक छोटे से मंदिर में रहते थे। उन्होंने साधू से पूछा, "गुरु, मैं कई युद्धों में विजयी हुआ हूँ, लेकिन भीतर कुछ खालीपन सा महसूस करता हूँ। क्या कोई ऐसी साधना है, जिससे मैं अपने भीतर के सच को पहचान सकूं और अपने राज्य को और भी बेहतर बना सकूं?"साधू ने मुस्कुराते हुए कहा, "राजा विक्रम, जब तुम अपने भीतर की शांति और संतुलन पा लोगे, तो तुम्हारा राज्य अपने आप प्रगति करेगा। ध्यान और साधना के माध्यम से तुम अपनी वास्तविक शक्ति को पहचान सकोगे, और तभी तुम्हारी कर्तव्यनिष्ठा और न्यायपूर्ण शासन सच्चे अर्थों में सफल होगा।"राजा विक्रम ने साधू की बात मानी और ध्यान साधना की ओर कदम बढ़ाया। वह दिनप्रतिदिन अपने भीतर की दुनिया को जानने और समझने का प्रयास करने लगे। धीरेधीरे उनका मन शांत हुआ, और वह आंतरिक शांति की अवस्था में पहुँच गए। राज्य में परिवर्तनराजा विक्रम की आंतरिक यात्रा ने न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन में, बल्कि उनके शासन में भी बड़ा बदलाव लाया। अब उन्होंने अपनी प्रजा से और भी गहरी सहानुभूति और समझ विकसित की। उन्होंने राज्य के प्रत्येक नागरिक की मदद करने के नए तरीके खोजे और सच्चे न्याय के सिद्धांतों को व्यवहार में लाया। उनका शासन पहले से कहीं अधिक शांतिपूर्ण और समृद्ध हो गया।राजा विक्रम को यह महसूस हुआ कि असली शक्ति बाहरी विजय से नहीं, बल्कि आत्मविश्वास, आंतरिक शांति, और अपने कर्तव्यों के प्रति पूरी प्रतिबद्धता से आती है। continue..राजा विक्रमादित्य का शासन अब अपने चरम पर था। उनके राज्य में न केवल न्याय था, बल्कि वहां की हर एक आत्मा शांति और संतुलन में जी रही थी। विक्रम के अंदर की यात्रा पूरी हो चुकी थी, और अब उन्होंने अपने राज्य में केवल एक राजा के रूप में नहीं, बल्कि एक प्रेरणास्त्रोत के रूप में अपना जीवन बिताया।उनकी कहानी आज भी सुनाई जाती है, कि कैसे एक राजा ने अपनी आंतरिक यात्रा से न केवल खुद को, बल्कि अपने पूरे राज्य को एक नई दिशा दी।continue... बेताल और विक्रम   ।  अगला भाग: विक्रम की अंतिम परीक्षाराजा विक्रमादित्य ने अपनी आंतरिक यात्रा और राज्य की जिम्मेदारियों को पूरी तरह से समझ लिया था, और उनका शासन अब न केवल प्रभावी था, बल्कि उनके लोगों के दिलों में भी सम्मान और प्यार था। लेकिन उनके लिए यह कहानी continue... नहीं हुई थी। एक नई परीक्षा उनके सामने आने वाली थी, जो न केवल उनके बाहरी निर्णयों को बल्कि उनकी आंतरिक शक्ति और विश्वास को भी परखने वाली थी। राजा विक्रम का सपनाएक रात विक्रम ने महल में सोते हुए एक विचित्र सपना देखा। सपना था, कि वह एक विशाल अंधेरे जंगल में खड़े थे, जहां चारों ओर घना कोहरा था और किसी भी दिशा में जाने का रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था। विक्रम ने देखा कि वे अकेले थे, और एक आवाज ने कहा, "राजा विक्रम, तुम्हें अब एक अंतिम परीक्षा देनी होगी। यह परीक्षा तुम्हारी आत्मविश्वास, न्याय और साहस की है।"विक्रम जागे और समझ गए कि यह सपना कोई साधारण सपना नहीं था। यह उनकी अगली चुनौती थी, जो उनकी पूरी सत्ता और राजधर्म को परखने वाली थी। वह महल के मुख्य दरवाजे से बाहर निकले और अपनी यात्रा की शुरुआत की। उनका मन पूरी तरह से स्थिर और स्पष्ट था, लेकिन उनकी आँखों में एक नई ताजगी और उत्साह था। विक्रम जान गए थे कि अब उन्हें वह परीक्षा पूरी करनी थी, जिससे वह अपने भीतर के सबसे गहरे डर और संकोच को पार कर सकें। विक्रम की अंतिम यात्राविक्रम ने अपने मंत्री और सैनिकों को आदेश दिया कि वह कोई भी दिक्कत नहीं आने पाए, क्योंकि यह यात्रा केवल उनका व्यक्तिगत आत्मसंघर्ष था। वह अकेले ही जंगल में गए, जहां उन्हें प्रतीक्षा थी उस परीक्षा की। अंधेरे जंगल में कदम रखते ही विक्रम को लगा कि किसी ताकत ने उनका मार्गदर्शन किया है। अब यह उनकी आंतरिक दुनिया का सामना करने का समय था। जंगल की गहरी शाखाओं से एक और आवाज आई: "विक्रम, तुमने बहुत कुछ सहा है, बहुत कुछ सीखा है, लेकिन क्या तुम अपने सबसे बड़े डर का सामना कर सकोगे?" विक्रम ने दृढ़ता से उत्तर दिया, "मेरे डर के बावजूद, मैं कभी पीछे नहीं हटूंगा।"अचानक, एक दृश्य उनके सामने उभरा   ।  यह उनका पुराना महल था, लेकिन उसे घेर लिया था एक विशाल युद्धभूमि और आग की लपटें। विक्रम ने देखा कि महल के आंतरिक कक्ष में उनका परिवार और प्रजा खतरे में हैं। फिर एक आवाज ने कहा, "क्या तुम अपने राज्य को बचा सकोगे, यदि तुम्हारे सामने वह सब कुछ हो जो तुम्हें सबसे अधिक प्रिय है?"यह दृश्य विक्रम के अंदर गहरे संकोच और डर को जागृत कर गया। क्या वह अपनी प्रजा और परिवार को बचा पाएंगे, अगर उनकी शक्तियाँ असफल हो जाएं? विक्रम का निर्णयविक्रम ने अपनी पूरी शक्ति और साहस जुटाया और कहा, "मुझे अपनी प्रजा और परिवार से अधिक महत्वपूर्ण कोई नहीं है। अगर मुझे अपनी जान भी जोखिम में डालनी पड़े, तो मैं ऐसा करूंगा।" जैसे ही उन्होंने यह फैसला लिया, वह दृश्य मिट गया। विक्रम को समझ में आ गया कि यह उनकी सबसे बड़ी परीक्षा थी   ।  अपनी पूरी सत्ता और जिम्मेदारी को निभाने के लिए अपने व्यक्तिगत डर और संवेदनाओं को पार करना। यह सब कुछ अपने राज्य और प्रजा के सर्वोत्तम हित के लिए था। विक्रम की विजयविक्रम का आत्मविश्वास अब पूरी तरह से दृढ़ था। उन्होंने अपने राज्य को वापस संभाला और महल लौटने का रास्ता पाया। उन्होंने अपने अंदर के डर को परास्त किया और अब अपने राज्य को एक नई दिशा में ले जाने के लिए पूरी तरह से तैयार थे।महल में लौटते ही राजा विक्रमादित्य ने यह घोषणा की: "जो कोई भी अपने भीतर के डर से लड़ता है और अपने कर्तव्यों को निभाने का संकल्प करता है, वही सच्चा शासक होता है। यह मेरी अंतिम परीक्षा थी, और मैं अब पूरी तरह से तैयार हूं।" राज्य की पुनर्निर्माण यात्राराजा विक्रम का शासन अब पहले से कहीं अधिक मजबूत था। उनके निर्णय और शासकीय दृष्टिकोण में एक नई स्फूर्ति थी। उन्होंने प्रजा के कल्याण के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए, और राज्य को एक आदर्श राज्य के रूप में विकसित किया।अब विक्रम केवल एक राजा नहीं, बल्कि एक प्रेरणा बन गए थे। उनकी कहानी बताती है कि कोई भी शासक अपनी आंतरिक यात्रा और संघर्षों के बिना पूरी तरह से सफल नहीं हो सकता। केवल अपनी सबसे गहरी परीक्षा का सामना करके ही एक सच्चा शासक बन सकता है।