Apradh hi Apradh - 56 - Last Part in Hindi Crime Stories by S Bhagyam Sharma books and stories PDF | अपराध ही अपराध - भाग 56 (अंतिम भाग)

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अपराध ही अपराध - भाग 56 (अंतिम भाग)

अध्याय 56 

(अंतिम भाग)

“आप ढूंढने आए उस बच्चे के बारे में विवरण बिल्कुल स्पष्ट रूप से है। कॉरपोरेशन स्वीपर शंकर लिंगम का नाम भी इस एंट्री में है। परंतु…” ऐसा कह वे थोड़ा खींचने लगे। 

“क्या है स्वामी जी आप हमारी उत्सुकता को को बड़ाकर फिर, परंतु कह कर एक सदमा भी दें रहे हैं?”

“उस बच्चे को, उसी समय एक सज्जन ने आकर कानूनी तौर से गोद ले लिया था । अब वह लड़का 27 साल का होगा। 

“एक बहुत अच्छी बात है, उस बच्चों को सौंपते समय उनके माता-पिता के साथ हमने एक फोटो खींच कर रखा है। यह सब हमारे कानून के मुताबिक होता है। ……

आप चाहे तो मैं उस फोटो को आपको दिखाता हूं। 

“इसमें उस समय उनके माता-पिता के द्वारा दिया हुआ पता भी होगा। हम उन्हें 16 साल तक अपने निगरानी में रखते हैं। उस बच्चे का सही पालन पोषण कर रहे हैं…. कि नहीं। कहीं उस बच्चे को किसी को बेच तो नहीं दिया ! यह सब देखने के लिए? 

“ये सब बच्चे गोद लेने के कानून हैं…” ऐसा कहकर वे उठ कर गए और अलमारी खोलकर पते को और एल्बम को लाकर चैतन्य परमानंद जी ने दिया। 

धनंजय और कुमार दोनों को एक तरह से अजीब घबराहट हो रही थी। उन्होंने पहले फोटो को देखा। उस जमाने की वह रंगीन फोटो थी। पर अब थोड़ी पुरानी होने से धुंधली हो गई थी । उसको देखते ही कुमार और धनंजय का हृदय धक से रह गया। उसमें…!

संतोष की  गाड़ी को थोड़ी दूरी पर ही रोक दी गई। थोड़ी दूरी पर विवेक की गाड़ी थी। गाड़ी के सीधी तरफ कांच के द्वारा संतोष को उतर कर आते हुए विवेक ने देखा। 

कार के अंदर चंद्र मोहन और दूसरे दोनों सब- इंस्पेक्टर सर को झुकाए हुए गाड़ी में कोई नहीं है ऐसा लग रहा था। इसीलिए विवेक को कोई संदेह नहीं हुआ। 

कार के दरवाजे को खोलकर धीरे से विवेक बाहर आया। संतोष पहले विवेक को पहचान नहीं सका। उसे आंखें फाड़ कर देखने लगा। 

“क्यों संतोष…मुझे पहचान नहीं पा रहे हो क्या?” पूछते ही संतोष के समझ में आया। 

“सर आप हो?”

“मैं ही हूं। अब से मुझे इस तरह ही घूमना पड़ेगा। यह सब उस मलेशिया के रामकृष्णन का किया हुआ काम है। उसको बुरी तरह से परेशान और टॉर्चर करके सारी सच्चाइयों को मलेशिया के पुलिस ने उससे उगलवा लिया। जाने दो अब तुम भी बदल गए। तुम्हारा बी.एम.डब्ल्यू कार और बढ़िया सूट अरे! वाह?”

“यह सब आपका दिया हुआ ही भीख है सर।”

“ऐसा सब मन को भावुक मत करो। ’सेंटीमेंट’ सब अपने ग्रुप में नहीं होता। पुलिस में फंस जाओ तो अगले ही क्षण मर जाना चाहिए। इसीलिए दादा लोग हमेशा अपने हाथ में प्वाइजन का टैबलेट साइनाइड रखते हैं। उसको मुंह में डालते ही दसवें क्षण आदमी मर जाएगा।”

“फिर वह मलेशिया के रामकृष्णन ने ऐसा क्यों नहीं किया सर?”

