Shubham - Kahi Deep Jale Kahi Dil - 41 in Hindi Moral Stories by Kaushik Dave books and stories PDF | शुभम - कहीं दीप जले कहीं दिल - पार्ट 41

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शुभम - कहीं दीप जले कहीं दिल - पार्ट 41

शुभम - कहीं दीप जले कहीं दिल ( पार्ट -४१)

डॉक्टर शुभम के घर बेटी प्रांजल और उसकी सहेली दिव्या आती है।
रूपा बताती है कि दिव्या हमारे दोनों की बेटी है।
शुभम मानने को तैयार नहीं है।
अस्पताल के एक केस के सिलसिले में डाक्टर शुभम अस्पताल में है और बेटी प्रांजल का फोन आता है।

अब आगे 

प्रांजल:- 'कितनी देरी लगेगी पापा?हम आपका इंतजार कर रहे हैं। दिव्या आपसे बातें करने के लिए उत्सुक हैं।हमने चाय नाश्ता कर लिया है , लेकिन आप सुबह से भूखे हैं। क्या आपने चाय नाश्ता किया है की नहीं? आपको अपनी सेहत का ख्याल रखना चाहिए। मैंने रूपा आंटी से बात की है।पापा आप मेरी बातें सुन रहे हैं?'

शुभम्:-'हां.. बेटा.  मैं अभी घर आ रहा हूं।अपने केबिन में बैठा हूं।बस थोड़ा सा काम निपटा दूं। अभी आया।'

कुछ ही मिनटों में डॉक्टर शुभम घर आ जाते हैं।

डॉक्टर शुभम:- 'प्रांजल बेटा, मैं थक गया हूं।   मैं फ्रेश होकर आता हूं, तुम मेरे लिए अच्छी चाय बनाओ। बहुत दिनों बाद तेरे हाथ की चाय नसीब में होगी।'

प्रांजल:- 'ठीक है पापा, आप फ्रेश होकर आए। मैं आपके लिए अदरक वाली अच्छी चाय बनाउंगी।और गरमागरम चपाटी बनाई है।चाय के साथ गरमा-गरम चपाटी खाना।  आप फ्रेश होकर आइये, मैं आपके लिए सब तैयार कर लूंगी।  आपने भी कई दिनों से मेरे हाथ की चपाटी नहीं खाई है।'

डॉक्टर शुभम:-'ब्रेड बटर खाया या नहीं और हां.. दिव्या ने चाय नाश्ता किया? दिव्या को चपाटी अच्छी लगती है? क्या उसे भी बनाना आता है?'

प्रांजल:- 'पापा हम रोज ब्रेड बटर खाते थे तो आज हमने यहां चपाटी बनाई है सो हमने चाय के साथ गर्म चपाटी खाई है।और दिव्या चाय नहीं पीती लेकिन वो कॉफ़ी पीती है । आपने घर में   कॉफ़ी रखीं थीं, अच्छा ही हुआ, वर्ना दिव्या भूखी-प्यासी रह जाती।पापा क्या आप कॉफी पीते हैं?'

डॉक्टर शुभम:-'अरे किसी दिन पी लेता हूं। कोई मेहमान कॉफी पीने वाले होते हैं इसलिए घर में रखना पड़ता है और उनको साथ देने के लिए भी पीनी पड़ती है।'

प्रांजल:-'ओह.. तो मेहमान रूपा एंटी है!  मैं जानती हूं रूपा आंटी को कॉफ़ी बहुत पसंद है।दिव्या ने मुझे बताया था। दिव्या अपनी सब बातें मुझसे शेयर करती है और मैं भी। और बताती हूं कि मेरे पापा कितने अच्छे हैं।अब बातें बहुत हो गई।पापा आप जल्दी से फ्रेश होकर आ जाओ।'

डॉक्टर शुभम:-'ठीक है बेटा।  और मुझे बताओ तुम्हें परितोष के बारे में क्या कहना है उससे कोई बात हुई?'