continue... बेताल और विक्रम   ।  अगला भाग: विक्रम का नया संकटराजा विक्रमादित्य ने अपनी आंतरिक यात्रा पूरी कर ली थी और उनका राज्य अब पहले से कहीं अधिक समृद्ध और शांतिपूर्ण था। उनकी न्यायप्रियता, साहस, और कर्तव्य के प्रति समर्पण ने उन्हें न केवल एक महान राजा बल्कि एक आदर्श शासक बना दिया था। लेकिन शांति के इस दौर के बाद, विक्रम को फिर से एक नई चुनौती का सामना करना पड़ा, जो केवल उनके राज्य के लिए नहीं, बल्कि उनकी आत्मा के लिए भी कठिन परीक्षा थी। नया संकट   ।  भूतिया प्रेत का आतंकराज्य के बाहरी इलाके में अचानक एक अजीब घटना घटने लगी। लोग रातों रात गायब होने लगे, और कई बार गांवों में ऐसी आवाजें सुनाई देतीं, जिन्हें कोई समझ नहीं पाता था। एक रात, विक्रम को एक वृद्ध व्यक्ति ने महल में आकर कहा, "राजन, हमारे गाँव में एक भूतिया प्रेत का आतंक है। वह रातों को आते हैं और लोगों को अपने साथ ले जाते हैं। कृपया हमारी मदद करें।"राजा विक्रम ने यह सुनकर तुरंत ही एक गहरी सांस ली। यह कोई साधारण संकट नहीं था। यह एक ऐसा अज्ञात और रहस्यमयी प्रेत था, जो केवल शारीरिक बल से नहीं, बल्कि मानसिक शक्ति से भी सामना किया जा सकता था।  बेताल का आगमनराजा विक्रम की इस कठिनाई के बीच, बेताल फिर से प्रकट हुआ। यह एक और रहस्यमयी चुनौती थी, जो केवल विक्रम के लिए थी। विक्रम ने बेताल को अपने कंधे पर डाला और श्मशान की ओर चल पड़े। रास्ते में बेताल ने एक बार फिर अपनी हंसी के साथ कहा,  "राजा विक्रम, तुम्हारा राज्य शांति में था, लेकिन तुम्हारी परीक्षा अब एक और स्तर पर पहुँच चुकी है। तुम्हारे राज्य को एक अदृश्य संकट ने घेर लिया है, और यह तुम्हारे साहस और बुद्धि का अंतिम इम्तहान होगा।"राजा विक्रम ने चुपचाप सुना और आगे बढ़ते रहे। वह जानते थे कि यह एक और चुनौती होगी, लेकिन वह पूरी तरह तैयार थे।  बेताल की नई कहानीबेताल ने अपनी कहानी शुरू की, "बहुत समय पहले, एक राज्य में एक ऐसे प्रेत का आतंक था, जो रात के समय किसी भी जीवित प्राणी को अपने साथ ले जाता था। यह प्रेत एक शक्तिशाली जादूगर था, जिसने अपनी मृत्यु के बाद भी अपनी शक्ति को बनाए रखा था। उसकी शक्ति इतनी बड़ी थी कि कोई भी उस पर विजय नहीं प्राप्त कर सका। एक दिन, राज्य के सबसे महान योद्धा, वीरराज, ने इस प्रेत को परास्त करने का संकल्प लिया।""वीरराज ने अपनी सेना के साथ उस प्रेत का पीछा किया, लेकिन वह जानता था कि इसे केवल उसकी शारीरिक शक्ति से नहीं हराया जा सकता। उसने सोचा, 'मैं अगर अपनी मंशा और साहस से इस प्रेत को परास्त कर सकता हूं तो यह मेरे राज्य और प्रजा के लिए सबसे बड़ी सेवा होगी।'""वीरराज ने प्रेत से जादुई युद्ध किया, लेकिन जैसे ही वह प्रेत को अपने पास महसूस करता, वह फिर से गायब हो जाता। यह युद्ध बहुत समय तक चला, और वीरराज की स्थिति बहुत दयनीय हो गई। लेकिन वह कभी हार नहीं माना। उसने आंतरिक शांति और मानसिक शक्ति का सहारा लिया। एक दिन, जब वह पूरी तरह से थक चुका था, उसने आत्मसात किया कि शारीरिक बल से अधिक मानसिक बल जरूरी है।""फिर वीरराज ने प्रेत को अपने भीतर से पराजित किया, और प्रेत का बल कम होने लगा। आखिरकार, उसकी शक्ति continue... हो गई, और वह प्रेत हमेशा के लिए शांत हो गया।" बेताल का प्रश्नअब बेताल ने विक्रम से पूछा, "राजा विक्रम, क्या तुम मानते हो कि वीरराज की जीत केवल शारीरिक शक्ति से थी, या उसकी मानसिक शक्ति और आंतरिक शांति ने उसे असली विजय दिलाई?"राजा विक्रम ने एक गहरी सांस ली और उत्तर दिया, "यह मानसिक शक्ति और आत्मविश्वास था, जिसने वीरराज को अंततः जीत दिलाई। शारीरिक बल से ज्यादा महत्वपूर्ण है आत्मिक संतुलन, साहस, और सही मार्गदर्शन की भावना। जब कोई अपनी आंतरिक शक्ति को पहचानता है, तभी वह बाहरी दुनिया के अंधकार को जीत सकता है।" बेताल का आखिरी परिक्षाबेताल हंसी में बोला, "राजा विक्रम, तुमने फिर से सही उत्तर दिया। तुम्हारी बुद्धि और साहस ने तुम्हें हर बार विजय दिलाई है। अब मैं तुम्हारे साथ शांति से चलने को तैयार हूं, क्योंकि तुम सच्चे शासक बन चुके हो।"और इसी के साथ बेताल विक्रम के कंधे से उड़ गया, लेकिन विक्रम के मन में एक नया ज्ञान था। उन्होंने समझ लिया था कि एक राज्य के शासक का काम केवल बाहरी युद्ध लड़ना नहीं होता, बल्कि वह अपनी प्रजा के अंदर के डर, भ्रम, और कठिनाईयों से भी लड़ता है।  continue..राजा विक्रमादित्य ने अपने राज्य में एक नई उम्मीद और शक्ति से काम किया। उनका शासन अब केवल बाहरी युद्ध नहीं, बल्कि आंतरिक संतुलन और शांति का प्रतीक बन चुका था। बेताल की कहानियाँ अब उनके जीवन का हिस्सा बन चुकी थीं, और उन्होंने साबित कर दिया कि सच्चे शासक वही होते हैं, जो अपने भीतर की समस्याओं से भी जीत सकते हैं।continue... बेताल और विक्रम   ।  अगला भाग: राजा विक्रम की नई चुनौतीराजा विक्रमादित्य के राज्य में शांति और समृद्धि का दौर था, लेकिन बेताल की कहानियाँ अब भी विक्रम के साथ चलती रही थीं। राजा ने बेताल के प्रश्नों का सही उत्तर दिया था और उसे हर बार परास्त किया था, लेकिन अब बेताल की उपस्थिति और भी गंभीर हो गई थी। एक नई परीक्षा, जो विक्रम की सबसे कठिन चुनौती थी, सामने आई। राजा विक्रम का नया संकटएक दिन, विक्रम को एक संदेश प्राप्त हुआ कि उनके राज्य के पास एक नई तरह की चुनौती आ रही है। यह न तो बाहरी आक्रमण था, न कोई शत्रु, बल्कि यह एक गहरी मानसिक बीमारी थी, जो धीरेधीरे राज्य की प्रजा को प्रभावित करने लगी थी। लोग अचानक हताश होने लगे, उनका आत्मविश्वास टूटने लगा, और उनमें जीने की इच्छा continue... होने लगी। राजा विक्रम ने तुरंत महल में बुलाया और अपने सबसे बुद्धिमान चिकित्सकों से इस समस्या का समाधान पूछा। चिकित्सकों ने बताया कि यह बीमारी शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक है। यह कोई साधारण बीमारी नहीं थी, बल्कि यह एक आत्मघाती विचारधारा थी, जो लोगों के मन में घर कर रही थी।