अध्याय 55
उत्तुकोत्तई आंध्र बॉर्डर में बहुत सारी शराब की दुकानें थी। दुकानों पर बहुत सुंदर लाइटें लगा कर सजाया हुआ था। सब दुकानों पर जो बोर्ड लगा हुआ था वह देखने लायक था। उसके किनारे आकर एक कार खड़ी हुई।
कार के अंदर विवेक ने है अपने आप को दाढ़ी मूंछें लगाकर भेष बदला हुआ था। उसी ने गाड़ी को चलाकर लेकर आया था।
कार के अंदर बैठे हुए ही उसने संतोष से बात करनी चाही। इस समय पेरियापल्लयम को पार कर उनकी गाड़ी आ रही थी।
विवेक को संदेह होने की वजह से वह गलती से छूट न जाए इसलिए बी.एम.डब्ल्यू गाड़ी का इंतजाम किया हुआ था। उसमें संतोष के अलावा दो सिविल ड्रेस में पुलिस सब इंस्पेक्टरों के साथ चंद्र मोहन आ रहे थे।
जब संतोष का फोन बजा उसे उठा कर देखा तो वह वही नंबर विवेक का था।
“वही बुला रहा है। 30 मिनट में हम बॉर्डर में आ जाएंगे बोल दो। इससे ज्यादा एक शब्द भी नहीं बोलोगे” ऐसा उसको ऐसा आदेश देने के बाद वह भी,”हेलो…” बोला।
“संतोष, मैं हूं। अब फोन में बात करते समय सिर्फ हेलो करके बात शुरू मत करो। अपने अंडरग्राउंड में कोई भी इस शब्द को प्रयोग में नहीं लाते हैं। ‘एस सुप्रीम’ ऐसा शुरू करो।”
“ठीक है सर।”
“अभी तुम कहां हो?”
“पेरियापाल्लम ब्रिज को पार कर दिया। अब आधे घंटे में वहां पहुंच जाऊंगा।”
“गुड मैं यहां पलकै के पास हूं। काले रंग के मारुति ऑल्टो में हूं।”
“मारुति ऑल्टो में?”
“हां सिंपल गाड़ी हो तो पुलिस को संदेह नहीं होगा। ऐसी बहुत सी बातें हैं। तुम आओ, मैं तुम्हें बहुत कुछ सिखाऊंगा। हां उस महात्मा बूढ़े को पुलिस ने कैद कर लिया क्या?”
“किसके लिए बोल रहे हो?”
“किसको…वही तुम्हारा अभी का नया बाप; मेरे पिता का पार्टनर; अचानक बदल गए अच्छे आदमी कृष्णराज के बारे में बोल रहा हूं।”
“ओ, उनको…हां सर उन्हें पुलिस ने कैद कर लिया।”
“क्यों, बड़े डल लग रहे हो ऐसी ही बात कर रहे हो…अब से तू करोड़पति है। यही नहीं है, तुम्हारे द्वारा ही मैं अब सभी काम करने वाला हूं। 5 किलो कोकिण, 5 किलो ब्राउन शुगर, ऐसे कई चीजें एक रहस्य पूर्ण स्थान पर है।
“उसे सिलोन को, वेस्ट बंगाल को भेजना है। वह कहां है…उसे कैसे भेजना है, सारी बातें तुम्हें आने पर बताऊंगा। मुझे इतनी देर फोन पर बात नहीं करना चाहिए था। तुम एक बात को अच्छी तरह समझ लो। यह फोन जितने फ्रेंडली है उतने ही एनीमी भी है!
