Jungle - 23 in Hindi Thriller by Neeraj Sharma books and stories PDF | जंगल - भाग 23

Featured Books
Categories
Share

जंगल - भाग 23

                  ( 1 धारावाहिक ) 

           भूमिका बताने से पहले, आप को बता दू, ये मेरा कपकपी पैदा करने वाला उपन्यास देश के दुश्मन बहुत ही चिड़चिड़ा सा पहरो से भरा उपन्यास होगा। इस मे आप कही से भी खोजेंगे, कुछ पता ये चल जाये, ये शर्त हैं आपसे। समझने वाले को इशारा, काफ़ी हैं। कोई जीवत हैं, तो बस आपनी शर्त के मदेंनजर, शर्त ये हैं दुश्मन आखिर कौन हैं, जो हमारे ही बीच बिच्छू बना बैठा हैं। Dsp तरुण का साथ एक बड़ा हौसला था। जग के मैदान को निकल पड़े.... बिना बताये राहुल, माया। कैसे जग जीत ते हैं जा हार जाते हैं... ये बुनेयाद पे आधारित होगा... एक सफर।

             --------------------------------------

             " माया कहा पर हो " राहुल ने फोन की चुपी तोड़ी। राहुल छोटा सा पेग बना के गले मे उड़ेल रहा था। याद था उसे जिनो ने भी पकड़ा हैं, ये कोई बहुत बड़ा गेंग न पकड़े जाने वाला होगा। " कया 2 वज रहे हैं, अभी तक जाग रहे हो। " राहुल ने अटपटे से कहा, "--जिसके पास कुछ नहीं हैं, न बेटा न कुछ... दौलत भी वही हैं माया।" भरे हुए गले से बोला।

        फोन पटक दिया राहुल ने, कयोकि वो सरूर तोड़ रहा था.... विस्की की बोतल खाली की और लुढ़क गया। घंटी वज कर फिर खुद पता नहीं कब चुप हो गयी।

            अगली सुबह ----- बुर्श कर रहा था... दरवाज़े पे माया थी, उसने कैमरे से देखा। चौकीदार को इशारा किया दरवाजा खुल गया। माया चुस्ती से अंदर आयी। अंदर आ कर सोफे सिटिंग पे बैठते हुए, सामने राहुल को देखा... जो गाउन मे था....

"आज की प्लेनिंग कया हैं। " माया ने नाजुक स्वर मे कहा। राहुल ने दो आमलेट बना कर टेबल पे रखे। एक खुद हाथ मे पकड़ खा लिया, चमच से माया ने ऐटिटूड दिखाया। माया ने अख़बार का पहला पेज पढ़ना शुरू किया...

राहुल फ्रेश और नहा के गाउन मे ही था। वो कुछ ऐसे दिख रहा था, जैसे आर पार वाली स्तिथि मे हो। अल्बते जुगनू का कया हैं, वो तो आपने असूल से चमकता ही हैं।

माया ने कहा ---" अगला कदम कया करे। " राहुल ने बैठते हुए कहा ---" नहीं पहले  उनको देखे, वो आगे कया कहते हैं, आग दोनों को उतनी हैं, तो उधर देख ले --" इसलिए माया के करीब बैठ कर उसने आपनी बाजु उसके कंधो पे रख लीं थी... इससे माया रोमचित हो गयी थी.. होंठ जिसपे हल्की लिपस्टिक गुलाबी कलर की लगी थी... वो राहुल के आगे परोसे हुए थे, एक हलका चूबन राहुल ने लिया... उसमे गर्मी कम थी।

किस्मत की बात थी, तभी फोन वज उठा... " मोबइल की इंग्लिश गीत की रिंगटोन थी, " उसी का फोन हैं " राहुल ने चिड़चिड़े पन मे कहा, " हेलो, जनाब मै राहुल बोल रहा हू  " उधर से फोन था किसी मोटी आवाज वाले रोबदार आदमी का, " और कौन हो सकता हैं, लगता हैं, मेरी कोई बात तेरे बेजे मे घुसी नहीं "  राहुल चुप था, तभी वो बोला, "  जनाब हम हैं ऐसे वैसे, आप बताये हम पैसे ले कर आये कहा " उधर से फोन पे चुपी थी, " हाँ, अब सुनो, अगर पुलिस को पता चला, पैसे भी गए, तो बच्चे और जो साथ हैं " फिर एक लम्मा सनाटा... " बिग मान बर्गर कंटीन " पास हैं सरदर जंग रोड़ पे "  वही मेरा आदमी ब्लेक कपड़े पहने मे मिलेगा, समझे... उसके पास आगे का अड्रेस हैं... कुछ किया तो सात पुस्त दफन समझो। "  फिर सनाटा था, एक लमी चुप थी।

(चलदा )                (  नीरज शर्मा  )

           ये उपन्यास पैसे कमाने का कोई साधन नहीं हैं मेरा, ये free मे आपको परसुत कर रहा हू।