राजा विक्रम ने इस संकट का समाधान निकालने के लिए एक गहरी सोच में डूबते हुए, एक असामान्य कदम उठाया। उन्होंने बेताल को फिर से अपने कंधे पर डाला और श्मशान की ओर चल पड़े। इस बार उनका उद्देश्य केवल अपने राज्य को बचाना था, बल्कि वे अपने भीतर की शक्ति को और अधिक सशक्त बनाना चाहते थे। बेताल का नया रहस्यजैसे ही विक्रम श्मशान पहुंचे, बेताल ने अपनी हंसी के साथ कहा,  "राजा विक्रम, तुम्हारा संकट केवल बाहरी नहीं है, अब यह तुम्हारे भीतर की चुनौती है। इस बार तुम्हे केवल सही उत्तर नहीं देना है, बल्कि तुम्हारे भीतर का डर और भ्रम भी दूर करना है।"राजा विक्रम शांत रहे, और बेताल ने अपनी नई कहानी शुरू की... बेताल की नई कहानी: आत्मविश्वास और अंधेरे से प्रकाश की ओर"बहुत समय पहले, एक छोटे से गांव में एक आदमी रहता था, जिसका नाम शिवराज था। वह एक बहुत ही होशियार और ईमानदार व्यक्ति था, लेकिन एक दिन वह एक गहरी मानसिक बीमारी से जूझने लगा। वह खुद को नाकामयाब महसूस करने लगा और मानने लगा कि उसके पास किसी भी प्रकार का कोई मूल्य नहीं है। उसका आत्मविश्वास continue... हो गया था, और उसने जीवन को छोड़ने का विचार करना शुरू कर दिया था।शिवराज का एक दोस्त, विशाल, जो उसे बचपन से जानता था, उसके पास आया और उसे समझाया, 'तुम्हारे भीतर वो शक्ति है, जो तुम्हे इस अंधेरे से बाहर निकाल सकती है। तुम्हारे विचार ही तुम्हारी वास्तविकता तय करते हैं। तुम जिस रास्ते पर चल रहे हो, वह तुम्हारा खुद का चयन है। अगर तुम अपने विचारों को नियंत्रित कर सको, तो तुम्हारा जीवन फिर से सही दिशा में लौट सकता है।'शिवराज ने विशाल की बातों पर ध्यान दिया और धीरेधीरे उसने अपने भीतर की शक्तियों को पहचानना शुरू किया। उसने खुद को और अपने विचारों को नया दृष्टिकोण दिया, और जैसेजैसे वह अपनी मानसिक स्थिति को सुधारने लगा, वैसेवैसे उसके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आने लगे। उसने सीखा कि जीवन में सच्ची शक्ति और शांति केवल बाहरी परिस्थितियों पर निर्भर नहीं होती, बल्कि यह हमारे भीतर के विचारों और मानसिक शक्ति पर निर्भर होती है।" बेताल का प्रश्नअब बेताल ने विक्रम से पूछा,  "राजा विक्रम, क्या शिवराज का संघर्ष केवल उसके मानसिक भ्रम का परिणाम था? और क्या तुम मानते हो कि मानसिक शक्ति और आत्मविश्वास से कोई भी व्यक्ति अंधेरे से प्रकाश की ओर लौट सकता है?"राजा विक्रम ने कुछ समय तक चुपचाप सोचा और फिर उत्तर दिया,  "शिवराज का संघर्ष सच में मानसिक था। उसका अंधकार उसके भीतर के भय और आत्मसंदेह से उत्पन्न हुआ था। जब वह अपने भीतर की शक्ति और आत्मविश्वास को पहचान पाया, तो वह जीवन में फिर से एक नया दिशा खोज पाया। आत्मविश्वास और मानसिक संतुलन सबसे बड़ी ताकत है, और यही हमें अंधेरे से बाहर निकालने का रास्ता दिखाती है।" बेताल का अंत और विक्रम का विजयबेताल ने एक आखिरी बार हंसी के साथ कहा,  "राजा विक्रम, तुम फिर से सही उत्तर दे चुके हो अब मैं तुम्हें छोड़ता हूं, क्योंकि तुमने हर बार मुझे परास्त किया है। अब तुम पूरी तरह से सशक्त हो"और इस बार बेताल विक्रम के कंधे से उड़ गया, लेकिन विक्रम के मन में एक नई समझ थी। उन्होंने इस परीक्षा से यह सीखा कि मानसिक शक्ति और आत्मविश्वास ही किसी भी संकट से उबरने की कुंजी हैं। राजा विक्रमादित्य ने अपने राज्य में न केवल बाहरी युद्धों से बल्कि आंतरिक युद्धों से भी जंग जीत ली थी। अब उनके राज्य में शांति थी, और उनके प्रजा का आत्मविश्वास और भी मजबूत हो चुका था। continue... बेताल और विक्रम   ।  अगला भाग: एक नई चुनौती और एक नई यात्राराजा विक्रमादित्य अब तक बेताल की सभी कठिन चुनौतियों और पहेलियों को सही तरीके से हल कर चुके थे, लेकिन उनके जीवन में एक और परीक्षा आनी थी, जो न केवल उनके मानसिक बल, बल्कि उनके साहस और चरित्र को भी परखने वाली थी। राजा विक्रम अपने महल लौटे और अपने राज्य की नीतियों को सुधारने में व्यस्त हो गए। राज्य में शांति थी, और लोग खुशहाल जीवन जी रहे थे। लेकिन एक रात, जब राजा विक्रम ने सोचा था कि अब उन्हें कोई नई चुनौती नहीं मिलेगी, तब बेताल का एक और नया रहस्य उनके सामने आया। एक और नया संकट   ।  दुष्ट तंत्र और भयएक रात, बेताल की हंसी फिर से श्मशान के इलाके से गूंज उठी। विक्रम को फिर से बेताल का सामना करना था। बेताल ने हंसते हुए कहा,  "राजा विक्रम, अब तुमने अपने राज्य को शांति से भर लिया है, लेकिन यह शांति बहुत समय तक नहीं टिकेगी। एक नया संकट आ रहा है   ।  यह एक तंत्र विद्या का खतरा है, जो राज्य में भय और अराजकता फैलाने का कारण बनेगा।"राजा विक्रम को यह सुनकर ताज्जुब हुआ, और उन्होंने तुरंत बेताल से पूछा,  "तंत्र विद्या का यह खतरा क्या है? किसे या किस चीज़ को हमें बचाना होगा?"बेताल ने उत्तर दिया,  "राजा विक्रम, यह तंत्र विद्या एक गहरी और छिपी शक्ति है, जो लोगों के मनों में डर और भ्रम फैलाती है। जो लोग इसका शिकार होते हैं, वे अंधकार में खो जाते हैं और केवल अपनी नकारात्मकता और भय से लड़ते रहते हैं। इस तंत्र को नियंत्रित करने वाला व्यक्ति अराजकता फैलाने में सक्षम होता है, लेकिन यह केवल मानसिक युद्ध नहीं, बल्कि एक वास्तविक चुनौती है।"राजा विक्रम ने बेताल से पूछा,  "क्या हम इस तंत्र विद्या से बच सकते हैं?"बेताल ने कहा,  "हां, राजा, इस तंत्र को केवल एक ही चीज़ से नष्ट किया जा सकता है   ।  सच्चे साहस और सत्य से। यदि तुम अपने राज्य के लोगों को सत्य का मार्ग दिखा सको और उनके मनों में साहस भर सको, तो तुम इस तंत्र से निपट सकते हो।" राजा विक्रम का निर्णय   ।  सत्य और साहस का सामनाराजा विक्रम ने बेताल की बातों को गंभीरता से लिया। उन्होंने तुरंत अपनी सेना को आदेश दिया कि वे तंत्र विद्या के बारे में और जानकारी प्राप्त करें। विक्रम ने राज्य के प्रत्येक नागरिक से सत्य बोलने की अपील की और उन्हें बताया कि डर केवल उनके भीतर ही रहता है, और जब वे इसे पहचान लेंगे, तो यह डर खत्म हो जाएगा।  राजा विक्रम ने अपने लोगों को यह समझाने के लिए एक सभा आयोजित की। सभा में उन्होंने कहा,  "हमारे राज्य में कोई भी संकट, कोई भी तंत्र या भूतप्रेत हमें नष्ट नहीं कर सकते, जब तक हम अपने भीतर के डर और भ्रम को पहचानकर उसे दूर नहीं करते। सत्य और साहस से ही हम किसी भी कठिनाई से उबर सकते हैं।"राजा विक्रम की यह बात राज्य के लोगों के दिलों में गहरी बैठ गई। उनके भीतर का डर धीरेधीरे खत्म होने लगा। जैसेजैसे लोग एकदूसरे के साथ सत्य बोलने लगे और एकजुट हुए, उनका आत्मविश्वास भी बढ़ने लगा। बेताल का अंतिम प्रश्नएक दिन, बेताल ने विक्रम से पूछा,  "राजा विक्रम, क्या तुम मानते हो कि सत्य और साहस ही किसी भी तंत्र या अंधकार को हराने के लिए सबसे प्रभावी हथियार हैं?"