Shubham - Kahi Deep Jale Kahi Dil - 27 in Hindi Moral Stories by Kaushik Dave books and stories PDF | शुभम - कहीं दीप जले कहीं दिल - पार्ट 27

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शुभम - कहीं दीप जले कहीं दिल - पार्ट 27

"शुभम - कहीं दीप जले कहीं दिल"( पार्ट -२७)

युक्ति का भाई रवि डोक्टर शुभम से बातचीत करते हुए बताता है 

रवि:-' यह निर्दोष हरि जरूर फंसने वाला है, मुझे लगा कि मुझे हरि के पास जाकर कहना चाहिए कि उसके आने से पहले ही यह घटना घट चुकी होगी।  तभी पुलिस की गाड़ी का सायरन बज उठा।मैं डर गया था। मुझे चिंता थी कि पुलिस मुझसे पूछेगी कि मैं आधी रात को क्या कर रहा था।  तो क्या जवाब दूं, कहीं हत्या का आरोप मुझ पर तो नहीं लग जाता।  मैं धीरे-धीरे खिसकने की कोशिश कर रहा था कि तभी पुलिस हरि के पास पहुँच गई।  हरि ने पिता की छाती से खंजर निकाल दिया था।  पुलिस का मानना था कि खुन हरि ने हत्या की थी और उसे गिरफ्तार कर लिया।  मै घबरा गया था, क्या करुं ऐसा सोचने की मेरी हिम्मत नहीं थी।मैं धीरे-धीरे घर की तरफ भागा।मैंने घर आकर किसी से कुछ नहीं कहा और चुपचाप बिस्तर पर सोने की कोशिश करने लगा, मुझे पता था कि पापा के शव की पहचान होते ही पुलिस मेरे घर आएगी।
वैसे मुझे लगता था कि पिताजी की हत्या किसने की है वह बताना चाहिए। लेकिन कहने की मेरी हिम्मत नहीं थी। एनेक सवाल पूछेंगे इसलिए मैंने कुछ नहीं बताया।घर में मेरी माँ और युक्ति भी जाग रही थीं, वो दोनों आपस में धीरे-धीरे बातें कर रही थीं, मुझे कोई दिलचस्पी नहीं थी कि वो क्या बातें कर रहे हैं।  मुझे हरि की चिंता थी। सोच रहा था कि दस तोले सोने और हीरे की अंगूठी कौन ले गया होगा! हरि का हाथ खाली था।क्या पिता की मृत्यु चोर से लड़ते हुए हुई थी?  ऐसा लगता है कि कोई चोर ही होगा। क्योंकि जो चीज़ सामने आ रही है वो दिख नहीं रही। मेरी शंका कुशंका बढ़ गई थी।शायद पुलिस को जांच के दौरान वो पास में ही पड़ी मिल जाए तो बेहतर होगा।"

डॉक्टर शुभम:-"इतना कुछ हो गया और आपने उस घर में कुछ नहीं कहा? आप क्यों चुप रहे थे? एक निर्दोष व्यक्ति को फंसा दिया गया। माना कि तुम्हारे पिता मर गए थे लेकिन तुम्हें मालूम था कि हरि निर्दोष है और तुम उसका हित चाहते भी थे।"

रवि:-"हां, मुझे पता था कि पापा की हत्या हुई है। लेकिन मेरी लाठी से नहीं मारे गये। मैं बहुत डरा हुआ था। मुझे हरि पर भी दया आ रही थी। मुझे यकीन था कि पुलिस जांच में हरि निर्दोष साबित होगा।  किसी और ने पिताजी को चाकू से मार दिया होगा। साथ ही, चोर पैसे के साथ भाग गया होगा या नजदीक छीप गया होगा। पुलिस सही जांच करेगी तो खूनी चोर पकड़ा जाएगा। मैं पुलिस का सामना नहीं कर सकता था। चुपचाप मैं सोना चाहता था।थोड़ी देर बाद मेरी माँ ने कहा कि रवि,देख तो सही अभी तक तेरे बापू नहीं आये है ?इतनी देर तक बाहर रहना ठीक नहीं है।क्या कुछ गड़बड़ तो नहीं है? मां की बात सुनकर मैं घबरा गया था। मैं ने कहा बापू आ जायेंगे। बापू बड़े है, अपनी जिम्मेदारी मालूम है। शायद कोई काम आ गया होगा। मैं झूठ बोला लेकिन मेरा दिल रो रहा था। न सिर्फ बापू की हरकतों से बापू ने अपनी जान गंवाई, लेकिन एक निर्दोष व्यक्ति ख़ून केस में फंस गया। हरि बाल बच्चे वाला था और भला इन्सान था। उसके बारे में मैं ग़लत सोच भी नहीं सकता था।"

डॉक्टर शुभम:-"तो फिर क्या हुआ? आपके घर वालों को कब पता चला कि तुम्हारे बापू की हत्या हुई थी?फिर आधी रात को पुलिस आपके घर आई थी? क्या पुलिस ने अपनी कार्रवाई ठीक से नहीं की थी? युक्ति का रिएक्शन क्या था?क्या  पुलिस ने आपके पिता की हत्या की सूचना दी? युक्ति ने ऐसा क्या किया या वे गिरफ्तार हो गई? इस षडयंत्र में युक्ति क्यूं सामिल हुई जबकि वह हरि को चाहती थी। मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा। तुम सही सही बताओं, क्या हुआ था?"

रवि:-" मैं मेरी बातें फिर से दोहराता हूं। मैं ने माताजी को उत्तर दिया कि पिताजी आएंगे।आधी रात को गांव में कहा कहां ढूंढूं,मैं भी थक गया हूं। मुझे आराम करने दीजिए। लेकिन कुछ मिनटों के बाद पुलिस की गाड़ी मेरे घर आई। पुलिस की गाड़ी की सायरन से मैं चौकन्ना हो गया था। मेरे दिल की धड़कनें तेज हो गई थी ‌उन्होंने घर पर दस्तक दी । मेरी मां ने दरवाजा खोला और देखा कि पुलिस है। पुलिस ने हमें पिताजी की हत्या के बारे में बताया और बताया कि हत्यारा हरि है जो आपका किरायदार था, उसे वारदात स्थान पर पकड़ लिया  है। मुझे यह पता था। इसलिए मैंने चौंकने का नाटक किया। मैंने माता को शांत रखने की कोशिश की। वह रो रही थी।और शव की पहचान करने के लिए हमें पुलिस स्टेशन बुलाया ।मैंने पुलिस इंस्पेक्टर को बताया कि वह अपने साथ दस तोला सोना ले गया है, उन्हें मौके से सोना या हीरे की अंगूठी नहीं मिली है, लेकिन हरि को एक चाकू और पूजापाठ के सामान के साथ पकड़ा गया है और मौके से मोमबत्तियां मिली हैं, चाकू और लाठी पर उंगलियों के निशान जांच के लिए भेजे जाएंगे।''
( क्रमशः)
- कौशिक दवे