Jungle - 24 in Hindi Thriller by Neeraj Sharma books and stories PDF | जंगल - भाग 24

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जंगल - भाग 24

                    ( देश के दुश्मन )

               धारवयक (2)

              माया ने जल्दी से ब्रेकफास्ट मे ब्रेड टोस्टर तैयार किये। और राहुल ने पैकट से दूध निकाला, और काफ़ी के दो कप तैयार किये। वो पता नहीं खिझा हुआ अधिक था। आदमी के वशीभूत ज़ब कुछ नहीं होता, तो शायद यही होता होगा। माया को भी उतना ही दर्द था, ये वो जानता था... पेट जींस की डाली, शर्ट और जेक्ट, जेक्ट के बीच छोटा रिवाल्वर छे गोलियों का डाल लिया था। उसने बोला... " dsp को कोई खबर माया लगे न " राहुल ने जल्दी मे माया को कहा।

                 और दोनों बगला खोला छोड़ निकल गए थे, दोनों तेज कदम किये पलायन के मुताबिक बिखर गए थे। सीधा निकल गया राहुल, और माया बीच की गली से टेक्सी स्टेड को निकल गयी थी। दोनों बहुत चुकाने थे, इतने की आँख के सामने कोई चिड़िया पख भी मरती तो वो गिनने मे माहर लगते थे। वो चले जा रहे थे। लोकल बस मे बैठा राहुल ने सब को सरसरी निगहा से एक झलक सब सवारी को देखा, पचास के करीब बिबिया थी, और पांच सात आदमी होंगे, जो साथ वाला था, वो हेट लिए अजीब सा लगता था, उसकी शक्ल भी चीनी सी थी। हो सकता हैं कोई बज़ार का फ़ास्ट फ़ूडर लगता था... तभी कुछ इशारे से उसने कहा, " तुम भाग रहे हो, तुम्हारे बीच जो तकरार हैं, इंडस्ट्री लेवल की हो सकती हैं " उसने मस्तिक की रेखा नापते देखा। राहुल एक दम सभला... " समझा नहीं.. भागता तो हू मै " लेकिन आपको कैसे पता। " कया छुपा रहे हो " राहुल ने उसका गिरेबान थाम लिया।

             " कया करता बंदे " वो घबरा के छुड़ा के बोला ----" पागल हो कया, कान पे लगे स्पीकर मे बात कर रहा हू, मै कहा जानता हू आपसे। " लोगों ने बस मे हवड़ा तवड़ी कर दी। बस एकाएक रुकी।

              कंडेक्टर ने कहा, " उतरो, यहां जल्दी। "  राहुल कुछ कहे ही उतर गया... बस उसे छोड़ आगे निकल गयी।

वो कया बोल गया था, शायद पता नहीं, मुझे ऐसा झपटना नहीं चाइये था,  देखता वो करता कया.... तभी.. एक टेक्सी को बस के मगर लगा दिया उसने। यहाँ भी रूकती.. वो देख लेता वो हेट वाला गुलाबी नीली डार्क पेंटवाला उतरा या नहीं।

                  " --बस खाली हो चुकी थी। " उसने सिर को झंकोड़ा... किस फितफिती मे पड़ गए... तभी फोन की घंटी... मोबइल रिंग टोन... इंग्लिश गीत।

             " बारखुरदार " फिर चुप।

"--जिस टेक्सी मे बैठे हो, दो मिनट मे उड़ने वाली हैं,  गिरेबान को हाथ डालना मेहगा पड़ ने वाला हैं, लफगे।" 

               "सरदार जी जल्दी टेक्सी रोको..... जल्दी उतरो..." उसने खींच कर सरदार को उतार फेका... टेक्सी मे उतरने के बाद सरदार जी की आखें तनातन तन गयी।

      " कयो किया ऐसा तू... तेनु पता हेगा, ये चौधरी रुड़ा मल की टेक्सी हैं। " 

"बम्ब की खबर आयी थी " उसने कहा। " किधर से आयी, आटकवादी हो कया तुम ----" चौधरी ने उच्ची देना कहा।

तभी उधर से फोन आया।

" नहीं फटा, स्पीकर ऑन करो, इस सरदार के बच्चे को भी जरा सुना दो, ये आटकवादी हैं, इसे पुलिस की गिरफ्त मे करो, ये असले वेचता हैं, हराम का पिल्ला हैं, इसे अभी पुलिस को पकड़वाओ.... "  सरदार एक दम से सहम गया। राहुल कुछ कह पाता फोन कट चूका था।

सरदार बोला, " हमें माफ़ कर दो, जनाब... आटकवादी से बहुत डरता हू, इतना किसी से नहीं। " 

"चुप कर जा " एक चपेड़ उसकी गर्दन पे मारी... पीठ की तरफो.. आगे उसके सीने से चिपक गया।

(चलदा )---------------------(नीरज शर्मा )

निशुल्क उपन्यास हैं, सेवा करता हू, 

बोलो माँ सरस्वती की जय।