राजा विक्रम ने पूरी दृढ़ता से उत्तर दिया,  "हां, बेताल, सत्य और साहस ही सबसे शक्तिशाली अस्तित्व हैं। जब हम अपनी आंतरिक शक्ति और सत्य को पहचान लेते हैं, तो किसी भी अंधकार या तंत्र से लड़ने के लिए हमें किसी अन्य शक्ति की आवश्यकता नहीं होती।" बेताल की पराजय और विक्रम का विजयबेताल ने हंसी के साथ कहा,  "राजा विक्रम, तुम फिर से सही उत्तर दे चुके हो अब मैं तुम्हारे सामने और कोई सवाल नहीं रखता। तुमने पूरी तरह से इस तंत्र और भय को नष्ट कर दिया है। तुमने साबित कर दिया है कि सत्य और साहस से ही दुनिया की सबसे बड़ी चुनौती को भी हराया जा सकता है"राजा विक्रमादित्य ने बेताल को शांति से अपने कंधे पर डाला और अपने राज्य की ओर वापस लौटे। इस बार, उनका मन पूरी तरह से शांत था। उन्होंने न केवल अपनी बुद्धिमत्ता से बेताल को पराजित किया, बल्कि अपने राज्य को भी एक नई शक्ति दी थी   ।  सत्य और साहस की शक्ति।राजा विक्रम का यह अभियान न केवल उनके राज्य के लिए, बल्कि उनके व्यक्तिगत जीवन के लिए भी एक नई शुरुआत थी। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि किसी भी संकट का समाधान केवल बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक शक्ति और सत्य से होता है।continue... बेताल और विक्रम   ।  अगला भाग: अंत की ओर एक नई चुनौतीराजा विक्रमादित्य ने बेताल को अपने कंधे पर डाला और राज्य लौटने की राह पर चल पड़े। उनका मन शांति से भरा हुआ था, क्योंकि उन्होंने न केवल बेताल को हराया था, बल्कि अपने राज्य में सत्य, साहस और धर्म की शक्ति को भी स्थापित किया था। लेकिन जैसेजैसे वे अपने महल की ओर बढ़ रहे थे, बेताल ने एक और रहस्यमयी आवाज में कहा,  "राजा विक्रम, तुमने हर बार मेरे सवालों का सही उत्तर दिया, लेकिन अब तुमसे एक अंतिम चुनौती होगी।"राजा विक्रमादित्य ने बेताल की बात सुनी, और उसकी रहस्यमयी आवाज़ से आशंकित हुए बिना, उन्होंने जवाब दिया,  "तुम जो भी चुनौती दोगे, मैं उसे स्वीकार करूंगा।" बेताल का अंतिम रहस्य   ।  आत्मा और मृत्यु का प्रश्नबेताल ने कंधे पर अपने साथ ले जाने वाले राजा से एक और भयंकर सवाल किया,  "राजा विक्रम, तुमने हमेशा सही निर्णय लिया है, लेकिन आज तुम्हें उस प्रश्न का सामना करना होगा, जो मृत्यु और आत्मा के बारे में है।"  राजा विक्रम को यह सुनकर थोड़ी चिंता हुई, क्योंकि यह विषय बहुत गहरा था। बेताल ने अपनी कहानी शुरू की। कहानी   ।  आत्मा का मार्ग"बहुत समय पहले, एक गाँव में एक साधू बाबा रहते थे, जिनके पास अद्भुत ज्ञान था। उनके ज्ञान और तपस्या के कारण लोग उन्हें 'अमर बाबा' के नाम से जानते थे। एक दिन, एक युवक उनके पास आया और बोला,  'महात्मा, मुझे एक सवाल पूछना है। मैं जानता हूँ कि मृत्यु जीवन का अंत है, लेकिन क्या किसी इंसान की आत्मा कभी मरती है? क्या आत्मा को किसी और शरीर में पुनर्जन्म मिलता है?'  साधू बाबा ने उत्तर दिया,  'बेटे, आत्मा अमर है। यह शरीर के मरने के बाद भी जीवित रहती है, लेकिन यह जिस शरीर में होती है, वही उसे पहचानने में असमर्थ रहता है। आत्मा का पुनर्जन्म उस वक्त होता है, जब वह अपने पिछले कर्मों के आधार पर एक नया शरीर ग्रहण करती है।'  युवक ने फिर पूछा,  'क्या यह पुनर्जन्म हमेशा सही दिशा में होता है, या यह कभी गलत दिशा में भी हो सकता है?'  साधू बाबा ने गहरी साँस ली और कहा,  'यह सब उस आत्मा के कर्मों पर निर्भर करता है। अगर आत्मा ने अच्छे कर्म किए हैं, तो उसका पुनर्जन्म एक श्रेष्ठ शरीर में होगा, लेकिन अगर उसने बुरे कर्म किए हैं, तो वह निम्न शरीर में जन्म ले सकती है। यही जीवन और मृत्यु का चक्र है   ।  कर्मों के आधार पर आत्मा का मार्ग तय होता है।'" बेताल का अंतिम सवाल   ।  आत्मा की शुद्धताअब बेताल ने राजा विक्रम से पूछा,  "राजा विक्रम, क्या तुम्हारे अनुसार, एक आत्मा अपने पिछले कर्मों को शुद्ध करने के लिए फिर से जन्म ले सकती है, या वह हमेशा अपनी गलती के परिणाम भुगतती रहती है?"राजा विक्रम के सामने एक गहरी और कठिन परीक्षा थी। यह सवाल न केवल जीवन और मृत्यु के चक्र को छू रहा था, बल्कि आत्मा की शुद्धता और पापों के परिणाम को भी छू रहा था। उन्होंने गहरी सोच में डूबकर उत्तर दिया। राजा विक्रम का उत्तरराजा विक्रम ने एक गहरी सांस ली और कहा,  "मैं मानता हूँ कि आत्मा शुद्ध होती है, लेकिन उसे शुद्ध होने के लिए अपने कर्मों का स्वीकार करना चाहिए और सुधार की ओर कदम बढ़ाने चाहिए। अगर आत्मा पुनर्जन्म लेकर अपने पिछले पापों को सुधारने की कोशिश करती है, तो वह अपनी गलतियों से सीख सकती है और एक दिन शुद्ध हो सकती है। मृत्यु केवल एक शारीरिक अवस्था है, लेकिन आत्मा का असली यात्रा उस मार्ग पर है, जहाँ वह अपने कर्मों को सही करती है और हर जन्म में शुद्ध होने का प्रयास करती है।" बेताल का अंतिम उत्तरबेताल ने एक गहरी हंसी के साथ कहा,  "राजा विक्रम, तुमने सही उत्तर दिया। आत्मा की शुद्धता और उसके कर्मों का चक्र अंतहीन है, लेकिन केवल वह आत्मा सफल होती है, जो अपने मार्ग पर सच्चाई और प्रेम के साथ चलती है। तुमने साबित किया कि सत्य, साहस, और आत्मा की शुद्धता ही जीवन का असली उद्देश्य है।"और फिर, बेताल ने खुद को राजा विक्रम से पूरी तरह से अलग किया और हवा में उड़ गया। वह मुक्त हो चुका था, क्योंकि विक्रम ने अपनी बुद्धिमत्ता, धैर्य और शुद्ध आत्मा से उसे हराया था।   राजा विक्रम की विजय   ।  आत्मज्ञान और परिपूर्णताराजा विक्रमादित्य ने बेताल की बातें सुनीं और समझा कि यह पूरी यात्रा सिर्फ एक परीक्षा नहीं थी, बल्कि आत्मज्ञान की ओर एक मार्ग था। उन्होंने अपने राज्य में शांति, सत्य और न्याय की स्थापना की और लोगों को सिखाया कि जीवन की सच्ची यात्रा केवल बाहरी दुनिया की नहीं, बल्कि आत्मा के भीतर की है।  राजा विक्रम ने साबित कर दिया कि वह न केवल एक न्यायप्रिय राजा हैं, बल्कि एक महान आत्मज्ञानी भी हैं, जिन्होंने जीवन, मृत्यु, और आत्मा के गहरे रहस्यों को समझ लिया था।continue...बेताल और विक्रम   ।  