“इंटरपोल कैद करते ही मुंह में प्लास्टर डाल देते हैं। हम कुछ करें तो हमसे बढ़कर वे काम कर देते हैं। तुमने उन्हें क्या सोचा?”

“ऐसे डराओगे तो कैसे सर?”

“मैं डरा नहीं रहा हूं। तुम्हें चेता रहा हूं। देखा ना मेरे अप्पा और कृष्णराज को कैसे उन्होंने उठा लिया? टीवी में वहीं अब हॉट न्यूज़ है” बोलते हुए अपने मोबाइल में एक न्यूज़ चैनल को ऑन कर उसे दिखाया। 

उसमें अंतरराष्ट्रीय स्मग्लरों को कैद कर रखा था। एक बच कर भाग गया!’ ऐसा न्यूज़ में लिखा था।

उसे दिखाते हुए, “चलो आओ…तुम्हारे कार में जाकर बैठकर बातें करते हैं। इस ऑल्टो में ए.सी. इफेक्टिव नहीं है” ऐसा कहकर संतोष के आए बी.एम.डब्ल्यू गाड़ी की तरफ विवेक जाने लगा। 

कार के पास जाकर दरवाजे को खोलते समय बंदूक की नोक को दिखाकर चंद्रमोहन ने गर्दन उठाई। 

विवेक फिर से दौड़ने की कोशिश करने लगा तो दोनों सब इंस्पेक्टर्स ने दूसरी तरफ कूद कर बंदूक दिखाई। उसमें से एक ने विवेक के दोनों हाथों को मोड कर पकड़ लिया। 

विवेक ने संतोष को देखा। “सॉरी सुप्रीम…” संतोष बोला।

कुछ महिने बीत जाने के बाद कोर्ट के द्वारा दिया गया विशेष जमानत पर अप्रूवल बनकर बाहर आए कृष्णराज।

धनंजय के बोले जैसे ही अपराधी भावनाओं के खत्म होते ही उनके शरीर की व्याधि ठीक होने लगी। अच्छा परिवर्तन दिखाई दिया। 

‘व्हीलचेयर में कोर्ट के बाहर आए, वहां अपने बेटे को पहले ढूंढने लगे। 

धनंजयन, ने कुमार को उनके सामने खड़ा करके “सर आपका बेटा यही है। यह सच्चाई उसे अनाथाश्रम के जाने के बाद ही पता चला। 

“कुमार, अडॉप्ट किया हुआ चाइल्ड है यह मुझे नहीं पता था। मुझे क्यों इसे भी पता नहीं था। इस हद तक उनके मां-बाप ने अच्छा पालन पोषण कर किसी को कुछ महसूस नहीं होने दिया” ऐसा कहते ही वे भी उनके सामने आए। 

कृष्णराज उनके पैरों में गिरने गए। कुमार उन्हें रोक कर “सर! सॉरी अप्पा…इन्हें भी अपने साथ रहने दो अप्पा…” वह बोला। 

अश्रु मिश्रित आंखों में खड़ी कार्तिका को पास बुलाकर कुमार उसके हाथ को धना के हाथों में देकर “अप्पा…धना अब आपका दामाद है अप्पा” वह बोला। 

उसे सुनकर कृष्णराज बहुत प्रसन्न हुए।

“धनंजयन, तुम सिर्फ मेरे दामाद ही नहीं हो, तुम भी मेरे दूसरे बेटे के समान हो” ऐसा कहकर उसके हाथों को पकड़ कर आनंद के आंसू उनकी आंखों से बहने लगे। 

उस कोर्ट के बाहर एक अपूर्व आश्चर्यजनक दृश्य को देखकर सभी लोग पुलकित होकर मीडिया कर्मियों के बीच में फंस गए। 

“यहां अभी कुछ भी नहीं होना होगा। ‘स्पेशल प्रेस मीट अरेंज करेंगे। वहां पर सर आप सबको संबोधित करेंगे” धनंजयन बोला।

कोर्ट में संतोष और उसकी पत्नी सुमति बच्चों के साथ आए हुए थे। उन्हें भी पास में बुलाकर उनके हाथों को पकड़ कर कृष्णराज बड़े खुश हुए।

“हम सभी अब एक हैं। मेरे अपराध का यही प्रायश्चित है” वे बोले। 

उसका समर्थन कर रहे जैसे आकाश से वर्षा की बूंदे गिरने लगी। 

 

समाप्त