“अपनी सभी बातें एक सॉफ्टवेयर डिस्क में जमा होता जाएगा। साइबर क्राइम वालों को इसे कैसे निकालना है अच्छी तरह पता है। इसीलिए रहस्य कुछ भी इस फोन से बात नहीं करना चाहिए। इन सब के लिए कोड वर्ड है। मैं तुम्हें सिखाऊंगा।
“उदाहरण के लिए कोलकाता का मतलब है स्टोन कटर, कोड वर्ड में बोलना चाहिए। ऐसी बहुत सारी बातें हैं। तुम आ जाओ। तुम अब तमिलनाडु के हमारे एजेंट हो…” ऐसे बड़े खुशी से उछल रहा था संतोष।
चंद्र मोहन को देखते हुए संतोष अपने शरीर को टेढ़ा-मेढ़ा करने लगा।
‘बोलो बोलो…’ इशारा करने लगे चंद्र मोहन।
“राइट अब मिलेंगे तब बात करेंगे। ध्यान रखो कोई तुम्हारा पीछा तो नहीं कर रहा है। यह इंटरकॉम पुलिस दौड़कर पकड़ने में उस्ताद हैं हमें ही बड़ी चतुराई से रहना पड़ेगा ठीक है मैं रखता हूं” फोन के कटते ही संतोष घबराहट के साथ चंद्रमोहन को देखा।
“सब कुछ सुना तुमने…कैसे अंतरराष्ट्रीय स्मगलर का गुट है। इस गुट में तुम कैसे फंसे हो मालूम है?” उन्होंने पूछा।
चुपचाप मोहन से आंखें फाड़ कर देखा।
“तुमने कुछ पुण्य किया है। इसीलिए तुम्हारी पत्नी के रूप में आकर उसने तुम्हें बचा लिया। तुम लालची हो, पर तुम्हें न्याय पूर्ण ढंग से जिंदगी चलाने के लिए ही एक ऐसी पत्नी मिली है, यह सोच कर तुम्हें खुश होना चाहिए।
“फिर अभी फंसाने वाले विवेक, उसके बाप दामोदरन और उस कृष्णराज…इन सभी को अब किसी भी हाल में वे लोग बाहरी दुनिया को नहीं देख सकते। मलेशिया पुलिस उन्हें ढूंढ रही है। वहां पर हमारे सरकार जैसे नहीं है। फंस गए तो फांसी ही है।
“सभी देशों में स्मगलिंग होता है। पूरा विश्व में इस नशे की दवाई के स्मगलिंग को रोकने के लिए युद्ध स्तर पर काम सभी देश कर रहें हैं। यह तो कोकिन, ब्राउन शुगर ऐसे बोलकर मेंढक जैसे मुंह फाड़ कर तुम्हें इसमें खींचने के लिए वह देख रहा है।
“तुम आखिर तक हमारा साथ दोगे, तभी हम तुम्हें छोड़ पाएंगे। और आगे भी तुमने ही इन्हें पकड़वाया कहकर तुम्हें रिवॉर्ड भी मिलेगा। रिवॉर्ड भी कितना है पता है?” सस्पेंशन के साथ चंद्र मोहन ने पूछा।
“कितना सर?” बहुत ही हीन वॉइस में संतोष ने पूछा।
“कम से कम 50 लाख रुपए। एक करोड़ तक भी मिल सकता है। क्योंकि यह लोग पूरे दुनिया जिन्हें ढूंढ रही है वे क्रिमिनल्स यही हैं। फिर मुझे भी प्रमोशन मिलेगा। ‘इंडियन इंटरपोल हेड’ होने का मुझको चांस मिल सकता है…” चंद्र मोहन के बोलने से संतोष के चेहरे पर एक बदलाव दिखाई दिया। वह एक लाख रुपए कहने पर वह सतर्क हो गया।
“आप कुछ भी कहें तो मैं सब कुछ मानूंगा सर” कहकर उनके हाथों को संतोष ने पकड़ लिया।
क्रोमपेट ‘शारदा चाइल्ड होम!’
उस संस्था के निर्वाही स्वामी चैतन्य परमानंद के सामने धनंजयन और कुमार बैठे हुए थे। वे पुराने रजिस्टरों को उलट पलट कर दिसंबर 25 तारीख को ढूंढ कर निकला। उसे देखकर वह बड़े खुश होकर देखने लगे। ‘स्वामी …’ कहकर धना और कुमार भी उत्सुक हुए।
अगले अध्याय में समाप्त