अगला भाग: एक नया रहस्य और एक नई चुनौतीराजा विक्रमादित्य ने अपने राजमहल में प्रवेश किया, लेकिन उनके मन में बेताल की बातें गहराई से उभर रही थीं। बेताल को हराने के बाद भी, विक्रम को यह महसूस हो रहा था कि उनके सामने अब एक और चुनौती आ सकती है। उनकी न्यायप्रियता और आत्मज्ञान की परीक्षा शायद अब continue... नहीं हुई थी। उन्हें यह अहसास हो चुका था कि बेताल केवल एक साधारण प्रेत नहीं था, बल्कि एक महान शिक्षक था जो राजा के भीतर छिपे हुए गहरे ज्ञान और गुणों को उजागर करने की कोशिश कर रहा था।जब राजा विक्रम महल में पहुंचे, तो उन्होंने अपने मंत्री और बुद्धिमान सलाहकार से कहा,  "मुझे लगता है कि बेताल की यात्रा मेरे लिए पूरी नहीं हुई है। उसे हराकर मैं भले ही विजयी हुआ हूँ, लेकिन शायद वह अभी भी मेरे सामने कोई और चुनौती रखे।"  राजा विक्रम की चिंता स्वाभाविक थी। उन्होंने कभी भी अपने निर्णयों में जल्दबाजी नहीं की थी, और बेताल के सवालों ने उन्हें हमेशा गहरे आत्मविश्लेषण में डाल दिया था। उसी रात, जब राजा विक्रम सोने गए, तो उन्हें फिर से बेताल की रहस्यमयी हंसी सुनाई दी। बेताल के शब्दों ने राजा को पुनः जागृत कर दिया।  "राजा विक्रम, तुमने मुझे हराया था, लेकिन क्या तुमने अपनी आत्मा की सबसे बड़ी परीक्षा दी है?"राजा विक्रम इस बार पूरी तरह से चौकस हो गए। यह आवाज स्पष्ट रूप से उनके भीतर गूंज रही थी, और उनका मन अभी भी शांति से भरा हुआ था, लेकिन अब उनके दिल में एक नया सवाल था। वह जानते थे कि बेताल ने एक और परीक्षा का संकेत दिया था। बेताल की नई चुनौती   ।  आत्मा की वास्तविक पहचानराजा विक्रम ने बेताल को महल के आंगन में पाया, अब वह एक प्रेत की रूप में नहीं, बल्कि एक दिव्य शक्ति के रूप में प्रकट हुआ था। उसकी आँखों में एक गहरी समझ और आध्यात्मिक चमक थी। बेताल ने कहा,  "राजा विक्रम, तुमने हमेशा न्याय और सत्य की राह पर चलने का प्रयास किया है, लेकिन अब तुमसे एक नई परीक्षा ली जाएगी। यह सवाल आत्मा की असली पहचान के बारे में है।"राजा विक्रम ने शांतिपूर्वक जवाब दिया,  "मैं तैयार हूँ, बेताल। तुम जो भी सवाल पूछोगे, मैं उसका उत्तर देने का प्रयास करूंगा।" बेताल की नई कहानी   ।  आत्मा का असली रूपबेताल ने अपनी कहानी शुरू की:"बहुत समय पहले, एक गाँव में एक साधारण युवक रहता था जिसका नाम कृष्णलाल था। कृष्णलाल का जीवन दुखों से भरा था, वह दरिद्रता और संघर्ष से जूझ रहा था। लेकिन उसे हमेशा एक गहरी आत्मा की शांति का अहसास होता था, जो उसे किसी न किसी तरह जीवन में संतुष्टि देती थी। वह जानता था कि उसके पास भौतिक संपत्ति नहीं है, लेकिन उसके भीतर एक अदृश्य शक्ति है जो उसे जीवन के संघर्षों से उबारती है।  एक दिन, कृष्णलाल ने एक संत से पूछा,  'मुझे बताइए, संत, क्या मेरी आत्मा सचमुच शुद्ध है? क्या मैं सही रास्ते पर चल रहा हूँ?'  संत ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया,  'तुम्हारी आत्मा शुद्ध है, लेकिन तुम्हे यह समझने की आवश्यकता है कि आत्मा भौतिक शरीर से अलग है। आत्मा केवल सत्य, प्रेम, और समझ का प्रतीक है। जब तुम सच्चे दिल से दूसरों की मदद करते हो, जब तुम बिना किसी स्वार्थ के अच्छाई का प्रचार करते हो, तब तुम अपनी आत्मा को पहचानते हो।'" बेताल का नया सवाल   ।  आत्मा की असली पहचानजब बेताल ने अपनी कहानी खत्म की, तो उसने राजा विक्रम से पूछा,  "राजा विक्रम, क्या तुम्हें लगता है कि आत्मा केवल शरीर का हिस्सा है, या आत्मा अपनी असली पहचान से अलग है? क्या उसे बाहरी दिखावट से परे जाकर समझा जा सकता है?"राजा विक्रम ने कुछ समय तक गहराई से सोचा, और फिर उत्तर दिया,  "आत्मा केवल शरीर का हिस्सा नहीं है। आत्मा शुद्ध और अमर है, वह केवल शरीर में रहने वाली एक शक्ति नहीं, बल्कि वह सत्य और प्रेम की शक्ति है। आत्मा की असली पहचान केवल तब समझी जा सकती है जब हम अपने भीतर के सत्य को पहचानते हैं, जब हम अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से निभाते हैं और जब हम दूसरों के लिए अपने आत्मीयता और प्रेम का प्रदर्शन करते हैं। आत्मा का असली रूप तभी सामने आता है जब हम बाहरी दिखावट से परे जाकर अपने भीतर झांकते हैं।" बेताल का उत्तर और अंतबेताल ने एक गहरी हंसी के साथ कहा,  "राजा विक्रम, तुमने सही उत्तर दिया। तुम्हारा ज्ञान और समझ गहरे हैं। आत्मा की पहचान केवल बाहरी दिखावट से नहीं, बल्कि हमारे अंदर के सच्चे गुणों से होती है। तुमने आत्मा के असली रूप को पहचान लिया है। अब तुम पूरी तरह से विजयी हो"और इसके साथ ही, बेताल ने अपनी अंतिम यात्रा शुरू की, और वह विक्रम से दूर उड़ गया।  राजा विक्रम ने महसूस किया कि अब बेताल का खेल continue... हो चुका था, लेकिन इस यात्रा से उन्हें जो ज्ञान और आत्मज्ञान मिला था, वह अनमोल था। उन्होंने अपने राज्य में शांति और सद्गति की स्थापना की, और अपने लोगों को भी यही सिखाया कि जीवन की असली यात्रा केवल बाहरी दिखावट से नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धता और सत्य से होती है।continue...बेताल और विक्रम   ।  अगला भाग: एक नई यात्रा की शुरुआतराजा विक्रमादित्य ने बेताल की परीक्षा को सफलतापूर्वक पास किया और अपने राज्य में शांति स्थापित की। लेकिन उनके दिल में एक और सवाल था—क्या बेताल ने उनका अंतिम परीक्षा लिया था, या फिर उनके सामने कुछ और आ सकता था? विक्रम जानते थे कि उनकी यात्रा अब तक की सबसे चुनौतीपूर्ण रही थी, लेकिन अब उन्हें अपने राज्य के शासन को और बेहतर बनाने का समय आ गया था।  राजा विक्रम का विश्वास और ज्ञान अब और भी गहरा हो चुका था, लेकिन वे महसूस कर रहे थे कि बेताल की उपस्थिति ने उन्हें हमेशा कुछ और सिखाया। वे अपने मंत्रियों के पास गए और राज्य के विभिन्न हिस्सों में सुधार के लिए नई योजनाएं बनाने की सलाह दी।  उसी रात, जब राजा विक्रम अकेले महल के बगीचे में टहल रहे थे, उन्हें एक अजीब आवाज सुनाई दी। यह आवाज पुरानी थी, लेकिन एक नई तरह की चेतावनी का संकेत दे रही थी। विक्रम ने तुरंत समझ लिया कि यह आवाज फिर से बेताल की थी।  "राजा विक्रम, तुमने हर बार मेरे सवालों का सही उत्तर दिया है, लेकिन अब मैं तुम्हें एक नई परीक्षा दूँगा। यह परीक्षा केवल तुम्हारी बुद्धिमत्ता की नहीं, बल्कि तुम्हारे साहस और मनोबल की भी होगी।"राजा विक्रम को अब पूरा यकीन हो गया कि बेताल का खेल अभी खत्म नहीं हुआ था। उन्होंने तुरंत बेताल के सामने आने का निर्णय लिया।   