प्रांजल:- 'हां पापा, आप आकर आइये, मैं आपको भाई के बारे में सब बताउंगी।'

शुभम बेटी प्रांजल की बातें सुनकर खुश हो गया।

डॉक्टर शुभम फ्रेश होने चले गये।

प्रांजल किचन में आई तो देखा कि दिव्या किचन में काम कर रही थी।

प्रांजल:- 'अरे दिव्या, तुम मेहमान हो तुम्हें काम करने की जरूरत नहीं है। तुम थोड़ा आराम करो। मैं काम करते करते तुम्हारे साथ बातचीत करुंगी।'

दिव्या: अरे ये कैसी बातें कर रही है? क्या मैं पराई हूं! मैं अतिथि नहीं हूं। आपका घर है  आप मेरे दोस्त हैं  क्या आप मुझे अतिथि मानते हैं?  ऐसे बोलेंगी तो मैं रूठ जाउंगी। तुम तो जानती हो कि मैं कितनी जिद्दी हूं।तो मैं अभी अपना सामान पैक करती हूं और रूपा बुआ के घर जा रही हूं । किचन में हाथ बंटाना मेरा भी कर्तव्य है। मेरी मम्मी ने मुझे अच्छे संस्कार दिए हैं।'

प्रांजल:-'ओह.. तो तुम्हें रूठ जाना है ! ना बाबा ना, बड़ी मुश्किल से तुम्हें मना कर लाई हूं। क्या हमारी दोस्ती इतनी कच्ची है?अच्छा अच्छा.. तुम मेरे साथ हाथ बंटाना।लेकिन  पिताजी के लिए चपाटी मैं बनाऊंगी।  तुम चाय बनाओ,  क्या तुम्हें चाय बनाना आता है?'

दिव्या:- 'हां... मैं चाय बना सकती हूं, लेकिन तुम्हारी जैसी तो नहीं।आप अपने पापा से बात करें। तब तक मैं चाय और चपाटी बनाऊंगी। मैं घर पर अपने पिताजी के लिए चपाटी बनाती हूं।'

प्रांजल:- 'ठीक है...ठीक है... तुम ही बनाओ,नहीं करोगी तो तुम्हें अच्छा नहीं लगेगा। तुम जल्दी रूठ जाती हो।तुम तैयारी करो. और हां.. हम साथ में खाना बनायेंगे।'

इतना कहकर प्रांजल रसोई से बैठक कक्ष में चली गई।

कुछ ही मिनटों में डॉक्टर शुभम फ्रेश होकर आये।

बोले:- 'प्रांजल बेटा, जल्दी से चाय और चपाटी बनाओ।  मुझे भूख लगी है. मुझे अस्पताल भी जाना है।'

प्रांजल हँस पड़ी।
बोली:-'पापा तुम्हारे लिए तैयार हो रही हैं.  तब तक, चलिए मैं आपसे परितोष के बारे में बात करना चाहती हूं।'

डॉक्टर शुभम:-'मतलब दिव्या चाय और चपाटी बनाती है!  क्या उसे यह बनाना पसंद है?  दिव्या हमारी अतिथि है, उससे काम कराना मुझे अच्छा नहीं लग रहा।रूपा को पता चलेगा तो वह मुझसे लड़ेगी। मेरी बेटी से काम करवाते हो।'

प्रांजल:-'पापा, उसे खाना बनाना पसंद है।  दिव्या ने कहा कि वह कोई मेहमान नहीं हैं। उसे गुजराती खाना और साउथ का खाना बनाना भी आता है। हम दोनों साथ में खाना बनाने वाले हैं।अगर नहीं करेंगी तो रुठ जायेंगी और तो रूपा आंटी के घर चली जायेगी। बडी मुश्किल से समझा कर लाई हूं।वह बहुत भावुक है ,उसे मीठी डांट भी नहीं दे सकती ,वह फिर रोएगी।'

डॉक्टर शुभम:- 'ठीक है...ठीक है..'

तभी दिव्या चाय और चपाटी और दूसरा नाश्ता ले कर आई।
( आगे क्या होने वाला है? जानने के लिए पढ़िए मेरी धारावाहिक कहानी)
- कौशिक दवे