Gouv ka Ujala - 2 in Hindi Motivational Stories by simran bhargav books and stories PDF | गांव का उजाला - 2

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गांव का उजाला - 2

सूरज की पहली किरण जब नई दिल्ली की पतली गलियों को चूमती, तो ऐसा लगता जैसे यह शहर खुद को हर सुबह नया करता हो ।यही नया अनुभव अब निर्मय के लिए इंतजार कर रहा था।

जामिया विश्वविद्यालय के विशाल परिसर में कदम रखते ही निर्मय ने खुद को छोटे से गांव की सीमाओं से बाहर निकलते हुए पाया। सब कुछ नया था — लोगों की भाषा उनके पहनावे यहां तक कि उनकी सोच भी। पहले ही दिन क्लास में उसे महसूस हुआ कि यहां पर प्रतिस्पर्धा सिर्फ़ पढ़ाई में नहीं बल्कि खुद को साबित करने में भी है ।निर्मय ने एक कोने में बैठकर देखा कि छात्र-छात्राएं कितने आत्मविश्वास के साथ बोलते हैं लेकिन भीतर ही भीतर उसने खुद से वादा किया, अगर वह कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं?

शाम को हॉस्टल में ,उसके रूममेट्स ने उसका परिचय दिल्ली की असली धड़कन से करवाया— चांदनी चौक की गल, इंडिया गेट के सामने और जामिया की किताबों से भारी लाइब्रेरी निर्णय की आंखों में एक चमक थी ।उसे महसूस हो रहा था कि यह शहर उसे केवल किताबें ही नहीं बल्कि जिंदगी के असली सबक सिखाने वाला था। हर तरफ किताबों का अंबर दीवारों पर सजी प्रेरणादायक कहानियां और उन शहरों की चमक जिनके सपने हर सुबह उन्हें जागते थे यह सफर आसान नहीं होने वाला था

निर्मय के लिए शुरुआत में सब कुछ बहुत कठिन लगा  जब uske ही एक साथी ने उससे कहा हिन्दी माध्यम से यूपीएससी पास करना आसान नहीं है। तुम्हें क्या लगताहै upsc कोई हलवा हैं क्या ?जो तुम उसे आसानी से खा लोगे ।निर्मय  ko  उसकी बातें सुनकर थोरा तो बुरा लगा  पर वह उसकी बातों को अनसुना kar  दिया ।  लेकिन अगले ही क्षण  उसे यह डर भी सताने लगा ki कहीं वह भीड़ में तो नहीं खो जाएगा ।

क्लास के डिस्कशन में उसकी आवाज अक्सर दब जाते ,लेकिन उसने हार नहीं मानी। दिन भर लाइब्रेरी में बिताना और रात में नोट्स बनाना, उसकी दिनचर्या बन गई। एक दिन जब उसकी मौक टेस्ट का रिजल्ट खराब आया, तो वह अंदर से टूट सा गया, लेकिन उसी दिन एक सीनियर ने उसे समझाया यह सफर सिर्फ पढ़ाई का नहीं बल्कि धर्म और आत्मविश्वास का भी है ।उस दिन से उसने अपनी कमजोरी पर काम करना शुरू किया ,खास कर अपने कमजोर विषय सी— सेट पर। धीरे-धीरे निर्मय ने दिल्ली की ऊर्जा को अपने अंदर उतार लिया। उसने टॉपर्स की रणनीतियों को पढ़ा अपनी पढ़ाई का तरीका बदला और स्मार्ट वर्क करना सीखा। उसने खुद को छोटे-छोटे लक्ष्य  दिए  और हर बार उन्हें पाने पर खुद को शाबाशी दी ।इस दौरान उसने जामिया के स्टडी ग्रुप का हिस्सा बनकर नए दोस्त बनाया दोस्त सिर्फ साथ ही नहीं बल्कि उसके प्रेरणा स्रोत भी बन गए ग्रुप में हर कोई एक दूसरे की ताकत और कमजोरी को समझ कर मदद करता था ।अब उसका आत्मविश्वास और ज्ञान दोनों चरम पर था।