बेताल की नई चुनौती   ।  साहस और मनोबल की परीक्षाराजा विक्रम ने बेताल को महल के अंदर देखा, लेकिन इस बार बेताल का रूप पहले से बहुत अलग था। उसकी आँखों में एक नई चमक थी और उसकी हंसी में गहरी रहस्यमयता छिपी हुई थी। बेताल ने कहा,  "राजा विक्रम, तुम्हारे दिल में साहस और ज्ञान का अद्भुत संगम है। लेकिन क्या तुम अपनी शक्ति और साहस को सही दिशा में लगा पाओगे? क्या तुम अपने राज्य और प्रजा के लिए एक नया रास्ता तय कर सकोगे?"राजा विक्रम ने बेताल से कहा,  "मैं हमेशा अपनी प्रजा की भलाई के लिए काम करता हूं। अगर मुझे कोई नई चुनौती दी जा रही है, तो मैं उसे स्वीकार करने के लिए तैयार हूं।"बेताल ने मुस्कुराते हुए कहा,  "ठीक है, राजा विक्रम। मैं तुम्हें एक प्रश्न पूछता हूँ, और इसका उत्तर तुम्हारे साहस और नेतृत्व की शक्ति को साबित करेगा।" बेताल का सवाल   ।  नेतृत्व और बलिदान"यदि एक राज्य में अकाल पड़ जाए और लोगों को खाने के लिए कुछ भी न मिले, तो एक राजा क्या करेगा? क्या वह अपने राज्य के खजाने से बचा कर रखेगा, या वह सब कुछ अपनी प्रजा के लिए दे देगा?"राजा विक्रम ने गहरी सोच में डूबते हुए उत्तर दिया,  "एक सच्चा राजा कभी भी अपनी प्रजा को भूखा नहीं देख सकता। अगर अकाल पड़ता है, तो उसे अपनी संपत्ति और खजाना प्रजा के भले के लिए दान करना चाहिए। केवल इसी तरह वह अपनी प्रजा की भलाई का ध्यान रख सकता है।"बेताल ने फिर से हंसी में कहा,  "राजा विक्रम, तुमने हमेशा सही उत्तर दिया है, लेकिन तुम्हारे साहस की परीक्षा अब एक और रूप में होने वाली है।" बेताल का अगला कदम   ।  नयी दिशा की ओरबेताल ने एक पल के लिए चुप्पी साधी और फिर कहा,  "राजा विक्रम, तुम्हारे राज्य में तुम्हारी प्रजा का भला करने के लिए एक नई योजना की आवश्यकता है। एक ऐसा मार्गदर्शन जिसे तुम हमेशा याद रखोगे और जो तुम्हें अपने राज्य की सबसे बड़ी परीक्षा में सफल बनाएगा। क्या तुम तैयार हो?"राजा विक्रम ने निडरता से उत्तर दिया,  "मैं हमेशा तैयार हूं, बेताल।"बेताल ने मुस्कुराते हुए कहा,  "तुम्हारा साहस ही तुम्हारी सबसे बड़ी शक्ति है। अब तुम्हें यह समझने की आवश्यकता है कि तुम्हारे नेतृत्व की असली परीक्षा नहीं केवल राज्य के आंतरिक मामलों में है, बल्कि तुम्हें अपनी प्रजा के दिलों में विश्वास और प्रेम भी बनाना होगा।" राजा विक्रम की नई यात्राइस बार बेताल ने राजा विक्रम को एक नई दिशा दिखाई। यह दिशा केवल बाहरी संघर्षों और राजनीतिक निर्णयों तक सीमित नहीं थी, बल्कि यह प्रजा के दिलों में सही मार्गदर्शन और विश्वास स्थापित करने की थी। राजा विक्रम को यह अहसास हुआ कि उनका नेतृत्व अब नए आयाम को छूने वाला था। उन्हें न केवल युद्ध की रणनीति की, बल्कि अपने लोगों के बीच विश्वास और प्रेम की भी आवश्यकता थी।राजा विक्रम ने अपने मंत्रियों और प्रमुख नागरिकों से मिलकर एक नई नीति बनाई। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उनकी प्रजा का भला सबसे पहले हो, और इसके लिए उन्होंने अपने खजाने का एक बड़ा हिस्सा उन लोगों की मदद के लिए दिया जिन्हें ज़रूरत थी।   continue..राजा विक्रम ने अपनी नई यात्रा शुरू की। यह यात्रा केवल उनके राज्य की नहीं, बल्कि उनके दिल और आत्मा की भी थी। वह जानते थे कि बेताल की शिक्षा और चुनौती ने उन्हें एक और नई दिशा दिखाई थी, और अब उनका उद्देश्य केवल राज्य की नहीं, बल्कि अपनी प्रजा के दिलों में विश्वास और सम्मान स्थापित करना था।  continue...बेताल और विक्रम   ।  अगला भाग: अंधेरे की ओरराजा विक्रमादित्य ने बेताल की आखिरी चुनौती को पार कर लिया था और अब उनका नेतृत्व न केवल उनकी प्रजा को प्रेरित करता था, बल्कि उनके भीतर एक गहरी समझ और दृष्टिकोण भी विकसित हो चुका था। लेकिन जैसे ही राजा विक्रम अपने राज्य में शांति और समृद्धि लाने की ओर अग्रसर हुए, अचानक एक नया संकट उनके सामने आ खड़ा हुआ।राजा विक्रम अपने कक्ष में बैठकर राज्य के मामलों की समीक्षा कर रहे थे, जब एक अजनबी व्यक्ति उनके दरवाजे पर आया। वह व्यक्ति बहुत ही गहरी सफेद चादर में लिपटा हुआ था और उसके चेहरे पर एक रहस्यमय आभा थी। उसकी आँखों में डर और चिंता साफ तौर पर दिख रही थी।राजा विक्रम ने उसे देखा और पूछा, "तुम कौन हो? क्या तुम्हारे पास राज्य के लिए कोई महत्वपूर्ण सूचना है?"वह व्यक्ति थोड़ी देर चुप रहा और फिर कहा, "महाराज, एक भयावह स्थिति उत्पन्न हो गई है। राज्य के बाहर एक अजीब घटनाएँ हो रही हैं। लोगों ने अंधेरे को देखा है, और कुछ रहस्यमय शक्तियाँ राज्य की ओर बढ़ रही हैं। हमें आपकी सहायता की आवश्यकता है।"राजा विक्रम ने उसे गंभीरता से सुना और फिर आदेश दिया कि वह व्यक्ति उन्हें पूरी जानकारी दे। राजा विक्रम की नई चुनौतीराजा विक्रम ने अपनी सेना को तैयार किया और उस अजनबी व्यक्ति के साथ राज्य के बाहर की ओर बढ़े। उन्हें समझ में आ गया था कि राज्य के लिए यह एक नई और चुनौतीपूर्ण परीक्षा होगी, जिसमें न केवल उनके साहस का, बल्कि उनके ज्ञान और विश्वास का भी इम्तिहान लिया जाएगा।राजा विक्रम ने रास्ते में कई गांवों और कस्बों को देखा, जहां लोग अंधेरे से डरते हुए अपने घरों में बंद हो गए थे। उनका डर बढ़ता जा रहा था, और वे मानते थे कि कोई बुरी शक्ति राज्य पर हमला करने वाली है। कुछ लोग यह भी कह रहे थे कि यह कोई अदृश्य शक्ति है, जो रातोंरात सब कुछ नष्ट कर सकती है।राजा विक्रम ने अपने दरबार के प्रमुख विद्वान से इस बारे में पूछताछ की। विद्वान ने कहा, "महाराज, इस प्रकार की घटनाएँ पहले कभी नहीं सुनी गईं। यह एक काले जादू या किसी रहस्यमय शक्ति का प्रभाव हो सकता है। हमें जल्दी से इसका समाधान खोजना होगा, वरना राज्य में अराजकता फैल सकती है।"राजा विक्रम ने अपनी पूरी सेना को तैयार किया और एक अंधेरे जंगल के किनारे पर पहुंचे, जहां यह शक्ति सबसे अधिक महसूस हो रही थी। उस स्थान पर एक पुराना मंदिर था, जो अब वीरान पड़ा हुआ था। राजा विक्रम ने महसूस किया कि वहां कुछ गड़बड़ जरूर है, और उनका ध्यान उसी मंदिर की ओर आकर्षित हुआ। बेताल का आगमनराजा विक्रम और उनके सैनिक मंदिर के पास पहुंचे, तभी एक तीव्र आंधी आई और बेताल की हंसी सुनाई दी। बेताल फिर से प्रकट हुआ, लेकिन इस बार वह थोड़ा अलग था। उसकी हंसी में एक भयावहता और उसकी आँखों में एक और अजीब शक्ति थी।"