Khamoshi ka Rahashy - 2 in Hindi Moral Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | खामोशी का रहस्य - 2

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खामोशी का रहस्य - 2

ट्रेन आने से पहले ही प्लेटफार्म पर खड़े लोग हरकत में आ गए थे।दीपेन ने उस युवती का हाथ पकड़ लिया था।ट्रेन प्लेटफ़ॉर्म पर रुकते ही यात्री ट्रेन में चढ़ने उतरने लगे थे।दीपेन भी उस युवती को जबर्दस्ती खींचता हुआ एक डिब्बे में चढ़ने में सफल हो गया था।डिब्बे में लोग खचाखच भर गए थे।एक दूसरे से सटकर खड़े थे।दीपेन को भी उस युवती से सटकर खड़े होना पड़ा था।
भीड़ इतनी थी कि एक दूसरे की सांस एक दूसरे को छू रही थी थी।ट्रेन रुकने पर लोग उतरते और चढ़ते थे।और चर्च गेट आने पर वे भी उतरे थे।नीचे उतरने पर पहली बार उसका मुंह खुला।वह बोली थी
अगर तुम न होते तो
"आज पूरे दिन ऐसी ही भीड़ रहेगी।कितने बजे आती हो लौटकर
छः बजे बाद
मैं इन तजार करूगा
चर्च गेट से उस युवती को ईस्ट में तो दीपेन को वेस्ट में जाना था।दोनों ने अपनी राह पकड़ ली थी।शाम को दीपेन ने स्टेशन पहुंच कर समय देखा।प्लेटफार्म पर लगी घड़ी छः बजकर बीस मिनट बता रही थी।वह उसके ििनतजार में खड़ा हो गया।भीड़ सुबह जैसी ही थी।प्लेटफार्म पर तिल रखने की जगह नही।
औऱ वह दस मिनट बाद उसे आती हुई नजर आयी।उसे देखकर वह उसकी तरफ बढ़ गया था।दीपेन को देखकर वह मुस्कराई थी।
"मेरा नाम दीपेन है,"अपना नाम बताते हुए वह बोला,"तुम्हारा नाम जान सकता हूँ
"माया।"
"माया बड़ा प्यारा नाम है,"कोई सोने के दिल वाला
"मतलब
"देवानंद की पिकचर माया देखी है तुंमने
"नही
"उसी फ़िल्म का यह गाना है
"गाने के शौकीन हो
"हां।आजकल के सोरगुल वाले नही।पुरानी फिल्मों के गाने
वे बाते कर रहे थे तभी ट्रेन आ गई।दीपेन,माया का हाथ पकड़कर जबरदस्ती एक डिब्बे में चढ़ गया था।
दोनों वर्लु से आते और जाते थे।वर्ली स्टेशन आने पर दोनों उतर गए थे।प्लेटफार्म पर दीपेन बोला ,"अब तुम्हे किस साइड जाना है
"वेस्ट,"माया बोली,"और तुम्हे
""ईस्ट,"दीपेन बोला,"सुबह नो बजे की लोकल पकड़ती हो
"हां
"मेरा इन तजार करना
और फिर वे साथ आने जाने लगे।दोनों अलग अलग दिशा से आकर मिलते।ट्रेन में उनका साथ रहता।और चर्च गेट पर अलग अलग दिशा में चले जाते।यह
सिलसिला चलता रहा।वे प्लेटफार्म पर मिलते ट्रेन आने पर चले जाते।उनके बीच औपचारिक बाते ही होती।औऱ काफी दिन गुजरने पर एक दिन वापस लौटते समय दीपेन बोला
कल सन्डे है
"हां
"मेरी छुट्टी है,"दीपेन बोला,"तुम्हारी
"सन्डे को मेरी भी छुट्टी रहती है
""कल पिजचर देखने के लिए चले?दीपेन ने प्रस्ताव रखा था
"कौनसी पिक्चर
"जो भी तुम्हे पसन्द हो।"दीपेन बोला था
"कमाल है प्रस्ताव तुंमने रखा है और पूछ मुझ से रहे हो?माया बोली थी
""मैं कोई नाम बताऊ औऱ तुम्हे एतराज हो तो
"मुझे कोई एतराज नही होगा
"तो ऐतराज ही देखते हैं,"दीपेन बोला,"कल बारह बजे स्टेशन आ जाओ
"ठीक है।आ जाऊंगी
"एक बात औऱ"दीपेन बोला था।"क्या
"खाना खाकर मत आना
"क्यो?
"होटल में खाएंगे
"और कुछ
"नही।बस तुम आ जाना
और अगले दिन मिलने का वादा करके वे अपने अपने घर चले गए थे
दीपेन रात को ढंग से सो भी नही पाया।पहली बार उसे किसी लडक़ी के साथ जाना था।वह रात भर माया के बारे में ही सोचता रहा।
सुबह वह जल्दी बिस्तर से उठ गया।वैसे छुट्टी वाले दिन आराम से उठता था।स्टेशन उसे बारह बजे पहुचना था।यह टाइम उसी ने दिया था।एक एक पल काटना भारी पड़ रहा था।और वह गयारह बजे ही स्टेशन जा पहुंचा
और माया का ििनतजार करने लगा
"