जब उसका पहला prelims क्लियर हुआ तो उसे लगा जैसे उसने आधी जंग जीत ली,लेकिन असली लड़ाई मेंस और इंटरव्यू में थी ।मेेंस के लिए उसने दिन-रात एक कर दिए ।उसकी करी मेहनत और जुनून ने उसे न सिर्फ परीक्षा में बल्कि खुद के अंदर भी सुधार लाने का मौका दिया। इंटरव्यू के दिन वह बहुत घबराया हुआ था लेकिन जैसे ही उसने पैनल के सामने खुद को प्रस्तुत किया उसकी तैयारी और ईमानदारी ने सबको प्रभावित किया ।

पैनल के एक सदस्य ने उससे पूछा,

"आप इतने साधारण पृष्ठभूमि से आते हैं ।आप क्या खुद को बड़े स्तर पर काम करने के लिए तैयार मानते हैं" ?

उसने जवाब दिया,

"सर ,मैंने जिन परिस्थितियों से संघर्ष करके यहां तक पहुंचा हूं ,वही मुझे हर चुनौती का सामना करने के लिए तैयार करती है"।

जून की वह सुबह जब रिजल्ट आने वाला था। निर्मय ने रात भर नींद नहीं ली थी।  हाथ में  काफी का कप और सामने रखा — लैपटॉप की स्क्रीन पर टिके हुए उसकी धड़कनें तेज थी। यह  सिर्फ एक परीक्षा का परिणाम नहीं था ;यह उन अनगिनत रातों की मेहनत, घर से दूर रहकर सहा गया अकेलापन और हर छोटी— बड़ी चुनौती का नतीजा था। 

जैसे ही स्क्रीन पर उसका नाम आया, उसकी आंखों से आंसू बह  निकले ।खुशी ,गर्व और सुकून का एक ऐसा मिला-जुला भाव उसने पहले कभी महसूस नहीं किया था। उसने तुरंत अपने पिता को फोन किया ।

"पापा , आपका बेटा अफसर बन गया,!

फोन के दूसरी तरफ से  आती सिसकियाँ और खुशी की आवाज ne  उसके दिल को और भी भर दिया ।जब वह अपने गांव लौटा तो स्टेशन पर पूरा गांव इकट्ठा था । ढोल — नगारों के साथ उसका स्वागत किया गया। वह सोच रहा था यह वही लोग हैं जिन्होंने कभी उसकी क्षमता पर शक किया था ।लेकिन, अब उनकी आंखों में गर्व झलक रहा था।  पापा ने उसके माथे पर तिलक लगाया और कहा मैंने हमेशा कहा था मेरा बेटा एक दिन बरा काम करेगा ।उसने पापा के पैर छुकर , कहा पापा यह सब आपकी दुआ और विश्वास का ही नतीजा है ।

निर्मय ने तय   किया कि वह अपनी नई जिम्मेदारी का इस्तेमाल लोगों की जिंदगी बेहतर बनाने में करेगा । usne गांव में शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार का संकल्प लिया । उसका मानना था कि अगर उसे एक अवसर मिला है तो वह इसे औरों तक पहुंचाने की कोशिश करेगा ।

दिल्ली की यादें, जामिया का संघर्ष और दोस्तों की मदद हमेशा उसके दिल में एक प्रेरणा के रूप में जीवित रही।

"कुछ सपने देखने वाले होते हैं ,और कुछ सपने पूरे करने वाले।

मैंने यह सफर दोनों के बीच का पुल बनने के लिए किया ।

आज जब मैं इस मंजिल पर खड़ा हूं,

तो महसूस करता हूं की असली सफर अब शुरू हुआ है ।

  यह nirmay के अंतिम शब्द थे ।



इस कहानी को लिखने का श्रेय  un अनगिनत सपनों को जाता है ,जो हर दिल में पलते हैं ——

सिमरन भार्गव