राजा विक्रम, तुम्हारे राज्य में अंधकार की शक्ति बढ़ रही है। लेकिन तुम अभी भी पूरी तरह से तैयार नहीं हो। तुम क्या करोगे? क्या तुम अपनी प्रजा को बचा सकोगे?" बेताल ने गहरे और रहस्यमय शब्दों में पूछा।राजा विक्रम ने कड़ा स्वर में उत्तर दिया, "मैंने हमेशा अपने राज्य और अपनी प्रजा की भलाई के लिए निर्णय लिए हैं। यदि इस अंधेरे शक्ति का मुकाबला करना है, तो मुझे पूरी तरह से तैयार रहना होगा। मुझे यह देखना होगा कि यह अंधकार किसका परिणाम है और इसके पीछे कौन सी शक्ति काम कर रही है।"बेताल ने हंसते हुए कहा, "तुमने सही कहा, विक्रम। लेकिन तुम्हारी शक्ति और साहस का परीक्षण अब होगा। इस बार तुम्हें केवल बुद्धि और साहस से काम नहीं चलेगा, तुम्हें अपनी आत्मा की गहराई तक उतरकर इसका सामना करना होगा।" राजा विक्रम का साहस और परीक्षाराजा विक्रम ने बेताल के शब्दों को गहरे से सुना और अपने साथियों को आदेश दिया कि वे सब सतर्क रहें। उन्होंने मंदिर के अंदर प्रवेश किया, जहां एक अजीब सी ठंडक और गहरा अंधेरा पसरा हुआ था। जैसे ही उन्होंने कदम बढ़ाया, एक रहस्यमय ध्वनि सुनाई दी, जो उन्हें और भी डराती जा रही थी। लेकिन राजा विक्रम ने अपने साहस को बनाए रखा और मंदिर के अंदर जाने का निर्णय लिया।वह जानते थे कि यह उनकी सबसे बड़ी चुनौती है, और यदि वह इस अंधेरे शक्ति का सामना नहीं कर पाते, तो राज्य के लिए यह भयंकर परिणाम हो सकता था। बेताल की बातें भी अब उनके कानों में गूंज रही थीं, लेकिन उन्होंने यह निश्चय किया कि वह इसे हर हाल में पार करेंगे।  आगे क्या होगा?  राजा विक्रम का सामना अब केवल अंधकार और रहस्यमय शक्तियों से नहीं, बल्कि अपने भीतर के डर और आत्मविश्वास से भी होगा। क्या वह इस नए संकट को पार कर पाएंगे? क्या बेताल ने उन्हें एक और भयानक चुनौती दी है?  अगला भाग जल्द ही आएगा...बेताल और विक्रम   ।  अगला भाग: अंधकार की सच्चाईराजा विक्रम और उनके सैनिकों ने धीरेधीरे मंदिर के अंदर कदम रखा, जहाँ अंधेरा और खामोशी के सिवा कुछ भी नहीं था। जैसे ही वे अंदर बढ़े, उन्हें ऐसा लगा जैसे समय रुक गया हो। पूरी हवा में एक अजीब सी शांति थी, जो और भी भयावह लग रही थी। उनका दिल धड़क रहा था, लेकिन उन्होंने अपने साहस को बनाए रखा।तभी, अचानक, एक तेज़ आंधी आई और मंदिर का दरवाजा बंद हो गया। एक रहस्यमय धुंआ कमरे में फैलने लगा, और राजा विक्रम ने महसूस किया कि यह किसी जादुई शक्ति का प्रभाव था। धुंआ घना होने लगा और एक आवाज गूंजने लगी, "तुम लोग यहाँ क्यों आए हो, विक्रम?"यह आवाज किसी मानव की नहीं, बल्कि एक घनी और गहरी शक्ति की आवाज थी। राजा विक्रम ने अपनी तलवार पकड़ी और शांति से कहा, "मैंने इस शक्ति को पहचानने और राज्य को बचाने के लिए यहाँ कदम रखा है। तुम कौन हो?"आवाज ने फिर से गूंजते हुए कहा, "मैं वही हूं, जिसे तुम और तुम्हारे राज्यवासी अंधकार और भय का रूप मानते हो। मैं वह शक्ति हूं जो अंधेरे से उत्पन्न हुई है, और मेरा नाम है 'कालरात्रि'।"राजा विक्रम को यह नाम सुनकर चौंकने का कोई समय नहीं था। यह एक प्राचीन और बहुत शक्तिशाली देवी का नाम था, जिसे अंधकार और विनाश की देवी माना जाता था। विक्रम ने एक पल के लिए सोचा, और फिर उसने निर्णय लिया कि इस शक्ति से लड़ने के लिए उन्हें न केवल अपने साहस की, बल्कि अपनी पूरी समझ और सत्य की आवश्यकता होगी। कालरात्रि का सामनाराजा विक्रम ने अपनी तलवार की धार को चमकाते हुए कहा, "तुम चाहे जो भी हो, मैं राज्य और अपनी प्रजा की रक्षा करूंगा। यदि तुम एक शक्ति हो, तो मैं तुम्हारा सामना करूंगा।"कालरात्रि ने हंसी में कहा, "तुम समझते हो कि तुम मुझे परास्त कर सकते हो? मैं वह शक्ति हूं जो हर जीवन को continue... कर सकती हूं। मेरी शक्ति से कोई बच नहीं सकता।"राजा विक्रम ने अपनी तलवार को और भी मजबूती से पकड़ा और एक गहरी सांस ली। "तुमसे पहले मैंने बहुत सी शक्तियों का सामना किया है, और तुम भी उन्हीं में से एक हो। तुम चाहे जितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, एक सच्चा राजा कभी हार नहीं मानता।"उसकी आवाज में विश्वास और दृढ़ संकल्प था, और तभी अचानक अंधेरे के बीच से एक तेज़ प्रकाश की किरण फूट पड़ी। वह प्रकाश धीरेधीरे बढ़ने लगा, और राजा विक्रम ने देखा कि कालरात्रि की असली शक्ति अब उसकी आँखों के सामने आ रही थी। उसकी आंखों में आग की लपटें थीं और उसका रूप भयावह था।लेकिन विक्रम ने डर को अपने भीतर से निकालते हुए अपने विश्वास को और मजबूत किया। "तुम चाहे जो बनो, मेरी आत्मा में सच्चाई और न्याय है, और यही मेरी सबसे बड़ी शक्ति है," विक्रम ने गर्व से कहा। बेताल की नई भूमिकातभी, अचानक बेताल का स्वर सुनाई दिया, जो हवा में घुलकर सब जगह फैल गया। "राजा विक्रम, तुमने अब तक सही निर्णय लिया है। परंतु इस परीक्षा में तुमसे एक और कदम की आवश्यकता है। तुम्हारे पास जो शक्ति है, वह तुम्हारी आत्मा की शक्ति है, लेकिन तुम पर विश्वास रखने वाले लोग भी हैं। जब तुम किसी के विश्वास को महसूस करते हो, तो तुम उसकी शक्ति भी प्राप्त कर लेते हो।"विक्रम ने बेताल की बातों को सुना और समझा कि अब वह अकेले नहीं हैं। उनकी पूरी प्रजा और उनके साथी उनका साथ दे रहे थे। इस समय विक्रम को बेताल की बातों ने और भी बल दिया।राजा विक्रम ने कालरात्रि की ओर कदम बढ़ाए, और उसकी आंखों में दृढ़ विश्वास था। वह जानता था कि यह युद्ध केवल शक्ति का नहीं, बल्कि सच्चाई और न्याय का था। "कालरात्रि, तुम चाहती हो कि मैं डर जाऊं, लेकिन मैं तुमसे नहीं डरता। मेरे राज्य की हर प्रजा मेरे साथ है, और यही मेरी सबसे बड़ी शक्ति है।" कालरात्रि की हार और विक्रम की जीतराजा विक्रम की बातों का प्रभाव हुआ, और कालरात्रि का रूप कमजोर होने लगा। वह क्रोधित होकर बोली, "तुम कैसे जीत सकते हो? मैं तो अंधकार हूं, तुम मुझे कैसे हरा सकते हो?"विक्रम ने उत्तर दिया, "अंधकार तभी शक्तिशाली होता है, जब लोग डरते हैं। लेकिन जब लोग सत्य को पहचानते हैं, तो अंधकार को हराना आसान हो जाता है।"अचानक, विक्रम की तलवार से एक तेज़ किरण निकली, और वह कालरात्रि के रूप में एक भयंकर रोशनी में तब्दील हो गई। यह रोशनी बहुत ही तेज़ थी, और जल्द ही वह पूरी तरह से मिट गई। विक्रम की ताकत, उसका विश्वास और उसकी प्रजा की मदद ने कालरात्रि को हराया। बेताल का अंतराजा विक्रम ने बेताल से कहा, "बेताल, तुम्हारे सभी सवालों का उत्तर मैंने सही दिया, और आज मैंने अंधकार की शक्ति को भी हराया। क्या तुम अब भी मुझसे कुछ और पूछना चाहते हो?"बेताल ने एक लंबी सांस ली और बोला, "राजा विक्रम, तुमने हर परीक्षा को सफलता से पार किया। तुमने न केवल अपनी शक्ति और साहस को साबित किया, बल्कि अपने राज्य और प्रजा के प्रति अपने प्रेम को भी प्रदर्शित किया। तुमने मेरी सभी परीक्षाएँ पास कीं और अब तुम पूर्ण रूप से विजयी हो।"राजा विक्रम ने बेताल को शांति से अपने कंधे पर डाला और कहा, "अब तुम मेरे साथ चलो, बेताल। आज हम विजय की ओर बढ़ेंगे।"राजा विक्रम ने अपना राजधर्म निभाया, और राज्य में शांति और समृद्धि लौट आई। continue...बेताल और विक्रम   ।  अगला भाग: अंधेरे से प्रकाश की ओरराजा विक्रमादित्य और बेताल की कहानी अब तक कई परीक्षाओं, संघर्षों और आत्मनिर्भरता की गवाह बन चुकी थी। अब जब विक्रमादित्य ने बेताल के हर प्रश्न का उत्तर सही दिया और उसे पूरी तरह परास्त किया, तो वह समझ चुका था कि हर परीक्षा में न केवल बुद्धि, बल्कि आत्मविश्वास और सच्चाई की ताकत होती है। विक्रम को लगता था कि अब उसकी यात्रा continue... हो गई है, लेकिन बेताल ने कुछ और प्रश्नों की तैयारी कर रखी थी।  विक्रम और बेताल का नया प्रारंभराजा विक्रम और बेताल एक बार फिर श्मशान के उस पुराने पेड़ के नीचे खड़े थे। विक्रम ने बेताल को कंधे पर डाला और सोचने लगा कि यह सबसे कठिन और अंतिम परीक्षा होनी चाहिए। लेकिन बेताल की हंसी गूंज उठी और उसने कहा,"राजा विक्रम, तुम्हारा साहस और ज्ञान काबिलएतारीफ है। तुमने मुझसे हर बार उत्तर दिया, लेकिन आज तुमसे एक अंतिम परीक्षा लूंगा। तुम इसे हल कर सको तो मैं तुम्हारा साथ छोड़ दूंगा।"विक्रम ने बेताल की बातों को ध्यान से सुना और उत्तर दिया,"तुम्हारा हर सवाल, बेताल, मेरी परीक्षा नहीं बल्कि मेरी आत्मा की परीक्षा है। मैं तैयार हूं।" बेताल का अंतिम प्रश्नबेताल ने एक गहरी सांस ली और कहा,"तो सुनो, राजा विक्रम। यह प्रश्न तुम्हारी सबसे बड़ी परीक्षा होगी। एक राजा था, जो अपने प्रजा का उद्धार करने के लिए हर मुश्किल से जूझता था। वह जानता था कि सिर्फ अपने राजसिंहासन की रक्षा करना ही उसका कर्तव्य नहीं था, बल्कि अपने प्रजा के जीवन में शांति और समृद्धि लाना भी उतना ही महत्वपूर्ण था। एक दिन, वह राजा एक गंभीर संकट में फंस गया, और उसे निर्णय लेना था कि क्या वह अपनी खुद की खुशियों को त्याग कर अपने प्रजा के कल्याण के लिए कुछ बड़ा बलिदान करेगा?"बेताल ने रुकते हुए विक्रम की आंखों में देखा और फिर आगे कहा,"तुम्हारे सामने वही सवाल है, विक्रम। क्या तुम अपने व्यक्तिगत सुखों को त्यागकर अपने प्रजा के लिए एक बड़ा बलिदान करोगे?"विक्रम चुपचाप सोचने लगा। यह प्रश्न न केवल उसकी सोच को चुनौती दे रहा था, बल्कि उसकी आत्मा की गहराई में प्रवेश करने का एक मौका था। उसने कहा,"कभीकभी एक राजा को अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं को पीछे छोड़ कर सिर्फ अपने प्रजा के भले के बारे में सोचना होता है। यही असली बलिदान है।" प्रश्न का उत्तर और बेताल की अंतिम हारराजा विक्रमादित्य ने जवाब दिया,"अगर एक राजा अपनी प्रजा के लिए अपना व्यक्तिगत सुख त्यागता है, तो यही असली बलिदान है। लेकिन बलिदान केवल उस समय होता है जब कोई उसे स्वेच्छा से और सच्चे दिल से करता है। किसी भी बलिदान का उद्देश्य सिर्फ यह नहीं होना चाहिए कि वह दुखी हो, बल्कि यह होना चाहिए कि उससे दूसरों को खुशी और शांति मिले। यही सच्चे बलिदान की पहचान है।"बेताल की हंसी एक बार फिर गूंज उठी। लेकिन इस बार उसकी हंसी में कोई जीत की खुशी नहीं थी। वह बोला,"तुमने सही उत्तर दिया, विक्रम। तुम्हारी बुद्धि और सच्चाई ने मुझे हराया। अब मैं तुम्हारा साथ छोड़ूंगा। तुम जीत गए हो।" राजा विक्रमादित्य की विजयबेताल ने आखिरी बार अपनी भयानक रूप में विक्रम से विदा ली, और वह अंधेरे में गायब हो गया। राजा विक्रमादित्य ने गहरी सांस ली, और अपने भीतर का संतुलन महसूस किया। वह अब पूरी तरह से विजयी हो चुका था, न केवल बेताल पर, बल्कि अपने जीवन की सबसे बड़ी परीक्षा में भी।राजा विक्रम ने अपने राज्य लौटते समय यह सीखा कि असली शक्ति केवल बाहरी बल से नहीं आती, बल्कि सही फैसलों, सच्चाई और बलिदान की भावना से उत्पन्न होती है। अब वह न केवल एक महान राजा थे, बल्कि एक सच्चे नेता भी थे, जो अपने प्रजा के भले के लिए कुछ भी कर सकते थे। राजा विक्रमादित्य की यात्रा अब समाप्त हो चुकी थी, और बेताल, जो विक्रम की परीक्षाओं के रूप में एक चुनौती था, अब अंततः उसे छोड़ चुका था। विक्रम ने वह सारी परख पूरी कर ली थी, जो उसे अपने आत्मविश्वास, साहस और निर्णय लेने की क्षमता को परखने के लिए चाहिए थी।राजा विक्रमादित्य ने अपनी सारी परीक्षाओं में न केवल अपनी बुद्धि का, बल्कि अपने दिल की सच्चाई, न्याय और प्रजा के प्रति कर्तव्य का भी प्रदर्शन किया था। उसकी इस यात्रा ने उसे न केवल एक महान शासक बल्कि एक सच्चे मानवता के सेवक के रूप में भी स्थापित किया।राजा विक्रमादित्य के राज्य लौटने पर, वह पहले की तरह आदर्श शासक बनकर उभरे। उनके फैसले अब और भी मजबूत, न्यायपूर्ण और प्रेरणादायक थे। उन्होंने यह समझ लिया था कि एक सच्चे शासक को अपने व्यक्तिगत सुखों और इच्छाओं को त्यागकर अपने प्रजा के कल्याण के लिए काम करना चाहिए। उन्होंने अपने राज्य में धर्म, सत्य और न्याय के आधार पर शासन किया और अपने लोगों के दिलों में स्थायी स्थान बना लिया।राजा विक्रम ने यह भी महसूस किया कि बेताल की कहानियाँ सिर्फ रहस्य नहीं थीं, बल्कि जीवन के गहरे सत्य और आवश्यकताओं का एक आईना थीं। वह यह जान चुके थे कि जीवन में सबसे महत्वपूर्ण बात है आत्मविश्वास, सही मार्गदर्शन और सच्चाई के साथ हर कदम उठाना।राजा विक्रमादित्य की विजय की कहानी हर युग में प्रचलित हुई, क्योंकि यह केवल एक राजा की परीक्षा की कहानी नहीं थी, बल्कि यह थी सच्चे शासक की पहचान और मूल्य की कहानी। आज भी, हम विक्रमादित्य की न्यायप्रियता और विवेक के बारे में सुनते हैं, और यह प्रेरणा प्राप्त करते हैं कि कैसे बुद्धिमत्ता, साहस और बलिदान के साथ एक सच्चे नेता का मार्गदर्शन किया जा सकता है।समाप्त..